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भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों को प्रोत्साहित करने अमेरिका से आए थे हावर्ड व सू थरमैन



 




 


अफ्ऱीकन-अमेरिकन थे हावर्ड थरमैन

भारत में जब 1935-36 में भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन अपने शिखर पर था, तभी अफ्ऱीकन व अमेरिकन मसीही विद्यार्थियों का एक प्रतिनिधि-मण्डल समूह भारतियों के समर्थन हेतु भारत, श्रीलंका (तब इसका नाम सीलौन हुआ करता था) व बर्मा के दौरे पर आया था। उस प्रतिनिधि-मण्डल में श्रीमति सू बैले थरमैन एवं उनके पति हावर्ड थरमैन भी सम्मिलित थे। वह प्रतिनिधि-मण्डल ‘स्टूडैंट क्रिस्चियन मूवमैन्ट’ का था। तब दक्षिण एशिया स्थित ‘क्रिस्चियन विद्यार्थी संगठनों’ के नेता होशियारपुर में पैदा हुए ऑगस्टीन रल्ला राम हुआ करते थे। श्री रल्ला राम का मानना था कि गोरे मूल के मसीही प्रतिनिधि-मण्डल के मुकाबले में काले मूल के प्रतिनिधि-मण्डल को भारतीय अधिक पसन्द करेंगे।


थरमैन के लेखन से प्रभावित हुए थे मार्टिन लूथर किंग-जूनियर

मिनर्वा’ज़ पर्च डॉट कॉम पर दिव्या नायर के विस्तृत खोज-भरपूर आलेख के अनुसार उस प्रतिनिधि‘-मण्डल के मुख्य हावर्ड थरमैन थे, जो अपने समय के प्रसिद्ध धार्मिक नेता, लेखक व मानवीय अधिकारों से संबंधित कार्यों में अग्रणी थे, वही आगे चल कर मार्टिन लूथर किंग-जूनियर के भी मार्ग-दर्शक बने थे। यह काले मूल के विदेशी मसीही लोगों का भारत आने वाला पहला प्रतिनिधि-मण्डल था।


टैगोर बहुत प्रभवित हुए थे थरमैन जोड़ी से

भारत में श्री थरमैन तथा उनकी पत्नी सू थरमैन ने बहुत स्थानों पर अपने संभाषण दिए थे। तब वे राबिन्द्रनाथ टैगोर व महात्मा गांधी जी से कई बार मिले थे। श्रीमति सू थरमैन को तो भारत इतना पसन्द आया था कि उन्होंने अपने पति को पहले अमेरिका भेज दिया था और स्वयं भारत तथा भारत के प्राचीन संगीत वाद्य-यंत्रों, विशेषतया वीणा के बारे में और अधिक जानने हेतु भारत में ही रुक गईं थीं। उन्हें कई बार शांति निकेतन युनिवर्सिटी में भाषण देने के लिए बुलाया गया था। टैगोर स्वयं भी उनसे अत्यंत प्रभावित हुए थे।


जब गांधी जी ने अमेरिका भेजा था सू थरमैन को उपहार

श्री थरमैन अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि जब कभी उनकी पत्नी सू धार्मिक गीत गाती थीं, तो गांधी जी व उनके अन्य शिष्य प्रार्थना में अपने सर झुकाते थे।

अमेरिका श्रीमति सू थरमैन ने गांधी जी से उस चरखे का बना खादी के एक कपड़े का टुकड़ा मांगा थी, जो चरखा सदैव गांधी जी के संग रहा करता था, चाहे वह कहीं पर भी जाएं। गांधी जी ने तब हामी भर दी थी।

और फिर एक वर्ष के बाद खादी का एक वस्त्र उपहार-स्वरूप सू थरमैन के पास अमेरिका पहुंचा था।


गांधी जी के बारे में मार्टिन लूथर किंग-जूनियर ने पहली बार थरमैन की पुस्तक से जानकारी प्राप्त की थी

सू थरमैन भारत में गांधी जी के साथ

श्री थरमैन ने अपनी पुस्तक ‘जीसस एण्ड दि डिसइनहैरिटेड’ (मार्टिन लूथर किंग-जूनियर यह पुस्तक सदा अपने पास रखा करते थे) में लिखते हैं कि वह अन्य देशों में तो एक पर्यटक की तरह ही जाते थे परन्तु भारत में तो वह वास्तव में तीर्थ करने गए थे। मार्टिन लूथर किंग को इसी पुस्तक से भारत व अफ्ऱीका में महात्मा गांधी जी के सभी गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली थी। श्री थरमैन आयु में मार्टिन लूथर किंग-जूनियर से 30 वर्ष बड़े थे। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा कि ‘अमेरिका में मसीही लोगों ने यीशु मसीह के धर्म के साथ विश्वासघात किया है। उन्हें चर्च स्थापित करने चाहिएं थे - समाज में सुख-सुविधायों से वंचित रहे वर्गों’, कमज़ोेरों, निर्धनों के लिए परन्तु उन्होंने स्थापित किए चीनी चर्च, जापानी चर्च, कोरियाई चर्च, मैकस्किन चर्च, फिलीपीनो, इटालियन व नीग्रो चर्च - सब जाति, रंग, नस्ल, रुतबे, धन-दौलत के आधार पर - जीसस के सिद्धांत पर कुछ भी नहीं। अमेरिकन चर्च में ऐसे मतभेद के सख़्त विरुद्ध थे श्री थरमैन।

श्री थरमैन का जन्म 18 नवम्बर, 1899 को हुआ था, जब मार्टिन लूथर किंग-जूनियर के पिता का जन्म हुआ था। उन्होंने हावर्ड युनीवर्सिटी एवं बोसटन युनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा ग्रहण की। उनका रुझान प्रारंभ से ही मानवीय अधिकारों हेतु संघर्ष करने की ओर था।

श्री हावर्ड थरमैन का निधन 10 अप्रैल, 1981 में हुआ था।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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