पहली मराठी महिला लेखिका शेवांतीबाई एम. निकाम्बे
भारतीय इतिहासकारों ने कभी खुल कर वर्णन नहीं किया मसीही स्वतंत्रता सेनानियों का
इस तथ्य से सभी वाकिफ़ हैं कि 1885 में कांग्रेस पार्टी की स्थापना केवल अंग्रेज़ शासकों को देश से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए ही हुई थी तथा उसमें बहुत सारे मसीही भाईयों व बहनों ने अपना सहयोग दिया था। और तो और ब्रिटिश के कुछ अंग्रेज़ भी भारत को स्वतंत्र करवाने के उस संघर्ष में जुट गए थे। लेकिन हमारे भारत के अधिकतर भारतीय इतिहासकारों ने कभी खुल कर उनका वर्णन करना उचित नहीं समझा, ताकि भारत में मसीही समुदाय अधिक फल-फूल न सके। दूसरे, उन्होंने अंग्रेज़ों का धर्म ईसाई होने के कारण भी इस धर्म के बारे में भारत तथा भारतियों के लिए बहुत कम लिखा। 1887 में कांग्रेस के वार्षिक सत्र में 15 मसीही लोगों ने भाग लिया था। उनमें से जो दो-तीन प्रमुख मसीही लोगों ने उस सत्र को संबोधन किया था, जिनकाा वर्णन हमने इसी वैबसाईट पर कई विभिन्न स्थानों पर किसी न किसी उपयुक्त संदर्भ में किया है। जो हमारे मसीही भाई-बहन ऐसे सत्रों को संबोधन नहीं करते थे, उनके विवरण मिलने अब कठिन हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही महिलाएं भी किसी से कम नहीं रहीं इसी प्रकार 1889 के कांग्रेसी सत्र में कुल 10 महिला डैलीगेट्स ने भाग लिया था, जिनमें से तीन पण्डिता रमाबाई सरस्वती, श्रीमति ट्रायमबक व श्रीमति शेवांतीबाई एम. निकाम्बे मसीही थीं। इनमें से पण्डिता रमाबाई का जीवन ब्यौरा व भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान संबंधी बहुत से विवरण उपलब्ध हैं। श्रीमति ट्रायमबक के कोई भी विवरण अब उपलब्ध नहीं हैं। अपनी रचनाओं से महिलाओं को सामाजिक कार्यों हेतु प्रेरित करती थीं शेवांतीबाई एम. निकाम्बे अतः अब हम श्रीमति शेवांतीबाई एम. निकाम्बे के बारे में कुछ जानने का प्रयत्न करते हैं। श्रीमति निकाम्बे वास्तव में मराठी भाषा की पहिला महिला लेखिका भी हैं। उन्होंने अपनी साहित्यिक कृतियों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का बड़ा कार्य किया था। उनकी बहुत सी पुस्तकें प्रकाशित हुई है परन्तु 1895 में उनकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी ‘रत्नाबाई’, जो उस समय की महिलाओं को पढ़ने, घर से निकल कर सामाजिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित करने हेतु ही लिखी गई थी। श्रीमति रत्नाबाई उस समय महाराष्ट्र की बहुत ही पढ़ी-लिखी व जागरूक हिन्दु महिला थीं। इसी लिए बहुत सारे लोग उन दिनों उन्हें अपना आदर्श मानते थे। परन्तु उस समय का भारतीय समाज ऐसी जागरूक महिलाओं संबंधी कुछ और ढंग से भी सोचता था। लेडी एडा हैरिस ने लिखी थी शेवांतीबाई एम. निकाम्बे की पुस्तक ‘रत्नाबाई’ की भूमिका लोगों की ऐसी घटिया सोच को दरुस्त करने के लिए ही श्रीमति शेवांतीबाई एम. निकाम्बे ने अंग्रेज़ी भाषा में पुस्तक ‘रत्नाबाई’ लिख कर बताया था कि भारत की सभी महिलाओं को श्रीमति रत्नाबाई जैसा बनना चाहिए। पढ़-लिख कर कोई ख़राब नहीं हो जाता है। उस पुस्तक की भूमिका 1890 से 1895 तक बम्बई प्रैसीडैन्सी के गवर्नर रहे चौथे बैरन हैरिस, जॉर्ज हैरिस की पत्नी (लेडी) एडा हैरिस ने लिखी थी। फिर 2003 में भारतीय साहित्य अकैडमी ने उस पुस्तक को दुर्लभ साहित्य बताते हुए पुनः प्रकाशित किया था। उस पुस्तक के प्रारंभ में संपादक युनिस डी सूज़ा ने श्रीमति शेवांतीबाई एम. निकाम्बे संबंधी कुछ जानकारी दी है, और कहीं भी उनके बारे में अधिक विवरण मौजूद नहीं हैं। ज़्यादातर विवरण मराठी भाषा में ही उपलब्ध हैं। वैसे 1935 में नैश्नल काऊँसिल ऑफ़ वोमैन, इण्डिया ने ‘वोमैन इन इण्डिया हू इज़ हू’ नामक पुस्तक प्रकाशित की थी, उसमें भी श्रीमति शेवांतीबाई एम. निकाम्बे की जीवन गाथा काफ़ी संक्षिप्त में दी गई थी। 1896 में यूरोप व अमेरिका गईं श्रीमति शेवांतीबाई एम. निकाम्बे का जन्म 1865 ई. सन् में पूना (पुणे नाम 1978 में दिया गया था) हुआ था। उसमें लिखा गया है कि श्रीमति निकाम्बे एक मसीही परिवार से संबंधित थीं। उन्होंने बम्बई के सेंट पीटर’ज़ हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा 1884 में उतीर्ण की थी। फिर वह 1896 में यूरोप व अमेरिका गईं। जहां पर उन्होंने मसीही समुदाय को और अधिक अच्छे ढंग से जाना। फिर 1913 में वह पुनः यूरोप गईं, तब उन्होंने महाद्वीपों में हुए सामाजिक व शैक्षणिक कार्यों संबंधी अध्ययन किया। वह ईडन गर्ल्स स्कूल में स्टूडैंट्स’ लिटरेरी एण्ड साइन्टिफ़िक सोसायटी की प्रथम हैडमिस्ट्रैस रहीं तथा फिर बम्बई के गर्ल्स प्राईमरी स्कूल की इन्सपैक्टरैस भी रहीं। विवाहित महिलाओं हेतु विशेष स्कूल भी चलाया 1912 एवं 1934 तक वह विवाहित महिलाओं को शिक्षित करने हेतु विशेष स्कूल भी चलाती थीं। 1890 में पूना हस्तात्रित होने से पूर्व शारदा सदन हाई स्कूल में श्रीमति निकाम्बे ने पण्डिता रमाबाई की सहायक के तौर पर भी कार्य किया। फ़रवरी 1928 में दिल्ली में आयोजित हुई द्वितीय ऑल इण्डिया वोमैन’ज़ कान्फ्ऱेंस में भी श्रीमति शेवांतीबाई एम. निकाम्बे ने बम्बई के डैलीगेट के तौर पर भाग लिया था। श्रीमति शेवांतीबाई एम. निकाम्बे ने पण्डिता रमाबाई संबंधी शर्द्धापूर्वक भी काफ़ी कुछ लिखा था। उन्होंने कई समारोहों में भाग लेने हेतु अनेक विशेष पेपर भी लिखे। अपनी अधिकतर कृतियों में उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने पर अधिक बल दिया था। इसी लिए उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए अपना भी एक स्कूल खोला था। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]