गांधी जी के करीबी जोसेफ़ चेल्लुदराई कुमारअप्पा
महात्मा गांधी जी अत्यंत प्रभावित थे कुमारअप्पा से
श्री जोसेफ़ चेल्लुदराई कुमारअप्पा (वास्तविक नाम जौन यीशुदासन कॉर्निलयस 1892-1960) ऐसे मसीही थे, जो हमारे राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी जी के बहुत करीबी रहे थे। गांधी जी उन पर बहुत भरोसा करते थे। इसी लिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहने में अग्रणी रहे मसीही लोगों में श्री कुमारअप्पा का नाम अत्यंत आदरपूर्वक लिया जाता है। 4 जनवरी, 1892 को तामिल नाडू के तंजौर में एक कट्टटर मसीही परिवार में पैदा हुए श्री कुमारअप्पा ने अपनी प्राथमिक शिक्षा मदरास में प्राप्त की थी। परन्तु फिर वह अर्थ-शास्त्र व चार्टर्ड एकाऊँटैंट की शिक्षा प्राप्त करने हेतु इंग्लैण्ड चले गए थे। वहां से वापिस आकर भारत में उन्होंने अपनी एक फ़र्म ‘कॉर्नेलियस एण्ड डॉवर’ बनाई थी। फिर 1928 में वह अर्थ-शास्त्र व व्यापारिक प्रशासन की डिग्रियां लेने के लिए अमेरिका स्थित साईराक्यूज़ एण्ड कोलम्बिया युनिवर्सिटी चले गए थे। अमेरिका में ही उन्होंने हार्वर्ड युनिवर्सिटी एवं बोस्टन युनिवर्सिटी से भी शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में भारत आ कर वह कुछ समय लखनऊ युनिवर्सिटी में फ़िलॉसफ़ी के भी प्रोफ़ैसर रहे थे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को बहुत सम्मानपूर्वक याद किया जाता है। उन्होंने अंग्रेज़ों की टैक्स नीति व उनके द्वारा भारतीय अर्थ-व्यवस्था का शोषण किए जाने संबंधी एक लेख अख़बार में लिखा था, जिसने उन्हें समस्त भारत में प्रसिद्ध कर दिया था। इन सब बातों ने महात्मा गांधी (जिन्हें आज हम राष्ट्र पिता कह कर सम्मान देते हैं) जी को बहुत प्रभावित किया। सदैव बने रहे गांधी जी के विश्वासपात्र श्री कुमारअप्पा पहली बार 9 मई 1929 में गांधी जी से अहमदाबाद (गुजरात) के पास ही स्थित उनके साबरमती आश्रम में मिले थे। गांधी जी ने उन्हें तुरंत अपने विश्वासपात्रों में सम्मिलित कर लिया था। गांधी जी के कहने पर ही उन्होंने देहाती गुजरात का आर्थिक सर्वेक्षण किया था, जो 1931 में प्रकाशित हुआ था। अन्य मसीही भाईयों-बहनों को स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने हेतु प्रेरित किया श्री कुमारअप्पा सत्याग्रह के बहुत सशक्त समर्थक थे तथा उन्होंने अपने सभी मसीही साथियों को भी स्वतंत्रता हेतु प्रारंभ हुए राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया था। गांधी जी ने 1931 में डांडी मार्च प्रारंभ करने से पूर्व उन्हें अपने साप्ताहिक समाचार-पत्र ‘यंग इण्डिया’ में निरंतर लिखने के लिए प्रेरित किया था तथा साथ ही उन्हें यह भी कहा था कि जब वह आन्दोलन के दौरान जेल-यात्रा के लिए जाएंगे तो सम्पादक वह (कुमारअप्पा) ही होंगे। इस प्रकार श्री कुमारअप्पा ‘यंग इण्डिया’ के सम्पादक बन गए। वह अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध बहुत तीखा लिखते थे, इसी लिए उन्हें 1931 में डेढ़ वर्ष कारावास का दण्ड भी दिया गया था परन्तु आम जनता क्योंकि श्री कुमारअप्पा को बहुत प्यार करती थी, उसके विरोध तथा फिर गांधी-इरविन समझौते के पश्चात् उन्हें कुछ ही दिनों के बाद रिहा कर दिया गया था। गांधी जी के साप्ताहिक ‘यंग इण्डिया’ के बने सम्पादक फिर 1932 में वह ‘यंग इण्डिया’ के बाकायदा सम्पादक बन गए थे। 1932 में उन्हें अपने कुछ तीखे लेखों व सम्पादकियों के कारण ढाई वर्ष के लिए नासिक जेल में रहना पड़ा था। फिर 1942 में वह ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के दौरान उन्हें बम्बई तथा नागपुर में डेढ़ वर्ष के लिए हिरास्त में रखा गया था। तब उन पर आरोप लगाया गया था कि वह अपने बम्बई स्थित कांग्रेसी व मसीही साथियों के साथ अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध षड़यंत्र रच रहे हैं। उन पर मुकद्दमा चलता रहा फिर उन्हें ढ़ाई वर्ष कारावास की सज़ा सुनाई गई। इस प्रकार वह 1945 तक जेल में रहे। रिहाई होने तक उनका स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ गया था तब उन्हें बहुत समय तक जबलपुर के लियोनार्ड थ्योलोजिकल कॉलेज में विश्राम करना पड़ा। उनके छोटे भाई भारतन कुमारअप्पा भी गांधी व सर्वोदय आन्दोलन के साथ जुड़े रहे थे। कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी रहे जुलाई 1947 में उन्हें भारत सरकार ने एक प्रतिनिधि मण्डल में सम्मिलित किया गया। लन्दन में समुद्री जहाज़ों (पोत) मालिकों की एक बैठक में उन्हें ‘समुद्री पोतों की आवाजाही में भारत के आर्थिक हित’ विषय पर भारत सरकार की सहायता करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। 1947 में उन्हें श्री जय प्रकाश नारायण के स्थान पर ‘कांग्रेस वर्किंग कमेटी’ में सम्मिलित होने का भी सुअवसर प्राप्त हुआ, जो उन दिनों बहुत बड़ी बात हुआ करती थी। परन्तु गांधी जी के बार-बार कहने पर उन्होंने यह सम्मान लेने से साफ़ इन्कार कर दिया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वह काफ़ी समय भारत के योजना आयोग में कार्यरत रहे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े रह कर उन्होंने कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु बहुत बढ़िया कार्य किए। वह कई बार देश की तरफ़ से चीन, पूर्वी यूरोप एवं जापान भी गए। पर्यावरण की सुरक्षा हेतु भी कार्य किया कुछ समय उन्होंने अपना आयुर्वेदिक उपचार करवाने हेतु श्री लंका में भी बिताया था। पर्यावरण की सुरक्षा हेतु उन्होंने उन दिनों में बढ़िया कार्य किए थे। अपने अंतिम समय में वह मदुराई (तामिल नाडू) स्थित एम.के. गांधी निकेतन में रह कर अर्थ-व्यवस्था संबंधी लेख व अन्य रचनाएं लिखते रहते थे। श्री जोसेफ़ चेल्लुदराई कुमारअप्पा का निधन 30 जनवरी, 1960 ई को हुआ था; यह भी एक केवल संयोग ही था कि 1948 में 30 जनवरी को ही गांधी जी की हत्या हुई थी। इस प्रकार श्री कुमारअप्पा आजीवन गांधीवादी ही रहे। उनके देहांत के उपरान्त ‘कुमारअप्पा इनस्टीच्यूट ऑफ़ ग्राम स्वराज’ की भी स्थापना की गई थी। मसीही नेता जे.सी. कुमारअप्पा रहे ब्रिटिश सरकार को आईना दिखलाने में अग्रणी ऐसे समय में प्रमुख मसीही नेता जे.सी. कुमारअप्पा ने गांधी जी के मैगज़ीन ‘यंग इण्डिया’ में ‘‘डज़ ए स्टोन रीप्लेस ब्रैड?’’ (क्या एक पत्थर कभी रोटी का स्थान ले सकता है?) नामक एक लेख लिखा। उस लेख को पढ़ कर ब्रिटिश शासक तिलमिला उठे। उसी लेख के आधार पर उनका ग्रिफ़्तारी वारण्ट जारी हो गया और उन्हें भी गांधी जी की तरह जेल जाना पड़ा। उस में उन्होंने लिखा था कि अंग्रेज़ शासक कैसे भारत के साथ-साथ अपने अन्य बस्तीवादी देशों को आर्थिक नुक्सान पहुंचा रहे हैं। श्री कुमारअप्पा ने अपनी एक पुस्तक ‘फ्ऱॉम क्लाईव टू केन्ज़’ (क्लाईव से लेकर केन्ज़ तक) उन्होंने स्पष्ट किया है कि इंग्लैण्ड के अंग्रेज़ शासकों ने कैसे आर्थिक नीतियां बनाई थीं कि जिनसे भारत और भारतियों का आर्थिक शोषण होना तय था। उनकी पुस्तक की शैली का एक नमूना देखिए - ‘‘क्लाईव लॉयड प्रारंभ में ईस्ट इण्डिया कंपनी में केवल एक क्लर्क बन कर आया था और भारत का वॉयसराय बन बैठा। वह जब सेवा-मुक्त होकर इंग्लैण्ड लौटा, तब वह तीन लाख पाऊण्ड स्टर्लिंग का मालिक था तथा उसकी संपत्ति प्रति वर्ष 27,000 पाऊण्ड स्टर्लिंग के हिसाब से बढ़ती रही थी।’’ एक सच्चे मसीही राष्ट्रवादी थे कुमारअप्पा श्री कुमारअप्पा ने अपने स्वयं के जीवन से दर्शाया था कि एक अच्छा मसीही व्यक्ति एक सच्चा राष्ट्रवादी भी हो सकता है। वह गांधी जी के साथ साबरमती व सेवाग्राम आश्रमों में रहे थे तथा गांधी जी के अहिंसा व शांति के सिद्धांतों पर चलते रहे। उनका मानना था कि केवल पूर्ण स्वतंत्रता से ही भारत का भविष्य स्वर्णिम, बेहतर व उज्जवल हो सकता है। गांधी जी की सलाह पर ब्रिटिश मिशन ने की थी कुमारअप्पा भाईयों से बात 1946 में एक ब्रिटिश कैबिनेट मिशन भारतीय नेताओं के साथ इस देश को सदा के लिए स्वतंत्र करने हेतु बातचीत करने के लिए भारत आया था। उस मिशन ने गांधी जी के साथ दो घन्टे तक बातचीत की थी। तभी गांधी जी ने उस ब्रिटिश मिशन को सलाह दी थी कि वे देश की कुछ प्रमुख आर्थिक व सामाजिक समस्याओं संबंधी कुछ अन्य नेताओं से भी बात करें। तब 23 जनवरी, 1946 को उस मिशन ने कुमारअप्पा भाईयों - जे.सी. कुमारअप्पा तथा भारतन कुमारअप्पा से लम्बा विचार-विमर्श किया था। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]