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उत्तर भारत के मसीही समुदाय में आज भी लोकप्रिय हैं पादरी इमाम-उल-दीन शाहबाज़ द्वारा अनुवादित पंजाबी ज़बूर



 




 


मसीही समुदाय कभी नहीं भुला सकता पादरी शाहबाज़ का योगदान

जब पादरी इमाम-उल-दीन शाहबाज़ ने पंजाबी मसीही ज़बूर पहली बार लिखे (अनुवाद किए) थे, तो उन्हें पंजाब के मसीही समुदाय ने तुरन्त अपना लिया और वे ज़बूर आज भी भारतीय व पाकिस्तानी पंजाब के गिर्जाघरों में अत्यंत श्रद्धापूर्वक गाए जाते हैं। उनके द्वारा रचित यह सभी पंजाबी ज़बूर मन को छूह लेते हैं। उनके इस महान योगदान को पंजाब का मसीही समुदाय कभी नहीं भुला सकता। पादरी इमाम-उल-दीन शाहबाज़ को ज़्यादातर लोग पादरी आई.डी. शहबाज़ कह कर बुलाया करते थे। उनका जन्म 1845 में नारोवाल (अब पाकिस्तान में) छोटे से गांव ज़फ़रवाल में हुआ था। उनका जन्म चाहे एक मुस्लिम परिवार में हुआ था परन्तु वह बहुत छोटी सी 10 वर्ष की आयु में ही मसीहियत की ओर खिंचे चले गए थे। बाद में जब वह बड़े हुए तो वह अमृतसर स्थित चर्च मिशनरी सोसायटी (जो वास्तव में एंग्लिकन चर्च था) के स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए। वर्ष 1866 में पादरी रॉबर्ट क्लार्क ने उन्हें बप्तिसमा दिया था। वर्ष 1866 से लेकर 1875 के बीच उन्होंने विभिन्न स्कूलों में पढ़ाया तथा 1875 से लेकर 1889 तक मसीही प्रचारक के तौर पर भी काम किया।


चर्च की काव्य-प्रतियोगिता में प्रथम रहे थे पादरी शाहबाज़

वर्ष 1880 में युनाईटिड प्रैसबिटिरियन चर्च ने ‘नूर अफ़शां’ नामक एक पत्रिका में एक ‘काव्य प्रतियोगिता’ घोषित की। आई डी शाहबाज़ ने उस प्रतियोगिता में भाग लिया। उस प्रतियोगिता में और भी बहुत से भाषा विद्वान भाग ले रहे थे। इस प्रतियोगिता में शाहबाज़ ही विजयी रहे। उसके बाद उन्हें चर्च के लिए पवित्र बाईबल की पुस्तक ‘भजन संहिता’ में मौजूद भजनों का पंजाबी अनुवाद करने के लिए कहा गया। यही बात उनके लिए मसीही जीवन में मील-पत्थर का काम कर गई।


नेत्रहीन होने के बावजूद अंतिम समय तक पादरी का उत्तरदायित्व निभाते रहे शाहबाज़

पादरी आई.डी. शाहबाज़ को बाद में गुरदासपुर के युनाईटिड प्रैसबाईटिरियन चर्च का पादरी भी नियुक्त किया गया था। जब वह कुछ वृद्धावस्था में पहुंचे, तो उनकी आँखों की नज़र धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगी और वर्ष 1908 तक वह लगभग नेत्रहीन हो गए थे। परन्तु इस बात ने उन्हें परमेश्वर व प्रभु यीशु मसीह से दूर नहीं किया। वह एक अन्य साथी पादरी बाबू सादिक मसीह की सहायता से पादरी का उत्तरदायित्व निभाते रहे। एक अमेरिकन युनिवर्सिटी ने उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ़ डिविनिटी’ की उपाधि दी थी। उनका निधन 1921 में सरगोधा ज़िले के गांव बुलवाल में हुआ था।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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