शिलौंग के कैप्टन कीशिंग क्लिफ़ोर्ड नोंग्रम कारगिल युद्ध में हुए थे शहीद
कारगिल युद्ध में कैप्टन कीशिंग क्लिफ़ोर्ड नोंग्रम ने दिखाई थी बेमिसाल वीरता
कारगिल युद्ध के मसीही नायक - कैप्टन कीशिंग क्लिफ़ोर्ड नोंग्रम भारतीय थल सेना में 12 जम्मू-कश्मीर लाईट इनफ़ैन्ट्री के अधिकारी थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में दुश्मन के दांत खट्टे करते समय बेमिसाल वीरता का प्रदर्शन करते हुए 1 जुलाई, 1999 को वीरगति प्राप्त की थी। उन्हें मरणोपरांत देश के द्वितीय उच्चतम सैन्य पुरुस्कार ‘महा वीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था। श्री कीशिंग क्लिफ़ोर्ड नोंग्रम का जन्म 7 मार्च, 1975 को मेघालय की राजधानी शिलौंग के एक मसीही परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री कीशिंग पीटर स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया में कार्यरत रहे हैं, जबकि उनकी माँ सायली नोंग्रम एक गृहणी हैं।
कैप्टन नोंग्रम ने अपनी शिक्षा शिलौंग के डॉन बॉस्को टैक्नीकल स्कूल व सेंट एन्थोनी’ज़ कॉलेज से ग्रहण की थी। वह पढ़ने-लिखने व खेलों में बहुत होशियार थे। उन्होंने चेन्नई के ऑफ़ीसर्ज़ ट्रेनिंग अकैडमी से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् जम्मू-कश्मीर लाईट इनफ़ैंन्ट्री में कमिशन हुए थे।
एक पहाड़ी की चोटी पर छिपे हुए दुश्मनों ने कर दी थी अचानक गोलीबारी
कैप्टन नोंग्रम को 30 जून व 1 जुलाई, 1999 की रात्रि को दक्षिण-पूर्वी दिशा से आक्रमण करते हुए चोटी संख्या 4812 पर विजय प्राप्त करने का बड़ा कार्य सौंपा गया था। पहले तो ठीक चलता रहा परन्तु जब वह अपनी टुकड़ी के साथ चोटी पर पहुंचने ही वाले थे कि चोटी पर छिपे बैठे दुश्मनों ने उन पर धड़ाधड़ गोलीबारी प्रारंभ कर दी। दुश्मनों ने बड़े-बड़े पत्थरों द्वारा निर्मित अपने बंकर भी आपस में जोड़े हुए थे, जिससे उन पर तो नीचे से भारतीय सेना द्वारा की जाने वाली गोलीबारी का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था, परन्तु वे नीचे से ऊपर जा रहे भारतीय जवानों को बड़ी आसानी से निशाना बना रहे थे। जब कैप्टन नोंग्रम ने अपने सैनिकों का जानी नुक्सान होते देखा, तो उन्होंने अपनी जान की कोई परवाह न करते हुए स्वयं आगे बढ़ते हुए एक बंकर पर हथगोले फेंके, जिससे दुश्मन के छः सैनिक तुरन्त मारे गए। दुश्मन ने तब कैप्टन नोंग्रम की टुकड़ी पर और भी अधिक गोलीबारी करनी शुरु कर दी। वह गोलीबारी ऑटोमैटिक तोपों से लगभग दो घन्टों तक जारी रही।
घायल अवस्था में भी कैप्टन नोंग्रम अपने अंतिम श्वास तक दुश्मन से जूझते रहे थे
तब कैप्टन नोंग्रम ने एक बंकर से दुश्मन की युनीवर्सल मशीन गन छीनने का प्रयास किया परन्तु आगे से उन पर गोलियों की बौछार होने लगी। वह बहुत बुरी तरह घायल हो गए परन्तु तब तक कैप्टन नोंग्रम के साथियों ने उस बंकर व चोटी संख्या 4812 पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। घायल अवस्था में भी वह अपने अंतिम श्वास तक दुश्मन से जूझते रहे थे।
कैप्टन नोंग्रम की याद में शिलौंग के रहीनो अजायबघर में उनका आधे धड़ का एक बुत्त भी स्थापित किया गया है।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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कैप्टन नोंग्रम ने अपनी शिक्षा शिलौंग के डॉन बॉस्को टैक्नीकल स्कूल व सेंट एन्थोनी’ज़ कॉलेज से ग्रहण की थी। वह पढ़ने-लिखने व खेलों में बहुत होशियार थे। उन्होंने चेन्नई के ऑफ़ीसर्ज़ ट्रेनिंग अकैडमी से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् जम्मू-कश्मीर लाईट इनफ़ैंन्ट्री में कमिशन हुए थे।
एक पहाड़ी की चोटी पर छिपे हुए दुश्मनों ने कर दी थी अचानक गोलीबारी
कैप्टन नोंग्रम को 30 जून व 1 जुलाई, 1999 की रात्रि को दक्षिण-पूर्वी दिशा से आक्रमण करते हुए चोटी संख्या 4812 पर विजय प्राप्त करने का बड़ा कार्य सौंपा गया था। पहले तो ठीक चलता रहा परन्तु जब वह अपनी टुकड़ी के साथ चोटी पर पहुंचने ही वाले थे कि चोटी पर छिपे बैठे दुश्मनों ने उन पर धड़ाधड़ गोलीबारी प्रारंभ कर दी। दुश्मनों ने बड़े-बड़े पत्थरों द्वारा निर्मित अपने बंकर भी आपस में जोड़े हुए थे, जिससे उन पर तो नीचे से भारतीय सेना द्वारा की जाने वाली गोलीबारी का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था, परन्तु वे नीचे से ऊपर जा रहे भारतीय जवानों को बड़ी आसानी से निशाना बना रहे थे। जब कैप्टन नोंग्रम ने अपने सैनिकों का जानी नुक्सान होते देखा, तो उन्होंने अपनी जान की कोई परवाह न करते हुए स्वयं आगे बढ़ते हुए एक बंकर पर हथगोले फेंके, जिससे दुश्मन के छः सैनिक तुरन्त मारे गए। दुश्मन ने तब कैप्टन नोंग्रम की टुकड़ी पर और भी अधिक गोलीबारी करनी शुरु कर दी। वह गोलीबारी ऑटोमैटिक तोपों से लगभग दो घन्टों तक जारी रही।
घायल अवस्था में भी कैप्टन नोंग्रम अपने अंतिम श्वास तक दुश्मन से जूझते रहे थे
तब कैप्टन नोंग्रम ने एक बंकर से दुश्मन की युनीवर्सल मशीन गन छीनने का प्रयास किया परन्तु आगे से उन पर गोलियों की बौछार होने लगी। वह बहुत बुरी तरह घायल हो गए परन्तु तब तक कैप्टन नोंग्रम के साथियों ने उस बंकर व चोटी संख्या 4812 पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। घायल अवस्था में भी वह अपने अंतिम श्वास तक दुश्मन से जूझते रहे थे।
कैप्टन नोंग्रम की याद में शिलौंग के रहीनो अजायबघर में उनका आधे धड़ का एक बुत्त भी स्थापित किया गया है।
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