यीशु मसीह को हिन्दु दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाले वैंगल चक्काराई
दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में यीशु मसीह को कहते हैं ‘गुरु जीसस’
यहां दिए गए चित्र में हमारे मुक्तिदाता यीशु मसीह को दक्षिण भारत के किसी चित्रकार ने पूर्णतया भारतीय परंपरा में ढाल कर प्रस्तुत किया है। दक्षिण भारत में गांव के गांव ऐसे हैं, जिन्होंने शताब्दियों पूर्व यीशु मसीह के ऐसे असंख्य चित्रों को ही देख कर यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता मान लिया था। ख़ैर, यह तो अपने-अपने विश्वास की बात है-हमारा ढंग चाहे कोई भी हो परन्तु हम सब की मंज़िल एक ही हैं - अर्थात यीशु मसीह। भारतीय संविधान के अनुसार हमें किसी के भी विश्वास को कभी ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए। दक्षिण भारत में ही हमारे कुछ मसीही समुदाय तो अपने चर्च में ‘आरती’ भी करते हैं तथा यीशु मसीह को श्रद्धापूर्वक ‘गुरू जीसस’ कहते हैं, परन्तु उत्तर भारत के बहुत से मसीही समुदाय इन बातों को सही नहीं मानते। ख़ैर, यह तो विचार-विमर्श हेतु एक अलग विषय है, जिसके बारे में बाद में चर्चा करेंगे। हमारे आज के मसीही स्वतंत्रता संग्रामी हैं - वैंगल चक्काराई, जिनका जन्म 17 जनवरी, 1880 ई. को हुआ था। यीशु मसीह जी का ऐसा चित्र इसी लिए यहां दिया गया है क्योंकि श्री चक्काराई ने अपने जीवन के दौरान यीशु मसीह को सदैव हिन्दु दृष्टिकोण वाली ऐनक से ही देखा था। उनका जन्म एक अमीर हिन्दु चैत्तिआर परिवार में हुआ था।प्रख्यात स्वतंत्रता संग्रामी थे वैंगल चक्काराई श्री वैंगल चक्काराई ने महात्मा गांधी द्वारा प्रारंभ किए ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ में भाग लिया था। वह अपने समय के अत्यंत ही सशक्त मसीही धार्मिक नेता, प्रचारक भी थे परन्तु भारत की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने सदा अपने उद्यम जारी रखे। वह एक ट्रेड युनियनिस्ट भी रहे। उन्होंने स्कॉटिश मिशन स्कूल व मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 1901 में फ़िलासफ़ी विषय में स्नातक (ग्रैजुएशन) की परीक्षा उतीर्ण की। तब तक उनके मन में परमेश्वर व धर्मों को लेकर के कुछ शंके थे। उन्हें कभी-कभार शक होने लगता कि परमेश्वर कहीं पर है भी या नहीं। उन्होंने तब बाईबल को पढ़ना प्रारंभ किया और उसका अपने हिसाब से अच्छी तरह निरीक्षण किया अैर आध्यात्मिक रूप से पूर्णतया संतुष्ट हो कर 1903 में सदा के लिए यीशु मसीह को अपना लिया। उनका संपूर्ण परिवार मसीही हो गया। फिर श्री चक्काराई ने मद्रास के लॉअ कॉलेज से वकालत की डिग्री प्राप्त की तथा कुछ समय तक वकील के तौर पर प्रैक्टिस भी की। उन्हें पढ़ने का अत्यंत शौक था।
मद्रास के मेयर बने मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज में पढ़ते हुए ही श्री वैंगल चक्काराई ने स्वेच्छा से यीशु मसीह को सदा के लिए ग्रहण कर लिया था। बप्तिसमा उन्होंने 1903 में लिया था। तब वह मद्रास के लॉअ कॉलेज में भी पढ़े, और वकालत पास कर के कुछ समय वकील के तौर पर प्रैक्टिस भी की। वह एक मसीही मिशनरी तो थे ही, परन्तु वह राजनीति में भी सक्रिय रहे तथा वह ट्रेड यूनियनिस्ट भी थे। 1913 में वह डैनिश मिशन रूम से जुड़ कर मसीही प्रचारक बन गए थे। वे 20 वर्षों तक इधर-उधर घूम कर लोगों में यीशु मसीह का सुसमाचार सुनाया करते थे। उन्हीं दिनों में वह महात्मा गांधी के राष्ट्रवादी विचारों के कारण उनके अनुयायी बन गए थे। श्री चक्काराई 1941 से 1942 तक मद्रास (अब चेन्नई) के मेयर भी रहे थे।
बताया करते थे यीशु मसीह द्वारा मोक्ष प्राप्ति का ढंग श्री चक्काराई ने मसीही धर्म की व्याख्या हिन्दु दृष्टिकोण से करने का प्रयत्न किया था। वह अपनी मसीही क्लीसिया को बताया करते थे कि यीशु मसीह की सलीब का क्या अर्थ है तथा यीशु के द्वारा ‘मोक्ष’ (उद्धार) कैसे प्राप्त किया जा सकता है। उनका निधन 14 जून, 1958 को हो गया था।
महात्मा गांधी जी के शिष्य रहे 1913 में डैनिश लूथरन मिशन रूम ने उन्हें बाकायदा मसीही प्रचारक नियुक्त किया और फिर उन्होंने 20 वर्षों तक दक्षिण भारत में मसीही धर्म का खुल कर प्रचार किया। इन्हीं दिनों वह महात्मा गांधी जी से भी मिले और वह गांधी जी के शिष्यों में सम्मिलित हो गए। उसके बाद ही उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया। 1941-1942 में वह मद्रास के मेयर भी रहे। उनकी पुस्तकें ‘जीसस - दा अवतार’ (1927) तथा ‘दा क्रॉस एण्ड इण्डियन थौट’ (1932) बहुत चर्चित रहीं थीं। 1940 से लेकर 1950 तक के दशक में वह बहुत प्रसिद्ध थे।
चर्च को दी भारतीय रंगत वैंगल चक्काराई ने मद्रास में ‘क्रिस्टियो समाज’ की स्थापना की तथा उन्होंने चर्च के भारतीयकरण में अपना मूल्यवान योगदान डाला। उन्होंने यीशु मसीह को पूर्णतया भारतीय रंग में प्रस्तुत करके जन-साधारण के सामने रखा। यही कारण था कि लोग उनकी बात मानते हुए यीशु मसीह को अपना कर मसीही समुदाय में सम्मिलित होने लगे। श्री चक्काराई ने लोगों को बताया कि यीशु मसीह कैसे उनसे स्वयं बातें करेंगे और वह यीशु मसीह में एक विलक्ष्ण व एक नई आत्मा बन कर निकलेंगे। उन्होंने लोगों को सलीब का अर्थ समझाया तथा यह भी बताया कि यीशु मसीह के द्वारा वे ‘मोक्ष’ की प्राप्ति कैसे कर सकते हैं।
यीशु को कहते थे ‘सत्य पुरुष’ वह यीशु मसीह को ‘सत्य पुरुष’ कहा करते थे। उनका मानना था कि ‘‘पवित्र आत्मा सदैव से विद्यमान है तथा वह अब भी कार्यरत है। परमेश्वर कभी पाप का सृजन नहीं कर सकता। पापों के लिए मनुष्य स्वयं ही ज़िम्मेदार होते हैं। परमेश्वर का ज्ञान कोई किसी विद्यालय या कॉलेज में प्राप्त करने वाला ज्ञान नहीं है, अपितु परमेश्वर तो एक निजी अनुभव हैं। पाप एक ऐसी बेड़ी है जो मानवीय आत्मा को परमेश्वर तक पहुंचने से रोकती है। किसी वर्जित बात/कार्य के भेद को जानने की इच्छा रखना भी पाप है।’’ श्री वैंकल चक्काराई की पत्नी का नाम पण्डीपेड्डी था उनके दो पुत्र वैंगल जानकी दास, वैंगल राजसेकरन तथा एक पुत्री वैंगल लीला थे। श्री वैंगल चक्काराई का निधन 14 जून 1958 को हुआ था।
-- -- मेहताब-उद-दीन
-- [MEHTAB-UD-DIN]
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