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पंजाब के महानगर लुधियाना में क्रिस्चियन मैडिकल कॉलेज व अस्पताल के संस्थापक डॉ. डेम एडिथ मेरी ब्राऊन



 




 


एशिया में महिलाओं के लिए पहली मैडिकल प्रशिक्षण सुविधा थी सीएमसी लुधियाना

डॉ. डेम एडिथ मेरी ब्राऊन (24 मार्च, 1864-6 दिसम्बर, 1956) एक अंग्रेज़ी डॉक्टर एवं मैडिकल शिक्षाविद् थे। उन्होंने भारतीय राज्य पंजाब के महानगर लुधियाना में क्रिस्चियन मैडिकल कॉलेज की स्थापना की थी, जो आज सी.एम.सी. के नाम से प्रसिद्ध है। वह एशिया में महिलाओं के लिए पहली मैडिकल प्रशिक्षण सुविधा थी और डॉ. मेरी ब्राऊन ने आधी शताब्दी तक इस कॉलेज के प्रिंसीपल के तौर पर कार्य किया। आधुनिक पश्चिमी वैज्ञानिक विधियों के आधार पर भारतीय महिला चिकित्सकों, नर्सों एवं दाईयों के लिए यह एक वरदान था।


डॉ. मेरी ब्राऊन ने कैम्ब्रिज युनीवर्सिटी से प्राप्त की उच्च-शिक्षा

डॉ. मेरी ब्राऊन का जन्म 1864 में इंग्लैण्ड के कम्बरलैण्ड क्षेत्र में व्हाईटहैवन में हुआ था। वह अपनी चार बहनों में से सब से छोटी थीं। उनके पिता का देहांत हो गया था, जब वह अभी बच्ची ही थीं। उसके पश्चात् उनका परिवार लण्डन चला गया, जहां उनकी माँ ने जन्म लिया था। मेरी ने क्रॉयडॉन हाई स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। उनकी बड़ी बहन को भी मिशनरी कार्य की लगन थी। उन्हीं से मेरी भी प्रेरित थीं। उन्होंने कैम्ब्रिज स्थित गर्टन कॉलेज से ग्रैजुएशन की थी तथा 1882 में युनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज में ऑनर्स डिग्री परीक्षा हेतु प्रवेश लेने वाली वह पहली महिला थीं। लण्डन स्कूल ऑफ़ मैडीसन फ़ॉर वोमैन व एडिनबरा में उन्होंने मैडिसन की शिक्षा ग्रहण की थी। बैप्टिस्ट मिशनरी सोसायटी ने उन्हें बम्बई भेजा था, जहां वह 9 नवम्बर, 1891 को पहुंची थीं।


डॉ. मेरी ब्राऊन ने मन में ठाना कि दाईयों को अवश्य ही उच्च स्तर पर शिक्षित करना है

डॉ. मेरी ब्राऊन ने जब भारत में मैडिकल परिस्थितियां देखीं, तो उन्हें झटका लगा और उन्होंने मन में ठान लिया कि भारत की महिलाओं, विशेषतया दाईयों को अवश्य ही उच्च स्तर पर शिक्षित करना है। वह समय कुछ ऐसा था, जब मैडिकल क्षेत्र भारत में केवल पुरुषों के लिए ही समझा जाता था और भारतीय महिलाओं को बच्चे पैदा करने हेतु केवल अशिक्षत, वहमों-भ्रमों से ग्रस्त एवं अप्रशिक्षत दाईयों पर ही निर्भर रहना पड़ता था। तब भारत में कहीं कोई भी महिला डॉक्टर नहीं हुआ करती थी।


1909 में ग़ैर-मसीही लोगों हेतु भी खोल दिए गए थे सीएमसी के द्वार

डॉ. मेरी ब्राऊन द्वारा स्थापित सी.एम.सी को पहले 200 बिस्तरों वाले अस्पताल से प्रारंभ किया गया था। इस मसीही कॉलेज एवं अस्पताल को समय-समय की पंजाब सरकारों के साथ-साथ लण्डन, एडिनबरा, ग्लासगो, ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा, अमेरिका एवं न्यू ज़ीलैण्ड से भी आर्थिक सहायता मिलती रही है। 1911 में इसका नाम बदल कर क्रिस्चियन मैडिकल कॉलेज लुधियाना कर दिया गया था और 1909 में इसके द्वार ग़ैर-मसीही लोगों के लिए भी खोल दिए गए थे।


1947 में देश के बंटवारे के समय भी सीएमसी अस्पताल को किसी ने भी क्षति नहीं पहुंचाई थी

लुधियाना स्थित इस मसीही कॉलेज एवं अस्तपाल (सी.एम.सी) की इतनी अधिक प्रतिष्ठा थी कि 1947 में जब भारत दो टुकड़ों में बंट गया और एक नए देश पाकिस्तान की स्थापना हुई, तब बहुत बुरी तरह से दंगे भड़क गए थे। बहुत बड़े स्तर पर हिन्दु, सिक्खों एवं मुस्लमानों ने एक-दूसरे को समाप्त करने के प्रयत्न किए थे। अनगिनत संपत्तियों को जला कर ख़ाक व बरबाद कर दिया गया था। एक अनुमान के अनुसार तब उन सांप्रदायिक दंगों के कारण 10 लाख व्यक्ति केवल पंजाब (भारतीय एवं पाकिस्तानी दोनों में) क्षेत्र में ही मारे गए थे। लाखों मुस्लिम भारत छोड़ कर पाकिस्तान चले गए थे और लाखों ही हिन्दु व मुस्लिम लोग हिजरत करके वर्तमान पाकिस्तान से भारत आ बसे थे। लुधियाना स्थित क्रिस्चियन मैडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के भी दर्जनों मुस्लिम कर्मचारी तब अपने काम छोड़ कर पाकिस्तान चले गए थे। परन्तु इस कॉलेज व अस्पताल के भवन पर किसी ने कभी एक बार भी आक्रमण नहीं किया था, अपितु उन दंगों के घायलों को बड़े स्तर पर प्राथमिक मैडिकल सहायता पहुंचाने का बड़ा कार्य इस अस्पताल ने किया था। गंभीर रूप से घायल लोगों के लिए यह अस्पताल पंजाब का एक महत्त्वपूर्ण एमरजैन्सी सैन्टर बना रहा था।

1952 में डॉ. मेरी ब्राऊन सेवा-निवृत्त हो गए थे और कश्मीर में जाकर रहने लगे थे और अपने अंतिम समय तक वहीं पर रहे थे।


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-- -- मेहताब-उद-दीन

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