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Jesus Cross

भारत में मसीहियत के आगमन के तथ्य (प्रैसबाइटिरियन मिशनरियों के दृष्टिकोण से), भारत का कुछ और मसीही इतिहास



 




 


1831 में बम्बई पहुंचे थे पहले प्रैसबाइटिरियन मिशनरी

आर्नल्ड फ्ऱैंक, आर्थर जुडसन ब्राऊन, जॉर्ज थॉम्पसन ब्राऊन, जेम्स ए. कॉग्सवैल, लैटूरेट कैनेथ स्कॉट, सैमुएल, ह्यू मॉफ़ेट, एल्फ्ऱैड, पादरी ई.सी. स्कॉट, अर्नैस्ट ट्राईस थॉम्पसन जैसे अनेक अमेरिकन मिशनरियों व पादरी साहिबान ने अपनी-अपनी पुस्तकों में भारत में आने वाले विभिन्न प्रैसबाइटिरियन मसीही मिशनरियों का वर्णन किया है। आज भारत में लाखों मसीही परिवार ऐसे हैं, जिनके पूर्वजों को अमेरिकन, न्यूज़ीलैण्ड व ऑस्ट्रेलिया के पादरी या मिशनरी साहिबान ने ही आ कर सबसे पहले यीशु मसीह के बारे में बताया था। उन्हीं विवरणों के अनुसारः

‘अमेरिकन बोर्ड ऑफ़ कमिशनर्स फ़ॉर फ़ॉरेन मिशन्ज़’ ने सबसे पहले प्रैसबाइटिरियन मिशनरी को 1831 में बम्बई (अब मुंबई) भेजा था। उनका नाम जॉर्ज वाशिंग्टन बौग्स था, जो अमेरिकन राज्य साऊथ कैरोलाइना के नगर यॉर्क में 20 जुलाई, 1796 को पैदा हुए थे। उन्होंने 1827 में एमहर्स्ट कॉलेज से ग्रैजुएशन की और फिर 1828 से लेकर 1831 तक उन्होंने प्रिंसटन सैमिनरी में रह कर प्रशिक्षण लिया था। उन्होंने भारत पहुंच कर 1832 से लेकर 1838 तक वर्तमान महाराष्ट्र के अहमदनगर में सेवा की थी। फिर 1841 से लेकर 1871 तक वह साऊथ कैरोलाइना में विभिन्न धार्मिक पदों पर कार्यरत रहे। उनका निधन 14 अगस्त, 1871 को हुआ था।


अमेरिका व इंग्लैण्ड के मसीही मिशनरियों ने की भारत में सेवा

24 नवम्बर, 1802 ई. को अमेरिकन राज्य पैनसिल्वानिया के नगर लिगोनियर वैली में पैदा हुए पादरी जेम्स विल्सन व उनकी पत्नी ने वर्तमान हिमाचल प्रदेश के स्पाटू व उत्तर प्रदेश के महानगर अलाहाबाद में सेवा की थी। उन्होंने 1830 में जैफ़रसन कॉलेज से ग्रैजुएशान की और 1833 में ऐलेगहेनी थ्योलोजिक सैमिनरी से धार्मिक शिक्षा उतीर्ण की। वह 20 अक्तूबर, 1834 को विधिवत् पादरी नियुक्त हुए थे। वह नवम्बर 1834 में अमेरिका से एक समुद्री जहाज़ में रवाना हुए थे और फ़रवरी 1835 में कलकत्ता पहुंचे थे। उन्होंने 1834 से लेकर 1851 तक स्पाटू में फिर अलाहाबाद में काम किया। फिर 1852 में वह अमेरिका लौट गए और वर्जिनिया, टेनैसी एवं जॉर्जिया जैसे कई राज्यों में धार्मिक सेवा की।

1801 में स्कॉटलैण्ड में पैदा हुए जेम्स मैकईवेन 1835 से लेकर 1838 तक अलाहाबाद में मसीही प्रचार किया। वह प्रिंसटन थ्योलोजिकल सैमिनरी में पढ़ने के बाद 24 अप्रैल, 1834 को पादरी नियुक्त हुए थे। उन्होंने अलाहाबाद में एक मसीही मिशन की भी स्थापना की थी, जो समस्त भारत की सबसे बड़े मिशन केन्द्रों में से एक सिद्ध हुई। उन्होंने लड़कियों के लिए एक बोर्डिंग स्कूल तथा एक चर्च खोला। ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें 1838 में अमेरिका वापिस लौटना पड़ा। भारत में उनका साथ सदा उनकी पत्नी ने दिया। 1840 में वह दिल्ली चर्च के पादरी नियुक्त हुए। 11 मार्च, 1845 को न्यू यार्क (अमेरिका) में उनका निधन हो गया।


पादरी डॉ. एण्ड्रयू गौर्डन के नेतृत्त्व में एक बड़े दलित वर्ग ने अपनाया यीशु मसीह को

अमेरिकन राज्य कैन्टकी स्थित वाशिंगटन काऊंटी में 3 मार्च, 1821 को पैदा हुए पादरी चार्ल्स विलियम फ़ोरमैन ने 1847 से लेकर 1894 तक लाहौर चर्च में सेवा की। उन्होंने बंग महल स्कूल की स्थापना भी की थी, जो उत्तर भारत का अंग्रेज़ी माध्यम का पहला स्कूल था। यह स्कूल 1865 में कॉलेज बन गया जो बाद में फोरमैन क्रिस्चियन कॉलेज कहलाया। उनकी पहली पत्नी मारग्रेट न्यूटन से उनके 7 बच्चे थे। 1878 में जब श्रीमति मारग्रेट का निधन हो गया। 1882 में उन्होंने जॉर्जिना लॉकहार्ट नामक महिला से विवाह रचाया, जिनसे उनके 3 बच्चे हुए। उनके चार बच्चे भी प्रैसबाइटिरियन मिशनरी के तौर पर भारत में कार्यरत रहे। पादरी फ़ोरमैन का निधन 27 अगस्त, 1894 में लाहौर में हुआ।

पादरी जौन एस. वुडसाईड ने 1848 से लेकर 1908 तक देहरादून (अब उत्तराखण्ड) के चर्च में सेवा की। पहली पत्नी मारग्रेट मूर से उनका साथ 1887 में उनके निधन तक रहा। दूसरी पत्नी एमिली शरमन (जो पादरी एडवर्ड एच. लीविटे) ने उनके साथ 1856 से लेकर 1857 तथा फिर 1890 से लेकर 1908 तक यहीं पर सेवा की। 17 सितम्बर, 1828 को अमेरिका में पैदा हुए पादरी डॉ. एण्ड्रयू गौर्डन 13 फ़रवरी, 1855 को कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुंचे थे। वह 8 अगस्त, 1855 को स्यालकोट (अब पाकिस्तान) पहुंचे तथा उन्होंने मिशनरी कार्य प्रारंभ किया। उनके कार्यकाल में बड़ी संख्या में दलित वर्ग मसीही बना। डॉ. जॉन जूनियर अपनी पत्नी साराह ई. विगफ़ाल के साथ 1858 में अपनी पत्नी के साथ 1858 में भारत आए थे। 1860 में वह प्रैसबाइटिरियन मसीही मिशन से जुड़े और फिर उन्होंने उसी वर्ष से लेकर 1880 तक स्पाटू (अब हिमाचल प्रदेश राज्य में) में मिशन कार्य किया। उन्होंने कुष्ट रोगियों के लिए एक आश्रम खोला, जो भारत के सब से विशाल कुष्ट आश्रमों से एक बन गया। डॉ. जॉन जूनियर भारत में पहले मैडिकल मिशनरी भी थे, जिन्होंने गांवों में सेवा की।


उत्तर प्रदेश में कई विदेशी मिशनरियों की हुई थी 1857 के ग़दर में हत्या

डॉ. हैनरी आर. विल्सन ने 1837 से लेकर 1846 तक फ़रुख़ाबाद में मसीही केन्द्र की स्थापना की, परन्तु 1846 में उन्हें ख़राब स्वास्थ्य के कारण अमेरिका लौटना पड़ा। पादरी एडॉल्फ़ रुडौल्फ़ ने 1848 से लेकर 1888 तक लुधियाना में सेवा की। उनकी पहली पत्नी का साथ 1849 तक व दूसरी पत्नी का साथ 1884 तक रहा। वह थोड़ा मैडिकल कार्य भी जानते थे और बीमारों की सेवा करते रहते थे। 1847 में सिक्खों व ब्रिटिश के बीच युद्ध के कारण उनका कार्य कुछ समय तक प्रभावित हुआ था।

फतेहगढ़ (उत्तर प्रदेश) में 1850 से लेकर 1857 तक अपनी पत्नी मारिया आई. बिंगहैम के साथ मसीही मिशनरी कार्य में संलग्न रहे पादरी डेविड ई. कैम्पबैल 15 जुलाई, 1857 को सैनिकों के विद्रोह के दौरान वह अपने परिवार सहित मारे गए थे। उस समय उनके साथ उनके दो बच्चे भी थे। फ़तेहगढ़ में ही मसीही प्रचार कार्य हेतु सक्रिय रहे पादरी जॉन ई. फ्ऱीमैन भी अपनी दूसरी पत्नी एलिज़ाबैथ व्रेदनबरा के साथ 15 जुलाई, 1857 को सैन्य बग़ावत के दौरान मारे गए थे। उनकी पहली पत्नी मेरी ए. बीच का निधन 1850 में हो गया था।

15 जुलाईी, 1857 को फ़तेहगढ़ में ही पादरी एल्बर्ट ओ. जॉनसन व उनकी पत्नी अमान्दा जे. गिल भी सैनिकों के विद्रोह के दौरान मारे गए थे। उसी दिन पादरी रॉबर्ट मैकम्युलिन तथा उनकी पत्नी साराह सी. पीयरसन की भी हत्या कर दी गई थी। उस भीषण हत्याकाण्ड के स्थान पर एक यादगारी चर्च भी बाद में निर्मित किया गया था। वहां पर संगमरमर की एक दीवार बनवाई गई थी, जिस पर इन सभी प्रैसबाइटिरियन शहीद मसीही मिशनरियों के नाम दर्ज हैं।

अंग्रेज़ों ने पंजाब के अंतिम महाराजा दलीप सिंह को भी 1850 से लेकर 1854 तक फ़तेहगढ़ (उत्तर प्रदेश) में ही रखा था।


पोलैण्ड के यहूदी लोइन्थल ईसाडोर अमेरिका में बने विधिवत् पादरी

पोलैण्ड के एक यहूदी लोइन्थल ईसाडोर (1829-1864) अल्पायु में ही अमेरिका चले गए थे। 1851 में उन्होंने सदा के लिए मसीहियत को ग्रहण कर लिया था। फिर उन्होंने प्रिंसटन सैमिनरी से उन्होंने मसीही धर्म का विस्तृत अध्ययन किया और 1856 में विधिवत् पादरी नियुक्त हुए। वह भाषा विशेषज्ञ थे। उन्होंने पवित्र बाईबल के नए नियम का अफ़ग़ानिस्तान की पश्तो भाषा में अनुवाद भी किया था। परन्तु 1864 में एक चौकीदार ने उन्हें कोई चोर समझ कर गोली मार दी थी और उनका निधन हो गया था।


भारत में कई दश्कों तक सेवा की ईसाडोर दंपत्ति ने

पादरी विलियम एफ़. जॉनसन व उनकी पत्नी रिचेल एल. केर ने पहले 1860 से लेकर 1884 तथा फिर 1891 से लेकर 1922 तक एटावा (उत्तर प्रदेश) के चर्च में सेवा की थी। श्रीमति रिचेल ने 1888 तक अर्थात अपने देहांत तक मसीही सेवा की थी।

इसी प्रकार पादरी जोसेफ़ पीटर 1844 में अमेरिका से पंजाब के नगर लुधियाना आए थे परन्तु ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें 1850 में वापिस जाना पड़ा था। पादरी जैसे एम. जेमिसन 1846 से लेकर 1850 तक भारत रहे थे। पादरी लेवी जौवियर, डॉ. डबल्यू ग्रीन, पादरी जे. काल्डवैल, जॉन कोलमैन, एच. मैकॉले, पादरी जे.जे. वाल्श, पादरी ऑग्सट्स एच. सीली भी उन्हीं दिनों में भारत आए थे परन्तु उनके आने या जाने का कोई सही वर्ष ज्ञात नहीं है। पादरी ए. अलैग्ज़ैण्डर हौज अमेरिकन राज्य न्यू ब्रन्सविक से 1848 में भारत आए थे परन्तु ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें दो वर्षों के पश्चात् ही 1850 में अमेरिका वापिस जाना पड़ा था।


बहुत से विदेशी मिशनरियों को रास नहीं आया भारतीय जलवायु

पादरी एम.जे. क्रेग एक अध्यापक के तौर पर भारत आए थे परन्तु 1846 में उनका निधन हो गया था। तब उनकी पत्नी व उनके बच्चों को अमेरिका लौटना पड़ा था। पादरीर जे. पोर्टर को 1848 में अपनी पत्नी के निधन के पश्चात् अपने बच्चों के पास अमेरिका लौटना पड़ा था।

पादरी जॉन सी. रैन्किन 1844 में अलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) आए थे परन्तु ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें 1847 में भारत वापिस जाना पड़ा था।

श्रीमति एल. स्कॉट एक क्लर्क के तौर पर भारत आईं थीं परन्तु ख़राब स्वास्थ्य के चलते 1847 में उन्हें अमेरिका लौटना पड़ा था। इसी तरह मिस वैण्डेवर भी अध्यापिका के तौर पर भारत आईं थीं परन्तु उन्हें भी ख़राब सेहत के कारण अमेरिका वापिस जाना पड़ा था। पादरी डेविड इरविंग 1850 में अमेरिका लौट गए थे। पादरी रॉबर्ट 1850 में अलाहाबाद में आए थे।

पादरी जेम्स विल्सन ने अलाहाबाद में मसीही सेवा की थी। वह नॉर्थ इण्डिया बाईबल सोसायटी के सचिव थे। उन्होंने ही नए नियम के उर्दू भाषा में पहले हुए अनुवाद में कुछ आवश्यक संशोधन किए थे। जोसेफ़ ओवेन क्लर्क के तौर पर भारत आए थे। पादरी जे. रेअ को ख़राब स्वास्थ्य के चलते 1850 में अमेरिका लौटना पड़ा था।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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