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भारत में श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज़ कुरियन



 




 


कॉलेज के दिनों में रही खेलों में अधिक रुचि

भारत में श्वेत क्रांति (व्हाईट रैवोल्यूशन) के जनक डॉ. वर्गीज़ कुरियन का जन्म भारत के केरल राज्य के कालीकट (जिसे अब कोज़ीकोड कहा जाता है) में 26 नवम्बर, 1921 को एक सीरियन मसीही परिवार में हुआ था। उनके पिता पुतेनपारक्कल ब्रिटिश कोचीन में सिविल सर्जन थे तथा उनकी मां एक उच्च-शिक्षा प्राप्त महिला थीं और वह प्यानो बहुत अच्छा बजा लेतीं थीं। श्री वर्गीज़ कुरियन का नाम उनके ताया राव साहिब पी.के. वर्गीज़ के नाम पर रखा गया था। श्री वर्गीज़ ने मद्रास के लोयोला कॉलेज से फ़िज़िक्स में बी.एससी. की डिग्री प्राप्त की थी। खेलों में उनकी अधिक दिलचस्पी रही तथा उन्होंने क्रिकेट, बैडमिन्टन, बॉक्सिंग व टैनिस जैसी खेलों में अपने कॉलेज का प्रतिधित्व किया था।


अमेरिका से उच्च-शिक्षा प्राप्त करके गुजरात के आनन्द स्थित डेयरी डिवीज़न में नियुक्त हुए

उसके पश्चात् वह सरकारी छात्रवृत्ति पर उच्च-शिक्षा प्राप्त करने हेतु अमेरिका चले गए थे, जहां उन्हों ने मकैनिकल इन्जिनियरिंग में विलक्ष्णता से एम.एससी की। अपनी पढ़ाई संपन्न करके वह 13 मई, 1949 को भारत लौट आए। तब वह गुजरात के काइरा ज़िले के नगर आन्नद में गए जहां उन्होंने सरकारी छात्रवृत्ति की पूर्व-तयशुदा शर्त अनुसार वहां के डेयरी डिवीज़न में एक अधिकारी के तौर पर पांच वर्ष बिताने थे। आनन्द पहुंच कर श्री वर्गीज़ ने पाया कि दूध के वितरक किसानों का शोषण कर रहे थे और वहां का सारा कारोबार ‘पोलसन’ मक्खन का विपणन करने वाला ‘पैस्तनजी एडुलीजी’ नामक एक कारोबारी चलाता था - जो वास्तव में बहुत चालाक था।


किसानों का शोषण देखने के उपरान्त वर्गीज़ कुरियन ने छोड़ दी सरकारी नौकरी

आनन्द के किसान तब अपने हिसाब से जीवन जीने हेतु संघर्ष कर रहे थे और उनके नेता त्रिभुवनदास पटेल थे, जो उन किसानों को एकजुट कर के रख रहे थे। उन्होंने शोषण से बचने के लिए एक सहकारिता लहर कायम कर रखी थी। यह सब देख कर डॉ. कुरियन ने अपनी सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया तथा त्रिभुवनदास पटेल व अन्य किसानों के साथ जुड़ गए और तभी से उस क्षेत्र में ‘दुग्ध सहकारिता अभियान’ प्रारंभ हो गया - उनकी संस्था ‘काइरा ज़िला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ मर्यादित’ के नाम से पंजीकृत थी - उसे ही हम आज ‘अमुल’ के नाम से जानते हैं।


वर्गीज़ के प्रयासों के कारण भारत बना विश्व का नम्बर-1 दूध उत्पादक

तब श्री वर्गीज़ ने भारत में श्वेत क्रांति लाने हेतु अपनी कमर कस ली थी और ‘आप्रेशन फ़्लड’ चलाया। उनका विवाह उसी दौरान 15 जून, 1953 को सुज़ैन मौली पीटर से हुआ। उनकी एक सुपुत्री निर्मला कुरियन व नाती सिद्धार्थ हैं। उन दिनों भारत में दूध की कमी मानी जाती थी परन्तु अब श्री वर्गीज के संगठत प्रयासों़ की बदौलत ही भारत समस्त विश्व में सब से अधिक दूध का उत्पादन करने वाला देश है। श्री वर्गीज़ के नेतृत्त्व में ही ‘गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (मर्यादित)’ तथा ‘राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड’ जैसे संगठन कायम हुए और देश भर में डेयरी सहकारी अभियान प्रारंभ हो गया। पूरे देश ने आनन्द के सहकारी डेयरी मॉडल को अपनाया। दरअसल श्री वर्गीज़ की प्रणाली ने बिचौलियों को समाप्त कर दिया था।


लोगों ने दिया ‘मिल्कमैन ऑफ़ इण्डिया’ नाम, अनेक प्रतिष्ठित पुरुस्कार मिले

डॉ. कुरियन स्वयं को सदा किसानों का एक ऐसा कर्मचारी कहा करते थे, जो केवल उनकी समृद्धि हेतु समर्पित है। अपने 50 वर्षों की सेवा के दौरान उन्हें विभिन्न संगठनों द्वारा 15 ऑनरेरी डिग्रियां प्राप्त हुईं। उन्हें 1963 में सामुदायिक नेतृत्त्व के लिए मैगसेसे एवार्ड, 1965 में पदम श्री, 1966 में पदम भूषण, 1986 में कृषि रत्न एवार्ड, 1989 में वर्ल्ड फूड पुरुस्कार, 1999 में पदम विभूषण, 2001 में ‘इक्नौमिक टाईम्स’ की ओर से ‘कार्पोरेट एक्सेलैंस’ एवार्ड व अन्य कई इनामों से सम्मानित किया गया। परन्तु श्री वर्गीज़ को सब से अच्छा लोगों द्वारा दिया गया नाम ‘मिल्कमैन ऑफ़ इण्डिया’ (भारत का ग्वाला) लगा।


खाद्य तेलों में भी भारत को आतम-निर्भर बनाया

वह भी श्री वर्गीज़ कुरियन ही थे, जिन्होंने खाद्य तेलों में भारत को आतम-निर्भर बनाया। इसके लिए वह तथाकथित ‘तेल सम्राटों’ से भिड़ गए थे क्योंकि ऐसे लोग तिलहन उद्योग में ग़लत तरीकों से कारोबार कर रहे थे। वर्ष 1979 में श्री कुरियन को रूस के प्रधान मंत्री अलैक्सेई कोसीजिन ने सोवियत यूनियन में डेयरी सहकारी सभाएं स्थापित करने में मदद करने हेतु आमंत्रित किया था। इसी प्रकार पाकिस्तान ने भी 1982 में ऐसी ही मदद उनसे मांगी थी। वर्ष 1989 में चीन ने भी श्री कुरियन की मदद से ही ‘ऑप्रेशन फ़्लड’ जैसा ही अपना एक कार्यक्रम चलाया था। भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री पीवी नरसिम्हा राव ने भी श्री कुरियन को श्री लंका में सहकारी समितियां स्थापित करवाने में मेे हेतु निवेदन किया था।


श्याम बेनेगल ने वर्गीज़ कुरियन की सहायता से बनाई थी अमुल की सफ़लता पर फ़िल्म ‘मंथन’

फिल्मसाज़ श्याम बेनेगल ने तब अमुल की सफ़लता पर एक फिल्म ‘मंथन’ बनाने की सोची थी परन्तु तब उनके पास इतना धन नहीं था। श्री कुरियन ने अपने 5 लाख सदस्य किसानों से दो-दो रुपए इकठ्ठे कर के श्याम बेनेगल को दिए थे। यह फ़िल्म 1976 में रिलीज़ हुई थी। बहुत से किसानों ने इस फ़िल्म को देखा व उसे सफ़ल बनाया।


2012 में संक्षिप्त बीमारी से हुआ निधन

9 सितम्बर, 2012 को डॉ. वर्गीज़ कुरियन का संक्षिप्त बीमारी के उपरान्त आनन्द में ही 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। श्री कुरियन चाहे मसीही परिवार में पैदा हुए थे परन्तु बाद में वह नास्तिक हो गए थे; इसी कारण उनका दाह संस्कार किया गया था (मसीही रीति के अनुसार दफ़नाया नहीं गया था)। डॉ. वर्गीज़ कुरियन को हमारा भारत कभी भुला नहीं पाएगा।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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