पंजाब की राजनीति में मसीही समुदाय से कभी न्याय नहीं हो पाया, क्या कभी मिल पाएगा कोई पंजाबी मूसा या सैमसन?
राजनेताओं ने मसीही समुदाय के साथ किया कोई वायदा कभी नहीं निभाया
पंजाब की राजनीति में मसीही लोगों की कोई सुनवाई नहीं है। हां चुनावों के दिनों में अवश्य सभी राजनीतिक दलों के लोग गुरदासपुर, बटाला, धारीवाल व अमृतसर के मसीही बहुल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में जाकर कुछ वायदे अवश्य करते हैं परन्तु वहां की रैलियां समाप्त होने पश्चात वे सब कुछ भूल जाते हैं। हां कभी किसी एकाध मसीही को किसी टुच्चे व महत्त्वहीन विभाग का मुख्य बना कर एक कोने में बिठा दिया जाता है - फिर वह किसी मसीही की नहीं सुनता, बल्कि अपनी कुर्सी को बचाने हेतु उसके पास अपने बॉस लोगों की चाटुकारिता (चापलूसी) करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचता। हां, ऐसा तथाकथित नेता अपने दो-चार नज़दीकी रिश्तेदारों को अवश्य कहीं पर बढ़िया नौकरी दिलवा देता है - इसके अतिरिक्त वह कुछ नहीं करता।
क्या कोई देगा इन प्रश्नों के उत्तर?
पंजाब में बेरोज़गार मसीही युवाओं को नौकरियों में प्राथमिकता या आरक्षण देने संबंधी तो कभी कोई सोच भी नहीं सकता। क्या बैंक कभी किसी ज़रूरतमन्द मसीही परिवार को ऋण देने को प्राथमिकता देंगे? क्या कभी सरकार किसी नगर विशेष में मसीही लोगों की चर्च या कब्रिस्तान की आवश्यकताओं को समझने का प्रयत्न करेगी? क्या आप कभी सोच सकते हैं कि केन्द्र या पंजाब सरकार कभी ज़रूरतमन्द मसीही परिवारों को निःशुल्क या कम दरों पर मकान उपलब्ध करवाने की योजनाओं में शामिल करेगी? क्या अब मसीही समुदाय पंजाब में बिना किसी रुकावट या मुश्किल के कोई बड़ी प्रार्थना सभा कर सकता है? क्या गारण्टी है कि वहां पर किसी ...सेना या ...दल अथवा ...संघ या ...मंच के देश-विरोधी व देश में सांप्रदायिक दंगे भड़काने वाले लोग विघन डालने नहीं आएंगे? फिर क्या प्रशासन, पुलिस या न्यायालय कभी निष्पक्षतापूर्वक मसीही समुदाय की बात सुनेंगे?
ऐसे सभी सवालों का जवाब केवल यही है कि मसीही समुदाय अब तक सही ढंग से अपनी समस्याएं कभी देश के समक्ष रख ही नहीं पाया। इस बात को हम ऐसे भी कह सकते हैं कि किसी मसीही नेता में ही कभी इतना दम नहीं रहा कि वह अपनी बात को लोगों या सरकार के समक्ष मज़बूती से रख सके।
पंजाब में अभी किसी मूसा व सैमसन का आना बाकी है
वैसे दिखावे के लिए पंजाब सरकार गुड-फ्ऱाईडे व क्रिस्मस के सुअवसर पर समाचार-पत्रों के माध्यम से मसीही समुदाय को शुभ कामनाएं दे कर स्वयं को मसीही समुदाय के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त समझ लेती है। वास्तव में सरकारें चलाने वाले व राजनीतिक दल केवल उन्हीं लोगों की सुनते हैं, जो थोड़ा तीखा परन्तु सत्य बोलते हैं। अभी पंजाब में कोई ऐसा मसीही नहीं है, जो पंजाबी मसीही लोगों को राजनीतिक शक्ति दिलाने हेतु मार्ग-दर्शन कर सके, दृढ़तापूर्वक मसीही समुदाय की आवाज़ सरकारों के बहरे कानों तक पहुंचा सके। यदि कोई होंगे भी, तो शायद उन्हें अब तक आगे नहीं आने दिया गया। पंजाब में अभी किसी मूसा व सैमसन का आना बाकी है।
मसीही नेता कभी स्वयं को स्पष्ट रूप से आम जनता के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाए
पंजाब की राजनीति में मसीही समुदाय के साथ कभी न्याय नहीं हो पाया। स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व तो मसीही राजनीतिक नेताओं को सदा आम लोगों की सांप्रदायिक घृणा का ही सामना करना पड़ा, क्योंकि पंजाब के अधिकतर लोग यही समझते थे कि ‘‘ये सभी अंग्रेज़ों के धर्म को मानते हैं, इस लिए ये तो इन्हीं अंग्रेज़ों का पक्ष लेंगे, जबकि वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं था।’’ कोई मसीही नेता उन समयों में कभी लोगों को सीधी व स्पष्ट भाषा में वास्तविकता ब्यान नहीं कर पाया और यदि किसी ने कभी ऐसा किया भी, तो उसे मीडिया ने जानबूझ कर नहीं उठाया क्योंकि वहां पर भी अधिकतर पक्षपातपूर्ण व सांप्रदायिक मानसिकता वाले लोग ही विद्यमान रहते हैं।
क्यों सक्रिय हैं देश के सांप्रदायिक दुश्मन?
एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाएगी (चाहे ऐसी उदाहरणें संपूर्ण देश में अनगिनत हैं) कि 1 से 3 जून, 2017 को पटियाला के पास समाणा के महाराजा पैलेस में एक विशाल मसीही प्रार्थना सभा होने जा रही थी। देश का संविधान सभी को अपने हिसाब से प्रार्थना करने की अनुमति देता है। अखिल भारतीय हिन्दु क्रांति दल व धर्म जागरण समनव्य विभाग के चार-पांच लोग इकट्ठे हो कर डिप्टी कमिशनर के पास चले गए और मांग की कि यह मसीही धार्मिक सभा न होने दी जाए क्योंकि वहां पर धर्म-परिवर्तन करवाया जाएगा।
गोदी मीडिया सांप्रदायिकता को निरंतर दे रहा है हवा
तभी गोदी मीडिया से संबंधित कुछ दैनिक समाचार पत्रों ने यह सोच कर आर.एस.एस. के उन देश-विरोधी तत्त्वों का समाचार तत्काल प्रमुखता से प्रकाशित कर दिया कि कहीं केन्द्र की भाजपा सरकार उनसे नाराज़ न हो जाए, जो उन्हें हर वर्ष सैंकड़ों करोड़ रुपए के विज्ञापन जारी करती है। ‘बेचारे’ मसीही लोगों ने समाचार-पत्रों को क्या देना है, अपनी प्रार्थनाएं कर के वहां से चुपचाप चले जाना है। इस के लिए चाहे समाणा में तीन हज़ार लोग इकट्ठे हों या चार हज़ार, उनका समाचार कभी सकारात्मक रूप में ऐसी सांप्रदायिक सोच वाले अपने समाचार-पत्र में कोई ख़बर नहीं लगा पाएंगे, जैसे उन ‘पांच शरारती तत्वों’ का लगाया था यहां हम इन्हें शरारती अनसर इस लिए कह रहे हैं क्योंकि यही वे लोग हैं, जो आज कल देश की सांप्रदायिक एकता के लिए ख़तरा बने हुए हैं और अपनी मर्ज़ी से राष्ट्रवाद के सर्टीफ़िकेट बांटते हुए घूम रहे हैं। ऐसे ‘शरारती तत्त्व’ सरेआम देश के कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं, उन्हें कोई कुछ नहीं कहता परन्तु मसीही समुदाय को बिना वजह कटहरे में खड़े कर दिया जाता है।
मसीही समुदाय ने कभी सरल भाषा में नहीं बताई असलियत
यहां पर मसीही लोगों का यह मानना होता है कि परमेश्वर समय आने पर स्वयं ऐसे लोगों को सदबुद्धि देगा। उन्होंने कभी ऐसे ‘तत्त्वों’ के पास जाकर सादी व सरल भाषा में असलियत नहीं बताई। और पिछली तीन-चार सदियों से यही होता आ रहा है। दरअसल, मसीही संस्कृति सभी पापियों को क्षमा करने की है, जैसे हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह ने अपने मारने वालों को भी क्षमा कर दिया था। परन्तु ऐसे समाज विरोध तत्त्व तो कभी यीशु की पांव की धूलि के एक कण तक भी नहीं पहुंच सकते। समझते सब कुछ हैं, परन्तु अड़ियल रवैया रखते हुए जानबूझ कर मसीहियत के विरुद्ध प्रचार जारी रखा जाता है क्योंकि बेचारे इन लोगों की राजनीतिक रोटियां ऐसे सांप्रदायिक मुद्दों से ही तो सिंकती हैं। इन लोगों को देश के विकास, एकता, अखण्डता किसी बात से कोई लेना-देना नहीं है। इन्हें लगता है कि बस हमीं हम हों और कोई न हो.. बेचारे अकल के दुश्मनो, अब तुम भूल जाओ ऐसे सपने देखने, भारत को तुम किसी एक धर्म या जाति का राष्ट्र किसी भी हालत में नहीं बना पाओगे। भारत की 135 करोड़ जनता इस बात को भलीभांति समझती है, तुम जैसे लोगों की संख्या तो देश में शायद एक हज़ार भी न हो परन्तु अधिकतर गोदी मीडिया (सारा नहीं) इस समय क्योंकि केवल तुम्हारे ही समाचार देकर सैंकड़े हज़ारों करोड़ रुपए सालाना कमाना चाहता है, इसी लिए तुम लोगों को यही लगता है कि पता नहीं तुमने क्या तीर मार दिया और स्वयं को ‘खब्बी खान’ समझ बैठे हो। तुम जैसे लोग कभी लम्बी रेस के घोड़े नहीं हो सकते क्योंकि नकारात्मकता कभी लम्बा समय नहीं चल सकती। हमारा भारत हर प्रकार से एक है और इसके सभी लोग इसकी रक्षा के लिए हर समय अपनी जान की बाज़ी लगाने को तैयार बैठे हैं।
छिप कर सामाजिक कल्याण करते हैं मसीही, कभी सामने नहीं आना चाहते
मसीही लोगों का योगदान देश के स्वतंत्रता आन्दोलनों तथा विभिन्न युद्धों में कभी कम नहीं रहा परन्तु समस्या यह है कि अधिकतर मसीही लोग छिपे रह कर ही चुपचाप अपने सामाजिक-कल्याण तथा अन्य कार्य करते रहते हैं और प्रार्थना कर के शुक्राना अदा करके संतुष्ट हो जाते हैं। ऊपर से इतिहासकारों ने भी जानबूझ कर भारत में मसीही समुदाय के हर प्रकार से सकारात्मक योगदान को नज़रअंदाज़ किया। मसीही लोगों ने इस बात की पैरवी नहीं की। दक्षिण भारत में ज़रूर कुछ लोग अंग्रेज़ी भाषा में कुछ निबन्ध लिख कर चुपचाप बैठ जाते हैं, इससे आगे वे कुछ नहीं करते। इसी कारणवश ऐसे समाज-विरोधी अनसरों के हौसले खुले हुए हैं। हम मसीही लोग ऐसे मुट्ठी भर लोगों के देश-विरोधी इरादे कभी पूरे नहीं होने देंगे।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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