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भारतीय चर्चों की एकजुटता के मुद्दई बिश्प वेदन्याकम सैमुएल अज़रियाह



एंगल्किन कम्युनियन चर्च के प्रथम भारतीय बिश्प अज़रियाह

स्वतंत्रता संग्राम में बिश्प वेदन्याकम सैमुएल अज़रियाह के योगदान को कौन भुला सकता है। 17 अगस्त, 1874 को तामिल नाडू के ठुठुकुड़ी ज़िले के गांव वेलालनविलाई में पैदा हुए श्री वेदन्याकम सैमुएल अज़रियाह एंगल्किन कम्युनियन के चर्चेज़ के प्रथम भारतीय बिश्प थे। वह डॉरनॉकल डायोसीज़ के पहले बिश्प नियुक्त हुए थे। भारतीय गिर्जाघरों को एकजुट करने में उनका योगदान वर्णनीय रहा है।


किसी समय राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी के बहुत करीब रहे बिश्प अज़रियाह पर बाद में...

एक समय में वह राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी के बहुत करीबी थे। परन्तु बिश्प अज़रियाह का बाद में गांधी जी के साथ तीखा विरोध भी हो गया था - इतना तीखा कि गांधी जी ने एक बार उन्हें अंग्रेज़ शासन की समाप्ति के पश्चात् ‘भारतीयों का दुश्मन नम्बर 1’ तक कह दिया था।


गांधी जी के साथ राष्ट्रीय आन्दोलनों में लिया था भाग

Bishop Azariah धार्मिक स्वतंत्रता व मसीही प्रतिनिधित्व के लिए बिश्प अज़रियाह ने कई बार गांधी जी के साथ राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लिया था। परन्तु अपने अन्तिम समय में गांधी जो को लगने लगा था कि भारतीयों के धर्म-परिवर्तन करके तेज़ी से ईसाई बनने की प्रक्रिया में भारत को ख़तरा हो सकता है। इसी बात को लेकर बिश्प अज़रियाह व गांधी जी के मध्य तीखे मतभेद उत्पन्न हो गए थे। बिश्प अज़रियाह भी अपने स्थान पर कट्टर राष्ट्रवादी थे व भारत को अत्यंत प्यार करते थे और वह मानते थे कि ‘‘हिन्दु धर्म की जाति प्रथा देश के लिए विनाशकारी है और सदियों से भारत की कथित उच्च जातियों ने तथाकथित निम्न वर्गों का शोषण ही किया है और उन्हें कभी ऊपर नहीं आने दिया।’’ इन्हीं बुनियादी बातों को लेकर इन दो प्रमुख रहनुमाओं में विवाद पैदा हो गए थे।


बिश्प अज़रियाह ने जानबूझ कर किया था गांधी जी के आन्दोलनों का विरोध

बम्बई में मसीही समुदाय की अखिल भारतीय कान्फ्रेंस में देश के अन्य समुदायों की राष्ट्रवादी इच्छाओं का समर्थन किया गया था। परन्तु उस समय बिश्प वी.एस. अज़रियाह (दक्षिण भाारत के प्रोटैस्टैन्ट बिश्प) ने तब अपने विचार प्रकट करते हुए था कि अवज्ञा आन्दोलन व असहयोग आन्दोलन जैसे अभियानों से देश को स्वतंत्रता नहीं मिल सकती परन्तु तब बहुत से मसीही नेताओं ने बिश्प के इस ब्यान की सख़्त निंदा की थी। श्री एस.के. जॉर्ज जो उस समय गांधी जी के बहुत नज़दीक थे, ने भी बिश्प अज़रियाह की सख़्त आलोचना की थी। वैसे बिश्प अज़रियाह स्वय भी गांधी जी को बहुत करीब से जानते थे व पहले कई आन्दोलनों में उनका साथ भी दे चुके थे; परन्तु उस समय उन्हें यह लगने लगा था कि गांधी जी अब देश के मसीही प्रचारकों को अच्छा नहीं मानते, इसी लिए उन्होंने ऐसा ब्यान दिया था।


पिता भी थे एंग्लिकन पादरी

श्री सैमुएल अज़रियाह के पिता थॉमस वेदन्यागम भी एंग्लिकन पादरी थे। श्री अज़रियाह की माँ श्रीमति ऐलन पादरी थॉमस वेदन्यागम की दूसरी पत्नी थीं। श्री थॉमस का परिवार पहले हिन्दु था और उन्होंने 1839 में स्वेच्छा से यीशु मसीह को सदा के लिए अपना लिया था। उन्होंने चर्च मिशनरी सोसायटी स्कूल में शिक्षा ग्रहण की थी। पहले उनके एक पुत्री थी और अज़रियाह का जन्म उसके जन्म के 13 वर्षों के बाद हुआ था, अतः उन्होंने उनका नाम सैमुएल रखा थ। पादरी थॉमस वेदन्यागम का देहांत 1889 में हो गया था।


भारत में जात-पात की प्रथा को नहीं समझते थे अच्छा

बालक सैमुएल अज़रियाह ने क्रिस्चियन बोर्डिंग स्कूलों में शिक्षा ग्रहण की थी; उनमें से एक मेगननपुरम में स्थित था, जिसे उनका सौतेला भाई एम्ब्रौस चलाता था। अज़रियाह अभी जब तिरूनेलवेली के स्कूल में ही पढ़ते थे, उन्हें तभी से भारत में जात-पात की प्रथा बहुत बुरी लगा करती थी। इसी लिए इस के प्रति आम लोगों को जागरूक करने हेतु उन्होंने एक सोसायटी गा गठन भी किया था। फिर वह मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज में पढ़ने के लिए चले गए, जहां के प्रिंसीपल ने उनके नाम सैमुएल के साथ अज़रियाह भी जोड़ दिया था। वहां श्री के.टी. पौल (प्रमुख मसीही स्वतंत्रता सेनानी) भी उनके सहपाठी थे। वहीं पर उनकी मुलाकात अमेरिकी मिशनरी शेरवुड ऐड्डी के साथ हुई थे, जो बाद में उनके स्थायी मित्रों में सम्मिलित हो गए।


श्रीलंका के जाफ़ना गए मसीही प्रचार हेतु

श्री अज़रियाह 19 वर्ष की आयु में ‘यंग मैन्ज़ क्रिस्चियन एसोसिएशन’ (वाई.एम.सी.ए.) के साथ जुड़ गए। मद्रास में उन्होंने इस मसीही संस्था की एक शाखा भी प्रारंभ की। 1896 में वह मसीही प्रचारक जौन मौट से भी मिले, जिन्होंने उनमें एक अनोखे उत्साह को नोट किया। 1902 में वह श्री लंका के जाफ़ना क्षेत्र में तामिल भाईयों-बहनों के बीच मसीही प्रचार हेतु गए।


भारत ही नहीं, अपितु अफ़ग़ानिस्तान, तिब्बत एवं नेपाल जैसे देशों में भी किया मसीही प्रचार

1895 से लेकर 1909 तक श्री अज़रियाह वाई.एम.सी.ए. हेतु दक्षिण भारत के सचिव के पद पर रहे। 1905 में क्रिस्मस दिवस के सुअवसर पर पश्चिमी बंगाल के सीरामपुर स्थित विलियम केरी की लाईब्रेरी में विभिन्न गिर्जाघरों की एक राष्ट्रीय मिशनरी सोसायटी की स्थापना की गई और श्री अज़रियाह उसके सचिव बने। सचिव की हैसियत से उन्होंने न केवल भारत में, अपितु अफ़ग़ानिस्तान, तिब्बत एवं नेपाल जैसे देशों के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर मसीही प्रचार किया।


जापान व चीन भी गए

1907 में श्री अज़रियाह ने जापान की राजधानी टोक्यो में वर्ल्ड स्टूडैंट क्रिस्चियन फ़ैड्रेशन कान्फ्ऱेंस तथा शंघाई की वाई.एम.सी.ए. कान्फ्ऱेंस में भी भाग लिया। उन्होंने भारत के साथ-साथ जापान व चीन जैसे देशों में मसीही प्रचार के लिए भी नीतियां तैयार कीं। वह एशियाई, विशेषतया भारतीय चर्चों को पश्चिमी चर्चों से मुक्त रखना चाहते थे।


सादा विवाह समारोह किया, नहीं लिया दहेज

1898 में उनका विवाह अम्बू मरियम्मल सैमुएल के साथ हुआ। सुश्री अम्बू मरियम्मल उन पहली दक्षिण भारतीय महिलाओं में शामिल रही थीं, जिन्होंने कॉलेज तक शिक्षा ग्रहण की थी। श्री अज़रियाह तब सुश्री अम्बू मरियम्मल को तिरूनेलवेली की सबसे अधिक आध्यात्मिक लड़की मानते थे। उन्होंने तब सार्वजनिक तौर पर घोषित किया था कि वह दहेज नहीं लेंगे तथा विवाह की रीतियां तब केवल 40 रुपए में परिपूर्ण की थीं। इस दंपत्ति के दो पुत्रियां ग्रेस व मरसी हुईं।


विश्व मिशनरी कान्फ्ऱेंस में भाग लेने गए इंग्लैण्ड

1909 में 35 वर्ष की आयु में श्री सैमुएल अज़रियाह एंग्लिकन पादरी नियुक्त हुए और तब उन्होंने वाई.एम.सी.ए. को पद छोड़ दिए। डॉर्नकल में अपनी सेवा निभाने हेतु उन्होंने तब तेलगु भाषा भी सीखी। 1910 में वह एडिनबरा (इंग्लैण्ड) में विश्व मिशनरी कान्फ्ऱेंस में भाग लेने गए तथा वहां पर भी उन्होंने अपनी वही बात रखी कि भारत के गिर्जाघरों में प्रार्थना इंग्लैण्ड या अन्य विदेशी रीतियों से नहीं अपितु भारतीय रीतियों से ही होनी चाहिए।

29 दिसम्बर, 1912 को वह कलकत्ता के सेंट पौल’ज़ गिर्जाघर में डॉर्नकल के नए डायोसीज़ के प्रथम बिश्प नियुक्त हुए। उस समय के प्रमुख मिशनरी डॉ. जे.आर. मौट भी उस समय मौजूद थे और उन्होंने कहा कि उन्होंने इससे पूर्व इतना प्रभावशाली समारोह कभी नहीं देखा।


बिश्प अज़रियाह के प्रचार से प्रभावित हो कर एशिया में 20 हज़ार से अधिक लोग बने थे मसीही

श्री सैमुएल अज़रियाह के द्वारा एशिया में 20 हज़ार से अधिक लोगों ने यीशु मसीह को ग्रहण किया। वह दूर-दराज़ तक बैलगाड़ी या साईकल से ही यात्राएं करके अपनी क्लीसिया तक पहुंचते थे। उनके साथ प्रायः उनकी पत्नी ही हुआ करती थीं।


इन चार शैतानों को दूर रखने की करते थे बात

बिश्प अज़रियाह अपने मसीही प्रचार के साथ चार शैतानों (डैमन्स) को दूर भगाने के लिए भी कहा करते थे, जिनका नाम उन्होंने ‘चार डी’ रखा था; अर्थात 1. डर्ट (गन्दगी), 2. डिज़ीस (रोग), 3. डैट (ऋण/कर्ज़ा), 4. ड्रिंक (शराब)। इस प्रकार वह अपने दिनों में अपने स्तर पर समाज में स्वच्छता व शराबबन्दी के अभियान छेड़े हुए थे।


लड़कियों को शिक्षित करने हेतु किया स्कूल स्थापित

उन्होंने लड़कियों को शिक्षित करने के लिए एक स्कूल भी स्थापित किया, जो बाद में उनके नाम पर चलाया जाने लगा। 1924 तक उनके डायोसीज़ ऑफ़ डॉर्नकल में 8 अंग्रेज़ पादरी तथा 53 भारतीय पादरी सम्मिलित हो चुके थे। 1935 में उनके पादरियों की संख्या 250 तक पहुंच चुकी थी तथा उनके द्वारा गांवों में नियुक्त अध्यापकों की संख्या 2,000 से भी अधिक थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक मैडिकल क्लीनक्स, सहकारी समितियां एवं प्रिन्टिंग प्रैस भी खोलीं।


प्रोटैस्टैन्ट मसीही मिशनों को एकजुट करने के किए अथक प्रयास

श्री सैमुएल अज़रियाह ने भारत की प्रोटैस्टैन्ट मसीही मिशनों को एकजुट करने हेतु अथक प्रयास किए। 1 जनवरी, 1945 को डॉर्नकल (जो अब तेलंगाना राज्य के वारंगल ज़िले में है) में अपने निधन तक वह एंग्लीकन डायोसीज़ के एकमात्र भारतीय बिश्प बने रहे। 1920 में इंग्लैण्ड की प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज युनीवर्सिटी ने उन्हें ऑनरेरी डिग्री से सम्मानित किया था। आंध्र प्रदेश के गांवों में वह अत्यंत लोकप्रिय रहे।

दो पुस्तकें व कई लेख लिखे

1930 में श्री सैमुएल अज़रियाह ने बिशप हैनरी व्हाईटहैड के साथ मिल कर ‘क्राईस्ट इन इण्डियन विलेज्स’ (भारतीय गांवों में यीशु मसीह) नामक पुस्तक भी लिखी। बाद में उनके द्वारा 1940 में लिखी एक अन्य पुस्तक ‘क्रिस्चियन गिविंग’ (मसीही पुरुस्कार/दान) भी बहुत लोकप्रिय हुई, जो अब तक 15 अन्य भाषाओं में अनुवााद हो चुकी है। उनके तामिल व तेलगु भाषाओं में अन्य बहुत से लेख भी प्रकाशित होते रहे थे।


कुछ हद तक सफ़ल रहे चर्चों को एकजुट करने में

श्री सैमुएल अज़रियाह का अपने जीवन में सदा एक सपना रहा कि भारत का मसीही समुदाय व विभिन्न चर्च एकजुट हों, वह सपना उनके निधन के दो वर्षों के पश्चात नॉन-ऐपिस्केपल (एंग्लिकन) चर्चों (कांग्रीगेशनल, प्रैसबाईटिरियन, मैथोडिस्ट) को एकजुट करके एक एकीकृत चर्च ऑफ़ साऊथ इण्डिया की स्थापना के साथ साकार हुआ। डॉर्नकल में बिश्प अज़रियाह कॉलेज अब भी कार्यरत है, जहां मसीही व ग़ैर-मसीही हर प्रकार के विद्यार्थी पढ़ते हैं। उनके पुश्तैनी गांव वेलालनविलाई में भी एक सैकण्डरी स्कूल उन्हीं के नाम पर स्थापित है।


बिश्प अज़रियाह के प्रयत्नों के कारण 1947 के बाद भी हुए चर्च एकजुट

भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 1947 में ‘चर्च ऑफ़ साऊथ इण्डिया’ (सी.एस..आई.) तथा 1948 में ‘चर्च ऑफ़ नॉर्थ इण्डिया’(सी.एन.आई.) का गठन किया गया तथा यह सुधार प्रक्रिया के पश्चात् भारत में ऐपिस्कोपल एवं नॉन-ऐपिस्कोपल प्रोटैस्टैंट गिर्जाघरों (चर्चेज़) का प्रथम एकीकरण था। इस एकीकरण से पश्चिमी देशों में भी गिर्जाघरों की एकता की बात होनी प्रारंभ हो गई थी। इनके अतिरिक्त इस समय भारत में रोमन कैथोलिक व सन्त थॉमस के नाम पर रखे सीरियन चर्चेज़ के साथ-साथ अन्य बहुत सी मसीही मिशनें सक्रिय हैं। परन्तु उनमें से सब से अधिक तेज़ी से बढ़ती संख्या पैंतीकौस्तल मसीही समुदाय की है।

Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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