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भारतीय स्वतंत्रा आन्दोलन में ऐनी बेसैंट का वर्णनीय योगदान, अंग्रेज़ सरकार भी जिनसे घबराती थी



 




 


आयरलैण्ड के ऐनी बेसैंट ने भारत में ब्रिटिश शासकों के अत्याचारों का सदा किया ज़ोरदार विरोध

ऐनी बेसैन्ट का जन्म चाहे आयरलैण्ड (इंग्लैण्ड) में हुआ था परन्तु वह अधिकतर भारत में ही रहीं तथा अपने जीते जी सदा ब्रिटिश शासकों की मनमानियों व अत्याचारों का विरोध एवं भारत को स्वतंत्र किए जाने का समर्थन करती रहीं। वह अपनी जन्म-भूमि आयरलैण्ड को भी इंग्लैण्ड से स्वतंत्र करवाना चाहतीं थीं। उनका दिल सदा भारत के लिए ही धड़कता रहा और अपने अंतिम श्वास तक वह यहीं पर रहीं। वह समाज सुधारक, राजनीति सुधारक, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक कार्यकर्ता, लेखक तथा बहुत ही बढ़िया वक्ता थीं। सब कुछ ठीक चल रहा था। वह बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। परन्तु उन्होंने जब देखा कि स्वयं को धार्मिक कहलाने वाले लोग दो प्रकार का चेहरा अपने साथ लेकर घूमते हैं, लोगों को दिखलाने के लिए हाथी जैसे दांत रखते हैं और खाने के लिए उनके दांत अलग होते हैं, महिलाओं की बिल्कुल कद्र नहीं करते हैं - तो वह चर्च एवं उसके नेताओं की भी तीखी आलोचना करने लगीं थीं। दरअसल, ग़लत बात उन्हें कभी बर्दाश्त नहीं होती थी।


केवल छः वर्ष चला एक पादरी के साथ हुई ऐनी बेसैंट का विवाह

ऐनी बेसैन्ट का जन्म 1 अक्तूबर, 1847 को लन्दन में एक आयरिश परिवार में हुआ था। 20 वर्ष की आयु में अर्थात 1867 को उनका विवाह एक पादरी फ्ऱैंक बेसैन्ट से हो गया था। उनके दो बच्चे थे परन्तु पति-पत्नी में विचारों के बहुत अधिक मतभेद होने के कारण उन्होंने 1873 में कानूनी रूप से तलाक ले लिया था। उसके बाद वह एक बहुत ही बढ़िया वक्ता बन कर उभरने लगीं।


एक पुस्तक लिखने पर ब्रिटिश शासकों ने कर दिया था ऐनी बेसैंट पर मुकद्दमा

ऐनी बेसैंट ने नैश्नल सैकुलर सोसायटी के साथ कार्य करना प्रारंभ कर दिया तथा चार्ल्स ब्रैडलॉअ की मित्र बन गईं। 1877 में उन दोनों पर सरकार ने मुकद्दमा ठोंक दिया क्योंकि उन्होंने चार्ल्स नोल्टन पर एक पुस्तक प्रकाशित की थी, जो उस समय बच्चों के जन्म पर नियंत्रण करने का अभियान चलाया करते थे। उसके बाद वे प्रसिद्ध हो गए तथा ब्रैडलॉअ तो 1880 में नॉथएम्पटन के एम.पी. भी चुने गए। इस बीच श्रीमति ऐनी बेसैन्ट का रुझान मार्क्सवाद की ओर हो गया। वह लन्डन स्कूल बोर्ड के लिए टॉवर हैमलैट्स से चुनीं गईं। उन्हें सब से अधिक मत प्राप्त हुए थे, जबकि उन दिनों बहुत कम महिलाओं को मतदान हेतु योग्य माना जाता था।


बनारस सैन्ट्रल हिन्दु कॉलेज स्थापित करने में सहायता की

फिर वह भारत आ गईं। 1898 में उन्होंने बनारस (वाराणसी) सैन्ट्रल हिन्दु कॉलेज स्थापित करने में सहायता की। इसी प्रकार 1922 में उन्होंने हैदराबाद (सिन्ध) नैश्नल कॉलेजिएट बोर्ड स्थापित करने में भी मदद की। 1902 मेें उन्होंने ‘इन्टर ऑर्डर ऑफ़ को-फ्ऱीमैसनरी, ली ड्रोएट ह्यूमेन’ की प्रथम अंतर्राष्ट्रीय लॉज भी स्थापित की थी और उन्होंने ब्रिटिश राज्य के अधीन आने वाले अनेकों देशों में इसकी शाखाएं स्थापित कीं। 1907 में वह थ्योसोफ़िकल सोसायटी (थ्योसोफ़ी में परमेश्वर एवं आत्मा का ज्ञान प्राप्त किया जाता है) की अध्यक्ष बनीं, जिसका अंतर्राष्ट्रीय मुख्यायलय अद्यार, मद्रास (चेन्नई) में था।


भारत में होम रूल लीग’ प्रारंभ करने में मदद की, चाहतीं थीं कि भारत स्वतंत्र हो

श्रीमति ऐनी बेसैन्ट भारत की राजनीति में सक्रिय हो गईं तथा इण्डियन नैश्नल कांग्रेस में शामिल हो गईं। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के साथ ही उन्होंने भारत में लोकतंत्र एवं स्वराज की स्थापना हेतु ‘होम रूल लीग’ प्रारंभ करने में मदद की। वह चाहतीं थीं कि भारत एक स्वतंत्र देश हो, चाहे उस पर दिखावे के लिए महारानी का राज्य भी बना रहे; जैसे कि कैनेडा, आस्ट्रेलिया, न्यू ज़ीलैण्ड जैसे देश आज भी महारानी या इंग्लैण्ड के क्राऊन के अधीन आते हैं और जहां पर किसी समय पूरी तरह इंग्लैण्ड का राज्य था। उसे डोमिनियन प्रक्रिया कहा जाता है; वैसे यह प्रक्रिया भी 1953 में समाप्त हो गई थी। अब इंग्लैण्ड की महारानी ऐसे देशों की संवैधानिक सम्राट (मोनार्क) हैं।


1917 में ऐनी बेसैंट बनीं इण्डियन नैश्नल कांग्रेस की अध्यक्षा

1917 में श्रीमति ऐनी बेसैन्ट को इण्डियन नैश्नल कांग्रेस की अध्यक्षा चुन लिया गया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना अभियान जारी रखा और थ्योसोफ़ी से संबंधित कार्य भी 20 सितम्बर, 1933 को अपने निधन तक करती रहीं।

श्रीमति ऐनी बेसैन्ट को अपनी आयरिश विरास्त पर बहुत गर्व था। जब उनके पिता का देहांत हुआ, तो वह केवल पांच वर्ष की थीं और उनका परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया था। तब उनकी माँ ने हैरो स्कूल के लड़कों के लिए एक बोर्डिंग हाऊस चला कर अपने परिवार का ख़र्चा चलाया। अपनी बेटी ऐनी का ख़र्च देने में भी जब वह सक्षम न रहीं तो उन्होंने ऐनी को अपनी एक सहेली ऐलेन मेरियट के हवाले कर दिया। श्रीमति मेरियट ने ऐनी को अच्छी शिक्षा दिलवाई। छोटी सी आयु में ही उन्होंने समस्त यूरोप घूम लिया था। उन पर सदा रोमन कैथोलिक प्रभाव बना रहा।


बनारस हिन्दु युनिवर्सिटी की शुरुआत करवाई ऐनी बेसैंट ने

अप्रैल 1911 में श्रीमति ऐनी बेसैन्ट पण्डित मदन मोहन मालवीय से मिलीं तथा उन्होंने बनारस में एक साझी हिन्दु युनिवर्सिटी बनवाने हेतु कार्य करने का निर्णय लिया। सैन्ट्रल हिन्दु कॉलेज के ट्रस्टीज़ भी इस बात से सहमत थे। भारत सरकार ने शर्त रखी कि यह कॉलेज भी इस युनिवर्सिटी का ही एक भाग होना चाहिए। इस प्रकार 1 अक्तूबर, 1917 से सैन्ट्रल हिन्दु कॉलेज के परिसर से ही बनारस हिन्दु युनिवर्सिटी की शुरुआत हुई।


ऐनी बेसैंट के ज़ोरदार विरोध के कारण अंग्रेज़ सरकार को 1917 में भारत को आज़ाद करने की घोषणा करनी पड़ी

1916 में श्रीमति ऐनी बेसैन्ट ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ मिल कर ‘ऑल इण्डिया होम रूल’ की शुरुआत की। उन्होंने यहां पर भारत को वैसी ही तर्ज़ पर आज़ाद करने से संबंधित मांगें रखीं, जैसे आयरलैण्ड में रखीं जाती थीं। जून 1917 को ब्रिटिश शासकों ने उन्हें ग्रिफ़्तार कर लिया। कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग दोनों ने इकट्ठे हो कर उनकी रिहाई के लिए रोष प्रदर्शन किए। ऐसे प्रदर्शनों से घबरा कर अंग्रेज़ हकूमत को यह घोषित करना पड़ा कि वह एक दिन भारत की अपनी सरकार स्थापित करने वाले हैं और उस घोषणा का समस्त भारत में स्वागत हुआ। उसके बाद ही श्रीमति ऐनी बेसैन्ट को सितम्बर 1917 को रिहा किया गया था। फिर वह इण्डियन नैश्नल कांग्रेस की एक वर्ष के लिए अध्यक्ष चुनीं गईं।


गांधी जी ने भी अंग्रेज़ सरकार को पत्र लिख कर की थी ऐनी बेसैंट को रिहा करने की मांग

महात्मा गांधी जी ने भी तब अंग्रेज़ सरकार को एक पत्र लिख कर श्रीमति ऐनी बेसैन्ट को रिहा करने की मांग की थी। 1931 में वह बीमार पड़ गईं, तब वह भारत में ही थीं। 1933 में 85 वर्ष की आयु में उनका निधन मद्रास प्रैज़ीडैंसी के नगर अद्यार में हुआ।

उनके देहांत के समय उनकी एक पुत्री मेबल जीवित थीं। उनके सहयोगियों जिद्दू कृष्णामूर्ति, आल्डस हक्सले, गुइडो फ़रनांडो एवं रोज़ालिण्ड राजागोपाल ने कैलिफ़ोर्निया में हैपी वैली स्कूल की स्थापना की जिसे ‘बेसैन्ट हिल स्कूल ऑफ़ हैपी वैली’ का नाम दिया।

श्रीमति ऐनी बेसैन्ट द्वारा लिखित पुस्तकों की संख्या 55 से भी अधिक है। उन्होंने केवल यीशु मसीह, चर्च एवं मसीहियत पर ही नहीं, अपितु श्रीमदभगवद गीता, कर्म सिद्धांत, योगा, हज़रत मोहम्मद साहिब, महिला अधिकारों व मार्क्सवाद संबंधी भी अनेक पुस्तकें लिखीं।


Mehtab-Ud-Din


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