Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के वीर मेजर जनरल ईआन कार्डोज़ो



 




 


सभी को जाननी चाहिए मेजर जनरल ईआन कार्डोज़ो की कहानी

मसीही लोग अपने कल्याण कार्यों को करने के पश्चात् किसी के सामने उनका गुणगान कभी नहीं करते, हां कुछेक आडम्बरियों व दिखावेबाज़ों को छोड़ कर। ऐसे तत्व सभी जगह होते हैं, समस्त पृथ्वी पर। परन्तु मसीही समुदाय में आपको ऐसे लोग कम ही मिलेंगे। भारत में तो अधिकतर मसीही लोग स्वयं को ‘लो प्रोफ़ाईल’ में ही रखना पसन्द करते हैं, अधिक लिफ़ाफ़ेबाज़ी में यकीन नहीं रखते। एक सच्चे मसीही की पहचान उसके अच्छे व भले कार्यों से स्वतः ही हो जाती है। फिर जब बात देश व अपनी मातृ-भूमि की आ जाए, तो पूछिए मत।

आईए हम आपको ऐसे ही एक सच्चे मसीही मेजर जनरल ईआन कार्डोज़ो की कहानी सुनाते हैं। यह कहानी वैसे तो वे सभी लोग जानते होंगे, जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध के समाचारों को थोड़ा सा भी ध्यान से पढ़ा व सुना होगा। मेजर कार्डोज़ो उसी युद्ध के अनेक नायकों में से एक थे। उनकी कहानी को कंप्यूटर व इन्टरनैट के इस वर्तमान आधुनिक युग में कोरा डॉट कॉम एवं रैडिफ़ डॉट कॉम के द्वारा प्रचारित व प्रसारित करने में ऋषि राज सिंह ने बहुमूल्य योगदान डाला है। भारत का मसीही समुदाय इसके लिए उनका ऋणी है क्योंकि अब तो ऐसे सभी प्रमाण सरकारी स्तर पर सदा के लिए समाप्त किए जा रहे हैं, ताकि देश में मसीही समुदाय के योगदान के बारे में कोई जानकारी आने वाली पीढ़ियों को कभी न मिल सके।


भारत का माहौल बिगाड़ रहे हैं कुछ सांप्रदायिक तत्त्व

हमारा प्रयास सदा यही रहा है कि हम भारत में मसीही समुदाय के सभी प्रकार के योगदानों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकें और आने वाली नसलों के लिए संभाल सकें। हमारा उद्देश्य मेजर कार्डोज़ो को केवल एक मसीही के तौर पर नहीं बल्कि एक सच्चे भारतवासी के तौर पर प्रस्तुत करना है। जब कोई मातृ-भूमि की सेवा करता है, तो वह किसी धर्म, जाति, रंग, वर्ण या नसल के लिए नहीं करता - वह तो एक अलग ही जज़्बा है, जिसे शायद शब्दों में पूर्णतया कभी ब्यान किया भी नहीं जा सकता। वर्तमान दौर में कुछ समाज-विरोधी तत्वों ने सभी को कुछ इस ढंग से सोचने के लिए विवश कर दिया है। इन मुट्ठी भर तत्वों ने समस्त भारत में मसीही समुदाय को विशेषतया निशाना बनाया हुआ है। ख़ैर, उनके निशाने पर तो देश के सभी अल्प-संख्यक हैं। आज मसीही समुदाय की बारी है, तो कल किसी अन्य अल्प-संख्यक समुदाय की आएगी। ये तत्व भारत में केवल अपना अकेले का राज्य चाहते हैं, जैसे ये लोग प्राचीन समयों से ग़रीबों व दलितों पर बिना वजह अत्याचार करते रहे हैं, वैसा ही कुछ माहौल अब ये लोग देश में बनाना चाह रहे हैं। यह बात हमीं लोगों ने इन बेचारे अकल के पैदल तत्वों को समझानी है कि घड़ी उल्टा चक्कर कभी नहीं लगा सकती, वह तो अपनी गति से सदा आगे ही बढ़ेगी, बीता वक्त कभी दोबारा वापिस नहीं आ सकता। नए युग की नई बातों को तो एक न एक दिन अवश्य ही अपनाना पड़ता है।


बारूदी सुरंग से घायल मेजर कार्डोज़ो ने मैदान-ए-जंग में स्वयं काट ली थी अपनी टांग 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय कार्डोज़ो 5 गोरखा राईफ़ल्स में एक युवा मेजर थे। तब भारत ने 13 दिनों के अन्दर पाकिस्तान की सेनाओं को बुरी तरह हराया था। लाखों पाकिस्तानी सैनिकों के कब्ज़े से भारतीय सेनाओं ने बंगलादेश को छुड़ाया था और उसके बाद ही एक नए देश बंगलादेश का जन्म हुआ था। उसी युद्ध में सिल्हेट नामक स्थान पर मेजर कार्डोज़ो का पांव अचानक एक बारूदी सुरंग पर पड़ गया था और उनकी टांग बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गई थी। उनका आगे बढ़ना बहुत मुश्किल हो गया था। अब यदि किसी सैन्य टुकड़ी का मेजर ही घायल हो, तो वह आगे कैसे बढ़ पाएगी। ऊपर से संकट की घड़ी। ऐसे समय में मेजर कार्डोज़ो ने घायल होने के कारण पैदा हुई अपनी अयोग्यता को अपने फ़र्ज़ के सामने कोई रुकावट न बनने दिया। उन्होंने अपने साथी जवानों को आदेश दिया कि वे उनकी शरीर के साथ लटक रही टांग को तेज़धार हथियार से अलग कर दें। परन्तु कोई भी सैनिक उस समय अपने कमाण्डर की टांग काटने के लिए आगे न बढ़ा। तब मेजर कार्डोज़ो ने स्वयं एक खुखरी ली और अपनी उस टांग को अपने शरीर से सदा के लिए अलग कर दिया। उन्होंने अपनी उस टांग को वहीं पर मिट्टी में दफ़न करने के लिए कहा और फिर उसी स्थिति में अपनी सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व किया। मेजर कार्डोज़ो भारत के इतिहास में पहले ऐसे सैनिक अधिकारी बन गए, जिन्होंने अंगहीन होते हुए भी एक थल सेना की एक पूरी बटालियन व एक ब्रिगेड की अगवाई की। उसके बाद भी वह एक अंगहीन अधिकारी के तौर पर इन्फ़ैंट्री ब्रिगेड का नेतृत्व करते रहे। उसके बाद उन्होंने इन्फ़ैंट्री डिवीज़न की भी कमान संभाली थी तथा 1993 में सेवा-निवृत्त हो गए थे। अपनी रिटायरमैन्ट के समय वह पूर्वी भारत में एक कोर के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ थे।


अब (सन् 2020) भी कल्याण कार्यों से जुड़े हुए हैं मेजर कार्डोज़ो

श्री रोलैण्ड फ्ऱांसिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार मेजर कार्डोज़ो का जन्म 1937 में मुंबई में हुआ था। उन्होंने सेंट ज़ेवियर’ज़ स्कूल एवं कॉलेज से अपनी शिक्षा ग्रहण की। जुलाई 1954 में वह क्लीमैंट टाऊन, देहरादून में जुआएंट सविर्सेज़ विंग में शामिल हो गए। उसे ही जनवरी 1955 में पुणे के खण्डकवासला क्षेत्र में हस्तांत्रित कर दिया गया था और वही बनी नैश्नल डिफ़ैंस अकैडमी। वहां पर इआन कार्डोज़ो ही पहले ऐसे कैडेट थे, जिन्होंने स्वर्ण पदक प्राप्त किया था क्योंकि उन्हें ‘बैस्ट ऑल राऊण्ड कैडेट’ घोषित किया गया था। उस समय उन्हें चांदी का पदक भी वरीयता के आधार पर प्राप्त हुआ था। उन्हें भारतीय सैन्य अकैडमी में पांच गोरखा राईफ़ल्स (सीमांत बल) की पहली बटालियन में कमिशन किया गया था, जहां उन्होंने एक युवा अधिकारी के तौर पर सभी प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वह 1960 में एन.ई.एफ़.ए. में गश्त के समय वीरतापूर्ण कार्यों हेतु सेना मैडल प्राप्त करने वाले जवानों में भी एक थे।

मेजर कार्डोज़ो अब भी ‘डिसएबिलिटी विद दि स्पास्टिक्स सोसायटी ऑफ़ नॉर्दरन इण्डिया’ के साथ जुड़े रह कर कल्याण कार्यों में जुटे हुए हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकें - ‘दि सिंकिंग ऑफ़ आई.एन.एस. कुकरी’, ‘सर्वाईवर्स स्टोरीज़ परम वीर’, ‘अवर हीरोज़ इन बैटल’ भी लिखी हैं। मेजर कार्डोज़ो की पत्नी का नाम प्रिसिला है तथा उनके तीन पुत्र हैं।


मेजर इआन कार्डोज़ो का पुराना इन्टरव्यू

अति विशिष्ट सेवा पदक (ए.वी.एस.एम.) विजेता मेजर इआन कार्डोज़ो ने अपनी वीरता से भारतीय मसीही समुदाय का सर ऊँचा किया। उनके जीवन की प्रमुख बातें हम पहले जान ही चुके हैं। आईए अब उनके साथ हुई एक दिलचस्प बातचीत के द्वारा उनके बारे में कुछ और अधिक जानें। देखें कि कैसे इस वीर भारतीय मसीही सपूत मेजर कार्डोज़ो ने बारूदी सुरंग में घायल हुई अपनी टांग स्वयं काट लेने के पश्चात् अपना ऑप्रेशन एक पाकिस्तानी सर्जन से करवाने से साफ़ इन्कार कर दिया। यह प्रमाण है इस बात का भारत के समूह मसीही कैसे अपने देश के लिए मर-मिटने के लिए तैयार हैं, परन्तु कभी अन्य लोगों की तरह ऐसी बातों का गुणगान करते हुए नहीं घूमते, जैसे आज कल कुछ तथाकथित राष्ट्रवादी देश-भक्ति के सर्टीफ़िकेट बांटते हुए घूम रहे हैं...


प्रश्नः अपने उस घाव के बारे में बताएं, जो आपको 1971 के भारत-पाक युद्ध में मिला था!

उत्तरः मुझे उस समय भी अपने घाव की कोई चिन्ता नहीं थी। मेरा पांव एक बारूदी सुरंग पर पड़ गया था और मेरी टांग का बहुत बड़ा भाग उड़ गया था और वह लटक गई थी। एक बंगलादेशी ने यह सब घटित होते देखा। उसने मुझे बटालियन के मुख्यालय में पहुंचाया। मैंने डॉक्टर से कहा कि मुझे मॉरफ़ीन चाहिए परन्तु उनके पास यह दवा उपलब्ध नहीं थी क्योंकि युद्ध के कारण सब कुछ ध्वस्त हो चुका था। उनके पास पैथीडीन भी नहीं थी। मैंने डॉक्टर से पूछा कि क्या आप मेरी टांग को काट सकते हैं? तो उन्होंने कहा कि उनके पास ऑप्रेशन का कोई औज़ार नहीं है। तब मैंने अपने सहायक से कहा कि मेरी खुखरी कहां है? तो मैंने अपने उस सैनिक सहायक से कहा कि वह खुखरी से ही मेरी टांग को काट दे परन्तु उसने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकता तब मैंने उसे आदेश दिया कि वह खुखरी मुझे दो। मैंने वह खुखरी ली और तुरन्त अपनी टांग काट कर उसे कहा कि वह उसे कहीं पर दफ़ना दे।


प्रश्नः उस वक्त आपको क्या महसूस हो रहा था?

उत्तरः उस समय मैं यही महसूस कर रहा था कि यह बहुत ग़लत समय पर मेरे साथ ऐसा क्यों हो गया, जबकि मुझे तो अपनी बटालियन को लेकर आगे बढ़ना था। तब वह हादसा मुझे मेरे रास्ते में केवल एक रुकावट ही लग रही थी। तभी डॉक्टर मेरे सैन्य सहायक के साथ आया और मुझे कहा कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं क्योंकि हमारी कैद में एक पाकिस्तानी सर्जन है, वह आपका ऑप्रेशन कर देगा और आपका रक्त बहना बन्द हो जाएगा। मैंने उनसे साफ़ कह दिया कि मैं किसी पाकिस्तानी से अपना ऑप्रशन करवाने के स्थान पर मरना पसन्द करुंगा। मैंने उनसे कहा कि वे मुझे वापिस भारत ले जाएं। परन्तु उन दिनों ढाका शहर पूरी तरह बन्द था और कोई हैलीकॉप्टर भी उपलब्ध नहीं था। इस लिए अंत मैंने पाकिस्तानी सर्जन से ऑप्रेशन करवाने की स्वीकृति दे दी।

मैंने अपने सहायक से स्पष्ट कहा कि मेरी दो शर्तें हैं। डॉक्टर ने कहा कि तुम किन्हीं शर्तों का वक्त नहीं है परन्तु फिर भी मैंने अपनी शर्तें उनके समक्ष रखीं। मैंने कहा कि एक तो आप मुझे किसी भी हालत में पाकिस्तानी ख़ून नहीं चढ़ने देना, मुझे ऐसे ख़ून की आवश्यकता नहीं है। तो मेरी इस बात पर डॉक्टर ने मुझे कहा कि ‘तुम तो कुछ मूर्ख लगते हो।’ तो मैंने जवाब दिया कि मैं मूर्ख ही मरना पसन्द करुंगा। मैंने अपनी दूसरी शर्त रखी कि जब वह पाकिस्तानी सर्जन ऑप्रेशन करे, तो आप लोग मेरे पास अवश्य खड़े रहें।

पाकिस्तान के सर्जन मेजर मोहम्मद बशीर ने बहुत अच्छे ढंग से ऑप्रेशन किया। परन्तु मैं उसे शब्द ‘धन्यवाद’ नहीं कह पाया। आज मुझे इस बात के लिए थोड़ा अफ़सोस भी होता है कि कम से कम मुझे उसे ‘थैंक यू’ तो अवश्य कहना चाहिए था। परन्तु आज उसे पाकिस्तान में ढूंढना बहुत कठिन होगा।


प्रश्नः जब आपने अपनी स्वयं की टांग काटी थी, तो आपके मन में क्या चल रहा था?

उत्तरः लोग इस बात के लिए मेरी कुछ अधिक ही प्रशंसा कर जाते हैं, जबकि ऐसा ज़्यादा कुछ नहीं है। उस वक्त मुझे बहुत चिढ़ हो रही थी क्योंकि मेरी टांग बहुत ख़राब अवस्था में थी और मैं उसे उस हालत में देख भी नहीं पा रहा था। इसी लिए मैं उससे छुटकारा भी पाना चाहता था। मेरा कोई अन्य साथी उसे काट भी नहीं रहा था।


प्रश्नः आपने कहा है कि अब आपको जो भी सपने आते हैं, उसमें आपकी दोनों टांगे बिल्कुल सही सलामत होती हैं?

उत्तरः जी हां, मुझे जब भी सपना आता है, तो दोनों टांगों के साथ मैं पूर्ण होता हूं और मुझे बनावटी टांग वाला सपना कभी नहीं आया।


प्रश्नः तो फिर टांग कटने के बाद एक विकलांग व्यक्ति के तौर पर आप आगामी तरक्की कैसे ले पाए?

उत्तरः जी, यह अच्छा प्रश्न है। क्योंकि सेना में प्रत्येक जवान की शारीरिक फ़िटनैस पर अधिक बल दिया जाता है और कमाण्डर बनने के लिए तो यह फ़िटनैस अत्यंत आवश्यक है। डॉक्टरों की रॉय मेरे बारे में यही थी कि मैं अन्य फ़िट लोगों के सामने पीछे रह जाऊँगा परन्तु मैने अपने दृढ़ संकल्प से अपनी लकड़ी की टांग से भी स्वयं को सिद्ध कर के दिखाया। मैं आज भी प्रातःकाल जल्दी उठता हूं, कुछ व्यायाम करता हूं। फिर दौड़ता हूं। मैं जब कमाण्डर बनने के लिए टैस्ट देना चाह रहा था, तो मेरा अधिकारी नहीं चाहता था कि मैं वह सख़्त टैस्ट दूं क्योंकि उससे पिछले वर्ष एक विकलांग व्यक्ति ने वह टैस्ट दिया था परन्तु उसी दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी। इसी लिए वे इस बार कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। मैंने उस अधिकारी को कहा कि मैं बिल्कुल फ़िट हूं तो उन्होंने कहा कि यदि मैंने यह टैस्ट दिया तो वह मुझे ग्रिफ़्तार कर लेंगे। तो मैंने जवाब दिया कि पहले मैं टैस्ट दे कर अपराध तो कर लूं, बाद में आप मुझे उस अपराध के लिए ग्रिफ़्तार कर लेना। पहले आप अपराध तो होने दीजिए, अपराध होने से पहले आप मुझे कैसे ग्रिफ़्तार कर सकते हैं।

तो मैंने वह टैस्ट दिया और दोनों टांगों वाले सात अधिकारियों को पीछे छोड़ दिया। उस टैस्ट के पश्चात् उसी अधिकारी ने मुझे विशेष तौर पर शाबाश दी।

एक बार वाईस चीफ़ के साथ मेरा जम्मू-कश्मीर जाना हुआ। वहां पर हैलीपैड 6,000 फ़ुट की उंचाई पर था। वह अधिकारी हैलीकॉप्टर से वहां पर पहुंच गए परन्तु मैं सड़क के रास्ते इतनी अधिक व सख़्त चढ़ाई चढ़ कर गया। उन्होंने मुझ से आश्चर्यचकित होकर पूछा कि मैं इस हैलीपैड पर कैसे पहुंचे, तो मैंने बताया कि मैं तो सड़क के रास्ते सीधी चढ़ाई चढ़ते हुए पहुंचा हूं। तो वह अधिकारी बहुत हैरान हुए कि मैं ऐसे कैसे चढ़ सकता हूं। फिर मैंने इसी प्रकार लद्दाख में ऊँचे पर्वतों व बर्फ़ पर भी चढ़ कर दिखाया। तब जनरल टी.एन. रैना ने मुझे एक बटालियन सौंपने के आदेश दिए। फिर ब्रिगेड की कमान संभालते समय भी ऐसे ही हुआ। अधिकारियों ने कहा कि मैं एक ब्रिगेड की कमान संभालने के सक्षम नहीं हूंगा परन्तु मैंने सेना मुख्य को लिखा कि जब मैं एक बटालियन की कमान संभाल सकता हूं, तो ब्रिगेड की क्यों नहीं। तो सेना मुख्य ने अधिकारियों से पूछा कि आप लोग इस व्यक्ति को परेशान क्यों कर रहे हैं, उसे एक ब्रिगेड की कमान सौंपिए। उसके बाद तीन अन्य विकलांग अधिकारी भी सेना के कमाण्डर बने और एक तो वाईस-चीफ़ के पद तक पहुंचा, जबकि उसकी दोनों टांगें कट चुकी थीं।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]

 
visitor counter
Role of Christians in Indian Freedom Movement


DESIGNED BY: FREE CSS TEMPLATES