आईपीएस मैक्सवेल परेरा ने नवम्बर ’84 में दंगाईयों से बचाया था दिल्ली का ऐतिहासिक गुरुद्वारा सीसगंज साहिब, कई सिक्खों की जानें भी बचाईं थीं
नवम्बर 1984 - काला अध्याय
37 वर्ष पूर्व 31 अक्तूबर को तत्कालीन प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या के पश्चात् भारत की राजधानी दिल्ली व देश के कई अन्य भागों में नवम्बर 1984 के दौरान सिक्ख कत्लेआम की कई घटनाएं घटित हुईं थीं तथा हज़ारों निर्दोष सिक्खों को केवल इस लिए मौत के घाट उतार दिया गया था क्योंकि इन्दिरा गांधी की हत्या करने वाले दो सिक्ख थे।
उस समय ‘कांग्रेसी नेता व विशेषतया दिल्ली पुलिस’ के अधिकारी केन्द्र में सत्तासीन कांग्रेस पार्टी की चमचागिरी करने में व्यस्त थे। इसी लिए वे हिंसक भीड़ों को सिक्खों पर हमले करने से रोक नहीं रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ‘कई कांग्रेसी नेता तब हिंसक भीड़ों का नेतृत्त्व भी कर रहे थे।’ परन्तु ऐसी परिस्थितियों में भी दिल्ली पुलिस का एक आईपीएस अधिकारी ऐसा भी था, जिस ने सत्ताधारियों के तलवे नहीं चाटे थे, अपितु दिल्ली के सिक्ख गुरुद्वारा साहिब व कई सिक्खों को दंगाईयों की भीड़ों से बचाया था।’
दंगाईयों की बड़ी भीड़ों के आगे केवल मैक्सवैल परेरा व 25 जवान
वह पुलिस अधिकारी थे मैक्सवैल परेरा आईपीएस, जो तब दिल्ली के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) थे। हिंसा भड़कने के समय उनके साथ पुलिस के केवल 25 जवान थे। तब केवल मैक्सवैल परेरा स्वयं के पास एक छोटी सी पिस्तौल थी। परन्तु उनके समक्ष दंगाईयों की बड़ी भीडें थीं; जो अकारण ही पागलों की भांति सिक्खों को ढूंढ-ढूंढ कर अत्याचार करते हुए मार रही थीं।
गुरुद्वारा साहिब को बचाया बेअदबी से
ऐसी परिस्थिति में मैक्स परेरा व उनकी टीम ने चांदनी चौक में स्थित गुरुद्वारा सीसगंज साहिब को अग्नि भेट करने व उसकी बेअदबी करने से बचाया था। वहीं पर पुलिस की इसी टीम ने बहुत से सिक्खों की जानें भी बचाईं थीं, जो सभी इसी गुरुद्वारा साहिब के अन्दर शरण ले रहे थे। बता दें कि यह गुरुद्वारा साहिब उसी स्थान पर सुसंस्थापित किया गया है, जहां मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने सिक्खों के नवें गुरु श्री गुरु तेग़ बहादर जी की हत्या करवाई थी।
भूतपूर्व पत्रकार संजय सूरी ने अपनी पुस्तक ‘1984ः दि ऐंटी सिक्ख राईटस एण्ड आफ़्टर’ (1984ः सिक्ख विरोधी दंग व उसके पश्चात्) में बहादुर आईपीएस मैक्सवैल परेरा संबंधी कुछ विवरण दिए हैं। दिल्ली के सिक्ख कत्लेआम संबंधी कुसुम लता रिपोर्ट में भी परेरा की बेहद प्रशंसा की गई है। यह एक ऐसा अधिकारी था, जिस ने अनेक सिक्खों को उनके घरों के भीतर भी सुरक्षा मुहैया करवाई थी।
परेरा ने इन्दिरा गांधी की मृतक देह की रखवाली के स्थान पर दंगाईयों की भीड़ रोकने को दी प्राथमिकता
1 नवम्बर, 1984 को पुलिस आयुक्त को मैक्सवैल परेरा को नए प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सुरक्षा पर नज़र रखने हेतु तीन-मूर्ति भवन में बुला लिया था।; जहां इन्दिरा गांधी की मृतक देह रखी गई थी। उधर परेरा को वायरलैस पर निरंतर सन्देश आ रहे थे कि देश की राजधानी में सिक्खों पर हमले हो रहे हैं।
इन परिस्थितियों में मैक्सवैल परेरा ने कमिश्नर को निवेदन किया था कि उन्हें अपने क्षेत्र में कानून व व्यवस्था को देखना आवश्यक है। तब वह लाल किला क्षेत्र पहुंचे। उन्होंने अपने साथ केवल 10-12 पुलिस कर्मचारी लिए तथा भगीरथ प्लेस की ओर चले गए, जहां दंगा भड़का हुआ था। वहां लोगों की भीड़ गुरुद्वारा साहिब पर हमला करने के लिए तैयार थी। उधर बहुत सारे सिक्ख भी गुरुद्वारा साहिब से बाहर आकर कृपाण लहरा कर दंगाई भीड़ का मुकाबला करने हेतु तैयार थे।
तब मैक्सवैल परेरा ने गुरुद्वारा साहिब के अन्दर मौजूद सिक्खों को समझाया कि वह ऐसी परिस्थितियों पर नियंत्रण पा लेंगे। तब समीवर्ती गलियों में से बहुत सारे सिक्ख बचाव हेतु गुरुद्वारा साहिब की ओर भागे आ रहे थे। वहां परेरा व उनकी टीम ने उन सबको सुरक्षा दी। फिर फ़ाऊंटेन चौक की पुलिस चौकी से और भी फ़ोर्स बुलाई।
ऐसे भड़का दंगा
हिंसा पर उतारू भीड़ें गुरुद्वारा साहिब की ओर बढ़ती जा रही थीं। उनके सामने पुलिस अधिकारी मैक्सवैल परेरा व उनके साथ केवल 25 पुलिस कर्मचारी ही थे। उन्होंने ने ही मिल कर चान्दनी चौक में से भीड़ को तित्तर-बित्तर करना प्रारंभ कर दिया। वहां दंगाकारी सिक्खों की दुकानों को आग लगा रहे थे। वहां उन्होंने दंगाकारियों को वापिस चले जाने की चेतावनी दी। पुलिस कर्मचारियों के पास केवल डण्डे थे तथा अपने बचाव हेतु शील्डें। वहां भीड़ को तित्तर-बित्तर करने हेतु आंसू गैस के गोले फेंके गए।
भीड़ ने शोर मचाना तब भी नहीं छोड़ा; इसके बाद मैक्सवेल ने अपनी रिवॉल्वर का इस्तेमाल किया और फायरिंग कर दी। वह रिवॉल्वर भी कांस्टेबल सतीश चंद्र के पास थी। उस गोलीबारी में एक दंगाई की मौत हो गई थी। तब भीड़ थोड़ी डरी हुई दिखाई दे रही थी; इसके बाद दंगाइयों को माइक्रोफोन के जरिए जाने के लिए कहा गया। तब मैक्सवेल परेरा ने गोली चलाने वाले पुलिस कर्मचारी के लिए 200 रुपये के इनाम की घोषणा की। इसके बाद भीड़ तितर-बितर हो गई।
सलेम, मद्रास में हुआ जन्म
मैक्सवेल परेरा का पूरा नाम है- मैक्सवेल फ्रांसिस जोसेफ परेरा-कामथ। वह देश के शीर्ष पुलिस अधिकारियों में से एक हैं। उन्हें नौ राष्ट्रीय और चार क्षेत्रीय पुरस्कार मिले हैं। उनका जन्म 3 अक्टूबर 1944 को सलेम में, पूर्व मद्रास प्रेसीडेंसी (अब तमिलनाडु) में हुआ था। उनके पिता का नाम बरनार्ड परेरा और उनकी माता का नाम स्टेला एलेनोर डिसूजा था।
मैक्सवेल परेरा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट एलॉयसियस स्कूल, मैंगलोर में प्राप्त की। उन्होंने 1967 में बैंगलोर विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री के साथ स्नातक किया। वह 1970 के दशक में सरकारी सेवा में शामिल हुए। उन्होंने अपना ज्यादातर समय दिल्ली में बिताया है। उन्होंने सिक्किम और मिजोरम में एक पुलिस अधिकारी के रूप में भी काम किया है। इसके अलावा, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई मामलों को सुलझाया है लेकिन वे नैना साहनी हत्याकांड के तंदूर कांड से ज्यादा प्रसिद्ध हुए थे; जिसमें युवा कांग्रेस नेता सुशील कुमार ने अपनी प्रेमिका/पत्नी नैना साहनी की हत्या कर उसके शव को अपने रेस्टोरेंट के तंदूर में जला दिया था।
राजनीतिक कारणों के चलते कभी नियुक्त नहीं हो पाए पुलिस आयुक्त
मैक्सवेल परेरा को किसी भी राजनीतिक दबाव के चलते कभी भी पुलिस आयुक्त नियुक्त नहीं किया गया और एडीसीपी के तौर पर ही सेवा-निवृत्त हुए। यदि वे भी तथाकथित वर्तमान बड़े और मुख्यधारा के मीडिया की तरह बिक जाते, तो उन्हें भी पदोन्नति मिलती। इसी तरह मैक्सवेल परेरा को एक सच्चे ईसाई के रूप में देखा और समझा जा सकता है।
भारत में मसीही/ईसाई समुदाय को मैक्सवेल परेरा पर बहुत गर्व है। इस देश में किसी भी ईसाई व्यक्ति की कभी इज्जत नहीं होती और इतना वीर व्यक्ति भी हो, तब भी जानबूझ कर उसका ज़िक्र ही नहीं किया जाता। यदि एक ईसाई को उच्च पद प्राप्त होता है, तो वह हमेशा सत्य और न्याय के लिए खड़ा होता है और लड़ता है। मैक्सवेल परेरा ऐसा ही एक उदाहरण हैं।
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-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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