भारत पर विदेशी मसीही जन का सकारात्मक प्रभाव - एक गहन अवलोकन
किन लोगों ने पहली बार मसीही समुदाय पर क्यों लगाए थे धर्म-परिवर्तन के आरोप? भारत में कौन है मसीहियत का बड़ा दुश्मन?
पहली बार कुछ मुट्ठी भर (सभी नहीं) सत्ताधारी ब्राहम्ण लोगों को मसीही लोग बुरे लगने लगे थे, जो यह नहीं चाहते थे कि लड़कियों/महिलाओं को शिक्षित किया जाना चाहिए? क्योंकि कुछ (सभी नहीं) विदेशी मसीही मिशनरियों ने भारत में साक्षरहीन महिलाओं की दयनीय अवस्था को देख कर उन्हें अच्छी शिक्षा देने की पेशकश की थी। पहली बार मसीही लोग उन्हें बुरे लगने लगे थे, जो नहीं चाहते थे कि दलित पढ़ें। विलियम केरी व डेविड हेयर अन्य दर्जनों मसीही मिशनरियों ने भारत में दलित लोगों को पढ़ाने के लिए दिन-रात एक कर दिए थे। तब कुछ (सभी नहीं) पण्डित लोगों को तो तकलीफ़ होनी ही थी क्योंकि वे तो सदियों से दलितों को पढ़ने से रोकते रहे थे और यदि कभी भूले से कोई दलित वेद-पुराण की बातें सुन भी लेता था, तो उसके कानों में सीसा (लैड्ड या सिक्का) धातु घोल कर उन्हें हमेशा के लिए बहरा बना दिया जाता था, ताकि वे तथा उनकी आने वाली नसलें भी कभी साक्षर बनने की ग़लती न कर सकें। पहली बार मसीही लोग उन्हें बुरे लगने लगे थे, जो यह नहीं चाहते थे कि दलितों को तथाकथित स्वर्ण जातियों के समान अधिकार मिलने चाहिएं क्योंकि मसीही मिशनरियों ने दलित लोगों को अपने गले लगाया था और उन्हें यीशु मसीह द्वारा सामरी औरत से जल ग्रहण करने की कथा सुनाई थी। अब मसीही मिशनरियों को समझाने हेतु कोई अन्य महान उदाहरण तो थी नहीं, वे तो बस अपने मुक्तिदाता यीशु मसीह के जीवन संबंधी जानते थे, इसी लिए उन्होंने स्वाभाविक रूप से उन्हीं की उदाहरणें देनीं थीं। जिन लोगों को यीशु मसीह का जीवन व उनके उपदेश अच्छे लगते थे, वे उन्हें ग्रहण करते चले जाते थे। मसीही समुदाय ने कभी तलवार के बल पर या धन के बल पर पहली बार मसीही लोग उन्हें बुरे लगने लगे थे, जो नर-बलि देने के पक्ष में थे, क्योंकि जागरूक मसीही मिशनरी ऐसी बातों का ज़ोरदार विरोध करते थे। पहली बार मसीही लोग उन्हें बुरे लगने लगे थे, जो सती-प्रथा के पक्ष में थे क्योंकि जागरूक मसीही मिशनरी ऐसी बातों का ज़ोरदार विरोध करते थे। पहली बार मसीही लोग उन्हें बुरे लगने लगे थे, जो बाल-विवाह के पक्ष में थे क्योंकि जागरूक मसीही मिशनरी ऐसी बातों का ज़ोरदार विरोध करते थे। तभी ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह बन गया, जो मसीही समुदाय का उपर्युक्त सुधारों के कारण निरंतर विरोध कर रहे थे - तो उन्हें एक बहाना चाहिए था। तब उन सभी ने आपस में सर जोड़ कर यही योजना बनाई कि वे मसीही समुदाय पर धर्म-परिवर्तन का आरोप लगा देंगे। यही नहीं कि केवल ऐसे ही लोग मसीही समुदाय के दुश्मन हैं - वास्तव में उपर्युक्त दुश्मन तो कुछ ऐसे मूर्ख लोग हैं, जिन्हें ज्ञान की कमी है परन्तु जो दुश्मन स्वयं मसीहियत में मौजूद हैं, उनसे हमें अधिक ख़तरा है - जो मसीहियत को निरंतर खोखला करने पर तुले हुए हैं। भारत की मसीहियत में विद्यमान वे लोग ख़तरा हैंः जो यह समझते हैं कि उन्हें अपने मसीही धर्म के बारे में सब से अधिक समझ व जानकारी है। जो यह समझते हैं कि पवित्र आत्मा केवल उन्हीं पर आकर उतरती है और उनके अतिरिक्त बाकी सभी मसीही लोग मूर्ख हैं। जो यह समझते हैं कि केवल उन्हीं का मसीही धर्म व चर्च सर्वोच्च है और किसी का नहीं। जो यह समझते हैं कि जो वे सोचते हैं कि केवल वही ठीक है तथा यह भी तथ्य है कि ऐसे भ्रमित लोगों को सच्चाई कभी हज़म ही नहीं होती। जो लोग अपने हिसाब से पवित्र बाईबल की विभिन्न आयतों को इस्तेमाल करके राजनीति चलाने का प्रयत्न करते हैं। जो लोग पवित्र बाईबल की आयतों का प्रयोग अपनी मिशन या अपने चर्च को छोड़ कर अन्य मसीही मिशनों, गिर्जाघरों या क्लीसियाओं को नीचा दिखलाने हेतु करते हैं। जैसे अनेकों बार कुछ नए-नए प्रोटैस्टैन्ट मसीही या स्वयं को कुछ अधिक बड़े विद्वान समझने वाले लोग माननीय पोप या रोमन कैथोलिक मसीही समुदाय को बुरा-भला कहते हैं या माननीय पोप के कुछ समर्थक प्रोटैस्टैंट या अन्य मसीही लोगों संबंधी कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां करते हैं। जो लोग ‘मूर्ति-पूजा’ को एक अपशब्द बना कर प्रस्तुत करते हैं - ऐसा करते हुए वे भूल जाते हैं कि हमारे प्रोटैस्टैन्ट मसीही पिछले हज़ारों वर्ष से अपने कैथोलिक मसीही भाईयों-बहनों को तो अभी तक यीशु मसीह की मूर्तियां बनाने से रोक नहीं सके। ऐसे ही लोगों के कारण ही ‘मसीही प्रार्थना’ व ‘मसीही मिशनरी’ जैसे शब्द भारत में आम लोगों को ‘‘अछूत’’ लगने लगे हैं। पवित्र बाईबल की इंजील ‘मत्ती’ के 7वें अध्याय की पहली दो आयतों में लिखा है कि - किसी पर दोष मत लगाओ, क्योंकि उस स्थिति में तुम पर भी दोष लगेगा और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी नाप से तुम्हें भी नापा जाएगा। इसी प्रकार पवित्र बाईबल की पुस्तक ‘1 शमूएल’ के 15वें अध्याय की 33वीं आयत में लिखा है कि - तुम्हारी तलवार ने जैसे अन्य औरतों के बच्चों का वध किया है, वैसे ही तुम्हारी माँ भी बिन बच्चों वाली माँ हो जाएगी। केवल ऐसे असहनशील व स्वयं को काले अंग्रेज़ समझने वाले लोगों के कारण ही 70 वर्षों के बाद भी आज तक कोई मसीही नेता भारत के प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति के पद तक नहीं पहुंच पाया है। ऐसे काले अंग्रेज़ों के कारण ही भारत के समूह मसीही लोग कभी एकजुट होने के बारे में सोच भी नहीं सकते। ऐसे लोग मसीहियत के लिए सचमुच ख़तरा हैं क्योंकि केवल ऐसे लोगों के कारण ही भारत के विभिन्न भागों में रहने वाले मसीही लोगों के प्रति अन्य धर्मों के लोग भी वैसे ही असहिष्णुता दिखलाते हैं। मैंने बहुत से पादरी साहिबान को देखा व सुना है, जब तो वे देखते हैं कि सामने क्लीसिया में या दर्शकों में अन्य धर्मों के भी कोई लोग बैठे हैं, तब तो वे सांप्रदायिक एकता व अखंडता को दर्शाने वाली आयतों व बातों को उजागर करेंगे। परन्तु जब उन्हें लगता है कि सामने केवल मसीही लोग बैठे हैं, तो वे ‘मूर्ति-पूजकों’ व अन्य धर्मों के लोगों व उनके द्वारा बांटे जाने वाले ‘प्रसाद’ के बारे में अपशब्द बोलते हैं। केवल ऐसे तथाकथित मसीही लोगों के कारण ही भारत की मसीहियत अभी तक किसी सही किनारे पर नहीं लग पाई है। आपसी एकता में इस प्रकार कांटे बोने वाले ऐसे पादरी साहिबान, मसीही प्रचारकों व अन्य कथित रहनुमाओं की हम सख़्त निंदा करते हैं और भारत के समूह मसीही लोगों को ऐसे पादरियों, प्रचारकों व रहनुमाओं का बहिष्कार (बॉयकॉट) करने का आह्वान करते हैं। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - 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