घटिया राजनीति का सामना करने हेतु भारतीय समाज का एकजुट होना अब अत्यावश्यक
एकता की कमी से चौड़े होते हैं कुछ घटिया राजनीतिज्ञ
हमारे मसीही भाईयो-बहनो! आज हमें हर हालत में भारत की सभी वर्तमान परिस्थितियों का मूल्यांकन व विश्लेषण करना होगा। ऐसा करना हम सब के लिए अत्यंत आवश्यक है। देश की वर्तमान राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व अन्य परिस्थितियों के बारे में हम सब को अवश्य जागरूक होना होगा, वर्ना हमारी आने वाली नसलें हमें कभी क्षमा नहीं कर पाएंगी। प्रत्येक बात का आध्यात्मिक या रुहानी समाधान न ढूंढें, - परमेश्वर ने हमें दिमाग़ दिया है, भीड़ पड़ने पर केवल इस्तेमाल करने के लिए। यदि हम उसका प्रयोग न करें, तो हम मूर्ख ही कहलाएंगे। हम सभी को अपने निजी मतभेदों को भूल कर एकजुट हो कर अपने दुश्मन का मुकाबला करना होगा - शारीरिक ताक्त से नहीं, बल्कि अपनी एकजुटता व दिमाग़ की शक्ति से। आख़िर हमारे ही देश भारत में बहु-संख्यकों के केवल मुट्ठी भर लोगों ने अपनी निम्न स्तर की राजनीति खेलते हुए हमीं मसीही भाईयों-बहनों को निशाना क्यों बनाया हुआ है? केवल इस लिए कि वे जानते हैं कि हम नित्य बनने वाली नई-नई मिशनों में बंट कर अपनी स्वयं की एकता को गंवाते रहेंगे और वे हम पर हंसते व अनेक प्रकार के आक्रमण करते रहेंगे। जो तथाकथित राजनीतिज्ञ मसीही समुदाय या अन्य कुछ अल्प-संख्यक समुदायों पर किसी भी प्रकार का निम्न-स्तरीय आक्रमण करता है; आर.एस.एस., विश्व हिन्दु परिषद व बजरंग दल जैसे संगठनों के कुछ मुट्ठी भर नेताओं के इशारों व दबाव पर ऐसे तथाकथित राजनीतिज्ञों को सरकारों में उच्च पद उपहार-स्वरूप दिए जा रहे हैं और हम लोग बिना एकता के ऐसी परिस्थितियों का सामना कभी नहीं कर सकते।
तथाकथित राजनीतिज्ञों व उनकी घटिया राजनीति को समझने की आवश्यकता
भारत के बहु-संख्यकों के ऐसे तथाकथित राजनीतिज्ञों के मानसिक दीवालियेपन व उनकी निम्न-स्तरीय राजनीति को समझने की आवश्यकता है। उन लोगों द्वारा आज ‘मसीही प्रार्थना’ व ‘मसीही मिशनरी’ जैसे शब्दों को कैसे ‘अछूत’ सिद्ध करने के असफ़ल प्रयत्न किए जा रहे हैं। जहां कहीं कोई मसीही क्लीसिया कहीं प्रार्थना सभा करती है, तो ये निम्न-स्तरीय राजनीति खेलने वाले देश के कथित रहनुमा उसे भी ‘धर्म-परिवर्तन’ के साथ जोड़ते हैं। ऐसे निम्न-स्तरीय लोग जानबूझ कर ऐसा दुष्प्रचार फैलाते हैं कि ताकि वे देश की कम-जागरूक जनता (जिनमें अधिकतर साक्षर नहीं हैं) को भ्रमित करके देश में मसीहियत के विरुद्ध एक माहौल पैदा करते हुए अपनी घटिया राजनीति चलाते रहें। ऐसे लोगों के जवाब हमीं को ‘जवाबी शक्ति’ से नहीं, बल्कि अपने दिमाग़ का प्रयोग करते हुए देने होंगे - वह भी केवल यीशु मसीह के अहिंसा के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए। ऐसी परिस्थितियों में हमें अपने भले कार्यों से सभी के मुंह बन्द करने होंगे। हमें ऐसा सांप्रदायिक माहौल उत्पन्न करने वाले घटिया लोगों का सामना करना है।
‘कण-कण में भगवान’ को मानने वाले मुट्ठी भर दिखावेबाज़ व पाखण्डी नेता मसीहियत को क्यों दूर रखते हैं, उन कणों से?
ऐसे घटिया व इन मुट्ठी भर राजनीतिज्ञों की वैसे तो मूल मान्यता (जिससे कोई इन्कार भी नहीं कर सकता) है कि ‘कण-कण में ईश्वर’ - पर ये लोग शायद हमारे मसीही समुदाय को उन कणों से बाहर की कोई वस्तु मानते हैं, इसी लिए मसीही भाईयों-बहनों में उन्हें परमेश्वर दिखाई नहीं देते। वैसे तो ऐसे लोग स्वयं को बहुत ही अधिक बुद्धिजीवी या बौद्धिक कहलाते हैं परन्तु मसीही सिद्धांत इनको जानबूझ कर समझ में नहीं आते। मसीही सिद्धांतों को समझते समय ऐसे तथाकथित रहनुमा जानबूझ कर अपनी अकल को घास चरने के लिए भेज देते हैं। ऐसे कथित भारतीय नेता ‘यीशु मसीह व मसीहियत को विदेशी’ कहते हैं। और ऐसी घटिया दर्जे की राजनीति ऐसे ही नेता कर सकते हैं और ऐसे घटियापन व निम्न स्तर की मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलती।
भारतीय महात्मा बुद्ध को अपनाया चीन व जापान सहित पूर्वी एशिया के अनेक देशों ने, परन्तु भारत के कुछ मुट्ठीभर राजनीतिज्ञों को यीशु मसीह लगते हैं विदेशी
चीन, जापान, कम्बोडिया, म्यांमार व भूटान सहित अन्य बहुत से बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों में कभी किसी ग़ैर-बौद्ध ने ऐसा नहीं कहा कि भई ‘महात्मा बुद्ध तो भारतीय थे, हम उनकी बात को क्यों मानें?’ सैंकड़ों अन्य पश्चिमी देशों में कभी किसी ग़ैर-मसीही ने यह नहीं कहा कि ‘यीशु मसीह तो इस्रायली थे...’, फिर भी करोड़ों-अरबों लोग यीशु को अपना उद्धारकर्ता मानते हैं। जब किसी महान् व्यक्ति द्वारा कहा गया कोई सच्चा कथन किसी को अच्छा लगता है, तो उसकी कोई सीमाएं नहीं होतीं, इस पृथ्वी पर विद्यमान समस्त मानवता उसे दिल से अपनाती है। यदि अरस्तु, प्लैटो या नैपोलियन या चाणक्य का कोई कथन हमें अच्छा लगता है, तो कभी ऐसे महान विद्वान चिंतक का देश या उसका धर्म नहीं देखा जाता, बल्कि ऐसे कथन की सत्यता को समझ कर उसे व्यावहारिक जीवन में लागू किया जाता है। ऐसे निम्न-स्तरीय मुट्ठीभर राजनीतिज्ञों को हम एक प्रश्न पूछते हैं, वे इसका उत्तर दें - बौद्ध गया (बिहार) में महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, वहां से जापान (जहां पर बुद्ध धर्म को मानने वालों की संख्या 67 प्रतिशत से भी अधिक है) की राजधानी टोक्यो की दूरी 5,268 किलोमीटर है, तो किसी जापानी को ‘महात्मा बुद्ध विदेशी’ नहीं लगते न ही वह कभी ऐसी बेसिर-पैर की बात कहेगा परन्तु भारत की राजधानी दिल्ली से हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह की जन्म-भूमि येरुशलेम 4,012 किलोमीटर की दूरी पर है तो ये कथित मुट्ठी भर निम्न स्तरीय राजनीतिज्ञ हमारे मुक्तिदाता यीशु को विदेशी कैसे कह सकते हैं? वैसे तो ये लोग स्वयं को ‘विश्व-नागरिक’ कहते हैं परन्तु मसीहियत पर विचार-चर्चा करते हुए इन की तथाकथित विश्व-नागरिकता कहां चली जाती है?
ऐसे राजनीतिज्ञों की अकल पर दया करें
चलो, बहस में एक मिनट के लिए मान लेते हैं कि ‘चीनियों या जापानियों के लिए महात्मा बुद्ध विदेशी हैं’, तो ऐसे कथित राजनीतिज्ञों के पूवर्ज भी तो हज़ारों वर्ष पूर्व मध्य-एशिया (वर्तमान ईरान) से ही भारत आए थे और ‘आर्यन’ कहलाए थे - तो हम भी घटिया राजनीति पर चलते हुए कभी इन्हें विशुद्ध भारतीय नहीं, अपितु ‘विदेशी’ ही मानेंगे। भारत में सन्त थोमा के द्वारा मसीहियत सन् 52 अर्थात वर्तमान वर्ष 2020 से 1968 वर्ष पूर्व भारत आ गई थी और इन हज़ारों वर्षों के बाद भी तथाकथित ज्ञानी राजनीतिज्ञ मसीही धर्म को ‘विदेशी’ मानते हैं, तो हम ऐसे लोगों की अकल पर दया करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकते।
महात्मा गांधी को भाता था यीशु मसीह द्वारा पहाड़ पर दिया गया उपदेश
यीशु मसीह का पहाड़ पर दिया गया उपदेश (जो पवित्र बाईबल की इन्जील ‘मत्ती’ के पांचवें से सातवें अध्याय में मौजूद है) दुनिया के सभी महान् चिंतकों को भाता है। भारत के राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी को भी यीशु का वही उपदेश बहुत भाया था और उन्होंने उसकी व्याख्या अपने ढंग से की थी और उस व्याख्या को पढ़ व सुन कर इंग्लैण्ड से उस समय भारत आए कुछ मसीही मिशनरियों व पादरी साहिबान को भी उस व्याख्या की प्रशंसा दिल से करनी पड़ी थी।
निम्न स्तरीय नेताओं को मुंह-तोड़ जवाब देना सीखें
परन्तु हमारे आज के कुछ मुट्ठी भर तथाकथित राजनीतिज्ञों को इन सभी बातों की समझ नहीं आती। अगर आती भी होगी, तो वे कभी अपने मुंह से सच्चाई नहीं बोल सकेंगे। लानत है ऐसे मनुष्य पर जो सच्चाई को ही अपने मुंह पर न ला सके। वैसे ये लोग स्वय को बहुत बड़े बुद्धिजीवी व बौद्धिक कहलाएंगे और प्रायः अपने भाषणों में कहेंगे कि ‘हम तो पांच हज़ार वर्ष पूर्व से मानवता को रास्ता दिखलाते रहे हैं क्योंकि हमारे पूर्वज बहुत बुद्धिमान थे’ - परन्तु ऐसे ही लोगों को यीशु मसीह का अत्यंत सरल सिद्धांत समझ में नहीं आता - हमारे मसीही बच्चे-बच्चे को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि ऐसे निम्न-स्तरीय नेता लोगों को मुंह-तोड़ जवाब कैसे देना है और उनकी घटिया राजनीति का पर्दाफ़ाश कैसे करना है।
भारत के कुछ घटिया नेता नहीं चाहते कि लोग जागरूक हों
यह बात हमारे भारत के बहु-संख्यक लोगों सहित सारी जनता को समझनी होगी कि ऐसे घटिया किस्म की राजनीति चलाने वाले लोग कभी यह नहीं चाहेंगे कि हमारे कुछ कम-साक्षर लोग पढ़-लिख कर आगे बढ़ें और जागरूक हो कर तरक्की करें - क्योंकि ऐसी घटिया चालें चलने वाले षड़यंत्रकारी लोगों को मालूम है कि यदि भारत में अधिक लोग जागरूक हो गए तो वे अपनी निम्न-स्तरीय राजनीति कैसे उन के साथ खेल पाएंगे। अतः हम सभी लोगों को ऐसे लोगों व उनके दलों से बचना होगा। ऐसे ही लोग 60 वर्ष पहले ब्याह कर भारत आई किसी बहु को ‘विदेशी’ मान कर उसी पर घटिया किस्म की राजनीति चल सकते हैं और आम लोगों को अपने पीछे लगा कर सफ़ल भी हो सकते हैं।
घटिया लोगों को आईना दिखलाना ज़रूरी
हमारे मसीही जवान भारतीय सेनाओं में कितनी वीरता दिखलाते हैं, परन्तु मसीही समुदाय ने उनका बखान करने का प्रयत्न नहीं किया। इस तथ्य को हम मानते हैं कि भारत की सेना में कोई भी जवान या सैन्य अधिकारी मसीही, हिन्दु, मुस्लिम या सिक्ख, जैन, बौद्ध या पारसी नहीं, बल्कि विशुद्ध भारतीय होते हैं -- परन्तु जब सामने से निम्न स्तरीय राजनीति चली जा रही हो, तो ऐसे लोगों को शीशा दिखलाना भी हमारा स्वयं का दायित्व अर्थात फ़र्ज़ है। हमारे कितने मसीही भाईयों-बहनों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, उन सभी की जानकारी हम मसीही लोगों को भली-भांति होनी चाहिए। परन्तु ऐसी जानकारी केवल शायद .1 प्रतिशत मसीही लोगों को होगी, सभी को तो किसी भी परिस्थिति में नहीं है। ऐसी जानकारी व जागरूकता की कमी के कारण ही ये तथाकथित निम्न-स्तरीय राजनीतिज्ञ हमारे मसीही समुदाय पर हर प्रकार से आक्रमण करने में सफ़ल होते हैं।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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