नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ में भाग लेने वाले मसीही - आनन्दम
चर्च में भी ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ की वर्दी में जाया करते थे आनन्दम
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने नारा दिया था - ‘तुम मुझे अपना ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।’ तब इसी नारे से प्रेरित होकर सभी वर्गों व धर्मों के बहुत से युवा स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े थे। तब तामिल नाडू के कराईकुड़ी के निवासी एक मसीही युवा आनन्दम भी नेता जी से बहुत प्रभावित हुए थे। वह अपने बेहतर भविष्य के लिए तब बर्मा (अब म्यांमार) के रंगून (अब यैंगन) में जाकर बस गए थे। तब वह अभी अपनी स्कूल की शिक्षा की पूर्ण कर रहे जब वह भारत के स्वतंत्रता आन्दोलनों की ओर आकर्षित हो गए थे। उन्होंने नेता जी की फ़ौज में भर्ती होने की अपनी इच्छा अपने माता-पिता अपने एक अंकल से कही परन्तु उन सभी ने उनका विरोध किया था। परन्तु वह एक दिन अपने घर वालों को बिना बताए घर से भाग गए तथा आज़ाद हिन्द फ़ौज में भर्ती हो गए। तब उनकी आयु केवल 18 वर्ष थी। 16 अप्रैल, 1944 को वह इस फ़ौज में भर्ती हुए थे। उन्हें फ़ील्ड रैजिमैन्ट युनिट 103 में प्रशिक्षण दिया गया था। उन्हें दीवारों पर देश-भक्ति के कई प्रकार के नारे लिखने का कार्य सौंपा गया था। वह चार जन के एक समूह का भाग थे। कुछ बार उन्हें अन्य लोगों के लिए कोई गुप्त रिपोर्ट तैयार करने का कार्य भी दिया गया था। वह प्राय चर्च भी आज़ाद हिन्द फ़ौज की वर्दी में ही जाया करते थे, ताकि अन्य मसीही लोग भी कुछ प्रेरणा लें। उनकी इन्हीं सक्रियताओं के कारण उन्हें रंगून की जेल में 21 मई, 1945 से 28 फ़रवरी, 1946 अर्थात नौ माह व सात दिनों तक जेल-यात्रा करनी पड़ी थी।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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