प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी व केरल के प्रथम गृह मंत्री टी.एम. वर्गीज़
1932 में त्रावनकोर राज्य के अंतिम महाराजा के पक्षपात के विरुद्ध डटे थे टी.एम. वर्गीज़
श्री टी.एम. वर्गीज़ थण्डीडथ एक अत्यंत प्रेरणादायक स्वतंत्रता सेनानी व राष्ट्र-नेता थे। उनका जन्म 1886 में मारथोमा सीरियन मसीही परिवार में हुआ था। वह मसीही समुदाय का प्रतिनिधित्व करने हेतु राजनीति में शामिल हुए थे। वास्तव में 21 अक्तूबर, 1932 को जब त्रावनकोर राज्य के अंतिम महाराजा चितिरा तिरूनल बलराम वर्मा ने अपने राज्य में एक नई विधान-प्रणाली लागू की, तो उसमें मसीही समुदाय के साथ-साथ एज़ावा एवं मुसलमानों को भी उपयुक्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया था, जबकि इन सभी समुदायों का अपने राज्य के विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा था। इसी लिए इन तीनों समुदायों ने 25 जनवरी, 1933 को एल.एम.एस. हॉल में एक मीटिंग करके ‘जुआएंट पोलिटीकल पार्टी’ (साझा राजनीतिक दल) का गठन किया था। श्री वर्गीज़ इसी दल के प्रमुख सदस्य थे। तब से उन का विरोध राज्य के दीवान सी.पी. रामास्वामी से प्रारंभ हो गया था। 1937 में बने थे विधायक अगस्त 1936 में त्रावनकोर (वर्तमान केरल) राज्य विधान सभा का एक नया संविधान क्रियान्वित हुआ था। अप्रैल-मई, 1937 में चुनाव हुए थे तथा श्री टी.एम. वर्गीज़ ने तब ‘जुआएंट पोलिटीकल पार्टी’ की ओर से शानदार जीत दर्ज की थी। इससे पहले भारत के इस दक्षिण राज्य में धर्म के आधार पर सीटों का बंटवारा हुआ था। ऐसा इस क्षेत्र में सांप्रदायिक एकता लाने के लिए किया गया था तथा श्री वर्गीज़ ने तब श्रीमुलाम नामक निर्वाचन क्षेत्र के मसीही समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हुए विजय प्राप्त की थी। श्री वर्गीज़ त्रावनकोर राज्य कांग्रेस पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। उन्हीं के नेत्ृत्व में त्रावनकोर राज्य के दीवान सी.पी. रामास्वामी के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा गया था। केरल राज्य की राजनीति में रहे सक्रिय 1947 में देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, तो त्रावनकोर व कोचीन एक हो गए, तब पहले आम चुनावों में पुनः जीत दर्ज करने के बाद श्री वर्गीज़ केरल के गृह मंत्री नियुक्त हुए थे। वह त्रावनकोर-कोचीन विधान सभा के प्रथम अध्यक्ष भी रहे। 1951 में वह पुनः गृह मंत्री बने तथा 1957 में उन्होंने सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया था। उन्होंने अपने जीवन में बनाई सारी संपत्ति कांग्रेस पार्टी को आगे बढ़ाने में ही लगा दी थी। इसी लिए उनका नाम आज भी बहुत आदर से लिया जाता है। श्री टी.एम. वर्गीज़ के 11 बच्चे थे। त्रावनकोर के तानाशाह दीवान के विरुद्ध डटे थे टी.एम. वर्गीज़ श्री टी.एम. वर्गीज़ का स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व त्रावनकोर (अब केरल) राज्य में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वह उस समय के राजा व दीवान (अर्थात प्रधान मंत्री) के अत्याचारों के विरुद्ध, त्रावनकोर राज्य की स्वतंत्रता व आम लोगों के अधिकारों के प्रति डट कर लड़े थे। त्रावनकोर का उस समय का दीवान सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर (जिसे सर सी.पी.) के नाम से अधिक जाना जाता रहा है तथा वह अपनी निरंकुश, तानाशाही मनमानियों के कारण बहुत बदनाम था। इसी कारण त्रिवेन्द्रम के मसीही समुदाय ने इकट्ठे होकर ‘ऑल केरल क्रिस्चियन महा-सभा’ का गठन कर लिया था। केन्द्री त्रावनकोर के पैम्पा नदी के छोर पर स्थित पथानमथित्ता ज़िले में छोटे से कसबे कोज़ेनचेरी 9 से 11 मई, 1935 को इस महा-सभा की एक विशेष बैठक हुई। उस बैठक में श्री टी.एम. वर्गीज़ ने प्रस्ताव रखते हुए कहा कि त्रावनकोर विधान सभा के चुनाव उचित ढंग से नहीं करवाए गए थे, इस लिए उसे भंग कर के चुनाव पुनः करवाए जाने चाहिएं। उस मीटिंग में अधिकतर प्रमुख वक्ताओं ने सर सी.पी. को ‘जानवर’ तक कहा। इससे सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर का पारा चढ़ गया और उन्होंने एक वक्ता श्री सी. केसवन को ग्रिफ़्तार कर के लगभग दो वर्षों तक जेल में रखा। पक्षपात बरदाश्त नहीं था स्वतंत्रता सेनानियों को उससे पहले अत्याचारी दीवान ने अपनी सरकार के सभी प्रमुख पदों पर विदेशी ब्राह्मणों को नियुक्त कर दिया था, जिससे नय्यर समुदाय में रोष फैल गया। उसे आज भी ‘मल्याली यादगारी आन्दोलन’ के नाम से याद किया जाता है। उसी आन्दोलन के कारण त्रावनकोर के तत्कालीन महाराजा श्री चितिरा थिरूनल बलराम वर्मा ने 21 अक्तबूर, 1932 को एक आदेश जारी कर के एक नई राज्य विधान सभा का गठन किया था। वह विधान सभा 1 जनवरी, 1933 से प्रारंभ हुई थी। परन्तु सीटों का बंटवारा बहुत ग़लत व अनुचित ढंग से हुआ था। जिससे स्थानीय मसीही समुदाय में रोष उत्पन्न होना स्वाभाविक था। जबकि मसीही लोग चाय, रबड़ एस्टेट्स के मालिक थे तथा अन्य और भी बहुत से व्यवसायों पर उनकी मज़बूत पकड़ थी। मुस्लिम व एज़ावा अल्पसंख्यक समुदायों का भी अपना-अपना बहुमूल्य योगदान था और इन सभी ने राज्य की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने हेतु अपना योगदान दिया था। परन्तु विधान सभा में सीटों की बांट करते समय उन सभी को पीछे छोड़ दिया गया था। टी.एम. वर्गीज़ के नेतृत्त्व में लोगों ने किया था चुनावों का बहिष्कार ऐसी परिस्थितियों में मसीही, एज़ावा एवं मुस्लिम समुदायों के प्रतिनिध दीवान से मिले परन्तु उसने अस्पष्ट से जवाब दिए। अतः उन सभी ने निर्णय लिया कि इस दीवान से बैठकें करने से कुछ होने या मिलने वाला नहीं है। श्री टी.एम. वर्गीज़ ने महसूस किया कि वर्तमान सरकार आम जनता के प्रति बिल्कुल भी कोई ज़िम्मेदारी नहीं समझती है। तीनों समुदायों ने इसी लिए तिरूवनंथापुरम के एल.एम.एस. हॉल में 25 जनवरी, 1933 को एक बैठक की तथा वहां पर उन्होंने निर्णय लिया कि वे श्री टी.एम. वर्गीज़ के नेतृत्व के अंतर्गत चुनावों में भाग नहीं लेंगे अर्थात बहिष्कार (बायकॉट) करेंगे। उस अभियान को ‘निवर्तना प्रकशोभनम’ (एबस्टैन्शन मूवमैन्ट) नाम दिया गया था। जब हुआ ‘ऑल केरल क्रिस्चियन यूनियन’ का गठन त्रावनकोर के मसीही 21 नवम्बर, 1932 को थिरूवनंथापुरम में इकट्ठे हुए तथा उन्होंने ‘ऑल केरल क्रिस्चियन यूनियन’ (केरल क्रिस्चियन महा-सभा) का गठन कर लिया था। इसी महा-सभा की मई 1935 में बैठक हुई थी। उस बैठक में श्री केसवन के धुंआधार भाषण के बाद ही जब उन्हें 7 जून, 1935 को हिरास्त में ले लिया गया था, तब उनके लिए तीन वकील श्री टी.एम. वर्गीज़, श्री के.टी. थॉमस एवं बैरिस्टर जॉर्ज जोसेफ़ उनके लिए न्यायालय में प्रस्तुत हुए थे। इसी तरह ऑल केरल जुआएंट पोलिटीकल पार्टी का गठन हुआ था और श्री टी.एम. वर्गीज़ उसके अध्यक्ष चुने गए थे। श्री के.टी. थॉमस उसके सचिव थे। आख़िर सरकार को उनकी मांगें माननी पड़ीं। अगस्त 1936 में नया संविधान लागू कर दिया गया तथा अपने -मई 1937 में त्रावनकोर राज्य विधान सभा के चुनाव हुए। श्री वर्गीज़ तब ऑल केरल जुआएंट पोलिटीकल पार्टी की टिक्ट से विजयी घोषित किए गए थे। श्री मुलाम विधान सभा में वह उपाध्यक्ष चुने गए थे। उन्होंने 1937 में श्री केसवन के जेल से रिहा होने पर उनका शानदार स्वागत किया था। ईष्यापूर्ण दीवान ने टी.एम. वर्गीज़ के विरुद्ध रखवाया था अविश्वास प्रस्ताव दीवान यह सब देख कर चिढ़ता रहता था। उसने उपाध्यक्ष श्री वर्गीज़ के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रखवा दिया। मतदान में 42 सदस्यों ने उस प्रस्ताव का समर्थन किया तथा 24 ने उसके विरुद्ध मत डाले तथा दो सदस्यों ने अपना मत नहीं दिया। इस प्रकार श्री वर्गीज़ को उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) के पद से हटा दिया। 1938 के प्रारंभ में अनेक नेताओं व समाचार-पत्रों के संपादकों पर हमले हुए। उनकी कोई जांच न करवाई गई। ऐसी तानाशाहियों के विरुद्ध श्री वर्गीज़ ने विधान सभा में एक प्रस्ताव रखा परन्तु सर सी.पी. ने उसे स्वीकार नहीं किया। तब अत्यधिक बढ़ गया दीवान का विरोध फिर फ़रवरी 1938 में श्री टी.एम. वर्गीज़ ने एक प्रस्ताव रखा कि वर्तमान सरकार लोगों के प्रति बिल्कुल भी ज़िम्म्ेदार नहीं है तथा 51 लाख आम जनता तथा महाराजा के बीच किसी दीवान की आवश्यकता नहीं है। पट्टम थानू पिल्लै (जो बाद में मुख्य मंत्री बने) तथा श्री के.टी. थॉमस ने इस प्रस्ताव के समर्थन में भाषण दिए। उसी दिन विधान सभा से बाहर आने के तुरन्त बाद ही उन्होंने त्रावनकोर राज्य कांग्रेस की स्थापना कर डाली। उसके बाद ग्रिफ़्तारियों का सिलसिला प्रारंभ हो गया। बैंक व समाचार-पत्र तक बन्द हो गए। आन्दोलन बहुत अधिक फैल गया। अंततः 30 जुलाई, 1947 को त्रावनकोर ने भारत यूनियन में सम्मिलित होने का निर्णय ले लिया। 15 अगस्त को भारत स्वतंत्र हुआ। 19 अगस्त को सर सी.पी. ने त्याग-पत्र दे दिया। सरकार ने 4 सितम्बर, 1947 को एक ज़िम्मेदार सरकार के गठन की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत में केरल के शिक्षा मंत्री बने वर्गीज़ फिर चुनाव हुए तथा श्री टी.एम. वर्गीज़ पठानपुरम निर्वाचन क्षेत्र से विजयी रहे तथा राज्य के शिक्षा मंत्री बने। 17 अक्तूबर, 1948 को उन्होंने अस्तीफ़ा दे दिया। 1949 में उन्हें विधान सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया। फिर 1952 में मुख्य मंत्री ए.जे. जौन के मंत्री मण्डल में श्री वर्गीज़ को गृह मंत्री नियुक्त किया गया। 1 दिसम्बर, 1961 को उनका निधन हो गया। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]