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शाहबाद मारकण्डा आए थे न्यू ज़ीलैण्ड के पादरी, पटियाला के महाराजा ने लगा दिया था प्रतिबन्द्ध



 




 


किसी मसीही मिशनरी ने भारत में प्रचार करते समय कानून का उल्लंघन नहीं किया

न्यूज़ीलैण्ड के प्रैसबिटिरियन मसीही प्रचारक पहले मद्रास मिशन व भारत की अन्य मसीही मिशनों के साथ काम किया करते थे। तब उन्हें लगा कि उन्हें अपनी स्वयं की भी एक मिशन प्रारंभ करनी चाहिए। न्यू ज़ीलैण्ड फ़ॉरेन मिशन्ज़ कमेटी के संयोजक (कन्वीनर) पादरी विलियम हैविटसन व उनकी पत्नी मारग्रेट (जो प्रैसबिटिरियन वोमैन’ज़ मिशनरी यूनियन की अध्यक्षा थीं) 1906 में भारत आए। उन्होंने अपने संबंधित मसीही प्रचारकों व कमेटी को अपने पास मौजूद वह जानकारी दी कि भारत में उस समय के कानूनानुसार (यहां वर्णनीय है कि कभी किसी अधिकारी या व्यक्ति ने मसीही प्रचार करते समय कोई कानून नहीं तोड़ा) कैसे काम किया जा सकता है। फिर कुछ विचार-विमर्श के उपरान्त यह निर्णय लिया गया कि डॉ. पोर्टियस इस कार्य के लिए किसी उपयुक्त माहौल की तलाश करें। तब मैडिकल मिशनरी सेवा हेतु एक वालन्टियर के तौर पर डॉ. डबल्यू.जे. पोर्टियस को 1908 में न्यू ज़ीलैण्ड से भारत भेजा गया। उन्होंने अमेरिकन प्रैसबिटिरियन मिशन (ए.पी.एम.) के अधिकारियों के साथ बातचीत की, जिन्हें पहले से ही भारत के अतिरिक्त चीन में भी लम्बा समय कार्य करने का अनुभव था। तब ए.पी.एम. ने न्यू ज़ीलैण्ड के प्रैसबिटिरयन मसीही मिशनरियों को उत्तरी पंजाब के शाहबाद मारकण्डा (जो अब हरियाणा में है) काम करने हेतु निमंत्रित किया।


ग्रीष्म ऋतु में आती थी विदेशी मसीही मिशनरियों को होती थी दिक्कत

पहली बार मिशन स्थापित करने पर 4,500 डॉलर का ख़र्च होना था, इस राशि की स्वीकृति तत्काल दे दी गई। इस नई मिशन को जगाधरी ज़िला दिया गया, जो अब हरियाणा ज़िले में है। तब यह ज़िला 400 वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ था और इस में दो शहर व 379 गांव थे तथा इस क्षेत्र की जनसंख्या उस समय 1 लाख 60 हज़ार थी। उस समय भी यहां पर कुछ मसीही लोग पहले से रह रहे थे। उन्हीं के साथ काम करना था। प्रारंभ में तो न्यू ज़ीलैण्ड में कार्य करने के अभ्यस्त मसीही प्रचारकों को बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। एक तो उनसे पंजाब की गर्मी सहन नहीं होती थी, मई-जून के मौसम में लू के चलते तो जैसे समस्त क्षेत्र ही एक भट्ठी बन जाया करता था और फिर जब तक यह लू ख़त्म होती, तो उमस का माहौल बन जाता था - उसमें भी काम करना बहुत मुश्किल था। इसी लिए वे लोग ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियां प्रायः जगाधरी से 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मसूरी (वर्तमान उत्तराखण्ड में) के पास लण्डौर नामक एक सुन्दर पहाड़ी स्थल पर बिताने चले जाते थे। फिर लगभग तीन माह बरसात का मौसम रहता था। डॉ. पोर्टियस ने एक वर्ष अर्थात 1909 तक स्थानीय भाषा का गहन अध्ययन किया और फिर एक अस्थायी भवन में एक मैडिकल डिसपैन्सरी स्थापित की। पहले दिन 80 लोगों ने आकर पूछताछ की, दूसरे दिन 180 और तीसरे दिन 240 लोग उनके पास आए और इस प्रकार एक नई मिशन की शुरुआत हो गई।


पटियाला के महाराजा ने लगा दिया था मसीही मिशनरियों पर प्रतिबन्द्ध

1909 के अन्त तक पांच और मसीही मिशनरी इस क्षेत्र में आ चुके थे, जिनमें मद्रास की प्रख्यात मिशनरी मिस ऐलिस हैण्डरसन भी शामिल थीं। नई मिशन के नित्य-प्रतिदिन के कार्यों के प्रबन्ध हेतु एक मिशन काऊँसिल की स्थापना की गई। शाहबाद मारकण्डा में मिशन का जो केन्द्र स्थापित हुआ था, उसे 1911 में बन्द करना पड़ा क्योंकि मिशन काऊँसिल को यह सूचना प्राप्त हुई थी कि समीपवर्ती राज्य पटियाला के महाराजा ने अपने क्षेत्र में मसीही मिशनरियों के आने पर प्रतिबन्द्ध लगा दिया है। तब शाहबाद से 45 किलोमीटर की दूरी पर जगाधरी को मसीही मिशन का केन्द्र बनाने का निर्णय लिया गया।



Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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