कारगिल युद्ध के मसीही नायक - कैप्टन आर. जैरी प्रेमराज
सांप्रदायिक तत्त्वों ने किया भारत का माहौल ख़राब
वैसे तो जब देश की बात आती है, तो कभी किसी धर्म, जाति, रंग या नसल की कहीं कोई बात नहीं होनी चाहिए, परन्तु आज कल राष्ट्रवाद के स्वयंभू ठेकेदारों ने भारत का माहौल ख़राब करके रखा हुआ है। उन्होंने विभिन्न सांप्रदायिक संगठनों के साथ मिल कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहने के लिए देश के अल्प-संख्यकों, विशेषतया मसीही समुदाय को निशाना बना कर रखा हुआ है। आए दिन ये समाज-विरोधी तत्व किसी न किसी बहाने मसीही लोगों पर आक्रमण करते रहते हैं। वर्ष 2017 के दौरान गुजरात में 9वीं कक्षा की एक पाठ्य-पुस्तक में प्रभु यीशु मसीह के बारे में आपत्तिजनक शब्द प्रकाशित किए होने का मामला सामने आया था। हम इसकी सख़्त निंदा करते हैं। ऐसे में समस्त मसीही समुदाय को इस मामले में अपनी विभिन्न मिशनों को एक ओर रखते हुए एकजुट होकर इन ठेकेदारों व सांप्रदायिक संगठनों को यह दिखलाना होगा कि हम क्या हैं। वैसे तो समस्त देश के मसीही संगठन यह मामला सामने आने पर तत्काल सक्रिय हो गए हैं। परन्तु अब केवल फोकी बातों से नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से हम मसीही लोगों को आमने-सामने आकर ऐसे तत्वों से उनकी तकलीफ़ पूछनी होगी।
हनीमून छोड़ कर कारगिल युद्ध में गए थे कैप्टन जैरी प्रेमराज
ऐसी परिस्थितियों में हम कैप्टन जैरी प्रेमराज को याद करना चाहते हैं, जिन्होंने अपने भारत देश के लिए दुश्मनों के साथ लड़ते हुए हंसते-हंसते अपना बलिदान दिया। वर्ष 1999 में जब उन्हें कारगिल युद्ध के लिए सेना की ओर से बुलाया गया था, तब वह अपने हनीमून पर थे, क्योंकि केवल दो-सवा दो माह पूर्व ही उनका विवाह हुआ था।
भारत का मसीही समुदाय अपने ऐसे जांबाज़ों के सामने नत-मस्तक है। सचमुच एक सच्चा मसीही कभी फोकी बातें नहीं करता, बल्कि वह अपने मन के विचारों को सदा सकारात्मक रूप दे कर भूल जाता है और कभी अपना गुणगान नहीं चाहता। ऐसी दर्जनों मिसालें हमारे सामने हैं परन्तु ये सांप्रदायिक तत्व यही दावे करते हुए घूमते हैं कि मसीही समुदाय का देश में कोई योगदान नहीं है। भारत सरकार द्वारा ‘वीर चक्कर’ प्राप्त कैप्टन जैरी प्रेमराज जैसी शख़्सियतें ऐसे निर्लज्ज लोगों के मुंह पर करारी चपेड़ हैं।
9 जुलाई, 1999 को वीरगति को प्राप्त हुए थे
कैप्टन जैरी प्रेमराज भारतीय सेना में एक कमिशन्ड ऑफ़ीसर थे। वह कारगिल युद्ध के दौरान कश्मीर स्थित टाईगर हिल की चोटी नंबर 5140 पर अपनी टुकड़ी के इन्चार्ज थे। उन्होंने 9 जुलाई, 1999 को वीरगति प्राप्त की थी। वह उस युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए बुरी तरह घायल हो गए थे और उसी दिन उनका निधन हो गया था। जिस वीरता से वह युद्ध में लड़े थे, उसी के कारण उन्हें युद्ध-नायक घोषित किया गया था। उन्हें उनके केरल स्थित उनके पैतृक नगर थिरुवनंथापुरम में दफ़नाया गया था। भारत सरकार ने उन्हें मरणाोपरांत देश के तृतीय उच्चतम सैन्य पुरुस्कार ‘वीर चक्कर’ से सम्मानित किया था।
जैरी प्रेमराज का जन्म केरल राज्य के त्रिवेन्द्रम ज़िले के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल कोवलम के समीप वेंगानूर में हुआ था। उनके पिता श्री रत्न राज केरल के तकनीकी शिक्षा विभाग में कार्यरत रहे हैं, जबकि उनकी माँ केरल सरकार के ही स्वास्थ्य विभाग में काम करती हैं। उनके भाई रेजिनाल्ड पवित्रन भारतीय वायु सेना के सेवा-निवृत्त अधिकारी हैं।
टैलीग्राम मिली, तो तुरन्त केरल से पहुंचे थे मेरठ
कैप्टन जैरी प्रेमराज 5 सितम्बर, 1997 को 158 मीडियम रैजिमैन्ट (एस.पी.) में भर्ती हुए थे। 22 अप्रैल, 1999 को उनका विवाह प्रासीना से हुआ था। उस समय वह मेरठ छावनी (उत्तर प्रदेश) में तायनात थे। उन्होंने 3 जून, 1999 को राजधानी एक्सप्रैस द्वारा मेरठ वापिस जाने के लिए अपनी टिक्ट रिज़र्व करवाई थी। वह अपने साथ अपनी पत्नी को भी ले जाना चाह रहे थे परन्तु 30 मई को उनकी युनिट की ओर से एक टैलीग्राम आया था कि वह अपनी छुट्टी तत्काल रद्द कर दें और तत्काल ड्यूटी पर उपस्थित हों। उस समय वह मेट्टूर (तामिल नाडू) में अपने एक रिश्तेदार के घर पर थे और अगले दिन वह अपने हनीमून के लिए ऊटी जाना चाह रहे थे। परन्तु वह ऊटी नहीं गए और तत्काल घर लौटे। उसी समय उनके कमाण्डिंग ऑफ़ीसर ने उन्हें फ़ोन करके सलाह दी कि वह अभी अपनी पत्नी प्रासीना को अपने साथ न लाएं; इसी लिए उन्होंने अपनी पत्नी का टिकेट रद्द करवा दिया। तीन जून, 1999 को वह मेरठ अपनी ड्यूटी पर लौटे।
घायल होने के बावजूद मोर्चे से पीछे नहीं हटे, दुश्मनों से लड़ते रहे
तब मेरठ छावनी में केवल कुछ रिज़र्व सैनिक ही बचे थे, बाकी सभी जवान ‘आप्रेशन रक्षक’ के अंतर्गत ‘ऑप्रेशन विजय’ हेतु कश्मीर के दरास सैक्टर जा चुके थे। तब उन्हें 2 नागा रैजिमैन्ट के साथ जोड़ा गया और कैप्टन के रैंक की तरक्की देते हुए कश्मीर भेजा गया। वह 2 नागा के फ़ारवर्ड ऑब्ज़रवेशन ऑफ़ीसर थे। 7 जुलाई, 1999 को चोटी नंबर 4875 पर जब वह रणभूमि में थे, तो दुश्मन की एक गोली उनके कन्धे पर आकर लगी। उन्होंने घायल अवस्था में भी अपने दो अधीनस्थ जवानों की जान बचाई। उस सुबह उनकी कार्यवाही से दुश्मन के 17 सैनिक मारे गए थे। घायल होने के बावजूद उन्होंने उस मोर्चे से पीछे हटने से साफ़ इन्कार कर दिया और दुश्मन पर गोलीबारी जारी रखी। फिर एक के बाद एक 5 गोलियां उनके सर व शरीर के अन्य भागों पर आकर लगीं। प्रातःकाल 4 बजे उन्होंने अंतिम श्वास लिया। इस प्रकार आख़री दम तक वह दुश्मन को करारी टक्कर देते रहे।
2 फ़रवरी, 1990 को भारतीय वायु सेना में हुए थे भर्ती
कैप्टन जैरी प्रेमराज अपने पहले वर्ष के डिग्री कोर्स के दौरान ही 2 फ़रवरी, 1990 में भारतीय वायु सेना के लिए चुन लिए गए थे। तब उनकी आयु 18 वर्ष होने वाली थी। वह इनस्टरूमैन्ट फ़िटर के तौर पर भर्ती हुए थे। उनका प्रारंभिक प्रशिक्षण बंगलौर के जलाहाली में हुआ था। दो वर्षों के प्रशिक्षण के पश्चात् वह 7 विंग अम्बाला में तायनात हुए थे। अम्बाला से उन्हें जैगुआर हवाई जहाज़ की मेंटीनैंस कनवर्शन फ़्लाईट ट्रेनिंग हेतु गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) भेज दिया गया था। वष्र 1996 तक वह अम्बाला में कार्यरत रहे। इसी दौरान उन्होंने एक सिटिंग में ही काकेतिया विश्वविद्यालय से अपनी डिग्री संपन्न की। उन्होंने सी.डी.एस. की परीक्षा उतीर्ण की। और भारतीय थल सेना में ऑफ़ीसर बन गए। उन्होंने ओ.टी.ए. चेन्नई से प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा 5 सितम्बर, 1997 को एक आर्टिलरी ऑफ़ीसर नियुक्त हुए। थल सेना में भर्ती के समय वह भारतीय वायु सेना में कार्पोरल थे और उनकी सेवा 7 वर्ष की हो गई थी। फिर प्रशिक्षण के उपरान्त उन्हें 158 मीडियम रैजिमैन्ट में तायनात किया था। मेरठ में उन्हें यंग ऑफ़ीसर्ज़ के कोर्स के लिए भी भेजा गया था।
क्रिकेट व पैन्सिल से स्कैच बनाने के शौकीन थे कैप्टन जैरी प्रेमराज
कैप्टन जैरी प्रेमराज के भाई रैजिनाल्ड पवित्रन ने बताया कि ‘‘स्कूल में प्रेमराज क्रिकेट खेलना पसन्द करते थे। वह फ़ास्ट बाऊलर के साथ-साथ ऑल-राऊण्डर थे। जब वह 10वीं कक्षा में थे, तो वह अपनी स्कूल की क्रिकेट टीम के कैप्टन थे। चर्च में सण्डे स्कूलों में भी वह सदा सक्रिय रहा करते थे। वह एक अच्छे कलाकार भी थे और पैन्सिल से स्कैच भी बहुत बढ़िया बना लिया करते थे। उन्हें बचपने से ही सेना में भर्ती होने का शौक था। पहले उन्होंने समुद्री सेना में भर्ती होने का प्रयत्न किया था परन्तु तब वह मैडिकल टैस्ट पास नहीं कर पाए थे। उनकी मृतक देह का ताबूत 11 जुलाई, 1999 को केरल पहुंचा था परन्तु उसे खोला नहीं गया था। मैंने उन्हें मृत अवस्था में नहीं देखा था, इसी लिए मुझे आज भी यकीन नहीं होता कि प्रेमराज अब इस दुनिया में नहीं है। परिवार ने उनकी याद में एक चर्च का निर्माण भी करवाया है और प्रत्येक वर्ष 7 जुलाई को विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन भी करवाया जाता है।’’
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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