स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली पहली मसीही जोड़ी ग्रेसी व सी. सैमुएल आरोन
कमाल के थे ग्रेसी आरोन व सी. सैमुएल आरोन
ग्रेसी आरोन एवं सी. सैमुएल आरोन की मसीही जोड़ी कमाल की थी, यह दोनों ही एक-दूसरे से बढ़ कर थे तथा इन दोनों का ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान वर्णनीय है। इनमें से किन का योगदान अधिक था, यह अनुमान लगाना भी कठिन है। वैसे इतिहासकारों ने श्री सैमुएल आरोन के बारे में इतना अधिक नहीं लिखा, जितना कि सुश्री ग्रेसी के बारे में वर्णित किया है। आरोन दंपत्ति को ही पहली ऐसी मसीही जोड़ी माना जाता है, जिस ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेते हुए पहली बार एक साथ जेल-यात्रा की थी। ‘मालाबार दीनबन्धु’ के नाम से प्रसिद्ध थीं ग्रेसी आरोन ग्रेसी आरोन तो अपने जीवन में ही ‘मालाबार दीनबन्धु’ के नाम से प्रसिद्ध थीं। वास्तव में श्री सैमुएल आरोन उत्तरी मालाबार (केरल) के एक बड़े उद्योगपति थे। आरोन दंपत्ति ने पहली बार 1930 के नमक सत्याग्रह में भाग लिया था तथा फिर उसके पश्चात् उन्होंने कभी स्वयं को स्वतंत्रता आन्दोलन से अलग नहीं किया। आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन दान कर दी थी हज़ारों एकड़ भूमि जब आचार्य विनोबा भावे जी ने ‘भूदान आन्दोलन’ प्रारंभ किया था, तब ग्रेसी व सैमुएल आरोन ने सब से पहले सामने आकर सर्वोदय संघ को अपनी हज़ारों एकड़ भूमि दान कर दी थी। नमक आन्दोलन में लिया था बढ़-चढ़ कर भाग केरल का नमक सत्याग्रह 16 अप्रैल, 1930 को गांव चोम्बल पहुंचा था। सैमुएल आरोन के नेतृत्त्व में स्थानीय निवासियों ने उसका भव्य स्वागत किया था। 21 अप्रैल, 1930 को के. केलप्पन के नेतृत्त्व में नमक सत्याग्रही जब पय्यानूर के समीप स्थित गांव परियारम पहुंचे थे, तब वह ग्रेसी आरोन ही थीं, जब उनके नेतृत्त्व में गांव की अनेक महिलाओं ने उन आन्दोलनकारियों का स्वागत उन पर फूल-मालाओं तथा चावलों की वर्षा करते हुए किया था। तब पय्यानूर के श्री सैमुएल आरोन के विशाल नारियल फ़ार्म में ही सभी सत्याग्रही व स्थानीय निवासियों की बड़ी भीड़ एकत्र हुई थी। सत्याग्रहियों हेतु सी. सैमुएल ने खोल दिए थे अपने ब्राईटर होटल के किवाड़ श्री सैमुएल ने 22 मई से 1 जून, 1930 तक नमक कानून को तोड़ने के उद्देश्य से कन्ननौर स्थित अपने ‘ब्राईटर होटल’ के भवन पूर्णतया कांग्रेस के सत्याग्रहियों हेतु खोल दिए थे। मालाबार के तत्कालीन कुलैक्टर ई.एम. गॉअने ने तब श्री सैमुएल आरोन को धमकी देते हुए कहा कि वह सत्याग्रहियों को अपने होटल से निकाल दें, नहीं तो उन पर भी मुकद्दमा चलाया जाएगा। परन्तु तब श्री सैमुएल ने उन्हें मुंह-तोड़ उत्तर देते हुए कहा था कि वह जेल जाना अधिक पसन्द करेंगे। उन्होंने कहा कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। 1000/- रुपए जुर्माना किया व जेल भेजा गया तब उन पर धारा 157 के अंतर्गत आरोप तय करते हुए उन्हें 1,000/- रुपए जुर्माना किया गया था तथा जुर्माना न देने की स्थिति में उन्हें छः सप्ताह सख़्त कारावास का दण्ड देने की धमकी भी दी गई थी। उस समय के 1,000/- रुपए का मूल्य आज के 10 लाख रुपयों से भी अधिक हुआ करता था। श्री सैमुएल ने जुर्माना भरने से साफ़ इन्कार कर दिया, इसी लिए उन्हें कन्नौर की केन्द्रीय जेल में भेज दिया गया। स्वतंत्रता आन्दोलनों हेतु दक्षिण भारतीय मसीही समुदाय के लिए बने प्रेरणा-स्रोत फिर 18 जुलाई को पय्यानूर पुलिस पज़ायागड़ी स्थित श्री सैमुएल आरोन की धागा फ़ैक्ट्री में 1,000 रुपए जुर्माने की राशि लेने हेतु पहुंची। वह फ़ैक्ट्री में से कई कारों में सामान भर कर अपने साथ ले गए। दक्षिण भारत का मसीही समुदाय यह मानता है कि उस समय आरोन दंपत्ति द्वारा ऐसा स्टैण्ड लेने से अन्य मसीही भाईयों-बहनों को भी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने की बड़ी प्रेरणा मिली थी। गांधी जी से अत्यधिक प्रभावित थीं ग्रेसी महात्मा गांधी जी की प्रेरणाओं से पूर्व, भारतीय महिलाएं उतनी अधिक संख्या में सार्वजनिक रूप से स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग नहीं लिया करती थीं। श्रीमति ग्रेसी आरोन (20 जनवरी 1896-1965) तब गांधी जी से अत्यधिक प्रभावित थीं तथा उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भी सक्रियतापूर्वक भाग लिया था। कालीकट में बड़ी संख्या में महिलाओं को एकत्र करके किया था बड़ा रोष प्रदर्शन बम्बई में महिला सत्याग्रहियों पर अत्याचार ढाहने की घटना के विरोध में सुश्री ग्रेसी ने कालीकट में महिलाओं को बड़ी संख्या में एकत्र करके एक बड़ा रोष प्रदर्शन किया था। जब श्री राघवकुरुप को हिरास्त में ले लिया गया था श्रीमति ग्रेसी को मालाबार कांग्रेसी की तृतीय अध्यक्ष बनाया गया था। तब केरल में कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था तथा अध्यक्ष पद पर नियुक्त व्यक्ति को ‘तानाशाह’ (डिकटेटर) कहा जाता था। उन्हें छः माह के लिए मद्रास स्थित वैल्लोर प्रैज़ीडैंसी महिला कारावास में रखा गया था। गांधी-इरविन समझौता होने के उपरान्त उन्हें रिहा कर दिया गया था। तब उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं रहता था, इसी लिए उनके पति श्री सैमुएल ने उन्हें कई बार सलाह दी थी कि वह अब स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग न लिया करें परन्तु सुश्री ग्रेसी पीछे हटने वाले लोगों में से नहीं थीं। उन्होंने महिलाओं, बच्चों व देश हित के लिए ऐसे आन्दोलनों में अपनी सक्रियता कभी कम नहीं की। यह बहुत दुःख की बात है कि ऐसे लोगों के चित्र भी उपलब्ध नहीं हैं। श्रीमति ग्रेसी का केवल एक चित्र ही देखने को मिलता है, वह भी अच्छी स्थिति में नहीं है। उनके पति श्री सैमुएल आरोन का तो एक भी चित्र आज कहीं शीघ्रतया उपलब्ध नहीं है। आज की पीढ़ी स्वतंत्रता सेनानियों को भूलती जा रही है। मूलीयिल मसीही परिवार से थीं ग्रेसी आरोन सुश्री ग्रेसी कालीकट (जिसे आज कोज़ीकोड के नाम से जाना जाता है) के मूलीयिल मसीही परिवार से संबंधित थीं। उनके पिता का नाम डॉ. जोसेफ़ तथा माँ श्रीमति ईस्टर अदासा थीं। डॉ. जोसेफ़ क्योंकि बेसल मिशन से जुड़े हुए थे, इसी लिए ग्रेसी पर बचपन से ही धर्म का बहुत अधिक प्रभाव रहा था। उन्होंने अपनी इन्टरमीडिएट की शिक्षा मालाबार क्रिस्चियन कॉलेज से ग्रहण की थी। फिर मद्रास प्रैज़ीडैन्सी स्थित रॉयपुरम ट्रेनिंग कॉलेज से शिक्षण/अध्यापन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने ओट्टापलम स्थित मिशन हायर सैकण्डरी स्कूल तथा तिरूर के मुस्लिम महिला विद्यालय में अध्यापन भी किया। ग्रेसी ने ही पति के मन में उत्पन्न किया था भारत माता के प्रति प्रेम पैपीनिस्री में रहने वाले श्री सैमुएल आरोन से विवाहोपरांत न केवल उनका जीवन पूर्णतया बदल गया बल्कि उन्होंने श्री सैमुएल को भी बदल डाला। विवाह से पूर्व श्री सैमुएल कभी भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने संबंधी सोचते भी नहीं थे, यह उनकी पत्नी ग्रेसी ही थीं, जिन्होंने उनके मन में भारत माता के प्रति प्यार उत्पन्न किया। दरअसल, श्री सैमुएल के घर में उस समय कई समाचार-पत्र आया तो करते थे, परन्तु उनके पास उन्हें पढ़ने का समय नहीं था। श्रीमति ग्रेसी के पास उन समाचार-पत्रों को पढ़ने का समय था। वह उन्हीं अख़बारों में प्रकाशित होने वाले स्थानीय व राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं से परिचित होती रहती थीं। वह कोई अच्छी ख़बर पढ़ कर उसके बारे में अपने पति से उसकी चर्चा अवश्य किया करती थीं। इन्हीं बातों ने श्री सैमुएल के मन गहरा असर डाला था। अनाथ बच्चों के लिए खोला था केन्द्र श्रीमति ग्रेसी ने 1918 में पैपिनिस्री में अनाथ बच्चों के लिए एक केन्द्र खोला था, वहां पर उनके उपचार हेतु एक होमियोपैथिक क्लीनिक भी स्थापित किया गया था। वे कन्नूर से औषधियां ला कर ग़रीबों में निःशुल्क बांटा करती थीं। वह निर्धन परिवारों के अनेक बच्चों को अपने ख़र्चे से पढ़ाया करती थीं। 1935 में उन्होंने पैपिनिस्री में ही ‘महिला समाजम’ नामक एक संस्था की स्थापना भी की थी, जहां वह महिलाओं को हस्तकलाओं व दर्ज़ी जैसे कार्यों में पारंगत किया करती थीं। ऊपर ग्रेसी आरोन का चित्रः यंग इण्डियन (/p) ऊपर का चित्र - मनोरमाः महात्मा गांधी जी पांच बार गए थे केरल। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]