भारत में अनेक कल्याण कार्य करने वाले व आधुनिक मसीही मिशनों के पितामह विलियम केरी
विलियम केरी की प्राप्तियों के वर्णन के बिना आगे बढ़ना है असंभव
आधुनिक मसीही मिशनों के संस्थापक, विश्व प्रसिद्ध मसीही मिशनरी, बैप्टिस्ट पादरी, महान् अनुवादक, समाज सुधारक एवं सांस्कृतिक मानव-विज्ञानी श्री विलियम केरी (17 अगस्त, 1761 - 9 जून, 1834) द्वारा भारत में किए गए कार्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। श्री केरी ने चाहे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं दिया, परन्तु इस देश में उनके द्वारा जन-साधारण के कल्याण हेतु किए गए कार्य इतने अधिक हैं कि उनके वर्णन के बिना आगे बढ़ना कठिन ही नहीं असंभव है। इतिहास के पन्नों पर श्री विलियम केरी का नाम सुनहरी अक्षरों में लिखा जा चुका है।
ब्रिटिश-भारतीय क्षेत्र से निकाला तो विलियम केरी ने सीरामपुर में बच्चों के लिए खोला स्कूल
श्री विलियम केरी 1793 में इंग्लैण्ड से भारत के नगर कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुंचे थे परन्तु उन्हें ग़ैर-बैप्टिस्ट मसीही मिशनरियों ने ब्रिटिश-भारतीय क्षेत्र से चले जाने पर विवश कर दिया था। तब बंगाल के नगर सीरामपुर में डैनमार्क का राज्य था, अर्थात यहां पर डैनिश बस्ती थी। श्री विलियम केरी वहां के फ्ऱैड्रिक्स-नगर में जाकर रहने लगे, जिसे आज सीरामपुर कहा जाता है। वह स्वयं एक ग़रीब परिवार से संबंधित थे, इसी लिए वह ज़रूरतमन्द लोगों की कठिनाईयों को भलीभांति जानते थे। उन्होंने ग़रीब बच्चों के लिए स्कूल खोल कर उन्हें पढ़ाना प्रारंभ कर दिया। उन्हें पढ़ने के अतिरिक्त लिखना, अकाऊँटिंग एवं मसीहियत के बारे में जानकारी दी जाती थी।
विलियम केरी ने सीरामपुर में स्थापित की पहली मसीही धार्मिक युनिवर्सिटी
विलियम केरी ने सीरामपुर में पहली मसीही धार्मिक युनिवर्सिटी स्थापित की, जो बाकायदा डिविनिटी की डिग्रियां प्रदान करती थी और यह आज तक कायम है। इसके अतिरिक्त उन्होंने भारत में सती प्रथा बन्द करवाने हेतु भी अभियान चलाया था। इस प्रथा के अंतर्गत किसी पुरुष की मृत्यु होने पर उसकी पत्नी को भी जीवित उसकी चिता में आत्मदाह करना पड़ता था और फिर सती स्त्रियों की पूजा भी की जाती थी, ताकि अधिक से अधिक स्त्रियां ऐसा करने हेतु बाध्य हों।
श्री विलियम केरी ने एक लेख लिखा था - ‘ऐन इनक्वायरी इनटू दि ऑब्लीगेशन्ज़ ऑफ़ क्रिस्चियनिटी टू यूज़ मीन्ज़ फ़ॉर दि कन्वर्ज़न ऑफ़ दि हीथन्ज़’ (अन्य धर्मों के लोगों को मसीहियत में लाने हेतु मसीही लोगों की ज़िम्मेदारी का अवलोकन)। इसी लेख को पढ़ने के पश्चात् ‘बैप्टिस्ट मिशनरी सोसायटी’ की स्थापना की गई थी। एशियाटिक सोसायटी ने श्री केरी द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों की सराहना की है क्योंकि उन्हीं के अनुवाद के कारण यूरोपियन धार्मिक एवं अन्य साहित्य भारत में आ पाया तथा भारत के बढ़िया सिद्धांत यूरोप जा सके।
विलियम केरी ने किया बाईबल का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद
श्री विलियम केरी ने रामायण को अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद किया था तथा पवित्र बाईबल का अनुवाद उन्होंने बंगला, उड़िया, असमी, अरबी, मराठी, हिन्दी एवं संस्कृत भाषाओं में किया था।
श्री विलियम केरी अपने पांच भाई-बहनों में से सब से बड़े थे। उनके पिता का नाम श्री एडमण्ड केरी एवं माँ का नाम एलिज़ाबैथ केरी था। उनका परिवार नॉर्थएम्पटनशाइर के गांव पौलर्सप्युरी के गांव प्युरी एण्ड में एक बुनकर (वीवर) के तौर पर जाना जाता था। श्री केरी की परवरिश चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड में हुई। जब वह छः वर्ष के थे, तब उनके पिता चर्च के क्लर्क एवं स्कूल अध्यापक नियुक्त हुए थे। श्री केरी को बचपन से ही प्राकृतिक विज्ञानों, विशेषतया वनस्पति विज्ञान में बहुत अधिक दिलचस्पी थी। विभिन्न भाषाएं सीखने की ललक भी उनमें बचपन से ही थी।
चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड को नहीं मानते थे विलियम केरी
विलियम केरी जब 14 वर्ष के थे, तो उनके पिता ने समीपवर्ती गांव पिडिन्गटन में उन्हें जूते मरम्मत करने का कार्य सीखने अर्थात मोची बनने के लिए भेज दिया। वहां पर जिन कारीगर से वह यह काम सीखते थे, उनका नाम क्लार्क निकोलस था तथा वह भी चर्च के लिए कार्य करते रहते थे। उनके साथ जॉन वार नामक एक व्यक्ति भी मोची का काम सीखता था परन्तु वह चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड को नहीं मानता था (ऐसे लोगों को ‘डिज़ैन्टर’ अर्थात नाराज़ कहा जाता है)। उसके प्रभाव से श्री केरी के विचार भी वैसे ही बनने लगे। उन दोनों ने मिल कर एक अन्य समीपवर्ती गांव हैक्लटन में छोटा सा चर्च बनाया। वहीं पर गांव के एक शिक्षित निवासी से उन्होंने यूनानी भाषा भी सीखी।
जूते बनाते-बनाते भी पुस्तकें पढ़ते थे विलियम केरी
1779 में उस्ताद कारीगर श्री क्लार्क निकोलस का निधन हो गया। तब श्री केरी को एक अन्य स्थानीय मोची थॉमस ओल्ड के पास जाकर कार्य करना पड़ा। 1781 में उन्होंने उन्हीं की साली डौरथी प्लैकेट के साथ पिडिंग्टन में स्थित चर्च ऑफ़ सेंट जॉन में विवाह रचाया। उनकी पत्नी डौरथी पूर्णतया अनपढ़ थीं। विवाह के प्रमाण-पत्र पर उन्होंने अपने हस्ताक्षर करने के स्थान पर केवल एक सलीब का निशान बनाया था। उनके पाचं पुत्र एवं दो पुत्रियों ने जन्म लिया। उनकी दोनों पुत्रियां का शीघ्र ही निधन हो गया तथा उनका एक पुत्र पीटर भी पांच वर्ष की आयु में ही चल बसा था। इस बीच श्री थॉमस ओल्ड का निधन हो गया तथा श्री केरी ने उनका सारा कारोबार संभाला। तभी उन्होंने हिब्रू, इतालवी, डच एवं फ्ऱैंच भाषाएं सीखीं। वह जूते बनाते-बनाते भी पुस्तकें पढ़ा करते थे।
विलियम केरी हैं आधुनिक मसीही मिशनों के पितामह एवं संस्थापक
बाद में जब जॉन ब्राऊन मायर्स ने उनकी जीवनी लिखी तो उन्होंने उसमें लिखा कि ‘‘श्री विलियम केरी एक ऐसी जूता-निर्माता थे, जो आधुनिक मसीही मिशनों के पितामह एवं संस्थापक बने।’’ 5 अक्तूबर, 1783 को पादरी जॉन राइलैण्ड ने श्री केरी को बप्तिसमा देकर उन्हें बैप्टिस्ट मिशन में सम्मिलित किया। 1785 में श्री केरी मूल्टन गांव में स्कूल अध्यापक नियुक्त हो गए। फिर उन्हें स्थानीय बैप्टिस्ट चर्च में पादरी के तौर पर कार्य करने हेतु आमंत्रित किया गया। तभी उन्होंने जोनाथन एडवर्डस द्वारा लिखित पादरी डेविड ब्रेनर्ड की जीवनी पढ़ी तथा खोजी जेम्स कुक संबंधी अध्ययन किया। वह न्यू इंग्लैण्ड के प्युरिटन मसीही मिशनरी जॉन इलियट (1604-21 मई, 1690), डेविड ब्रेर्न्ड (1718-174) तथा यीशु मसीह के शिष्य पॉल (पौलूस) से अत्यधिक प्रभावित हुए। फिर 1789 में वह लैस्टर के हार्वे लेन बैप्टिस्ट चर्च में पूर्ण-कालिक पादरी नियुक्त हुए।
लण्डन से भारत आते समय विलियम केरी व परिवार को रास्ते में ही समुद्री जहाज़ से उतार दिया गया था
अंततः श्री विलियम केरी अपने बड़े बेटे फ़ैलिक्स, थॉमस एवं अपनी पत्नी एवं पुत्री के साथा लण्डन से अप्रैल 1793 में भारत के लिए रवाना हुए। अभी वे इंग्लैण्ड के समीपवर्ती टापू ‘आइल ऑफ वाईट’ के पास ही पहुंचे थे कि समुद्री जहाज़ के कप्तान ने उन्हें ज़बरदस्ती उतार दिया क्योंकि तब ईस्ट इण्डिया कंपनी के समझौते के अनुसार वह मिशनरियों को कलकत्ता नहीं ले जा सकता था। इस लिए श्री केरी को दो माह तक उसी टापू पर रह कर भारत जाने वाले किसी अन्य जहाज़ के आने की प्रतीक्षा करनी पड़ी। आख़िर जून माह में एक डैनिश कप्तान उन्हें अपने जहाज़ में ले जाने हेतु तैयार हो गया। तब तक उसी टापू पर उनके चौथे बेटे का भी जन्म हो चुका था तथा उनकी साली किटी भी अपनी बहन की सहायता हेतु वहां पर आ चुकी थी।
भारत आने पर प्रारंभ में इतना सुगम नहीं रहा विलियम केरी का जीवन
तब विलियम केरी व उनके पारिवारिक सदस्य पांच माह की यात्रा के पश्चात् नवम्बर 1793 में भारत के नगर कलकत्ता पहुंचे। वहां पर श्री थॉमस ओल्ड के एक मित्र एक इण्डिगो (नील) तैयार करने की दो फ़ैक्ट्रियां थीं और उन्हें मैनेजर चाहिए थे। इसी लिए श्री केरी मिदनापुर चले गए और वहां पर मैनेजर बन गए। वहीं पर उन्होंने पवित्र बाईबल के नए नियम का बंगला भाषा में अनुवाद किया। तभी पेचिश रोग के कारण उनके पुत्र पीटर का निधन हो गया। उनकी पत्नी डौरथी यह सदमा न सह सकी और अंत तक नर्वस ब्रेकडाऊन की शिकार रहीं।
1801 में गवर्नर जनरल ने फ़ोर्ट विलियम नामक एक कॉलेज की स्थापना की, जहां पर प्रशासकीय अधिकारियों को शिक्षित किया जाना था। वहां पर श्री केरी को बंगला भाषा के प्रोफ़ैसर की नौकरी की पेशकश हुई। वहां पर उनके साथ कुछ ब्राह्मण प्रोफ़ैसर भी कार्यरत थे। उन्होंने बंगला भाषा में अनुवादित नए नियम में संशोधन किए।
भारत में सती प्रथा रुकवाने में विलियम केरी का था बड़ा योगदान
श्री विलियम केरी ने बंगला एवं संस्कृत भाषाओं के व्याकरण भी लिखे तथा बाईबल का अनुवाद संस्कृत में प्रारंभ कर दिया। उन्होंने गवर्नर जनरल के साथ मित्रता होने के कारण सती प्रथा को बन्द करवाने पर ज़ोर दिया। उनके अन्य बहुत से समाज सुधारकों द्वारा प्रारंभ किए गए अभियान के कारण ही 1829 में सती प्रथा पर कानूनी रोक लग पाई थी।
विलियम केरी ने बाईबल का अनुवाद 44 भारतीय भाषाओं में प्रकाशित कर के बांटा
इस बीच श्री केरी की पत्नी डौरथी ने एक अन्य पुत्र जिम केरी को जन्म दिया। परन्तु 1807 में वह कमज़ोरी के कारण स्वर्ग सिधर गईं।
1808 में श्री केरी ने चारलोट रूमोहर नामक महिला के साथ विवाह रचाया, जो उनके चर्च की ही सदस्य थीं। उनका यह विवाह 13 वर्ष तक अर्थात श्रीमति चारलोट के निधन तक चला। श्री केरी एवं उनके साथी प्रिन्टिंग प्रैस में भी कार्य करते थे। उन्होंने संस्कृत एवं अन्य कई भाषाओं के धातु के अक्षर या तो तैयार किए या उनमें संशोधन किया। 11 मार्च, 1812 को उनकी प्रिन्ट शॉप में आग लग गई, तब 10,000 पाऊण्ड का नुक्सान हुआ था, यह राशि आज कई करोड़ों में बनती है। उस अग्निकाण्ड में श्री केरी द्वारा अनुवादित कई कार्य भी जल कर ख़ाक हो गए थे। श्री केरी ने कार्यकाल के दौरान ही बाईबल को 44 भाषाओं व उप-भाषाओं में प्रकाशित कर के पूरे देश में बांटा।
विलियम केरी के प्रभाव से स्थापित हुई पहली अमेरिकन बैप्टिस्ट मिशन
1812 में अमेरिकन मसीही मिशनरी एडिनोरम जुडसन भारत पहुंचे व श्री विलियम केरी के संपर्क में आए। श्री केरी के प्रभाव के कारण वह भी बैप्टिस्ट बन गए। फिर उन्होंने ही 1814 में पहली अमेरिकन बैप्टिस्ट मिशन की नींव रखी। 1818 में बैप्टिस्ट मिशन ने सीरामपुर मसीही कॉलेज की स्थापना की। डैनमार्क के राजा ने 1827 में रॉयल चार्टर जारी किया, जिससे यह कॉलेज विद्यार्थियों को डिग्री देने हेतु योग्य हो गया और इस प्रकार यह एशिया का ऐसा पहला मान्यता-प्राप्त धार्मिक कॉलेज बना।
1820 में श्री केरी ने एग्री हॉर्टीकल्चरल सोसायटी ऑफ़ इण्डिया की स्थापना कोलकाता के अलीपुर क्षेत्र में किया। यह उनका वनस्पति विज्ञान अर्थात बौटनी के साथ प्रेम था।
विलियम केरी के नाम से आज भी कई देशों में चल रहे हैं 9 स्कूल
श्री केरी की दूसरी पत्नी चारलोट का निधन 1821 में हो गया। उसी वर्ष उनके बड़े बेटे फ़ैलिक्स का भी देहांत हो गया। 1823 में श्री केरी ने एक विधवा ग्रेस ह्यूज़ से शादी की। 9 जून, 1834 को श्री विलियम केरी का निधन हुआ। जिस काऊच पर उन्होंने अंतिम श्वास लिया था, वह आज भी ऑॅक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी के रीजैन्ट्’स पार्क कॉलेज के बैप्टिस्ट हॉल में पड़ा है। इसके अतिरिक्त समस्त विश्व के न्यूज़ीलैण्ड, अमेरिका, श्री लंका, इंग्लैण्ड, बांगलादेश, कैनेडा एवं भारत जैसे देशों में श्री विलियम केरी के नाम से 9 स्कूल इस समय चल रहे हैं।
श्री विलियम केरी से प्रभावित हो कर 700 लोगों ने सदा के लिए यीशु मसीह को ग्रहण किया था। उन्होंने 41 वर्ष तक भारत में रह कर कार्य किया। वह एक बार भारत आ गए तो, यहीं के होकर रह गए। उन पर कभी ऐसा कोई आरोप नहीं लगा कि उन्होंने किसी का ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन करवाया हो। जितने लोग भी उनके द्वारा मसीहियत में आए, वे सब उनके निजी जीवन से प्रभावित व प्रेरित हो कर ही आए।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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