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स्वतंत्र भारत की प्रथम मसीही कैबिनेट मंत्री राजकुमारी अमृत कौर



भारत की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री थीं राजकुमारी अमृत कौर

कपूरथला (पंजाब) के राजा हरनाम सिंह (15 नवम्बर, 1851-20 मई, 1930) की पत्नी श्रीमति रानी हरनाम सिंह वास्तव में एक बंगाली प्रैसबाईटीरियन मसीही मांँ तथा एंग्लिकन मसीही पिता की पुत्री थीं। वैसे तो इनके सात पुत्र व एक पुत्री थी,Rajkumari Amrit Kaur परन्तु उनकी पुत्री राजकुमारी अमृत कौर को आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में तथा समाज सुधार हेतु उनके बहुमूल्य योगदान के लिए याद किया जाता है। (यहां दिखाई दे रहे राजकुमरी अमृत कौर इस चित्र में महात्मा गांधी जी के साथ दिखाई दे रही हैं। यह चित्र सन् 1945 ई. में शिमला (हिमाचल प्रदेश) में खींचा गया था)। उन के बड़े योगदान के कारण वह 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् 10 वर्षों तक देश की स्वास्थ्य मंत्री रहीं। प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारत की पहली कैबिनेट में केवल दो ही मसीही (ईसाई) मंत्री थे - एक तो राजकुमारी अमृत कौर (जिन्हें भारत का मसीही समुदाय उनकी माँ के कारण ईसाई मानता था और सिक्ख समुदाय उनके पिता के कारण सिक्ख कहता था) थीं तथा दूसरे थे जौन मथाई, जो देश के पहले रेल मंत्री बने थे। वह कैबिनेट मंत्री बनने वाली भारत की प्रथम महिला भी हैं।


महात्मा गांधी की भक्त राजकुमारी अमृत कौर ने लिया था ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग

महात्मा गांधी जी की वह भक्त थीं तथा उन्हीं से प्रेरित होकर राजकुमारी अमृत कौर ने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग लिया था। राजकुमारी अमृत कौर एक शाही घराने से संबंधित थीं, इस लिए ऐशो-इश्रत तो उनके आगे-पीछे स्वयं घूमती थी परन्तु उन्होंने इस सुख व विलासिता को त्याग कर अपना शेष सारा जीवन देश सेवा हेतु अर्पण करने का निर्णया लिया था।


गोपाल कृष्ण गोखले व अन्य वरिष्ठ नेताओं से बहुत कुछ सीखा

राजकुमारी अमृत कौर ने गोपाल कृष्ण गोखले सहित इण्डियन नैश्नल कांग्रेस के बहुत से वरिष्ठ नेताओं से बहुत कुछ सीखा। ये नेता उनके पिता से अक्सर मिलने के लिए आते रहते थे। फिर 1919 में जब एक बार वह बम्बई (मुंबई नाम नवम्बर 1995 में दिया गया था) में महात्मा गांधी जी से निजी तौर पर मिलीं तो वह देश के लिए उनके विचारों व दृष्टिकोण से अत्यंत प्रभावित हुई थीं।


जल्लियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड से आहत होकर कूदीं स्वतंत्रता संग्राम में

उसी वर्ष अर्थात 1919 में अमृतसर स्थित जल्लियांवाला बाग़ में अंग्रेज़ शासक अपने अत्याचारों की सभी हदों को पार करते हुए 1,000 से अधिक लोगों की जानें ले चुके थे (चाहे तत्कालीन अंग्रेज़ हकूमत ने अधिकृत तौर पर मौतों की संख्या केवल 379 ही बताई थी) तथा 1,200 से अधिक को बुरी तरह घायल कर चुके थे, इसी लिए राजकुमारी अमृत कौर को लगा कि उन्हें इण्डियन नैश्नल कांग्रेस में सम्मिलित हो कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूदना पड़ेगा। वह 1927 में सुसंस्थापित ऑल इण्डिया वुमैन’ज़ कान्फ्ऱेंस की सह-संस्थापक थीं, फिर 1930 में सचिव तथा 1933 में उसकी अध्यक्ष बनीं। उन्होंने 1930 में गांधी जी के नेतृत्व में डाँडी मार्च में भाग लिया था, जिसके लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें ग्रिफ़्तार कर लिया था।

16 वर्ष गांधी जी की सचिव रहीं, कई बार जेल गईं

वह सोलह वर्ष गांधी जी की सचिव भी रहीं। 1937 में वह एक सदभावना मिशन के लिए बान्नू (जिसे आज ख़ैबर-पख़तूनवा कहा जाता है तथा अब यह पाकिस्तान का भाग है) गईं थीं, वहां पर ब्रिटिश राज के अधिकारियों ने उन्हें हिरास्त में लेकर उन पर राजद्रोह के आरोप लगा कर जेल में डाल दिया था। 1942 में जब उन्होंने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग लिया, तब भी उन्हें जेल जाना पड़ा था।


इंग्लैण्ड की थी शिक्षा प्राप्त

राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फ़रवरी, 1889 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ नगर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंग्लैण्ड के डोरसैट स्थित शेरबौर्न स्कूल फ़ॉर गर्ल्स से प्राप्त की थी। उच्च शिक्षा उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। टेबल टैनिस खेलने का उन्हें बहुत शौक था।


वर्ल्ड हैल्थ असैम्बली की बनीं पहली एशियाई महिला अध्यक्ष, और भी अनेक उच्च पद संभाले

Rajkumari Amrit Kaur 1950 में राजकुमारी अमृत कौर वर्ल्ड हैल्थ असैम्बली की अध्यक्ष चुनी गई थीं तथा इस पद को प्राप्त करने वाली वह पहली एशियाई महिला भी थीं। इस संस्थान की वह 25 वर्ष तक अघ्यक्ष रहीं। वह नई दिल्ली स्थित लेडी इरविन कॉलेज की कार्यकारिणी समिति की सदस्य भी रहीं। वह ब्रिटिश हकूमत के दौरान भी शिक्षा सलाहकार बोर्ड की सदस्य नियुक्त हुईं थीं, परन्तु ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भाग लेते समय उन्होंने उस पद से त्याग-पत्र दे दिया था। 1945 एवं 1946 में वह क्रमशः लन्दन व पैरिस में युनैस्को की कान्फ्ऱेंसों के दौरान भारतीय प्रतिनिधि मण्डलों में शामिल रहीं। वह ऑल इण्डिया स्पिन्नर्स ऐसोसिएशन के बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज़ की सदस्य भी रहीं। उन्होंने देश में साक्षरता लाने, बाल-विवाहों को समाप्त करने तथा भारत के कुछ समुदायों की महिलाओं में पर्दा पणाली समाप्त करवाने हेतु बहुत बढ़िया समाज-सुधार कार्य किए थे।


ऑल इण्डिया इनस्टीच्यूट ऑफ़ मैडिकल साइंस्ज़ (एम्स) की स्थापना में राजकुमारी अमृत कौर का योगदान वर्णनीय

Rajkumari Amrit Kaur नई दिल्ली में ऑल इण्डिया इनस्टीच्यूट ऑफ़ मैडिकल साइंस्ज़ (एम्स) की स्थापना में राजकुमारी अमृत कौर का बहुत अधिक योगदान रहा, इसी लिए वह इसकी पहली अध्यक्ष भी नियुक्त हुईं। उन्होंने इस संस्थान को स्थापित करवाने हेतु न्यू ज़ीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी (तब दो जर्मनी हुआ करते थे), स्वीडन एवं अमेरिका तक से वित्तीय सहायता एकत्र की। उन्होंने तथा उनके भाईयों ने एम्स में स्टाफ़ एवं नर्सों हेतु एक होलीडे होम के निर्माण हेतु शिमला (हिमाचल प्रदेश) स्थित अपनी कुछ पुश्तैनी जायदाद एवं एक बंगला (जो तब मेनोरविले के नाम से प्रसिद्ध था) तक बेच दिए थे। राजकुमारी अमृत कौर 14 वर्षों तक इण्डियन रैड क्रॉस सोसायटी की अध्यक्ष रहीं। मद्रास (जिसे 1996 में तामिल नाडू सरकार ने चेन्नई नाम दिया था) में तपेदिक व कुष्ट रोगियों के लिए एक शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना भी उन्होंने की करवाई थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृत कौर कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग तथा नैश्नल स्पोर्टस क्लब ऑफ़ इण्डिया की स्थापना भी की।


राज्य सभा सदस्य भी रहीं

1957 से लेकर 2 अक्तूबर 1964 को देहांत होने तक राजकुमाारी अमृत कौर राज्य सभा की सदस्य बनी रहीं। 1956 तथा 1963 में वह ऑल इण्डिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं। अपने अन्त तक एम्स की प्रैसिडैन्सीज़ भी उन्हीं की पास रहीं। वह सेंट जौन’ज़ एम्बुलैन्स कोर की अध्यक्ष भी रहीं। उनकी याद में भारत सरकार ने एक डाक टिक्ट भी जारी किया था।

Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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