वाई.एम.सी.ए. के प्रथम भारतीय महा-सचिव कनकारायण तिरूसेलवम पौल
वाई.एम.सी.ए. के भारतीय मूल के प्रथम राष्ट्रीय महा-सचिव थे के.टी. पौल
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कनकारायण तिरूसेलवम पौल (के.टी. पौल) जैसे मसीही के उत्कृष्ट योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है। श्री के.टी. पौल का जन्म 24 मार्च 1876 ई को तामिल नाडू के सलेम नगर में रहने वाले एक मसीही परिवार में हुआ था। वह महात्मा गांधी के बड़े प्रशंसक थे। वह भारत में वाई.एम.सी.ए. (यंग मैन्स क्रिस्चियन ऐसोसिएशन) की राष्ट्रीय काऊँसिल के भारीतय मूल के (भारत में जन्म लेने वाले) प्रथम महा-सचिव (जनरल सैक्रेटरी) थे। उनहोंने भारतीय मसीही समुदाय को भारत की धरती से जोड़ने का प्रमुख कार्य किया था। वह अपने समय के ऐसे मसीही भाईयों-बहनों की सख़्त आलोचना करते थे, जो आज़ादी के राष्ट्रीय आन्दोलन को अपना समर्थन नहीं देते थे। क्योंकि उन दिनों बहुत से मसीही तो इण्डियन नैश्नल कांग्रेस के साथ मिल कर इस आन्दोलन को समर्थन देते थे परन्तु कुछ मसीही इस पार्टी से बाहर थे परन्तु स्वतंत्रता संग्राम के पक्ष में थे। श्री पौल बंगलौर स्थित युनाईटिड थ्योलोजिकल कॉलेज की गवर्निंग काऊँसिल के अघ्यक्ष, नैश्नल मिशनरी सोसायटी (भारत) के महा सचिव एवं नैश्नल क्रिस्चियन काऊँसिल ऑफ़ इण्डिया के चेयरमैन जैसे प्रमुख पदों पर रहे। उन्होंने वाई.एम.सी.ए. में रह कर गांवों के पुनर्गठन का बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया था। दिया था सरकारी नौकरी से अस्तीफ़ा अपनी दसवीं कक्षा एवं इन्टरमीडिएट की पढ़ाई के पश्चात् श्री के.टी. पौल 1892 (चित्र: विकीपीडिया) में मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज के साथ जुड़ गए थे। यहीं से उन्होंने अपनी ग्रैजुएशन की। उन्हें तब चाहे सरकारी सचिवालय में नौकरी मिल गई थी, परन्तु उन्होंने अपने विवाहोपरांत वहां से त्याग-पत्र दे दिया था क्योंकि परमेश्वर ने तो उनसे अभी अन्य और भी कई अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य करवाने थे। सरकारी नौकरी से असतीफ़ा देने के पश्चात् वह तामिलनाडू के ही नगर कोयम्बटूर में स्थित लन्दन मिशन हाई स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए। बाद में वह पुंगानूर आर्कट मिशन हाई स्कूल के मुख्य-अध्यापक भी बने। 1902 में वह सैदापेट के टीचर्स कॉलेज में तथा अगले वर्ष मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज के इतिहास विभाग में अध्यापक नियुक्त हुए। ग़रीब मसीही परिवारों की सहायता हेतु बनाई थी ‘प्रेम-सभा’ श्री के.टी. पौल संपूर्ण भारत के गिर्जा-घरों (चर्च) में जाकर मसीही समुदाय को जागरूक किया करते थे तथा मसीही लोगों को अधिक से अधिक सामाजिक कार्यों में भाग लेने हेतु प्रेरित किया करते थे। उत्तर भारत में उन्होंने एक ‘प्रेम-सभा’ बनाई थी, जो वंचित रहने वाले तथा ग़रीब मसीही परिवारों की भलाई हेतु कार्य करती थी। श्री पौल सभी चर्चों में जाया करते थे। तब इतनी मिशनें नहीं थीं, जितनी आज हैं, फिर भी थीं। परन्तु उन्होने किसी चर्च में जाने से पूर्व यह कभी नहीं पूछा कि वह चर्च किस मिशन से संबंधित है। स्थापित करना चाहते थे विशुद्ध भारतीय चर्च मसीहियत के लिए कार्य करते हुए श्री पौल ने कभी भी भारतीय पंरपराओं का दामन नहीं छोड़ा। वह अपनी प्रत्येक बात भारतीय दृष्टीकोण से ही देखते थे। वह भारत में किसी ऐसे विशुद्ध भारतीय चर्च को स्थापित नहीं करना चाहते थे, जिसका ढांचा पश्चिमी सभ्यता पर आधारित हो। वह नहीं चाहते थे कि भारतीय चर्चों पर बिश्पों का कब्ज़ा कायम हो जाए। वह चर्च को शुद्ध भारतीय बनाना चाहते थे, इसी लिए अधिक से अधिक भारतीय उनकी बातों को सुनते भी थे और उनकी दलीलों को सुन कर उन्हीं के अनुयायी बन जाते थे। अतः मसीही समुदाय में राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न करने में श्री पौल का बड़ा महत्त्वपूर्ण व सकारात्मक योगदान है। 1930 में जब लन्दन में गोल-मेज़ कान्फ्ऱेंस हुई थी, तब श्री के.टी. पौल ने भी श्री एस.के. दत्ता के साथ भारतीय मसीही समुदाय का प्रतिनिधित्व किया था। वहां पर भी श्री पौल ने भारत की राष्ट्रीय एकता पर ही बल दिया था। एक लेख द्वारा जल्लियांवाला बाग़ की दर्दनाक घटना की थी ब्रिटिश शासकों की सख़्त निंदा 1919 में जब पंजाब के अमृतसर में जल्लियांवाला बाग़ का दर्दनाक काण्ड हुआ था, तब महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन चलाया था। जुलाई 1920 में श्री पौल व श्री दत्ता ने ‘यंग मैन ऑफ़ इण्डिया’ में एक लेख लिख कर पंजाब में अंग्रेज़ शासकों के दमन की सख़्त निंदा की थी। उनका वह लेख बहुत अधिक चर्चा में रहा तथा उसके कारण बहुत से मसीही भाई-बहन स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए थे। वाई.एम.सी.ए. को बनाया विशुद्ध भारतीय 1916 में श्री पौल के नेतृत्व में वाई.एम.सी.ए. पूर्णतया भारतीय रंगत में रंग गई, क्योंकि उनसे पहले इस मसीही युवा संगठन के जनरल सैक्रेटरी केवल कोई अंग्रेज़ युवा ही हुआ करता था। अतः श्री पौल ने वाई.एम.सी.ए. को एक नया भारतीय दृष्टिकोण प्रदान किया। इस संगठन ने मसीही समुदायों के मन के अन्दर बैठे बिना मतलब के डर, उनकी आशाओं व आवश्यकताओं का समझने का प्रयत्न किया। पहले वाई.एम.सी.ए. केवल शहरों तक ही सीमित थे परन्तु श्री पौल इस संगठन को भारत के गांवों में ले गए। उन्होने मसीही लोगों को अधिक से अधिक पढ़ने हेतु जागृत किया। मसीही समुदाय के साथ नए जुड़ने वाले लोग अधिकतर कर्ज़दार हुआ करते थे तथा निर्धनता से जूझ रहे थे। उनकी सहायता के लिए श्री के.टी. पौल ने 1916 में मद्रास क्रिस्चियन कोआप्रेटिव बैंक लिमिटेड भी स्थापित किया था। इसमें उनके घनिष्ठ मित्र एल.डी.. स्वामीकन्नू पिल्लै ने साथ दिया तथा वही सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार भी बने। 11 अप्रैल, 1931 में श्री पौल का निधन हो गया। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]