पूर्णतया अनपढ़ मज़दूर, फिर सैनिक से लेकर हिसार व रोहतक के राजा बनने वाले जॉर्ज थॉमस, पंजाब के कई शहरों पर कर लिया था कब्ज़ा
भारत में आयरलैण्ड मूल के एकमात्र राजा रहे जॉर्ज थॉमस
भारत पर विभिन्न समयों व कालों के दौरान इंग्लैण्ड के ब्रिटिश, फ्ऱैन्च, डच (जर्मन), पुर्तगालियों, अफ़ग़ान, मंगोलों, मुग़लों और यूनानी सेनाओं ने कई बार आक्रमण किए और भारत के विभिन्न भागों पर हज़ारों वर्ष राज्य किया। उन्हीं में एक हैं आयरलैण्ड के जॉर्ज थॉमस।
1756 में आयरलैण्ड की काऊँटी टिप्परेरी के एक छोटे से कस्बे रॉसक्रीअ में रोमन कैथोलिक परिवार के एक निर्धन किसान के घर जन्म लेने वाले कोरे अनपढ़ श्री जॉर्ज थॉमस की एक मज़दूर व फिर भाड़े के सैनिक से लेकर भारत के वर्तमान हरियाणा के हिसार एवं रोहतक ज़िलों का राजा बनने तक की कहानी बहुत दिलचस्प है। वह भारत में आयरलैण्ड मूल के एकमात्र राजा रहे हैं। वह अपने इस छोटे से राज्य के 1798 से लेकर 1801 तक राजा रहे थे। (विशेष नोटः वह कोई मसीही पादरी तो नहीं थे, फिर भी उनका यह जीवन-विवरण पाठकों की दिलचस्पी हेतु यहां पर दिया जा रहा है)।
सरधना की बेगम समरू के पास भी काम किया
माता-पिता का देहांत हो गया जब जॉर्ज थॉमस अभी छोटे बच्चे ही थे। इसी लिए उन्हें छोटी आयु में ही आयरलैण्ड की कॉर्क काऊँटी की प्रसिद्ध बन्दरगाह यूग़ाल पर भार ढोने वाले एक मज़दूर के तौर पर काम करना पड़ा था। फिर वह भाड़े के सैनिक के तौर पर इंग्लैण्ड की समुद्री सेना में भर्ती हो गए थे परन्तु 25 वर्ष की आयु अर्थात 1781 में उन्होंने वह नौकरी त्याग दी थी और भारत आ गए थे। वह 32 वर्ष की आयु तक भी अनपढ़ ही थे, जब उन्होंने 1787 तक पिण्डारियों (पिण्डारी - दरअसल 18वीं शताब्दी में सक्रिय कुछ मुस्लिम घुड़सवारों के एक दल को कहा जाता था, जो प्रायः वर्तमान महाराष्ट्र क्षेत्र के मराठा शासकों के लिए मुग़लों के विरुद्ध युद्ध लड़ा करते थे) के एक समूह के साथ भारत के उत्तर अर्थात दिल्ली की ओर लम्बी यात्रा का नेतृत्त्व किया था। तब वह सरधना की बेगम समरू के पास काम लग गए थे। बेगम समरू ने यूरोप के एक वीर योद्धा वाल्टर रीनहार्ट के साथ विवाह रचाया था और उसके देहांत के पश्चात् उसकी बड़ी संपत्ति की मालकिन बनीं थीं।
गोकुलपुर के युद्ध में जॉर्ज थॉमस की वीरता के किस्से यूरोप तक मशहूर हुए
बेगम समरू ने मुग़ल शासक शाह आलम-द्वितीय को अपना समर्थन देते हुए अपनी सेनाएं उसकी सहायता के लिए भेजी थीं। बेगम समरू की यह विशेषता थी कि वह अपनी सेनाओं के साथ वह स्वयं भी रणभूमि (मैदान-ए-जंग) में जाया करती थीं। गोकुलपुर में हुए उस युद्ध में जॉर्ज थॉमस अपनी वीरतापूर्ण गतिविधियों के कारण कुछ अधिक लोकप्रिय रहे थे। तब बहुत से सैनिक उन पर विश्वास करने लगे थे और यूरोप की सेनाओं में भी जॉर्ज थॉमस के नाम की धूम मची हुई थी। फिर बेगम समरू के सौतेले पुत्र ने उनके कुछ क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था, उसे भी जॉर्ज थॉमस ने ही अपने नेतृत्त्व में छुड़वा कर वहां पर पुनः बेगम समरू का राज्य स्थापित करवाया था।
पंजाब के बहुत से क्षेत्रों पर भी कब्ज़ा कर लिया था जॉर्ज थॉमस ने
जॉर्ज थॉमस स्वयं एक बहुत ही बढ़िया घुड़-सवार थे, क्योंकि उनके पिता भी बहुत अच्छे घुड़-सवार थे। उन्होंने मराठा शासक की सेनाओं को बहुत अधिक सशक्त बनाया था तथा इंग्लैण्ड की सेनाओं की तरह ही उन्हें सभी अभ्यास करवाए थे। तभी उनसे प्रसन्न होकर यह हरियाणा का कुछ भाग राज्य करने के लिए पुरुस्कार के तौर पर दिया गया था। हिसार, हांसी, सिरसा तक के क्षेत्र उन्हीं के पास थे। 1799 में जॉर्ज थॉमस ने जीन्द पर आक्रमण कर दिया था तथा पटियाला, कैथल, जीन्द, लाडवा एवं थानेसर के स्थानीय शासकों की साझी सेनाओं को पराजित किया था और फिर उनसे मित्रता की अपनी स्वयं की शर्तें रखी थीं। परन्तु शीर्घ ही उन्होंने वह सन्धि तोड़ दी थी तथा फ़तेहाबाद को अपने कब्ज़े में ले लिया था और सिक्ख शासकों के भवानीगढ़, सुनाम एवं नारंगवाल जैसे क्षेत्रों पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया था। उन्होंने कैथल एवं सफ़ीदों पर भी आक्रमण किया था परन्तु वहां पर वह हार गए थे।
हैदराबाद के निज़ाम के पास भी किया तोपची के तौर पर काम
जॉर्ज थॉमस पहले एक फ्ऱांसीसी के साथ थे, परन्तु बाद में उन्होंने अपनी वफ़ादारी एक मराठा शासक अप्पा खाण्डी राव के साथ बना ली थी। फिर वह कुछ समय के लिए हैदराबाद के निज़ाम के पास तोपची के तौर पर भी कार्य करते रहे थे। उन्होंने रोहतक एवं हिसार ज़िलों में अपना राज्य स्थापित किया था तथा हांसी को अपनी राजधानी बनाया था।
हांसी में टकसाल स्थापित कर अपने सिक्के भी चलवाए थे
अपने उस छोटे से कार्यकाल के दौरान ही उन्होंने हांसी में ही एक टकसाल (जहां पर किसी राज्य के धातु के विशेष करेन्सी सिक्के तैयार किए जाते हैं) भी स्थापित की थी और अपने स्वयं के सिक्के भी चलाए थे। उनका राज्य-क्षेत्र उत्तर में घग्गर दरिया से दक्षिण में बेरी तक एवं पूर्व में मेहम से लेकर पश्चिम में भाद्रा तक था। हांसी का आसीगढ़ किला (जिसे जॉर्जगढ़ किला भी कहा जाता रहा है) उन्होंने दोबारा बनवाया था, जो तब पूरी तरह टूट-फूट चुका था। यह किला 12वीं शताब्दी ईसवी में मराठा शासक पृथ्वी राज चौहान ने बनवाया था। उन्होंने उसकी विशाल व मज़बूत दीवारें बनवाईं। उन्होंने अपने क्षेत्र को 14 परगनों (ज़िलों या शासन-क्षेत्रों) में बांट दिया था। हरियाणा के हिसार नगर में उन्होंने जहाज़ कोठी एवं जहाज़ पुल भी बनवाए थे। यह वास्तव में उनकी रिहायशगाह थी - जिसे जॉर्ज थॉमस के हार जाने के बाद ईस्ट इण्डिया कंपनी के एक अधिकारी जेम्स स्किनर ने भी अपना घर बनाया था।
सिक्ख-मराठा-फ्रैन्च कनफ़ैड्रेसी की सेनाओं से हार गए थे जॉर्ज थॉमस
श्री जॉर्ज थॉमस का राज्य 1801 तक ही रह पाया, जब उनकी सेना सिक्ख-मराठा-फ्रैन्च कनफ़ैड्रेसी की सेनाओं से पराजित हो गई थी। विजेता सेना के राजा दौलत राव सिन्धिया ने तब जनरल पीयरे कुइलियर-पेरोन के नेतृत्त्व में इस क्षेत्र पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था।
मराठा शासकों के फ्ऱांसीसी सैन्य अधिकारी लुई बुरकुईन के नेतृत्त्व में 12,000 सैनिकों की एक मज़बूत सेना, जिसे जीन्द एवं कैथल के सिक्ख राजाओं का पूर्ण समर्थन प्राप्त था, ने जॉर्ज थॉमस को हांसी तक खदेड़ दिया था। बाद में हांसी पर भी कब्ज़ा जमा लिया था। सेनापति बुरकुईन ने तब थॉमस को आत्मसमर्पण करने और दौलत राव सिन्धिया की सेना में उच्च पद की पेश्कश की थी। परन्तु जॉर्ज थॉमस ने साफ़ इन्कार कर दिया था और जॉर्जगढ़ की ओर चले गए थे। परन्तु तब तक फ्ऱांसीसी सैन्य अधिकारी लुई बुरकुईन की सेना के सैनिकों की संख्या 20,000 से भी अधिक हो चुकी थी। उसी सेना ने जॉर्ज थॉमस का पीछा जारी रखा और अंततः 1 जनवरी, 1802 को उन्हें आत्मसमर्पण करना ही पड़ा। परन्तु उन्हें ब्रिटिश कब्ज़े वाले क्षेत्र में बच कर निकल जाने की अनुमति दे दी गई थी। तब जब वह कलकत्ता की ओर जा रहे थे, तो जॉर्ज थॉमस का निधन 22 अगस्त, 1802 को उड़ीसा के बेरहामपुर में 46 वर्ष की आयु में बीमार पड़ने के कारण हो गया था।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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