भारतीय भाषाओं की बेहतरी हेतु कार्यरत रहे जॉन बॉर्थविक गिलक्रिस्ट
जॉन बॉर्थविक गिलक्रिस्ट द्वारा लिखित अंग्रेज़ी-हिन्दुस्तानी भाषा का शब्दकोश अत्यधिक प्रसिद्ध रहा
श्री जॉन बॉर्थविक गिलक्रिस्ट एफ.आर.एस.ई. एल.एल.डी. स्कॉटलैण्ड के एक सर्जन एवं भाषा-विज्ञानी थे। उन्हें भारत एवं भारतीय भाषाएं जानने व उन्हें पढ़ने व बोलने का बहुत शौक था। उनका जन्म 19 जून, 1759 को स्कॉटलैण्ड की राजधानी एडिनबरा में हुआ था तथा उन्होंने अपना अधिकतर करियर भारत में ही बिताया था और उस दौरान भारत की स्थानीय भाषाएं सीखीं थीं। बाद में वह इंग्लैण्ड वापिस चले गए थे और एडिनबरा व लण्डन में रहने लगे थे। अपने अंतिम वर्षों में वह फ्ऱांस की राजधानी पैरिस चले गए थे और 81 वर्ष की आयु में 9 जनवरी, 1841 को उनका निधन हो गया था।
श्री गिलक्रिस्ट को अधिकतर भारीतय भाषाएं सीखने व उनकी बेहतरी के लिए कार्य करने के लिए जाना जाता है। वह वर्तमान पाकिस्तान सहित उत्तर भारत के ब्रिटिश कालोनी वासियों एवं स्थानीय लोगों के साथ मिल कर रहे। उनके द्वारा लिखा गया अंग्रेज़ी-हिन्दुस्तानी भाषा का शब्दकोश अत्यधिक प्रसिद्ध रहा है।
भारतीय भाषाओं के व्याकरण भी तैयार किए
इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय भाषाओं के व्याकरण भी तैयार किए थे और उन दिनों में उनके द्वारा किए गए कार्य अग्रणी हैं तथा आज भी हमारे मार्ग-दर्शक का काम करते हैं। भारतीय भाषाओं हेतु उनके कार्य अरबी, देवनागरी एवं रोमन लिपियों में प्रकाशित हुए हैं। युनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लण्डन की स्थापना में उनकी भूमिका वर्णनीय थी तथा उन्होंने ‘गिलक्रिस्ट ऐजूकेशनल ट्रस्ट’ की भी स्थापना की थी।
श्री जॉन गिलक्रिस्ट का मसीही बप्तिस्मा 22 जून, 1759 को हुआ था तथा तब उन्हें जॉन हेअ गिलक्रिस्ट नाम दिया गया था। उनके पिता का नाम वाल्टर गिलक्रिस्ट था परन्तु उनके बारे में कोई अधिक जानकारी नहीं मिलती। उनके बारे में अब केवल इतना जाना जाता है कि वह एक व्यापारी थे और जिस वर्ष उनके इस होनहार पुत्र जॉन का जन्म हुआ था, वह उसी वर्ष भेद भरी परिस्थितियों में लापता हो गए थे। श्री गिलक्रिस्ट की माँ का नाम हैनरीटा फ़ारकहारसन (1730-1830) था और वह स्कॉटलैण्ड के नगर डुण्डी से थीं।
वैस्ट इण्डीज़ से सीखा नील की खेती करने का हुनर
श्री गिलक्रिस्ट ने अपनी प्राथमिक शिक्षा जॉर्ज हेरियट’ज़ स्कूल एवं एडिनबरा हाई स्कूल (1773-1775) से ग्रहण की। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने वैस्ट इण्डीज़ देश की यात्रा कर के वहां से नील (जो कपड़ों को सफ़ेद करने हेतु प्रयोग किया जाता है अर्थात ‘इण्डीगो’) की खेती करने के ढंग सीख लिए थे। वह इस देश में दो-तीन वर्षों तक रहे थे।
1782 में उन्होंने इंग्लैण्ड की शाही समुद्री सेना (रॉयल नेवी) में एक सर्जन के सहायक के तौर पर प्रशिक्षण प्राप्त किया। फिर वह ईस्ट इण्डिया कंपनी की मैडिकल सर्विस में भर्ती हो गए और 1784 में उन्हें असिसटैंट सर्जन नियुक्त किया गया। वह कंपनी की बंगाल आर्मी के साथ फ़तेहगढ़ पहुंचे और उन्होंने भारत पहुंचते ही हिन्दुस्तानी भाषाओं को सीखना प्रारंभ कर दिया। उन्हें हैरानी इस बात की होती थी कि ईस्ट इण्डिया कंपनी अपने कर्मचारियों को भारतीय भाषाएं सीखने के लिए प्रेरित क्यों नहीं करती, जबकि काम के दौरान तो उन्हें भारतीय सैनिकों व सिपाहियों से बातचीत करने की आवश्यकता तो पड़ती ही थी।
नगर-नगर जा कर भारतीय भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया
श्री गिलक्रिस्ट ने तब हिन्दुस्तानी भाषा का बाकायदा प्रणाली-बद्ध अध्ययन किया और उन्होंने अपना पहला शब्द-कोश (डिक्शनरी) तैयार किया। वर्ष 1785 में उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखने हेतु एक वर्ष का अवकाश मांगा परन्तु उन्हें इतनी लम्बी छुट्टी 1787 में जाकर मिल पाई और उसके बाद श्री गिलक्रिस्ट कभी मैडिकल सेवा की ओर वापिस नहीं आए। फिर वह आगामी 12 वर्षों तक भारत में पटना, फ़ैज़ाबाद, लखनऊ, दिल्ली एवं ग़ाज़ीपुर जैसे विभिन्न स्थानों पर रहे। उन्होंने इन सभी स्थानों पर जाकर स्थानीय लोगों, विशेषतया विद्वानों से मिल कर उनसे भाषाओं संबंधी ज्ञान प्राप्त किया और अपनी अध्ययन सामग्री एकत्र की। गाज़ीपुर ने अपने कार्य में वित्तीय सहायता हेतु नील (इण्डीगो) की कृषि का कार्य भी किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने ईख एवं अफ़ीम पैदा करने में भी ख़ूब परिश्रम किया। उनका यह कृषि कार्य पहले तो ठीक चला परन्तु बाद में असफ़ल हो गया।
गिलक्रिस्ट ने प्रकाशित कीं अनेक पुस्तकें
1786 में श्री गिलक्रिस्ट का पहला शब्दकोश ‘ए डिक्शनरीः इंग्लिश एण्ड हिन्दुस्तानी’ प्रकाशित हुआ था। उस शब्दकोश में उन्होंने पहले व्याकरण दिया था और शब्दकोश बाद में दिया। उनका यह कार्य 1790 में जाकर संपन्न हो पाया था। यह देवनागरी टाईप में प्रकाशित पहला कार्य था और उस टाईप को उन दिनों में औरिएन्टलिस्ट एवं टाईपोग्राफ़र चार्ल्स विल्किन्ज़ ने विकसित किया था। उनके 150 सैट्स के उस बहुमूल्य कार्य को सरकार ने 40 रुपए प्रति सैट की कीमत पर ख़रीद लिया था और यह कीमत बाद में बढ़ कर 60 रुपए हो गई थी। श्री गिलक्रिस्ट की प्रकाशित बहुमूल्य पुस्तकों की संख्या कई दर्जनों में है।
ब्रिटिश भारत हेतु हिन्दुस्तानी भाषा को प्रशासकीय भाषा के तौर पर लागू करवाने में श्री गिलक्रिस्ट की रही बड़ी भूमिका
उत्तर भारत में हिन्दुस्तानी भाषा अधिक चलती थी। वैसे सरकारी भाषा फ़ारसी एवं अरबी थी परन्तु श्री गिलक्रिस्ट ने देखा कि शहरों व गांवों में कोई भी व्यक्ति इन भाषाओं का प्रयोग नहीं करता था और वे सभी हिन्दी व खड़ी बोली का प्रयोग किया करते थे। वैसे हिन्दुस्तानी भाषा में बहुत से शब्द फ़ारसी के मिले हुए हैं। ब्रिटिश भारत हेतु हिन्दुस्तानी भाषा को प्रशासन की भाषा के तौर पर लागू करवाने में श्री गिलक्रिस्ट की बहुत बड़ी भूमिका रही।
गिलक्रिस्ट द्वारा स्थापित प्रशिक्षण संस्थान ही बाद में बना कलकत्ता का फ़ोर्ट विलियम कॉलेज
श्री गिलक्रिस्ट के सुझाव पर ही गर्वनर-जनरल - मारकुईस ऑफ़ वैल्ज़ली एवं ईस्ट इण्डिया कंपनी ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में नए भर्ती होने वाले कर्मचारियों (रंगरूटों) के लिए एक प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किया। उसकी शुरूआत तो ‘औरिएन्टल सैमिनरी’ (प्रारंभ में उसे ‘गिलक्रिस्ट का मदरस्सा’ भी कहा जाता था) के तौर पर हुई थी परन्तु बाद में वर्ष 1800 में वही फ़ोर्ट विलियम कॉलेज बन गया। श्री गिलक्रिस्ट इस कॉलेज के पहले प्रिंसीपल बने तथा 1804 तक इस पद पर रहे। उन्हें तब 1,500 रुपए प्रति माह वेतन मिलता था।
1801 में श्री गिलक्रिस्ट ने ऑस्ट्रेलिया के नगर सिडनी में विलियम बालमेन से काफ़ी बड़ा क्षेत्र ख़रीद लिया था। परन्तु वह कभी आस्ट्रेलिया नहीं गए। 1804 में वह इंग्लैण्ड वापिस चले गए और फिर कभी भारत नहीं लौटे।
श्री गिलक्रिस्ट की पत्नी का नाम ज्ञात नहीं है परन्तु 1782 व 1804 के बीच उनके कई बच्चे पैदा हुए परन्तु उनमें से अधिकतर का देहांत अल्पायु में ही हो गया था। उनकी एक पुत्री मेरी ऐने 1786 में पैदा हुई थी तथा वह बच गई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि श्री गिलक्रिस्ट के साथ उनकी तीन बेटियां भी इंग्लैण्ड वापिस गईं थीं।
श्री गिलक्रिस्ट की कब्र फ्ऱांस के नगर पेरे-लैकेस में स्थित है।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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