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वास्तविक जीवन के व फ़िल्म ‘एयर लिफ़्ट’ के असल नायक मैथनी मैथ्यूज़



 




 


अपने आप में विलक्ष्ण थी कुवैत से एयरलिफ़्ट की घटना

21 जनवरी, 2016 को भारत के सिनेमा घरों में बॉलीवुड की एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी, जिसका नाम था ‘एयर लिफ़्ट’। इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका अदाकार अक्षय कुमार ने निभाई थी। वह कहानी 1990 के कुवैत युद्ध से संबंधित थी, जो 2 अगस्त, 1990 से प्रारंभ होकर 20 अक्तूबर, 1990 तक चला था। तब उस युद्ध में लगभग पौने दो लाख भारतीय नागरिक फंस गए थे, उन्हें बहुत कठिनाईयों से जूझते हुए वहां से निकालना पड़ा था। इतिहास में कहीं ऐसी कोई अन्य मिसाल नहीं मिलती, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बचा कर निकाला गया हो। सिविल हवाई जहाज़ों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बाहर निकालने का गिन्नीज़ बुक विश्व रेकार्ड भारत की राजकीय एयरलाईन्स ‘एयर इण्डिया’ के नाम है।


वास्तव में मैथनी मैथ्यूज़ का किरदार निभाया था अक्षय कुमार ने

PHOTO: TOPYAPS.com

अक्षय कुमार तो केवल पर्दे पर ही इस फ़िल्म के नायक थे और फ़िल्म में उनका नाम रणजीत कात्याल रखा गया था। उस समय युद्ध के दौरान फंसे 1.75 लाख भारतीयों को निकालने संबंधी फ़िल्म में दिखाए गए अक्षय कुमार वाले सारे काम असल ज़िन्दगी में श्री मैथनी मैथ्यूज़ ने किए थे; अर्थात अक्षय कुमार ने श्री मैथनी मैथ्यूज़ का ही किरदार निभाया था। वैसे तो उस रण-भूमि में से भारतीयों को निकालने वाले नायकों में श्री मैथ्यूज़ के अतिरिक्त हरभजन सिंह बेदी, ऐबे वैरीकैड, वी.के. वारियर, अली हुसैन जैसे लोग भी शामिल थे परन्तु जो सूझबूझ श्री मैथ्यूज़ ने उस समय दिखलाई थी, वह बेमिसाल थी।


2017 में कुवैत में हुआ निधन

अफ़सोस की बात है कि सन् 1936 में केरल में पैदा हुए श्री मैथनी मैथ्यूज़ उर्फ़ टोयोटा सन्नी का निधन 19 मई, 2017 को कुवैत के कदीसिया नगर में स्थित उनके अपने घर में 81 वर्ष की आयु में हो गया था; वह ए.एल.एस. (एमायोट्रॉफ़िक लेटरल स्कलेरोसिस) नामक रोग से पीड़ित थे, जिसमें शरीर के पट्ठे सिकुड़ने लगते हैं। परन्तु भारत के किसी भी बड़े मसीही संगठन या सरकार ने इस पर कोई विशेष प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी। यह बड़ी प्रसिद्ध कहावत है कि जो कौम अपने शहीदों व कौम के लिए कुछ विलक्ष्ण करने वालों को भूल जाती है, उसका अस्तित्व ही इस दुनिया से मिट जाता है। हमें ऐसे मसीही लोगों को अवश्य याद रखना चाहिए, जिनकी वजह से आज हम समाज में सर उठा कर चलने योग्य हैं।


1990 में पौने दो लाख भारतीय फंस गए थे कुवैत युद्ध में

ख़ैर, कुवैत का आक्रमण 2 अगस्त, 1990 को प्रारंभ हुआ था परन्तु दो ही दिनों में कुवैत के सशस्त्र बलों को इराक की सेना ने धूल चटा दी थी और उसे सऊदी अरब व बहरीन जैसे देशों के समक्ष घुटने टेकने पड़े थे। सद्दाम हुसैन ने तो कुछ ही दिनों के पश्चात् कुवैत को इराक का 19वां राज्य तक घोषित कर दिया था। तब कुवैत में स्थित भारतीय दूतावास को भी इराकी नगर बसरा भेजना पड़ा था। ऐसे समय में पौने दो लाख भारतीय कुवैत में बुरी तरह से फंस गए थे। कुवैत के अमीर (प्रशासक) तो ऐसी परिस्थितियों में भाग कर रियाध चले गए थे परन्तु अमीर के भाई को आक्रमणकारियों ने गोलियों से भून दिया था।

इराकी सेनाओं ने संपूर्ण कुवैत पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था और ऐसे में श्री मैथ्यूज़ अपने एक छोटे प्रतिनिधि मण्डल को बग़दाद ले जाने में सफ़ल हो गए थे। वहां पर श्री मैथ्यूज़ ने भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल से मुलाकात की थी। फिर शीघ्र ही भारत सरकार ने इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के साथ अपने भारतीय नागरिकों को सुरक्षित वापिस ले जाने संबंधी समझौता कर लिया था। उस समय के समाचार-पत्रों ने श्री मैथ्यूज़ द्वारा पूर्ण साहस के साथ लाखों भारतीयों की मदद के लिए कार्यों की ख़बरें प्रकाशित की थीं। तब श्री मैथ्यूज़ ही हिम्मत करके पीड़ित भारतीयों के एक बड़े काफ़िले को जॉर्डन की राजधानी अम्मान ले जाने में सफ़ल रहे थे, वहां से भारतीयों को हवाई जहाज़ों से वापिस भारत लाया गया था। उस कार्यवाही को ‘एयर लिफ़्ट’ कहते हैं। वह कार्यवाही 13 अगस्त 1990 को प्रारंभ हुई थी और 11 अक्तूबर, 1990 अर्थात 59 दिनों तक लगातार चलती रही थी।


1956 में पहली बार गए थे कुवैत

श्री मैथनी मैथ्यूज़ पहली बार 1956 में एक समुद्री जहाज़ द्वारा कुवैत पहुंचे थे, तब उनकी आयु 20 वर्ष थी। तब कुछ मध्य-पूर्वी देश स्वेज़ नहर संकट के चलते विखण्डित होते दिखाई दे रहे थे। उन दिनों श्री मैथ्यूज़ ने प्रसिद्ध ऑटोमोबाइल कंपनी ‘टोयोटा’ के लिए काम किया था और तभी उनका नाम ‘टोयोटा सन्नी’ भी पड़ गया था। उन दिनों कुवैत में टोयोटा ऑटोमोबाइल्स की एजेन्सी अल सायर नामक कंपनी के पास हुआ करती थी।


कुवैत में एक भारतीय स्कूल भी खोला था

श्री मैथ्यूज़ कुवैत में अपना एक भारतीय स्कूल - ‘जाबरिया इण्डियन स्कूल’ भी चलाते थे। इसके अतिरिक्त कुवैत में रहने वाले भारतीयों के लिए कार्यरत ‘इण्डियन आर्ट सर्कल’ नामक संास्कृतिकि संगठन का काम भी वही देखते थे। वह बहुत से सामाजिक संगठनों के साथ भी जुड़े रहे थे। कुवैत पहुंचने वाले भारतीयों को वह सदा सहायता करते थे। उनका जन्म केरल के एरावीपेरूर क्षेत्र के कुमबनाद नामक नगर में 1936 में हुआ था।


आख़िर फ़िल्म में वास्तविक किरदार का नाम क्यों परिवर्तित किया गया?

अब प्रश्न यह भी उठता है कि आख़िर फ़िल्म ‘एयर लिफ़्ट’ के निर्माता निखिल अडवानी व अन्य तथा निदेशक राजा कृष्ण मैनन की ऐसी भी क्या मजबूरी थी कि उन्होंने फ़िल्म में नायक का असली नाम मैथनी मैथ्यूज़ रखने के स्थान पर रणजीत कत्याल रखा। इसका उत्तर शायद हम मसीही भाईयों-बहनों को ही ढूंढना पड़ेगा। आखि़र वे लोग एक फ़िल्म के निर्माण पर 30 करोड़ रुपए लगाने जा रहे थे - निश्चित रूप से उन्हें यह डर था कि नायक का यदि असली नाम रख दिया गया, तो शायद भारत के बहु-संख्यक फ़िल्म को रद्द न कर दें। आख़िर मसीही समुदाय के प्रति भारत व भारतीयों का ऐसा मनोभाव व रवैया क्यों है; इस पर थोड़ा विचार करने की आवश्यकता है। इस बात का उत्तर शायद स्वयं मसीही समुदाय ही बेहतर ढंग से दे पाएगा। आख़िर आज स्वतंत्रता-प्राप्ति के 70 वर्षों के पश्चात् भी हम अपने साथी नागरिकों को यह भी ठीक ढंग से नहीं जचा पाए हैं कि हम भी आम भारतीय नागरिक हैं, कोई विशेष या विदेशी नहीं।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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