स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले मारग्रेट पावामनी
केरल राज्य के त्रिचुर नगर में जन्म लिया मारग्रेट पावामनी ने
केरल के श्रीमति मारग्रेट पावामनी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था, उस समय जब कि भारत में अधिकतर महिलाओं के घर से बाहर पांव रखने पर भी प्रतिबन्ध लगे हुए थे। परन्तु अफ़सोस की बात यह है कि हम ने ऐसे लोगों का कहीं एक चित्र भी संभाल कर नहीं रखा, जिनके कारण मसीही समुदाय आज भारत में गर्व से सर ऊँचा कर के चल पाता है। चाहे देश के कुछ मूलवादी लोग व संगठन मसीही समुदाय संबंधी निरंतर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां करते रहते हैं; वास्तव में उन्हें मसीही समुदाय द्वारा भारत के प्रत्येक क्षेत्र में डाले योगदान संबंधी कुछ भी जानकारी नहीं है, और वे ऐसे लोग होते हैं, जिनके उनके अपने मोहल्ले में कोई जानता नहीं होता परन्तु वे मसीही लोगों व समस्त विश्व में प्रचुर रूप में फैले मसीही धर्म पर अपने विचार प्रकट कर रहे होते हैं। ख़ैर, हमें ऐसे ही लोगों के साथ जीना है, उन्हें प्यार से समझाना है, आख़िर वे हमारे अपने देश के नागरिक हैं, आज अन्जान व अज्ञानी हैं तो क्या हुआ - हम उन्हें स्वयं अपने बारे में बताएंगे क्योंकि यही हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह की शिक्षा व सन्देश भी है। ख़ैर आज हम श्रीमति मारग्रेट पावामनी संबंधी जानना चाह रहे हैं। उनका जन्म 1897 ई. में केरल राज्य (जिसे उस समय त्रावनकोर के नाम से जाना जाता था) के त्रिचुर नगर में श्री स्टीफ़न पुथेन वीट्टिल व श्रीमति ज्ञानभरणम के घर हुआ था। उनके पिता श्री स्टीफ़न अध्यापक थे। सेवा-निवृत्ति के पश्चात् वह कालीकट आ गए थे तथा मालाबार क्रिस्चियन कॉलेज हाई स्कूल के मुख्य-अध्यापक के तौर पर कार्यरत हो गए थे। मारग्रेट पावामनी ने गांधी जी के आह्वान पर लिया था असहयोग आन्दोलन में भाग मारग्रेट पावामनी ने औपचारिक रूप से हाई स्कूल तक की शिक्षा ग्रहण की थी। उनका विवाह कालीकट के अग्रणी वकील श्री बैंजामिन पावामनी से हुआ था। श्रीमति मारग्रेट पावामनी अपने अत व्यस्त पति के कार्यों के कारण मालाबार के सार्वजनिक जीवन में आईं थीं। उस समय स्थानीय मसीही समुदाय इस बात को अच्छा नहीं मानता था कि एक सभ्य परिवार की महिला ऐसे घर से बाहर घूमती फिरे। परन्तु श्रीमति मारग्रेट पावामनी ने ‘महिला समाजम’ नामक संगठन के द्वारा उस समय महात्मा गांधी जी के नेतृत्त्व में चल रहे असहयोग आन्दोलन में भाग लिया था। उस समय उस आन्दोलन की स्थानीय नेता मुक्कापूज़ा कार्तियानी अम्मा थीं। राज्य में गांधी जी का सृजनात्मक कार्य महिला समाजम के द्वारा ही क्रियान्वित हुआ था। महिलाओं को विदेशी वस्त्र त्याग कर देशी कपड़े पहनने को किया प्रेरित, सूत कातना भी सिखलाया केरल प्रदेश कांग्रेस समिति की 17 मई, 1930 को पय्यानूर में हुई एक बैठक में के. माधवन नायर अध्यक्ष चुने गए थे तथा कुनशिंकारा मैनन उसके सचिव नियुक्त हुए थे। उस बैठक में सत्याग्रह को मालाबार में अन्य स्थानों तक पहुंचाने का निर्णय भी लिया गया था क्योंकि उस समय लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु बहुत अधिक उत्साह पाया जा रहा था। लोग विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी को प्राथमिकता देने लगे थे। इसी लिए लोगों में खादी वस्त्रों की मांग बहुत अधिक बढ़ गई थी और कांग्रेस इस खादी-कार्य को आगे बढ़ाना चाहती थी। इसी लिए इस कार्य को आगे बढ़ाने हेतु कालीकट में महिलाओं की एक विशेष समिति बनाई गई थी, जिस की सदस्या तब श्रीमति मारग्रेट पावामनी को भी बनाया गया था तथा टी. नारायणी अम्मा, श्रीमति यू. गोपाला मैनन तथा अध्यापिका के.ई. शारदा जैसी शख़्सियतें भी उस समिति की सदस्य बनीं थीं। इस समिति की सदस्यायों ने तब लोगों को सूत कातना सिखलाने के लिए अनेक क्लासें लगाईं थीं। वे खादी का प्रचार करने घर-घर जाती थीं। ऐसे कार्यों में श्रीमति पावामनी सब से आगे बनी रहती थीं। उन्होंने मालाबार में बड़ी संख्या में लोगों को चर्खा व सूती वस्त्र वितरित किए थे। तुरन्त मान लेते थे लोग उनकी बात 6 फ़रवरी, 1931 को जब भारतीय स्वतंत्रता लहर के प्रमुख नेता (स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता) श्री मोतीलाल नेहरू का निधन हुआ, तो गांधी जी ने जब पूरे देश में 15 फ़रवरी 1931 को मोतीलाल दिवस मनाने का आह्वान किया था, तो श्रीमति मारग्रेट पावामनी ने भी अपने सभी पार्टी साथियों के साथ आम लोगों को वह दिवस मनाने हेतु जागरूक किया था और तब लोग उनकी बात तुरन्त मान भी लेते थे। 12 फ़रवरी, 1931 को तिरंगा झण्डा शान से बाज़ारों में फहराया गया था और ब्रिटिश पुलिस वह सब देखती रह गई थी। वहां पर महिलाओं ने धरना भी दिया था। मालाबार में वह महिलाओं का पहला धरना था। 14 फ़रवरी, 1931 को उन सभी धरनाकारी महिलओं को ग्रिफ़्तार कर लिया गया था। परन्तु उसके अगले दिन मोतीलाल दिवस बहुत ही शान से मनाया गया था। गांवों तक में पूर्ण हड़ताल रही थी, लोगों ने व्रत रखे थे, जलूस निकाले थे तथा शांतिपूर्ण ढंग से शोक-सभाएं की थीं। मालाबार प्रदेश कांग्रेस समिति की बनीं अध्यक्ष ऐसे समय में जब छठी ‘डिक्टेटर’ (उस समय अध्यक्ष का यही नाम रखा गया था, क्योंकि तब त्रावनकोर सरकार ने अंग्रेज़ सरकार को ख़ुश करने के लिए कांग्रेस की स्थानीय गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगा रखे थे, तब रोष में ऐसे प्रतिबन्धों को कांग्रेस के यह डिक्टेटर ही तोड़ते थे) के. कुन्हिलालक्ष्मी अम्मा ग्रिफ़्तार हो गईं थी, तो अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने श्रीमति मारग्रेट पावामनी को ही मालाबार प्रदेश कांग्रेस समिति की नई डिक्टेटर अर्थात अध्यक्ष नियुक्त किया था। उसी दौरान गांधी-इरविन समझौता हो गया, जिसका केरल में स्वागत किया गया। ऐसे समय में श्रीमति मारग्रेट पावामनी ने एक एडहॉक कमेटी मनोनीत की थी, जिसमें जेल से रिहा हुए नेताओं को सम्मिलित किया गया था। जलूस-जलसों का प्रबन्ध देखने में थीं पारंगत 6 मार्च, 1931 को श्रीमति मारग्रेट पावामनी ने कांग्रेस की सातवीं डिक्टेटर के तौर पर लोगों को शांत रहने व गांधी-इरविन समझौते का सम्मान करने व कानून न तोड़ने का आह्वान किया था। उस समय धारा 144 लगी हुई थी। समझौते के जश्न मनाने के लिए लोग बड़े स्तर पर रैलियां कर रहे थे, जलूस निकाल रहे थे। कालीकट में भी 7 मार्च, 1931 को बाला भारत संघ, महिला संघ तथा स्टूडैंट्स लीग ने एक बड़ा जलूस निकाला था। उस समय समुद्र के किनारे पर विशाल बैठक की गई थी, जिसकी अध्यक्षता श्रीमति मारग्रेट पावामनी ने की थी। आंध्र प्रदेश के महान नेता टी. प्रकाशम ने की थी मारग्रेट पावामनी की भूमिका की सराहना आंध्र प्रदेश के उस समय के महान् नेता टी. प्रकाशम ने तब श्रीमति पावामनी को विशेष तौर पर बधाई देते हुए उनकी भूमिका की सराहना की थी। उन्होंने बेझिजक यह बात कही थी कि दक्षिण भारत में इस आन्दोलन में सब से अधिक योगदान मालाबार के लोगों का ही रहा था। फिर श्रीमति मारग्रेट पावामनी ने आपात स्थिति में केरल राज्य कांग्रेस समिति मनोनीत की थी, क्योंकि अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का सत्र शीघ्रतया कराची में होने जा रहा था। तब उन्होंने उस समिति में 59 सदस्य नामज़द किए थे। तेलिचेरी में श्रीमति पावामनी व पी.एम. कमलावती के नेतृत्व में शराब के ठेकों को बन्द करने के लिए धरने लगाए गए थे। 19 मार्च को शिक्षित व अच्छे घरों की महिलाओं ने शराब की दुकानें बन्द करवाने के लिए ख़ूब जलसे-जलूस निकाले थे। उस आन्दोलन का प्रभाव जन-साधारण पर बहुत अधिक पड़ा था, क्योंकि महिलाओं को ऐसा करते देख कर सभी का मन स्वतंत्रता प्राप्ति व ऐसे आन्दोलनों में कूदने को करने लगा था। लोग शराब पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगवाने व खादी का प्रचार करने हेतु आगे आने लगे थे। जब वर्षा में भी रोष प्रदर्शन किए व करवाए, पीछे नहीं हटीं फिर 25 अप्रैल, 1931 को भी श्रीमति मारग्रेट पावामनी के सहयोग से कालीकट में प्रदर्शन किए गए थे। वस्त्रों की दुकानों के सामने जाकर लोगों ने आम ख़रीददारों को समझाया था। ख़ूब वर्षा हो रही थी, परन्तु महिलाओं व अन्य कार्यकर्ता अपने कार्य में लगे रहे थे। रात्रि को महिलाओं को हुनरमन्द बनाती थीं मारग्रेट पावामनी ‘केरल महिला देश सेविका संघ्’ा ने ने रात्रि के समय ग़रीब महिलाओं को पढ़ाने व उन्हें दस्तकारी के हुनर सिखलाने के कार्य किए थे। 13 जून, 1931 को ऑल केरल वोमैन’ज़ लीग की स्थापना कालीकट में की गई थी, श्रीमति मारग्रेट पावामनी को उस लीग की अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। स्वतंत्रता आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने के कारण जेल यात्रा भी की महिला देश सेवक संघ ने प्रत्येक माह के 4 तारीख़ को गांधी दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया था। उसी कार्यक्रम के अंतर्गत श्रीमति मारग्रेट पावामनी के नेतृत्व में 4 फ़रवरी, 1932 को कालीकट के ज़मोरियन कॉलेज के पश्चिम में स्थित बरगद के एक पेड़ के नीचे एक बड़ा कार्यक्रम करवाया गया था। पुलिस ने तब उन्हें ग्रिफ़्तार कर लिया था और न्यायालय ने उन्हें अढ़ाई वर्ष सख़्त कारावास का दण्ड दिया था। 1937 में श्रीमति मारग्रेट पावामनी के पति का निधन हो गया था, उसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी। उसके बाद वह अन्नासेरी के तालुकुथूर में अपने माता-पिता के साथ ही रहने लगी थीं। जब उनके बड़े बेटे स्टीफ़न को पप्पीनिसेरी स्थित आरोन मिल में नौकरी मिल गई, तो श्रीमति मारग्रेट पावामनी वहां जाकर रहने लगीं। वहां वह एक अन्य मसीही महिला स्वतंत्रता सेनानी ग्रेसी आरोन के नेतृत्व में होने वाले सामाजिक कार्यों में भाग लेने लगीं। उस समय ‘भारत महिला समाज’ नामक संगठन बहुत सक्रिय था। जब श्रीमति ग्रेसी आरोन 1957 में पप्पीनिसेरी से तलाप चली गईं, तो भारत महिला समाज का नियंत्रण पूर्णतया श्रीमति मारग्रेट पावामनी के पास ही आ गया था। वह उस समाज की संरक्षक बन गईं थीं। तब उन्होंने महिलाओं के लाभ हेतु अनेक कार्य किए थे। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]