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प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों के प्रमुख सहायक बने रहे प्रिंसीपल सुशील कुमार रुद्र



भारत के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज के पहले भारतीय प्रिंसीपल व सच्चे मसीही श्री सुशील कुमार रुद्र

भारत के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज के पहले भारतीय प्रिंसीपल व सच्चे मसीही श्री सुशील कुमार रुद्र के जीवन पर एक नज़र डालेंगे। श्री रुद्र किसी मसीही मिशन कॉलेज के प्रिंसीपल के पद तक पहुंचने वाले प्रथम भारतीय भी हैं। वह ‘चर्च मिशन सोसायटी’ (सी.एम.एस.) की पृष्ठभूमि वाले एक बंगाली मसीही थे, जिन्होंने अपने जीवन को उदारवादी बना कर रखा। उन्होंने अपना कैरियर सेंट स्टीफ़न कॉलेज में अंग्रेज़ी विषय पढ़ाने से प्रारंभ किया परन्तु अपने प्रिय देश भारत की धरती के प्रति प्रेम ने ही उन्हें सार्वजनिक बौद्धिक हस्ती बना दिया।


अंग्रेज़ों के संस्थान में कार्यरत रहते हुए भी करते थे स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता

Sushil Kumar Rudra अंग्रेज़ों के अधिकार-क्षेत्र वाले संस्थान में कार्यरत रहने के बावजूद व खुल कर स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता करने लगे। इसी लिए उनके योगदान का महत्त्व कहीं अधिक है। पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर कोई वीर-बहादुर ही कर सकता है, जिसमें सचमुच दम-खम हो।


सी.एफ़ एण्ड्रयूज़ से ली प्रेरणा

वास्तव में इस मामले में सुशील कुमार रुद्र को श्री सी.एफ़ एण्ड्रयूज़ से प्रेरणा मिलती रही, जो ब्रिटिश मूल के अर्थात इंग्लैण्ड में जन्मे व प्रसिद्ध मसीही प्रचारक थे। वह दिल्ली स्थित सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज (जो भारत में पहला सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज भी था) के प्रथम प्रिंसीपल बन कर इंग्लैण्ड से भारत आए थे। वह एक बार भारत आकर इसी धरती के होकर रह गए। वह आजीवन महात्मा गांधी जी के मित्र बने रहे तथा उन्होंने भी देश के स्वतंत्रता आन्दोलनों में अपना भरपूर योगदान डाला। श्री एण्ड्रयूज़ के जीवन के बारे में बाद में विचार करेंगे, जब कुछ ऐसे ब्रिटिश व अन्य विदेशी मूल के मसीही लोगों की बात होगी, जिन्होंने हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। ऐसे लोग सदैव हमारे यीशु मसीह की शिक्षाओं पर चलते हुए अपने ‘साथी’ अर्थात अंग्रेज़ शासकों के अत्याचारों का ज़ोरदार विरोध करते रहे। ऐसे लोगों की बदौलत ही भारत में मसीहियत ख़ूब फैलने लगी थी परन्तु दमनकारी ब्रिटिश व्यापारी हाकिमों के अपने संकीर्ण हितों व उनकी तानाशाहियों के चलते देश में मसीही धर्म का विरोध भी होने लगा था, जो केवल ऐसे दिखावे के मसीही अंग्रेज़ शासकों की उन्हीं समयों की बड़ी ग़लतियों के कारण आज तक जारी है।


महात्मा गांधी जी को दक्षिण अफ्ऱीका से भारत वापिस लाने में सुशील कुमार रुद्र का बड़ा योगदान

शायद यह तथ्य अधिकतर लोगों को मालूम न हो कि वह श्री सुशील कुमार रुद्र ही थे, जो महात्मा गांधी जी को दक्षिण अफ्ऱीका से भारत वापिस ले कर आए थे। यह बात श्री सुशील जी के पुत्र अजीत रुद्र ने वरिष्ठ पत्रकार ब्रूस विलियम्स को एक साक्षात्कार के दौरान बताई थी। भारत की प्रख्यात समाज-शास्त्री एवं मानव-वैज्ञानिक व मसीही इतिहास लिखने वाली लेखिका तथा इस समय दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी में प्रोफ़ैसर के तौर पर कार्यरत सुज़ैन विश्वनाथन (जन्म 1957) ने भी अपने एक निबंध में इस बात का ज़िक्र किया है। श्री सुशील कुमार रुद्र आजीवन महात्मा गांधी एवं सी.एफ़ एण्ड्रयूज़ के करीबी बने रहे।


दिल्ली में आकर सुशील कुमार रुद्र के ही घर ठहरते थे गांधी जी

दक्षिण अफ्रीका से लौटकर गांधी जी जब पहली बार दिल्ली गए थे, तो वह कशमीरी गेट स्थित कॉलेज परिसर में श्री सुशील कुमार रुद्र के साथ उनकी अधिकृत रिहायशगाह में ही रहे थे। फिर बाद में ख़िलाफ़त अर्थात असहयोग आन्दोलन के चलते जो एक बहु-चर्चित खुला पत्र महात्मा गांधी जी ने देश के तत्कालीन वॉयसराय को लिखा था, वह श्री रुद्र के इसी घर में ही लिखा गया था। गांधी जी श्री रुद्र को एक ‘मूक सेवक’ कह कर उनका आदर किया करते थे। जब रॉयल्ट-विरोधी सत्याग्रह की घोषणा हो चुकी थी तो गांधी जी नहीं चाहते थे कि वह श्री रुद्र के घर पर आकर रहें, क्योंकि कॉलेज परिसर में इसका पता चलने पर श्री रुद्र का करियर ख़तरे में पड़ सकता था। परन्तु श्री रुद्र ने गांधी जी की ऐसी बात मानने को तत्काल इन्कार कर दिया था। उनका कहना था कि वह देश के लिए कुछ और बड़ा तो नहीं कर सकते, परन्तु गांधी जी की सेवा का अवसर तो प्राप्त कर ही सकते हैं।


सी.एफ़ एण्ड्रयूज़ के त्याग-पत्र के पश्चात् मौका मिला सुशील कुमार रुद्र को प्रिंसीपल बनने का

श्री सी.एफ़ एण्ड्रयूज़ 1904 में सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज के प्रिंसीपल नियुक्त हो कर आए थे, परन्तु 1906 में उन्होंने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया था। उसके बाद श्री सुशील कुमार रुद्र को इसी कॉलेज का प्रथम भारतीय प्रिंसीपल बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।


लाला हरद्याल जी की भी की मदद

श्री रुद्र ने स्वतंत्रता सेनानी लाला हरद्याल जी की भी सहायता की थी, जो स्वयं स्टीफ़न कॉलेज में ही पढ़े थे, जिन्हें ग़दर लहर का नेतृत्व करने हेतु देश छोड़ना पड़ा था। श्री सुशील कुमार रुद्र के बार-बार प्रेरित करने पर श्री सी.एफ़ एण्ड्रयूज़ एवं पादरी विलियम पीयरसन (जो शांति निकेतन में राबिन्द्र नाथ टैगोर के सहयोगी रहे) 1914 में विशेष तौर पर महात्मा गांधी जी को वापिस लाने भारत से दक्षिण अफ्ऱीका गए थे, ताकि वह स्वतंत्रता संग्राम की बागडोर संभाल सकें। उन दोनों को गांधी जी को भारत वापिस जाने हेतु मनाने में कई माह लग गए थे। वह भी श्री एण्ड्रयूज़ ही थे, जिनके प्रयत्नों के कारण श्री सुशील कुमार रुद्र, राबिन्द्रनाथ टैगोर एवं सुश्री सरोजिनी नायडू के मध्य यादगार व घनिष्ठ मित्रता हो पाई थी।


टैगोर ने सुशील कुमार रुद्र के घर दिया अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीतांजलि’ को अंतिम रूप

Rabindranath Tagore यह भी माना जाता है कि राबिन्द्रनाथ टैगोर जब अक्तूबर 1916 में सेंट स्टीफ़न’ज़ कॉलेज आए थे, तो वह श्री रुद्र की रिहायशगाह में ही ठहरे थे और उन्होंने तभी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीतांजलि’ को अंतिम रूप दिया था।


बंगाल के गांव में हुआ था जन्म

श्री सुशील कुमार रुद्र का जन्म 7 जनवरी, 1861 को बंगाल के हुग़ली ज़िले के गांव बांसबेरिया के एक ज़िमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता प्यारे मोहन रुद्र ने 1860 में स्कॉटलैण्ड के मिशनरी अलैगज़ैण्डर डफ़ के प्रभाव के कारण मसीही धर्म अपना लिया था। उनकी माँ ने भी अगले वर्ष यीशु मसीह को सदा के लिए अपना उद्धारकर्ता मान लिया था। उनके पिता कलकत्ता में चर्च मिशन सोसायटी के साथ एक मिशनरी के तौर पर जुड़ गए थे। उन्होंने तब बंगाल के गांवों में ख़ूब कार्य किए थे। श्री सुशील कुमार रुद्र ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन तक की शिक्षा ग्रहण की थी। फिर वह पंजाब चले गए थे, जहां वह 1886 में सेंट स्टीफ़न’ज़ कॉलेज स्टाफ़ के सदस्य बने।


प्रियोबाला सिंह से हुआ था विवाह

श्री सुशील कुमार रुद्र का विवाह 1889 में प्रियोबाला सिंह से हुआ था परन्तु 1897 में टॉयफ़ायड बुख़ार बिगड़ जाने के कारण उनका निधन हो गया था। इस दंपत्ति से तीन पुत्र उत्पन्न हुए। सब से छोटे बेटे अजीत अनिल रुद्र उन पहले भारतियों में से एक थे, जिन्हें पंजाब रैजिमैन्ट में किंग’ज़ कमिशन प्राप्त हुआ था तथा बाद में वह भारतीय सेना में मेजर जनरल बने। श्री रुद्र ने 1886 से लेकर 1923 में अपनी सेवा-निवृत्ति तक सेंट स्टीफ़न’ज़ कॉलेज में सेवा निभाई। उन्होंने अंग्रेज़ी, अर्थ-शास्त्र व तर्क-शास्त्र विषय पढ़ाए। 1906 से लेकर 1923 तक वही इस कॉलेज के प्रधानाचार्य बने रहे। उन्हीं के नेतृत्व में यह कॉलेज प्रख्यात हुआ तथा सब से बड़ा रैज़िडैंशियल कॉलेज कहलाने लगा। श्री सी.एफ़. एण्ड्रयूज़ के साथ मिल कर श्री रुद्र ने कॉलेज का एक संविधान तैयार किया और उसे विशुद्ध भारतीय रूप भी दिया और धीरे-धीरे इस कॉलेज की संस्थापक संस्था ‘कैम्ब्रिज ब्रदरहुड’ का प्रशासकीय नियंत्रण कम होता चला गया। श्री रुद्र ने शर्त रखी हुई थी कि कॉलेज में सभी स्टाफ़ मैंबर्स का वेतन समान होगा तथा धर्म, नस्ल, रंग-भेद या जाति के आधार पर कोई भेदभाव कभी नहीं किया जाएगा।


सेवा-निवृति के पश्चात चले गए हिमाचल प्रदेश के नगर सोलन

सेवा-निवृति के पश्चात श्री सुशील कुमार रुद्र 1923 में हिमाचल प्रदेश के नगर सोलन जाकर बस गए थे। वहीं पर 64 वर्ष की आयु में 29 जून, 1925 को उनका देहांत हुआ। उन्हें सोलन स्थित इंग्लिश चैपल में दफ़नाया गया था। उनके देहांत के समय महात्मा गांधी जी ‘यंग इण्डिया’ नामक एक समाचार-पत्र प्रकाशित करते थे, उसी में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में श्री रुद्र के वर्णनीय योगदान का विशेष तौर पर ज़िक्र किया था और तभी उन्होंने अपने संपादकीय में स्वयं बताया था कि ख़िलाफ़त आन्दोलन वाला पत्र उन्होंने श्री रुद्र की रिहायशगाह की छत पर बैठ कर लिखा था।


हर वर्ष 12 फ़रवरी को होता है ‘रुद्र डिनर’

श्री रुद्र अपने पीछे 1,000 रुपए सेंट स्टीफ़न’ज़ कॉलेज के लिए छोड़ गए थे, जो तब काफ़ी बड़ी राशि मानी जाती थी। उनकी इच्छा थी कि उस राशि के ब्याज से कॉलेज के सेवकों को प्रत्येक वर्ष एक बार विशेष रात्रि भोज दिया जाए। इसे ‘रुद्र डिनर’ कहते हैं, जो आज भी इस प्रतिष्ठित कॉलेज में हर साल 12 फ़रवरी को करवाया जाता है - क्योंकि उसी दिन श्रीमति प्रियोबाला रुद्र का देहांत हुआ था और संयोगवश उसी दिन कॉलेज के प्रथम प्रिंसीपल श्री सी.एफ़ एण्ड्रयूज़ का जन्म दिन भी होता है। श्री रुद्र दिल्ली के मॉडर्न स्कूल के भी संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जहां 1928 से श्री सुशील कुमार जी की याद में रुद्र पुरुस्कार दिया जाता है। श्री एण्ड्रयूज़ ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तकें ‘उत्तर भारत’ (1908) तथा ‘साधु सुन्दर सिंह’ (1934) श्री सुशील कुमार रुद्र को समर्पित की थीं।

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