Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

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विशुद्ध पंजाबी हैं पंजाब के सभी गिर्जाघर, राजनीतिज्ञों ने कभी मसीही लोगों को आगे नहीं आने दिया



 




 


कोई मसीही नेता अभी तक विधायक नहीं बन पाया, मंत्री बनना तो दूर की बात है पंजाब के गिर्जाघर विशुद्ध पंजाबी हैं, उन पर किसी भी प्रकार की पश्चिमी सभ्यता या संस्कृति का कभी कोई प्रभाव नहीं देखा गया, जो कि बढ़िया बात है। पंजाब के गिर्जाघरों (चर्चेस) में पंजाबी भाषा में ही दुआ-बन्दगी होती है तथा पंजाबी भाषा में अनुवादित बाईबल को ही पढ़ा जाता है। परन्तु फिर भी मसीही समुदाय को बेगाना समझा जाता है। राज्य की राजनीति ने मसीही समुदाय के साथ कभी न्याय नहीं किया। कुछ तो संख्या कम होने के कारण तथा दूसरे, मसीही लोगों को ‘निम्न वर्ग’ कह कर पीछे धकेलने वाले राजनीतिज्ञों ने कभी किसी मसीही नेता को शीघ्रतया आगे नहीं आने दिया। इसी कारणवश इस राज्य का मसीही समुदाय राजनीतिक क्षेत्र में हाशिये पर चला गया। सन् 1947 से आज तक कोई भी मसीही नेता आज तक पंजाब विधान सभा में नहीं जा पाया, मंत्री बनना तो बहुत दूर की बात है। हां, गांवों की पंचायतों में सरपंच बहुत बनते रहते हैं, छोटे नगरों में काऊँसलर भी चुने जाते हैं। उच्च स्तर पर राजनीतिक दलों के प्रति वफ़ादारी दिखलाने वाले कुछ मसीही लोगों को अधिक से अधिक किसी निगम या अथॉर्टी का चेयरमैन (अध्यक्ष) नियुक्त कर दिया जाता है, इससे अधिक कुछ नहीं।


सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ने हेतु मसीही समुदाय को एकजुट होना ही होगा

पंजाब में अब आर.एस.एस., विश्व हिन्दु परिषद, शिव सेना, बजरंग दल जैसे संगठनों के अधिकतर सांपद्रायिक नेताओं के निशाने पर अब सीधे तौर पर मसीही समुदाय ही है। यही कारण है कि उन्होंने मसीही लोगों पर अपने आक्रमण बढ़ा दिए हैं। उनका सामना करने के लिए हमें हर हालत में प्रत्येक मसीही को एकजुटता का प्रदर्शन करना होगा, चाहे वह किसी भी मिशन से संबंधित क्यों न हो। अभी तक सरकारी आंकड़ों में यही माना जाता रहा है कि पंजाब राज्य में केवल 2 लाख 70 हज़ार मसीही हैं परन्त ‘पंजाब क्रिस्चियन यूनाईटिड फ्ऱन्ट’ (पी.सी.यू.एफ़.) ने वर्ष 2016 में एक सर्वेक्षण करवाया था, जिसके आधार पर फ्ऱन्ट के अध्यक्ष श्री जॉर्ज सोनी के द्वारा यह दावा किया गया है कि राज्य में मसीही समुदाय की संख्या 40 लाख है, जो कि राज्य की कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत बनती है।


इस लिए आर्थिक तौर पर पछड़े हुए मसीही विवश हैं

दरअसल, भारत का कानून है कि दलित मसीही को अनुसूचित जाति या अनुसूचित कबीले (जनजाति) के कोई लाभ नहीं मिलते, यही कारण है कि सरकारी जनगणना में अधिकतर मसीही लोग भी कुछ सरकारी लाभ (विशेषतया नौकरियां) लेने के लिए अपना धर्म हिन्दु या सिक्ख ही लिखवा देते हैं। निर्धनता के कारण वे लोग ये सब करने के लिए विवश हैं। उनके पास न ही कोई प्रार्थना गृह अर्थात गिर्जाघर हैं व न कब्रिस्तान। ऐसे सभी मसीही लोगों को हौसला करके अपनी कौम की ख़ातिर अब आगे आना होगा, क्योंकि जब तक एकता नहीं होगी, तब तक मसीही समुदाय को कुछ हासिल होने वाला नहीं है। प्रार्थना के साथ-साथ हमें व्यवहारिक रूप से भी मज़बूत बनना होगा। वैसे तो पवित्र बाईबल में बहुत स्थानों पर सख़्त परिश्रम करने की बात की गई है परन्तु ‘नीति वचन’ के 14वें अध्याय की 23वीं बड़ा स्पष्ट लिखा गया है कि ‘‘सख़्त मेहनत करने से सदा लाभ होगा परन्तु केवल बातें करके समय व्यतीत करने से निर्धनता अर्थात ग़रीबी ही आएगी।’’

किसी एक पार्टी की सरकार आने पर अपने बिलों से बाहर आने वाले चूहों तथा बरसाती मेंढकों (कुछ सांप्रदायिक संगठनों के देश व समाज विरोधी तत्व) का सामना करने के लिए मसीही समुदाय को केवल मसीही अन्दाज़ में ही मुकाबला करते हुए एक मिसाल कायम करनी होगी।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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