अंग्रेज़ शासकों के अत्याचारों का ज़ोरदार विरोध करने वाले पादरी के.एम. बैनर्जी
बंगााल क्रिस्चियन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे के.एम. बैनर्जी
प्रमुख बंगला मसीही श्री के.एम. बैनर्जी (कृष्ण मोहन बैनर्जी) बंगाल क्रिस्चियन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे, जिसकी स्थापना 1876 ई. में हुई थी। उन्होंने भी श्री के.सी. बैनर्जी की तरह भारतीय चर्च को अंग्रेज़ों के चर्च से अलग करने के अथक प्रयास किए थे। उन्होंने 1857 के ग़दर के दौर को स्वयं देखा था तथा अंग्रेज़ शासकों के पक्षपातपूर्ण व अत्याचारी व्यवहार को वह अच्छी तरह से जान चुके थे। इसी लिए वह ऐसे दमनकारी शासकों को अच्छा नहीं समझते थे। श्री के.एम. बैनर्जी ने मसीही धर्म व हिन्दु धर्म का गहन अध्ययन किया था तथा दोनों धर्मों की समानताओं व अन्तरों को खोज निकाला था। डेविड हेयर से प्रभावित थे के.एम. बैनर्जी 24 मई, 1813 को कोलकाता के समीप श्यामपुर गांव में माता देवी कृष्णा मोहन की कोख से जब श्री के.एम. बैनर्जी का जन्म हुआ था, तब भारत में पश्चिमी सभ्यता अपने कदम रख चुकी थी। इंग्लैण्ड की ईस्ट इण्डिया कंपनी तो यहां पर थी ही, परन्तु बंगाल में तब तक ब्रिटिश मसीही प्रचारक तथा आधुनिक मसीही मिशनों के जन्मदाता माने जाने वाले श्री विलियम केरी (17 अगस्त, 1761 - 9 जून, 1834) बंगाल की एक एकीकृत भाषा का सृजन कर चुके थे तथा भारत में तब बड़े स्तर पर प्रचलित ‘सती प्रथा’ (जिसके अंतर्गत यदि पति का देहांत हो जाए, तो पत्नी को भी उसके साथ उसकी चिता में जीवित ही अग्नि को भेंट होना होता था, जिसे ‘सती होना’ अर्थात ‘पति के साथ ही मर जाना’ कहते थे और इसे अधिकतर भारतीय बहुत पवित्र बात मानते थे) का ज़ोरदार विरोध कर रहे थे। परन्तु उस समय श्री केरी के अतिरिक्त एक अन्य अंग्रेज़ श्री डेविड हेयर भी बंगाल में सक्रिय थे। वास्तव में वह स्कॉटलैण्ड में घड़ियां बनाया व ठीक किया करते थे और वह मसीही प्रचारक बिल्कुल भी नहीं था। उन्हें वैसे ही भारत, विशेषतया बंगाल की धरती से जैसे प्यार ही हो गया था। बंगाल में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को लागू करने तथा वहां पर उनके द्वारा किए गए समाज-कल्याण के कार्य सचमुच महान् व वर्णनीय हैं। श्री हेयर ने बंगाल के राजधानी नगर कलकत्ता (वर्तमान नाम कोलकाता वर्ष 2001 में दिया गया था) में अपना एक ‘स्कूल सोसायटी इन्सट्ीच्यूट’ वर्ष 1819 से खोला हुआ था और श्री के.एम. बैनर्जी वहीं पर पढ़ने जाया करते थे। वह पश्चिमी शिक्षा को बड़ी तेज़ी से ग्रहण कर रहे थे। श्री हेयर ने श्री बैनर्जी की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपने पटलडांगा स्थित एक अन्य बढ़िया स्कूल में ले गए, जिसका नाम बाद में हेयर स्कूल पड़ा। पढ़ने-लिखने में होशियार थे के.एम. बैनर्जी श्री बैनर्जी पढ़ने-लिखने में इतने होशियार थे कि बाद में उन्हें एक नव-संस्थापित हिन्दु कॉलेज (जिसे अब प्रैज़ीडैन्सी युनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है) में छात्रवृति भी प्राप्त हुई। यहां वर्णनीय है कि हिन्दु कॉलेज राजा राम मोहन रॉय जैसे अग्रणी व्यक्तित्व के साथ-साथ श्री डेविड हेयर, राधाकान्त देब, जस्टिस सर एडवर्ड हाईड ईस्ट, बैद्यनाथ मुखोपाध्याय एवं रासामी दत्त जैसे लोगों के प्रयासों के कारण ही स्थापित हो पाया था। राजा राम मोहन रॉय ने रद्द की थी 33 करोड़ देवी-देवताओं की धारणा राजा राम मोहन रॉय को ‘आधुनिक भारत का पितामह’ माना जाता है। उन्होंने ही भारत में पहली बार 33 करोड़ देवी-देवताओं की धारणा को रद्द करते हुए ईसाई, यहूदी एवं इस्लामिक धर्मों से प्रेरित हो कर व उनके कुछ सिद्धांतों को अपनाते हुए ‘एक ही ईश्वर पर विश्वास’ की धारणा प्रचलित की थी। उन्होंने ब्रह्मो समाज की स्थापना भी की थी। हैनरी लुई विवियन डेरोज़ियो के पर्यवेक्षण में शिक्षा ग्रहण की के.एम. बैनर्जी ने उन दिनों हिन्दु कॉलेज के मुख्य-अध्यापक पुर्तगाली मूल के श्री हैनरी लुई विवियन डेरोज़ियो (1808-1831) हुआ करते थे। वह कुछ कट्टर किस्म के इन्सान थे परन्तु वह स्वयं को विदेशी नहीं, अपितु बंगाली कहा करते थे। उनका मानना था कि किसी भी मुद्दे पर किसी भी समय बहस व विचार-चर्चा की जा सकती है। उनके स्कूल के विद्यार्थियों को प्रायः ‘डेरोज़ियन्स’ कहा जाता था। श्री के.एम. बैनर्जी ने उन्हीं के पर्यवेक्षण में शिक्षा ग्रहण की थी। वह अपने हैडमास्टर श्री डेरोज़ियो से बहुत प्रभावित थे। श्री बैनर्जी तब अपने दादा के घर में रहा करते थे, जो तब युवा बंगालियों के मिलने का एक प्रमुख स्थान भी बन चुका था। तब तक श्री बैनर्जी का परिवार हिन्दु ही था। परन्तु वह चोरी-छिपे मास भी खा लेते थे, जिसे उनका एक मुस्लिम मित्र पकाता था। स्कॉटलैण्ड मूल के डॉ. अलैगज़ैंडर डफ़ से प्रभावित हो कर मसीही बने थे के.एम. बैनर्जी 1828 में जब श्री के.एम. बैनर्जी अपनी कॉलेज की पढ़ाई ही कर रहे थे, तब उनके पिता जीबोन कृष्ण बैनर्जी का हैज़ा रोग के कारण देहांत हो गया। अगले वर्ष 1829 में उन्होंने स्नातक (बी.ए.) की पढ़ाई संपन्न कर ली। श्री डेविड हेयर उनकी प्रतिभा को भलीभांति जानते थे, इसी लिए उन्होंने श्री बैनर्जी को अपने पटलडांगा स्कूल में अध्यापक नियुक्त कर दिया। फिर 1830 में स्कॉटलैण्ड मूल के डॉ. अलैगज़ैंडर डफ़ कलकत्ता पहुंचे। उन्होंने बंगाल की शिक्षा प्रणाली में अंग्रेज़ी भाषा पर कुछ अधिक बल दिया। वह भाषण बहुत बढ़िया करते थे और श्री के.एम. बैनर्जी अक्सर उनके भाषण सुनने के लिए जाया करते थे। श्री बैनर्जी को धर्म व दर्शन-शास्त्र पर उनके संभाषण बहुत बढ़िया लगते थे। जब कभी बहस कुछ अधिक गर्मा-गर्म व दिलचस्प हो जाती, तो श्री बैनर्जी अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए डॉ. डफ़ के घर भी चले जाया करते थे। उन्हीं के प्रभाव में आ कर श्री के.एम. बैनर्जी ने 1832 में यीशु मसीह को सदा के लिए ग्रहण कर लिया। के.एम. बैनर्जी के ईसाई बनने से नाराज़ हो गए थे डेविड हेयर और डॉ. अलैगज़ैंडर डफ़ व डेरोज़ियो को नौकरी गंवानी पड़ी थी परन्तु उधर श्री डेविड हेयर तो धार्मिक बिल्कुल भी नहीं थे परन्तु असूल-परस्त बहुत थे। इसी लिए वह श्री बैनर्जी के ईसाई बनने से नाराज़ हो गए और उन्हें नौकरी से निकाल दिया। श्री बैनर्जी की पत्नी श्रीमति बिन्दियोभाषिणी बैनर्जी को भी दबाव के चलते अपने मायके चले जाना पड़ा और मामला ठण्डा होने तक काफ़ी समय वहीं पर रहीं। श्री बैनर्जी के मसीही बन जाने का आरोप हैडमास्टर श्री डेरोज़ियो पर लगा, जबकि वह तो नास्तिक थे। इस काण्ड के कारण श्री डेरोज़ियो को भी अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। श्री बैनर्जी ने हिन्दु समुदाय के लोगों को समझाया कि वह तो मसीही बनने से पहले ही हिन्दु धर्म की कई कारणों से तीखी आलोचना किया करते थे। उन्होंने 1831 में ‘दि पर्सीक्यूटड’ (सताया गया) नामक नाटक भी लिखा था, जिसमें उन्होंने उस समय कलकत्ता के हिन्दु समाज में कथित तौर पर पाई जाने वाली कुछ ‘ग़लत बातों’ को उजागर किया था। ‘दि इनक्वायरर’ अख़बार भी निकाला के.एम. बैनर्जी ने उसी वर्ष ‘दि इनक्वायरर’ नामक पत्र भी प्रकाशित करना प्रारंभ किया था। अतः वह बहु-प्रतिभाशाली थे। भारत में जो भी मसीही बना, स्वेच्छा से बना - किसी ने ऐसा करने हेतु विवश नहीं किया श्री के.एम. बैनर्जी के मसीही बनने की इस नाटकीय दास्तान से यह बात तो पूर्णतया सिद्ध हो जाती है कि अंग्रेज़ मसीही मिशनरियों (गोरे ब्रिटिश शासकों का तो ख़ैर मसीहियत से दूर-दूर तक का कभी कोई नाता रहा ही नहीं। वे तो दिखावे मात्र के मसीही थे; क्योंकि यदि वे यीशु मसीह को सच्चे दिल से मान रहे होते, तो वे भारत वासियों के साथ कभी वे ग़लतियां नहीं करते एवं ग़रीब व निर्दोष लोगों पर अत्याचार करने के बारे में कभी सोचते भी नहीं) ने कभी किसी भारतीय को ज़बरदस्ती या अपनी शक्ति के बल पर मसीही धर्म में शामिल नहीं किया। उन समयों में जिस किसी भारतीय ने भी यीशु मसीह को ग्रहण किया, वह अपनी मर्ज़ी से किया। क्योंकि ज़बरदस्ती धम-परिवर्तित किया मनुष्य कितनी देर ऐसी स्थिति में रह पाएगा, कुछ ही समय में वह पुनः अपनी पुरानी स्थिति में वापिस आ जाएगा। इसी लिए तब जिसने भी यीशु मसीह को अपनाया, सदा के लिए तथा अपनी मर्ज़ी से ही अपनाया। क्योंकि कोई ईसाई प्रचारक ज़बरदस्ती करके यीशु मसीह की शिक्षाओं का प्रचार कैसे कर सकता है? क्योंकि यीशु मसीह ने तो सदा क्षमा करने व अहिंसा का ही प्रचार किया था। यही संदेश विश्व में जन-जन तक पहुंचा और आज तक पहुंच रहाा है। हां, ज़बरदस्ती अर्थात तलवार या बन्दूक की नोक पर धर्म-परिवर्तन के उदाहरण किन्हीं धर्मों में रहे होंगे - क्योंकि यीशु मसीह ऐसी किसी भी बात के सख़्त विरुद्ध थे। इसी लिए आपने कभी कोई ऐसा चित्र कभी नहीं देखा होगा, जिसमें यीशु मसीह ने कोई हथियार उठाया हो। जिन धर्मों के संस्थापकों ने हथियार उठाए, उनके अनुयायी ऐसा करते हो सकते हैं। यदि कोई मसीही आज भी हथियार उठाता है, तो वह यीशु मसीह के विरुद्ध कृत्य करता है। दरअसल, यह हॉलीवुड की फ़िल्मों में नायक एक मिनट में रिवाल्वर निकाल कर अपने सामने मौजूद लोगों को मार देता दिखाया जाता है, जो अंग्रेज़ों की अपनी कौम की कोई स्थानीय संस्कृति रही हो सकती है, यीशु मसीह ऐसे नहीं थे। उनका अंग्रेज़ों से कभी कोई नाता नहीं रहा, वह तो विशुद्ध एशियन थे। और यह बात हम पहले भी सुस्पष्ट कर चुके हैं। चर्च मिशनरी सोसायटी स्कूल के मुख्य अध्यापक बने, फिर पादरी बने श्री के.एम. बैनर्जी तब चर्च मिशनरी सोसायटी स्कूल के मुख्य अध्यापक बन गए। उन्होंने बिशप’स कॉलेज में मसीही धर्म का अध्ययन भी किया। 1839 में वह बंगाल में एंग्लिकल चर्च हेतु भारतीय मूल के पहले पादरी नियुक्त हुए। वहमों व भ्रमों को दूर करने का अभियान भी छेड़ा श्री के.एम. बैनर्जी ने भारत के नागरिकों में पाए जाने वाले अनेक प्रकार के वहमों व भ्रमों को दूर करने का अभियान भी छेड़ा। 1865 के बाद वह यह मानने लगे थे कि हिन्दु धर्म की सभी मान्यताएं मसीही धर्म में आकर संपूर्ण होती हैं। वह हिन्दु धर्म के प्राचीन ग्रन्थों जैसे वेदों, उपनिषदों के हवाले से बताया करते थे कि हिन्दु धर्म में भी स्व-बलिदान का प्रचलन रहा है। प्रजापति ने भी मानवता की ख़ातिर अपना बलिदान दिया था। इसी प्रकार यीशु मसीह ने भी सलीब पर अपना बलिदान संपूर्ण मानवता हेतु दिया। इस प्रकार श्री के.एम. बैनर्जी ने सदा हिन्दु व ईसाई धर्म के अनुयायियों में एकता लाने के ही प्रयत्न किए। वह एक से अधिक विवाह करने, विवाह हेतु लड़कियों को बेचने व सती प्रथा के सख़्त विरुद्ध थे। श्री के.एम. बैनर्जी के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी, उनके भाई काली मोहन तथा प्रसन्ना कुमार टैगोर के पुत्र गनेन्द्र मोहन टैगोर भी मसीही बन गए। बाद में गनेन्द्र मोहन ने श्री श्री के.एम. बैनर्जी की बेटी कमलमणी से विवाह रचाया। श्री गनेन्द्र मोहन भारत के पहले बैरिस्टर भी बने। श्री बैनर्जी के प्रभाव से ही अग्रणी कवि व नाटककार माईकल मधुसूदन दत्त भी मसीही बन गए। 1864 में पादरी के.एम. बैनर्जी को श्री ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के साथ रॉयल एशियाटिक सोसायटी का सदस्य चुना गया था। 1876 में युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता ने उन्हें डॉक्टरेट की ऑनरेरी डिग्री देकर सम्मानित किया। उन्होंने इन्साईकलोपीडिया ब्रिटैनिका का बंगला भाषा में अनुवाद किया था, जो 13 संस्करणों में प्रकाशित हुआ था। ‘दि आर्यन विटनैस’ (1875), ‘डॉयलॉग्स ऑन दि हिन्दु फ़िलौसफ़ी’ (1861) एवं ‘दि रिलेशन बिटवीन क्रिस्चियनिटी एण्ड हिन्दुइज़्म’ (1881) उनकी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। पादरी के.एम. बैनर्जी का देहांत 11 मई, 1885 को कोलकाता में हुआ।। उन्हें शिबपोर में दफ़नाया गया। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]