बहुचर्चित पत्रकार थे पोठान जोसेफ़
महात्मा गांधी, ऐनी बेसैंट, सरोजिनी नायडू, मोतीलाल नेहरु व मोहम्मद अली जिन्नाह जैसी शख़्सियतों के साथ रहे पोठान जोसेफ
पोठान जोसेफ़ ज़्यादातर भारत की स्वतंत्रता से 20 वर्ष पूर्व तथा उसके 20 वर्ष पश्चात् तक सक्रिय रहे थे। उन्हें महातमा गांधी, ऐनी बेसैंट, सरोजिनी नायडू, मोतीलाल नेहरु व मोहम्मद अली जिन्नाह जैसी शख़्सियतों के साथ कार्य करने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। उनका ‘ओवर ए कप ऑफ़ टी’ नामक एक कॉलम अख़बारों में बहुत चर्चित हुआ था, जिसमें वह पवित्र बाईबल से विभिन्न आयतों के हवाले भी दिया करते थे तथा साथ में अन्य समकालीन व अन्य प्रसिद्ध ऐतिहासिक बौद्धिक चिन्तकों व लेखकों की बातों को याद किया करते थे। उस कॉलम में चार्ल्स डिक्नसन को वह अधिक याद किया करते थे।
भारत के विलक्ष्ण काटूर्निस्ट शंकर की खोज की पोठान जोसेफ़ ने
यह पोठान जोसेफ़ ही थे, जिन्होंने भारत के विलक्ष्ण कार्टूनिस्ट शंकर की खोज की थी। शंकर का पूरा नाम केश्व शंकर पिल्लै था। उनका जन्म 1902 में केरल के कायमकुलम में हुआ था। वह 1932 में दिल्ली में आकर बस गए थे, जब अंग्रेज़ी के दैनिक समाचार-पत्र ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ के संपादक पोठान जोसेफ़ ने उनकी सेवाएं एक कार्टूनिस्ट के तौर पर ली थीं। वह 1946 तक इसी अख़बार से जुड़े रहे थे।
श्री जोसेफ़ ने कुल 26 समाचार-पत्र प्रारंभ किए थे या विकसित किए थे; जिनमें से हिन्दुस्तान टाईम्स, इण्डियन एक्सप्रैस व डैक्न हैराल्ड प्रमुख थे। वह 1942 में ‘डॉन’ के प्रथम सम्पादक रहे थे, जो आज पाकिस्तान का प्रमुख अख़बार है, तब वह नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ करता था। इस अख़बार के सम्पादक का पद छोड़ कर वह किसी सरकारी पद पर चले गए थे।
पोठान जोसेफ़ ने अपने सम्पादकी लेखों व अन्य लिखित रचनाओं से सदा भारत के हित की बात की। वह पत्रकारों के हितों की भी बात करते रहे।
‘ए रोलिंग स्टोन...’
श्री पोठान के जीवन में कुछ ऐसे अवसर आते रहे कि उन्हें कई बार अख़बारों की नौकरियां बदलनी पड़ीं। इससे उनसे ईर्ष्या करने वाले कुछ शरीक लोगों ने अंग्रेज़ी की कहावत ‘ए रोलिंग स्टोन गैदर्स नो मौस’ का ताना दिया, जिसका अर्थ होता है कि ‘‘उँचाई से नीचे गिर रहे पत्थर का भार नहीं होता’’ अर्थात किसी समकालीन पत्रकार का कहने का मतलब केवल यही था कि ‘पोठान जोसेफ़’ जैसे कभी इधर से उधर जाने वाले लोगों का कोई महत्त्व नहीं होता। हिन्दी में इसके मुकाबले में यह कहावत कही जा सकती है ‘थोथा चना बाजे घना’ - लेकिन बात केवल अंग्रेज़ी की कहावत से ही समझ में आएगी, हिन्दी से नहीं।
जब पोठान जोसेफ़ को ज्ञात हुआ कि कि किसी ‘शुभचिंतक’ ने उनके बारे में ऐसी टिप्पणी की है, तो उन्होंने अपने प्रसिद्ध कॉलम में इसका उत्तर देते हुए कहा कि - ‘ए रोलिंग स्टोन डज़न्ट नीड मौस’ अर्थात ‘‘उँचाई से नीचे गिर रहे पत्थर को भार की कोई आवश्यकता नहीं होती’। उनकी यह बात बहुत देर चर्चा का विषय बनती रही।
प्रारंभिक वर्ष व मरणोपरांत पदम भूषण पुरुस्कार
पोठान जोसेफ़ का जन्म 13 मार्च, 1892 को केरल के चेंगान्नूर में हुआ था। उन्होंने मद्रास स्थित प्रैज़ीडैन्सी कॉलेज से फ़िज़िक्स में ग्रैजुएशन उतीर्ण की थी। युनिवर्सिटी ऑफ़ बौम्बे से उन्होंने एल.एल.बी. की डिग्री लेकर वकालत पास की। परन्तु उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस करने के बारे में कभी नहीं सोचा। उसके स्थान पर वह ‘हैदराबाद बुलेटिन’ के लिए लिखने लगे। उनकी वही रचनाएं 1918 में ‘दि बॉम्बे क्रॉनिकल’ में उनकी नौकरी पक्की होने का आधार बनीं।
पोठान जोसेफ़ को मरणोपरांत पदम भूषण पुरस्कार दिया गया था।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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