ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध सदा डटने वाले ए.जे. जौन
पूर्व मद्रास के गवर्नर रहे ए.जे. जौन
यदि कभी आपको केरल के एरनाकुलम ज़िले के पालिकावाला रेलवे जंक्शन में से निकलने का अवसर प्राप्त हो तो वहां स्थित दुकानों व मकानों के मध्य एक बड़े आकार का बुत दिखाई देगा, जिसे आज कल कोई साफ़ तक नहीं करता और शायद आज की युवा पीढ़ी को यह भी मालूम न हो कि यह बुत किसका है और क्यों स्थापित किया गया है? विभिन्न प्रकार के मौसमों, धूप इत्यादि के कारण अब इस बुत पर कुछ अजीब से निशान भी दिखाई देने लगे हैं। दरअसल यह बुत्त 18 जुलाई, 1893 को त्रावनकोर (अब केरल) राज्य की वायकौम तहसील के गांव थालायोलाप्राम्बू के एक रोमन कैथोलिक परिवार में पैदा हुए श्री अन्नापरमबिल जोसेफ़ जौन का है, जो त्रावनकोर के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी व 1952 से लेकर 1954 तक त्रावनकोर-कोचीन के मुख्य मंत्री रहे थे तथा 1 अक्तूबर, 1957 को अपने देहांत के समय वह पूर्व मद्रास के राज्यपाल (गवर्नर) थे। केरल विधान सभा स्पीकर व कई बार मंत्री भी रहे चाहे आज शायद पालिकावाला के समीप ही स्थित उनके अपने गांव थालायोलाप्राम्बू में भी वर्तमान पीढ़ी के कुछ लोग उनके बारे में न जानते हों, परन्तु इससे श्री ए.जे. जौन की अपनी शख़्सियत बिल्कुल भी धूमिल नहीं हो सकती। वह ए.जे. जौन के नाम से अधिक प्रख्यात थे। वह 1948 में त्रावनकोर विधान सभा के स्पीकर एवं 1955 से लेकर 1956 के दौरान मुख्य मंत्री पनमपल्ली गोविन्दा मैनन के मंत्री मण्डल में गृह, खाद्य, नगर आपूर्ति एवं वन मंत्री भी रहे थे। 1993 में जब श्री जौन की जन्म शताब्दी मनाई गई थी, तब स्वर्गीय न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा ने एक पुस्तिका में अपने एक निबंध में लिखा था कि श्री ए.जे. जौन एक आदर्श राजनेता थे। वह अपना सारा जीवन लोगों की सेवा में ही समर्पित रहे। उन्होंने सादा जीवन व्यतीत किया तथा इन्सानियत के मूल्यों के पहरेदार बने रहे। दया-भावना उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनका शासन सदैव अपने-आप में एक मिसाल बना रहा। वह आम लोगों के अधिकारों के सदा डटते रहे। वकील के तौर पर किया था करियर आरंभ श्री ए.जे. जौन अपने पिता श्री जोसेफ़ एवं माता मेरी की तृतीय संतान थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा वायकौम हाई स्कूल से ग्रहण की थी। 1919 में उन्होंने मद्रास स्थित लॉअ कॉलेज से वकालत पास करके एक वकील के तौर पर अपना करियर प्रारंभ किया था। ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध बुलन्द की थी ज़ोरदार आवाज़ जब त्रावनकोर में आम लोगों ने सरकारी सेवाओं में समाज के कमज़ोर वर्गों व पछड़ी श्रेणियों को यथायोग्य स्थान दिए जाने व सामाजिक अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज़ ब्रिटिश शासकों के ख़िलाफ़ बुलन्द की थी, और ‘एबसैन्टैन्शन’ अभियान (परिहार आन्दोलन) छेड़ा था, तो श्री ए.जे. जौन उस आन्दोलन में सदा सब से आगे दिखाई देते थे। उस आन्दोलन के समय त्रावनकोर राज्य में ज़िन्दगी जैसे कुछ थम सी गई थी। स्वतंत्रता आन्दोलनों के कारण लगा वकालत का सुनहरी कैरियर दाव पर फिर एक समय ऐसा आया, जब श्री जौन को स्वतंत्रता संग्राम में सक्रियतापूर्वक भाग लेने हेतु अपना वकालत का सुनहरी कैरियर दाव पर लगाना पड़ा था। विभिन्न स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेते रहने के कारण वह अपने जीवन में कई बार जेल भी गए, परन्तु उन्होंने कभी तत्कालीन अंग्रेज़ शासकों के आगे घुटने नहीं टेके। वह त्रावनकोर राज्य कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से थे तथा 1948 में कांग्रेस की यह इकाई अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में सम्मिलित हो गई थी। उस समय कांग्रेस पार्टी की स्थानीय इकाई की स्थापना केवल भारत को स्वतंत्र करवाने के एकमात्र उद्देश्य से ही की जाती थी। अपने ही कुछ वर्तमान नेताओं ने छवि बिगाड़ी कांग्रेस पार्टी की (तब कांग्रेसी नेता सचमुच ईमानदार हुआ करते थे और देश को आज़ाद करवाने हेतु सदा मर-मिटने को तैयार रहते थे और वर्तमान कांग्रेसी नेताओं से पूर्णतया उल्ट व्यवहार करते थे। वर्तमान कांग्रेसी नेताओं ने अपने विभिन्न शासनों के दौरान अनेक प्रकार के घोटालों से अपनी व अपनी पार्टी की छवि पूरी तरह बिगाड़ कर रख दी थी। इसी लिए भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा केन्द्र सरकार को कांग्रेस को बार-बार ख़राब कहने का मौका मिल रहा है; चाहे मौजूदा सरकार कांग्रेस के समय के घोटालों को जान-बूझ कर तथा कुछ अधिक व बढ़ा-चढ़ा कर भी उछालती है, परन्तु ऐसी बातों से श्री ए.जे. जौन जैसे ईमानदार, सच्चे देश-भक्त व पूर्व कांग्रेसी नेताओं की छवि कोई धूमिल नहीं कर सकता है, चाहे ऐसी बातें कहने वाला कोई प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति भी क्यों न हो)। केरल के विधायक से लेक तामिल नाडू के राज्यपाल तक श्री ए.जे. जौन ने त्रावनकोर सहित संपूर्ण भारत को स्वतंत्र करवाने हेतु अनेक संर्घर्ष किए। 1947 में त्रावनकोर के तत्कालीन महाराजा चितिरा थिरूनल बलराम वर्मा-द्वितीय ने त्रावनकोर विधान सभा के गठन की घोषणा कर दी थी। 1948 में जब वह सभा पहली बार जुड़ी, तो श्री ए.जे. जौन को ही उसका अध्यक्ष बनाया गया था। वह परूर टी, के नारायण पिल्लै मंत्री मण्डल में वित्त व माल मंत्री भी रहे। 1951 में जब भारत के पहले आम चुनाव हुए, तो वह पून्जार सीट से इण्डियन नैश्नल कांग्रेस पार्टी की सीट से विजयी घोषित किए गए थे। त्रावनकोर-कोचीन राज्य के अन्तिम मंत्री मण्डल में वह गृह मंत्री थे। 10 दिसम्बर, 1956 से लेकर 1957 में अपने देहांत तक श्री जौन तामिल नाडू के राज्यपाल के पद पर नियुक्त रहे। अदालती ज्यूरी के सदस्य भी रहे श्री जौन आज़ाद भारत के न्यायालय में ज्यूरी सदस्य भी रहे। वह प्रायः थालायोलाप्राम्बू के सेंट जॉर्ज चर्च जाया करते थे, जहां उनकी याद में ए.जे. जौन मैमोरियल सरकारी कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय स्थापित किया गया था। श्री ए.जे. जौन को मद्रास स्थित सैन थॉमस गिर्जाघर में दफ़नाया गया था, जो कि हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के 12 शिष्यों में से एक सेंट थॉमस (सन्त थोमा) के स्मारक (कब्र) के समीप ही स्थित है। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]