Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

मिशनें - मसीही समुदाय को जोड़ रहीं या बांट रहीं ? यीशु की कब्र हुई बेगानी



यीशु मसीह की कब्र की देखभाल कई पीढ़ियों से कर रहा एक मुस्लिम परिवार

यहां साथ में दिखाई दे रहा चित्र पुराने येररूशलेम नगर में स्थित ‘चर्च ऑफ़ सैपल्कर’ का है। यह चर्च वास्तव में परमेश्वर के पुत्र व हमारे मुक्तिदाता यीशु मसीह की कब्र पर बना हुआ है परन्तु इस की सेवा-संभाल अब 831 वर्षों से मसीही समुदाय नहीं, अपितु एक मुस्लिम परिवार कई पीढ़ियों से करता चला आ रहा है। विस्तारपूर्वक जानने के लिए पढ़ें यह सारा विवरणः


केवल मिशनों के परस्पर वैमनस्य के कारण नहीं हो पाई मसीही योगदान की चर्चा

Church of Sepulchre भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों में मसीही समुदाय का तो इतना अधिक योगदान है कि यह वर्णन शीघ्रतया समाप्त होने वाला नहीं है परन्तु हमारे मसीही भाईयों-बहनों ने ही विभिन्न मिशनों व समुदायों के बंटवारे में फंसते हुए जानबूझ कर ऐसी बहुमूल्य बातों का प्रचार व पासार ही नहीं किया। हम लोग मिशनों में इतने अधिक बंट चुके हैं कि एक बार तो लगता है कि अब मसीही समुदाय में संपूर्ण एकता शायद कभी न आ पाए। एक मसीही भाई जब कभी किसी अनजान मसीही भाई से पहली बार मिलता है, तो वे पहले दो-तीन मिनट की बातों में ही एक-दूसरे की मिशन अवश्य पूछते हैं। यदि तो दोनों की मिशन एक निकली तो उनकी बात आगे बढ़ती है अन्यथा दोनों अपने-अपने पथ पर आगे निकल जाते हैं। यह समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मिशनों के परस्पर वैमनस्य व बैर-विरोध के कारण भारत में हमारा मसीही समाज बहुत अधिक पिछड़ गया है।


हम मसीही समुदाय को एकजुट नहीं देख पाते

हो सकता है कि यह पंक्तियां पढ़ते समय किसी को लगता होगा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की इस कथा में हमारी मिशन के किसी मसीही सेनानी अथवा शहीद का कहीं वर्णन नहीं आया। इस प्रकार हम कभी अपने मसीही समुदाय को समग्र रूप में अर्थात एकजुट नहीं देख पाते। अब कुछ नई पीढ़ी के भारतीय युवा मसीही इस बात को समझने लगे हैं तथा अपने-अपने क्षेत्रों में क्रिसमस व ईस्टर के सुअवसरों पर एकजुट हो कर अपने-अपने नगरों व गांवों में बड़ी शोभा-यात्राएं/रैलियां निकालते हैं। परन्तु वहां पर भी बहुत बार फूट उजागर होती रहती है। एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर दिखावा करने के प्रयत्न किए जाते हैं। स्वयं को ऊँचा तथा दूसरे को नीचा दिखलाने की कोशिशें चलती रहती हैं। यही कारण है कि हमारे देश भारत में हमें उतन्ी मान्यता नहीं मिल पाई, जितनी कि मिलनी चाहिए; जबकि असंख्य मसीही संगठन अपने-अपने विद्यालयों, कॉलेजों व अस्पतालों द्वारा भारतीय समाज की निःस्वार्थ सेवा करने में जुटे हुए हैं। परन्तु केवल एकता की कमी के कारण हमारे समुदाय को उतना सम्मान नहीं मिल पाता, जितना कि मिलना चाहिए।


मिशनों के कारण कभी भारतीय राजनीति में आगे नहीं निकल पाए मसीही

इतना कि किसी भारतीय मसीही को देश का राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री का पद सौंप दिया जाए, आज की तारीख़ में यह बात एक बहुत दूर की बात व स्वप्न लगती है। एक उदाहरण से शायद यह बात और अधिक स्पष्ट हो जाए, (पादरी सुनील गिल व उनकी पत्नी किरण गिल के बताए अनुसार) उत्तर भारत के केन्द्र शासित प्रदेश चण्डीगढ़ में प्रत्येक रविवार को 2500 से 300 स्थानों पर विभिन्न मसीही समुदाय इकट्ठे हो कर प्रार्थना सभाएं करते/चर्चों में इकट्ठे होते हैं। यदि वे सभी सप्ताह में कभी एक बार, चलो माह में एक बार या कभी तीन माह में एक बार भी एक स्थान पर इकट्ठे हो कर अपने मुक्तिदाता यीशु मसीह को याद करें, तो अन्य समुदायों तथा समय-समय की सरकारों को भी मालूम होगा कि हमारा भी कोई अस्तित्व है। परन्तु ऐसा असंभव ही लगता है-हम तो एक वर्ष में क्रिस्मस के अवसर पर एक बार भी बहुत मुश्किल से इकट्ठे हो पाते हैं। हम लोग सिर्फ़ व्यक्तिगत तौर पर आगे बढ़ने की होड़ में हैं, सामूहिक रूप से नहीं। अगर कभी किसी मंज़िल पर पहुंच कर मसीहियत की ख़ुशहाली का ताला खोलने का ख़्वाब है, तो वह तो केवल एकजुटता की चाबी से ही खुल पाएगा - इस का अन्य कोई रास्ता नहीं है।


कई शताब्दियों से चली आ रही है फूट

हम लोगों को अपनी ऐसी कमज़ोरियों का कारण यह है कि यह फूट आज से नहीं, प्रारंभ से ही अर्थात कई शताब्दियों से ही चलती आ रही है, और आज उनके परिणाम हमें भुगतने पड़ रहे हैं। उदाहरणतया इंग्लैण्ड का कोई भी महाराजा या महारानी कभी किसी कैथोलिक से विवाह नहीं रचा सकता। इस पर प्रतिबन्ध है। यदि वह ऐसा करेगा, तो उसे राज-गद्दी नहीं मिल पाएगी। अब बताईए, विश्व के नम्बर कहलाने वाले व अनेक के प्रेरणा स््राोत शाही मसीही ख़ानदान का यह हाल है, तो लोग इस बात से क्या शिक्षा ले पाएंगे। इस समस्या का कारण यही है कि हम कभी आत्म-मंथन नहीं करते, अपनी ग़लत बातों को दुरुस्त नहीं करना चाहते। बस स्वयं को मन ही मन बहुत ऊँचा जानकर ख़ुश व संतुष्ट हो कर बैठ जाते हैं।


इसी फूट के कारण आज यीशु की कब्र पर भी मसीही समुदाय का हक नहीं

क्या आपको मालूम है कि चर्च अर्थात मसीही समुदाय की इसी आपसी फूट के कारण आज 2,000 वर्षों के उपरान्त भी हम यीशु मसीह की कब्र तक पर अपना अधिकार प्राप्त नहीं कर पाए। इस्रायल सरकार ने किसी भी मसीही समुदाय/मिशन को उस कब्र पर बने ‘चर्च ऑफ़ सैपल्कर’ पर अधिकार नहीं दिया।


मुस्लमानों के पास 831 वर्षों से हैं यीशु की कब्र की चाबियां

Tomb of Jesus फ़िलहाल इस वर्ष 2018 में यीशु मसीह की कब्र व चर्च को संभालने की ज़िम्मेदारी दो मुसलमान व्यक्तियों अदीब जावाद जूदेह व वजीह नुसीबेह को मिली हुई है। यह आज से नहीं, बल्कि सन् 1187 ई. से ही इस चर्च की चाबियां मुसलमानों के पास ही हैं। अब एक तरफ़ आज इराक व सीरिया में ‘इस्लामिक स्टेट’ (आई.एस.आई.एस.) नामक आतंकवादी संगठन शरेआम मसीही भाईयों-बहनों को मौत के घाट उतार रहे हैं परन्तु एक ओर यह दोनों मुस्लिम भाईयों की मिसाल हैं, जो पता नहीं कितनी पीढ़ियों से यीशु मसीह की कब्र की सेवा करते आ रहे हैं। यह दोनों भाई आज कल प्रातः कल एक निश्चित समय पर चर्च का मुख्य द्वार खोल देते हैं। दिन भर समस्त विश्व के विभिन्न देशों से मसीही श्रद्धालु व अन्य असंख्य पर्यटक यीशु मसीह के कब्र के दर्शन करने आते हैं। फिर सायं काल को भी एक निश्चित समय पर यह दोनों मुस्लिम भाई चर्च के द्वार बन्द कर देते हैं।


अनेक बार लड़ चुके कब्र पर विभिन्न मिशनों के रहनुमा व पादरीगण, गोलियां भी चलीं, यहूदी पुलिस भी आती रही

ऐसा नहीं है कि इन विगत 831 वर्षों में कभी मसीही समुदाय में एकता लाने के प्रयत्न नहीं हुए। परन्तु जब भी कभी हमारे सम्मानीय मसीही पादरी व बिश्प साहिबान ऐसे किसी प्रयत्न के लिए इकट्ठे होते हैं, वहां पर झगड़ा हो जाता है। अनेकों बार यह झगड़ा हिंसक भी हो चुका है, चाकू-छुरियां व गोलियां तक इस पवित्र व धरती पर अर्थात ‘चर्च ऑफ़ सैपल्कर’ में चल चुकी हैं। असंख्य बार यहूदी पुलिस यहां आ चुकी है। कोई मसीही बिश्प व अन्य धार्मिक नेता कभी किसी एक भी बात पर आपस में सहमत नहीं हो पाते, यही कारण है कि आज 2,000 वर्षों के पश्चात् भी हम केवल एकता की कमी के चलते यीशु मसीह की पवित्र कब्र पर अपना अधिकार तक प्राप्त नहीं कर पाए। इस बात पर समझौता अवश्य हो चुका है कि जब तक मसीही समुदाय में संपूर्ण एकता नहीं हो जाती तथा पूर्ण सहमति नहीं बनती, तब तक इस चर्च की किसी वस्तु को छेड़ा नहीं जाएगा। यही कारण है कि पुराने येरूशलेम नगर में स्थित यह चर्च अन्दर से बहुत हीं अधिक जर्जर हालत में है। अन्दर से इसे देखने पर किसी सच्चे मसीही को तो रोना ही आ सकता है।


यीशु की कब्र संभालने वालों का इतिहास

श्री अदीब जावाद जुदेह ने हाल ही में कुछ पत्रकारों से बातचीत के दौरान बताया कि उन्हीं के परिवार के एक पूर्वज सुल्तान सलादीन ने 1187 में इस पवित्र चर्च की चाबियां पहली बार संभाली थीं। चौथी शताब्दी ईसवी में रोम के शासक सम्राट कौन्सटैन्टाईन ने यीशु मसीह की इस कब्र को पहली बार ढूंढा था। यहां पर पहले एक पगान पूजा-स्थल हुआ करता था जहां तब के निवासी ऐफ्ऱोडाईट देवी (जिसे वीनस देवी भी कहते हैं) की पूजा किया करते थे। सम्राट कौन्सटैन्टाईन ने उस पूजा-स्थल को नष्ट करके यहां पर चर्च स्थापित किया था।


326 ई. सन् में हुआ ‘चर्च ऑफ़ सैप्लकर’ का निर्माण

At Present - Real Grave of Jesus इस चर्च की स्थापना का प्रारंभ 326 ई. में हुआ था जो सन् 335 ई. में जाकर अर्थात 9 वर्षों के उपरान्त संपन्न हो पाया था। 638 ईसवी में यहां पर एक मुस्लिम शासक उमर का कब्ज़ा हो गया। उसने तो इस स्थान को संभाल कर रख परन्तु 1009 ईसवी में मिस्र के ख़लीफ़ा अल-हाकिम ने इस चर्च पर आक्रमण करके इसे नष्ट कर दिया। फिर बाद में कुछ मसीही योद्धाओं ने इसे पुनः स्थापित करवाया। उन योद्धाओं ने तब इस नगर के आधे से अधिक निवासियों को मौत के घाट उतार दिया था, तब वे इस स्थान पर अपना कब्ज़ा जमा पाए थे।


आक्रमणकारियों ने बहुत बार की कब्र पर हिंसा

कब्र के इस स्थान पर बाद में भी कई बार आक्रमण होते रहे। एक बार तो तुर्की के मुस्लिम आक्रमणकारी तो अपने घोड़ों सहित इस पवित्र स्थान में घुस गए थे तथा उन्होंने यहां पर विद्यमान मसीही पादरियों व अन्य धार्मिक नेताओं के सर धड़ से अलग कर दिए थे। परन्तु साथ में बहुत से मुस्लिम शासकों ने इस स्थान की रक्षा भी की। वैसे पिछली कई शताब्दियों से यहां पर लैटिन (रोमन कैथोलिक), ग्रीक ऑर्थोडॉक्स, आर्मीनीयिन एपौस्टौलिक, सीरियन ऑर्थोडॉक्स, इथोपियन ऑर्थोडॉक्स एवं इजिप्शियन कॉप्ट्स मसीही समुदायों के धार्मिक प्रतिनिधियों द्वारा प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती रही हैं। परन्तु उनमें एकता कभी नहीं हो पाई, बहुत ही छोटी-छोटी सी बातों पर आपस में हिंसक झगड़ा कर बैठते हैं। किसी प्रोटैस्टैन्ट मिशन का कोई प्रतिनिधि कभी यहां पर अपनी प्रार्थना नहीं कर पाया।

Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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