मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के करीबी बिशप मैथ्यूज़ डी कास्ट्रो के परिवार के साथ पुर्तगाली शासकों ने किया था दुर्व्यवहार
कैथोलिक चर्च के पहले भारतीय बिशप डौम मैथ्यूज़ डी कास्ट्रो
डौम मैथ्यूज़ डी कास्ट्रो (1594-1679) गोवा के डीवर क्षेत्र में रहा करते थे और वह कैथोलिक चर्च के पहले भारतीय बिशप थे। वह मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के बहुत करीब रहे थे। वैटिकन सिटी ने उन्हें ‘बिशप ऑफ़ क्रिसोपोलोस’ तथा बीजापुर, गोलकुण्डा, एबिसिनिया एवं पेगू राज्यों का विकार एपौस्टौलिक नियुक्त किया था। उनका जन्म डीवर के महाले नामक एक गौड़ सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। गोवा एवं अपने अन्य अधिकार-क्षेत्रों में पुर्तगालियों ने अपने समय में बहुत अत्याचार ढाए थे। उन्होंने तो ग़ैर-रोमन कैथोलिक मसीही लोगों को भी नहीं छोड़ा था और उन्हें मौत के घाट उतार दिया था। वे किस प्रकार की मसीहियत का प्रचार व पासार करना चाहते थे और वह इस सब अमानवीय कुकृत्य करने के बाद कैसे यीशु मसीह के अहिंसा व प्रेम के उपदेश को फैलाया करते थे, यह बात आज तक कोई नहीं जान पाया। आज हम सब ऐसी ऐतिहासिक घिनावनी गतिविधियों की सख़्त निंदा करते हैं, जिन्होंने मसीहियत को बदनाम करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। बिशप मैथ्यूज़ डी कास्ट्रो के परिवार के साथ भी इन पुर्तगाली शासकों ने पहले काफ़ी बुरा व्यवहार किया था।
स्वार्थी राजनीतिज्ञों के आरोप बेबुनियाद
उस समय भारत को स्वतंत्र करवाने जैसी न तो कहीं कोई लहर थी न ही ऐसा कभी किसी ने सोचा था। परन्तु मसीही लोगों पर विदेशी मसीही ही अत्याचार ढाह रहे थे। इसका अर्थ तो यही है कि विदेशी आक्रमणकारी ऐसा कभी नहीं देखते थे कि सामने वाला किस धर्म का व्यक्ति है - वे सभी को भारतीय समझ कर ही उनके साथ एकसमान व्यवहार करते थे। इस प्रकार कुछ मुट्ठी भर वर्तमान पाखण्डी, धर्म के नाम पर देश को बांटने वाले व स्वार्थी राजनीतिज्ञों द्वारा भारत के मसीही समुदाय पर लगाए जाने वाले सभी प्रकार के आरोप बेबुनियाद हैं। देश के दुश्मन ऐसे सियासी नेता सिर्फ़ अपनी राजनीति करते हैं, और कुछ नहीं। इसी लिए वे ऐसे आरोप लगाते हैं कि मसीही समुदाय का भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कोई योगदान नहीं है। इस वर्ग के अंतर्गत अब उन्हें मसीही साहित्य भी पढ़ना पड़ेगा।
रोम में धार्मिक शिक्षा लेकर 1630 में विधिवत् पादरी नियुक्त हुए
1625 में मैथ्यूज़ डी कास्ट्रो पहली बार कुछ कार्मल पादरी साहिबान के साथ रोम गए थे। रोम में ही उन्होंने कॉलेजियो अर्बनो में दाख़िला ले लिया और धर्म-विज्ञान की पढ़ाई उतीर्ण की। 1630 में वह बाकायदा पादरी नियुक्त हुए। फिर उन्होंने धर्म-विज्ञान में ही डॉक्ट्रेट की डिग्री भी प्राप्त की। 1633 में वह प्रोटोनोटरी एपौस्टौलिक तथा 1635 में बिशप नियुक्त हुए। वह मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के अतिरिक्त कुतुब शाही ख़ानदान द्वारा शासित गोलकुण्डा के शासकों तथा आदिल शाही ख़ानदान द्वारा शासित बीजापुर के राजा के भी बहुत नज़दीक थे। इन सभी राजाओं व शासकों ने उन्हें अपने-अपने राज्यों में चर्च व मकानों का निर्माण करवाने तथा मसीहियत का प्रचार करने तथा लोगों के स्वेच्छापूर्वक धर्म-परिवर्तन करवाने की अनुमति भी दे रखी थी।
बम्बई की एपॉस्टौलिक मिशन का सुसंस्थापन किया
मैथ्यूज़ डी कास्ट्रो ने बम्बई की एपॉस्टौलिक मिशन की भी स्थापना की थी। बिशप मैथ्यूज़ डी कास्ट्रो ने अपने अंतिम दिन रोम में बिताए थे। फ़ल्सीवेलेम के बिशप डौम थॉमस डी कास्ट्रो उनके भतीजे थे। यह दोनों चाचा-भतीजा बिशप तत्कालीन पैड्रोआडो मसीही प्रणाली तथा गोवा में पुर्तगालियों के अत्याचारों के सख़्त विरुद्ध रहे थे।
रोम में फ़िलॉसफ़ी के प्रोफ़ैसर नियुक्त हुए
बिशप डौम थॉमस डी कास्ट्रो गोवा के डीवर क्षेत्र में पैदा हुए थे। होली सीअ ने उन्हें 30 अगस्त, 1675 को कनारा का विकार एपॉस्टौलिक नियुक्त किया था। उन्होंने कर्नाटक के दक्षिण कनारा के मंगलौर में प्रसिद्ध मिलाग्रेस चर्च की स्थापना की थी। वह कैथोलिक चर्च के पहले भारतीय बिशप डौम मैथ्यूज़ डी कास्ट्रो के भतीजे थे। उनके चाचा ही उन्हें रोम लेकर गए थे। थॉमस डी कास्ट्रो पढ़ने-लिखने में बहुत होनहार थे, इसी लिए उन्हें रोम में फ़िलॉसफ़ी एवं थ्योलोजी (दर्शन शास्त तथा धर्म-विज्ञान) का प्रोफ़ैसर नियुक्त कर दिया गया था। उन्हें 1671 में वैटिकन द्वारा फ़ल्सीवेलेम का बिशप नियुक्त किया गया था। 1674 में वह भारत लौटे। फिर 30 अगस्त, 1675 को होली सीअ ने उन्हें कोचीन, टेमर, मदुराई, मैसूर, क्रैन्गनोर, काननोर तथा कनारा तटीय क्षेत्र का विकार एपॉस्टौलिक नियुक्त किया था। वह 1675 से लेकर 1689 तक वेरापोली (वर्तमान केरल का वरापूज़ा) के भी लैटिन कैथोलिक आर्कडायोसीज़ के विकार एपॉस्टौलिक रहे थे।
कनारा के शासकों ने बिशप थॉमस डी कास्ट्रो को उपहार स्वरूप दी काफ़ी ज़मीन
कनारा के शासकों ने बिशप थॉमस डी कास्ट्रो को काफ़ी ज़मीन उपहार स्वरूप दी थी, जिस पर उन्होंने 1680 में मिलाग्रेस चर्च बनवाया था, जो आज भी करनाटक के मंगलौर में स्थित है। बिशप थॉमस डी कास्ट्रो का निधन 16 जुलाई, 1684 को हो गया था। उन्हें मिलाग्रेस चर्च के कब्रिस्तान में दफ़नाया गया था। उनकी कांस्य की स्लैब से बनी कब्र को आज भी पहचाना जा सकता है। उनकी कब्र सेंट मोनिका चैपल की कब्र के समीप है।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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