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कारगिल के शहीद व महा वीर चक्र विजेता कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़



 




 


नागालैण्ड में हुआ था नीकेज़ाकू केंगुरुज़ का जन्म

भारतीय थल सेना की 2 राजपूताना राईफ़ल्स के कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ (15 जुलाई 1974-28 जून, 1999) को भी कारगिल युद्ध में दिए बलिदान के कारण भारत के द्वितीय उच्चतम वीरता पुरुस्कार ‘महा वीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था। कैप्टन केंगुरुज़ का जन्म नागालैण्ड राज्य के कोहिमा ज़िले के नेरहेमा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम नीसिली केंगुरुज़ है व उनके दो भाई नग्सेऊ केंगुरुज़ व अतूली केंगुरुज़ हैं।


कोहिमा के सरकारी स्कूल में अध्यापक भी रहे थे कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़

कैप्टन केंगुरुज़ ने अपनी शिक्षा जलूकी स्थित सेंट ज़ेवियर स्कूल व कोहिमा साइंस कॉलेज से ग्रहण की थी। उन्होंने 1994 से लेकर 1997 तक कोहिमा के सरकारी स्कूल में अध्यापक के तौर पर भी काम किया था। फिर 12 दिसम्बर, 1998 को वह भारतीय थल सेना में भर्ती हुए। उनके परिवार के सदस्य व मित्रगण उन्हें प्यार से ‘निंबू’ कह कर बुलाया करते थे। सेना में भी वह ‘निंबू साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध थे। उनकी याद में सम्मान के तौर पर बंगलौर स्थित आर्मी सर्विस कोर के प्रवेश द्वार का नाम कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ के नाम पर रखा गया है।


कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ बने थे अपनी पलाटून के कमाण्डर

कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ को ‘घातक’ पलाटून का कमाण्डर बनाया गया था। कारगिल के ब्लैक रॉक क्षेत्र में दुश्मन के आतंकवादी धड़ाधड़ गोलियां बरसा रहे थे, जिसके कारण कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ की पलाटून कई दिनों तक आगे नहीं बढ़ पा रही थी। तब वहां पर दुश्मन का ख़ात्मा करना अत्यंतावश्यक था। तब कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ ने उस सीधी पहाड़ी पर चढ़ने का निर्णय ले लिया, जहां दुश्मन छिपा बैठा था। उनके सामने सात पाकिस्तानी बंकर दिखलाई दे रहे थे। जैसे-जैसे कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ अपने साथी वीर सैनिकों के साथ पहाड़ की चोटी की ओर बढ़ रहे थे, वैसे ही दुश्मन गोलीबारी अधिक करने लगा था। जब वे पहले बंकर के समीप पहुंचे, तो उन पर ग्रेनेड फेंक दिया गया। कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ बुरी तरह से घायल हो गए। उनके पेट में बड़े घाव हो गए थे, परन्तु वे अपने साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे।


कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ ने अकेले ही किए थे दुश्मन के दो बंकर तबाह

28 जून, 1999 की रात्रि को दुश्मन ऑटोमैटिक हथियारों से अन्धाधुन्ध गोलियां बरसा रहा था, जिससे भारतीय टुकड़ी का काफ़ी जानी नुक्सान हुआ। कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ ने घायल अवस्था में ही तब एक रॉकेट लांचर की मदद से पहले बंकर को तबाह कर दिया। तब अपने कमाण्डर की ऐसी कार्यवाही को देखकर कमाण्डो टीम अंततः पहाड़ की चोटी पर चढ़ने के लिए और ऊपर चढ़ी परन्तु आगे एक चट्टान आ गई।


16,000 फुट की उँचाई पर कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ ने (माईनस दस) -10 डिग्री सैल्सियस तापमान में दिखलाई थी वीरता

तब कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ व उनकी टीम ने एक रस्सी की सहायता से ऊपर चढ़ने का प्रयत्न किया। परन्तु उस 16,000 फुट की उँचाई व -10 डिग्री सैल्सियस तापमान के बीच बर्फ़ पर से कैप्टन केंगुरुज़ के पांव फ़िसल रहे थे। इसी कारणवश उन्होंने इतनी ठण्ड के बावजूद अपने जूते उतार कर नंगे पांव ही ऊपर चढ़ने का निर्णय लिया।

तभी दूसरे बंकर में से दुश्मन के दो सैनिक आ गए और वहां पर हाथोपाई शुरु हो गई। परन्तु कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ ने उन दोनों को अपने कमाण्डो चाकू से उन दोनों के गले रेत दिए। इस प्रकारा कैप्टन ने अकेले ही दुश्मन के दो बंकर तबाह कर दिए और कारगिल की वह चोटी दुश्मन से छुड़ा ली।

इस प्रकार 25 वर्ष की आयु में कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ ने शहादत पाई। उस वक्त तक ‘आर्मी सर्विस कोर’ (एएससी) में किसी भी जवान को महा वीर चक्र प्राप्त नहीं हुआ था। कैप्टन नीकेज़ाकू केंगुरुज़ यह सम्मान पाने वाले प्रथम जवान थे।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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