बंगाल में उच्च-शिक्षा के क्षेत्र में यादगारी योगदान डाला पादरी अलैग्ज़ैण्डर डफ़ ने
युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता स्थापित करने में थी पादरी अलैग्ज़ैण्डर डफ़ की महत्त्वपूर्ण भूमिका
पादरी अलैग्ज़ैण्डर डफ़ चर्च ऑफ़ स्कॉटलैण्ड से भारत आने वाले पहले विदेशी मसीही मिशनरी थे। उनके द्वारा उच्च शिक्षा के विकास में डाला गया योगदान वर्णनीय है। 13 जुलाई, 1830 ई. को उन्होंने कलकत्ता में ‘जनरल असैम्बली’ज़ इनस्टीच्यूशन’ की स्थापना की थी, जिसे आज स्कॉटिश चर्च कॉलेज के नाम से जाना जाता है। युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता को स्थापित करने में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।
श्री डफ़ का जन्म 15 अप्रैल, 1806 को स्कॉटलैण्ड के नगर ऑशनाईल के मूलीन, पर्थशाइर स्थित गिर्जाघर में हुआ था। उनके पिता श्री जेम्स डफ़ औशानाह में किसान थे तथा उनकी मां का नाम जीन रैटरेअ था। गांव के स्थानीय स्कूल में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने यूनीवर्सिटी ऑफ़ सेंट एण्ड्रयूज़ में आटर््स एवं धर्म-विज्ञान (थ्योलॉजी) विषयों में अध्ययन किया था। वह 1829 में पादरी नियुक्त हुए थे तथा चर्च ऑफ़ स्कॉटलैण्ड की जनरल असैम्बली की विदेशी मिशन समिति ने उन्हें भारत भेजा था।
इंग्लैण्ड से भारत आने तक की यात्रा काफ़ी दुर्गम रही पादरी अलैग्ज़ैण्डर डफ़ के लिए
इंग्लैण्ड से भारत आते समय उनकी यात्रा भी अत्यंत दुर्गम रही थी क्योंकि उनका समुद्री जहाज़ दो बार बुरी तरह नष्ट हो गया था। वह 27 मई, 1830 को कलकत्ता पहुंचे थे। उन्होंने आते ही बंगाली स्कूलों का निरीक्षण करके देखा के विद्यार्थियों को यहां पर उचित शिक्षा नहीं मिल रही थी तथा उनके विषयों की संख्या बेहद सीमित थी। उन्होंने बच्चों को अंग्रेज़ी की शिक्षा दिलाने का निर्णय लिया। वह क्योंकि एक मसीही मिशनरी थे, इसी लिए उनका पहला उद्देश्य यही था कि जहां एक ओर विद्यार्थियों को बढ़िया शिक्षा मिले, उसके साथ वे मसीही शिक्षा भी ग्रहण करें। तब तक विदेशी मिशनरियों के प्रभाव से जो थोड़े बहुत लोग मसीही बने थे, वे सब निर्धन वर्ग से ही थे। वे ऐसे लोग थे, जिन्हें मसीही स्कूलों में पढ़ने के साथ-साथ आटा-दाल भी दे दिया जाता था, या उन्हें पुस्तकें निःशुल्क दे दी जातीं थीं, कभी उन्हें कपड़े दे दिए जाते थे। ऐसे कुछ लोग (सभी नहीं) अपनी इच्छा से मसीही बन रहे थे; क्योंकि ज़बरदस्ती करके कभी किसी को मसीही नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यीशु मसीह का तो सिद्धांत ही आपस में प्रेमपूर्वक रहना और अहिंसा के सिद्धांत का अनुपालन करना है। पुर्तगालियों ने यदि कभी भारत में ज़बरदस्ती किसी को मसीही बनने के लिए कहा, तो वह केवल पहले से सीरियन मसीही लोगों को ही कहा था कि वे रोमन कैथोलिक बन जाएं। यदि कोई मिशनरी ज़बरदस्ती किसी को मसीही बनाता है, तो वह कभी सच्चा मसीही कहला ही नहीं सकता।
पादरी डफ़ ने विभिन्न क्षेत्रों में खोले मसीही स्कूल
ख़ैर, श्री डफ़ ने जब कलकत्ता के विभिन्न क्षेत्रों में उच्च पाए की पश्चिमी शिक्षा देने की घोषणा की, तो अमीर हिन्दु एवं मुस्लिम परिवारों के बच्चे भी मसीही स्कूलों में पढ़ने के लिए आने लगे। उन्होंने साथ ही विभिन्न बाईबल कोर्स भी प्रारंभ किए। परन्तु भारत में मसीही मिशनरियों के धार्मिक प्रचार के ऐसे तरीकों से कोई अधिक सफ़लता न मिल पाई। परन्तु स्थानीय लोगों के बच्चों को बहाने से अच्छी शिक्षा मिलनी प्रारंभ हो गई।
श्री अलैग्ज़ैण्डर डफ़ ने 1830 में कलकत्ता के समीप ही जोरासानका क्षेत्र में चितपुर मार्ग पर एक स्कूल खोला, जिस में ‘ए बी सी’ से लेकर युनिवर्सिटी स्तर तक की पढ़ाई करवाई जाती थी। इस स्कूल के लिए जगह एक अमीर हिन्दु फेरिन्गी कमल बोस ने उपलब्ध करवाई थी। 1834 में इसे एक बड़ा मिशनरी स्कूल बना कर उसका नाम ‘जनरल असैम्बली’ज़ इनस्टीच्यूशन’ रख दिया गया। 1834 में उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और उन्हें इंग्लैण्ड वापस जाना पड़ा। 1836 में उनके संस्थान का स्थान बदल कर समीपवर्ती ग्रानहाता स्थिात गोरा चन्द बाईसैक के घर में स्थापित कर दिया गया। फिर 23 फ़रवरी, 1837 को कलकत्ता के चीफ़ मैजिस्ट्रेट श्री मैकफ़ारलौन ने मसीही मिशन के एक नए भवन की शिलान्यास रखा। उस भवन का डिज़ाईन जॉन ग्रेह ने तैयार किया था और उस परियोजना के अधीक्षक (सुपरइन्टैंडैंट) कैप्टन जॉन थॉमसन थे। इस भवन का निर्माण 1839 में संपन्न हुआ।
1857 में युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता की स्थापना के समय पादरी डफ का संस्थान भी जुड़ा
इस बीच 1840 में श्री अलैग्ज़ैण्डर डफ़ भारत लौटे। परन्तु 1843 में वह फ्ऱी चर्च के साथ जुड़ गए और उन्होंने कॉलेज भवन छोड़ दिया। तब उन्होंने ‘फ्ऱी चर्च इनस्टीच्यूशन’ नामक एक अन्य संस्था की स्थापना की। 1857 में जब युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता की स्थापना हुई, तो सब से पहले उसके साथ जुड़ने वाले शैक्षणिक संस्थानों में यह ‘फ्ऱी चर्च इनस्टीच्यूशन’ भी शामिल था। श्री डफ़ ने युनिवर्सिटी की प्रथम सैनेट में भी काम किया। 1908 में श्री डफ़ द्वारा स्थापित किए गए दोनों संस्थानों ‘जनरल असैम्बली’ज़ इनस्टीच्यूशन’ तथा ‘फ्ऱी चर्च इनस्टीच्यूशन’ को मिला कर एक दिया गया था, उसे ही आज स्कॉटिश चर्च कॉलेज के नाम से जाना जाता है।
बहुत ऊँचे पदों पर आसीन हुए पादरी डफ़ के पढ़ाए विद्यार्थी, एक अख़बार भी चलाया
1844 में गवर्नर जनरल विस्काऊँट हार्डिंग ने ऐसे सभी विद्यार्थियों को सरकारी नौकरियां देने की घोषणा कर दी, जो श्री डफ़ द्वारा सुसंस्थापित शैक्षणिक संस्थानों में पढ़े थे। उनके बहुत से विद्यार्थी बाद में बहुत ऊँचे पदों पर पहुंचे। 1844 में ही श्री डफ़ ने ‘कैलकटा रीव्यू’ नामक एक समाचार-पत्र भी प्रकाशित करना प्रारंभ किया और वह स्वयं 1845 से लेकर 1849 तक इसके संपादक रहे।
1849 में श्री डफ़ इंग्लैण्ड लौट गए। उन्होंने वहां जाकर संसद में भारत संबंधी स्थापित अनेक समितियों के समक्ष जा कर भारतीय शिक्षा के बारे में अपने सुझाव दिए। 1854 में श्री डफ़ अमेरिका गए, जहां न्यू यार्क युनिवर्सिटी ने उन्हें एल.एल.डी. की मानद डिग्री से सम्मानित किया। इससे पहले युनिविर्सिटी आूफ़ एबरडीन भी उन्हें डी.डी. की डिग्री दे चुकी थी।
युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता की परीक्षा प्रणाली पादरी डफ़ ने ही तैयार की
1856 में श्री अलैग्ज़ैण्डर पुनः भारत लौट आए तथा युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता के लिए कार्य करते रहे। प्रारंभ में इस विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली उन्होंने ही तैयार की थी तथा उन्हीं के कहने पर फ़िज़ीकल साइंसज़ पर अधिक बल भी दिया गया था। 1863 में सर चार्ल्स ट्रेवलिन ने उन्हें युनिवर्सिटी के वाईस चांसलर (उप-कुलपति) के पद की पेशकश की परन्तु तब श्री डफ़ का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था, जिसके कारण उन्हें उपचार हेतु वापिस इंग्लैण्ड जाना पड़ा।
1878 में इंग्लैण्ड में हुआ पादरी डफ़ का निधन
1864 में श्री डफ़ दक्षिण अफ्ऱीका गए और वहां पर वह फ्ऱी चर्च की फ़ॉरेन मिशन्ज़ कमेटी के कन्वीनर (संयोजक) बने। इसके पश्चात् उन्होंने चन्दा इकट्ठा करके स्कॉटलैण्ड के प्रमुख महानगर एडिनबरा स्थित न्यू कॉलेज में एक मिशनरी चेयर स्थापित करवाई तथा वही उसके पहले प्रोफ़ैसर भी बने। बाद में वह सीरिया भी गए।
12 फ़रवरी, 1878 को इंग्लैण्ड के नगर सिडमाऊथ में श्री अलैग्ज़ैण्डर डफ़ का निधन हो गया। उन्हें एडिनबरा के ग्रेंज कब्रिस्तान में उनकी पत्नी एन स्कॉट ड्रिस्डेल की कब्र के साथ ही दफ़नाया गया। उनकी वसियत अनुसार उनकी निजी संपत्ति न्यू कॉलेज की ‘फ़ॉरेन मिशन्ज़’ को सौंप दी गई, जो अब युनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबरा का एक भाग है।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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