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Jesus Cross

मुंबई के पास शहादत पाने वाले फ्ऱांसीसी मसीही मिशनरी सन्त थॉमस



 




 


प्रत्येक वर्ष 9 अप्रैल को किया जाता है टॉलेनटीनो के सन्त थॉमस को याद

टॉलेनटीनो के सन्त थॉमस एक फ्ऱांसीसी मसीही मिशनरी थे, जिन्हें 8 अप्रैल, 1321 ई. को भारत के महानगर बम्बई (अब मुंबई) के पास थाने में उनके तीन साथियों सहित हज़रत मोहम्मद साहिब के विरुद्ध अपशब्द बोलने के कथित अपराध के कारण शहीद कर दिया गया था। उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा बाकायदा सन्त का दर्जा प्राप्त है। उनसे संबंधित वस्तुओं को इटली के फ्ऱांसिस्कन मसीही मिशनरी ओडरिक (पौड्रिक) भारत से चीन के कुआनज़ू तथा इटली के टॉलेनटीनो ले गए थे। टॉलेनटीनो के सन्त थॉमस की याद में इटली ही नहीं, महाराष्ट्र में मुंबई के पास नगर थाने व विश्व के अन्य भी बहुत से स्थानों पर प्रत्येक वर्ष 9 अप्रैल को विशेष प्रीति-भोज का आयोजन किया जाता है। थाने (मुंबई) क्षेत्र के कुछ रोमन कैथोलिक मसीही अब भी ‘थाने के इन चार मसीही शहीदों’ को याद करते हैं।


कई देशों में गए थे पादरी थॉमस

पादरी थॉमस का जन्म टॉलेनटीनो में 1250 से 1260 के मध्य हुआ था। इसी लिए उनका जन्म वर्ष 1255 मान लिया गया है। वह छोटी आयु में ही मसीही मिशनरी (‘फ्ऱायर’ - जिन्हें यह संकल्प लेना पड़ता है कि वे सारी उम्र अवविाहित रहेंगे और सदा ग़रीबी में ही जीवन व्यतीत करेंगे तथा भिक्षु की तरह इधर-उधर घूम कर यीशु मसीह का प्रचार करेंगे) बन गए थे। वह टॉलेनटीनो के सन्त निकोलस के साथी थे। वह शाही ढंग या ठाठ-बाठ से जीवन व्यतीत करने के सख़्त विरुद्ध थे; इतने विरुद्ध कि वह कई बार ऐसे लोगों के विरुद्ध अपनी ज़ोरदार आवाज़ उठा चुके थे, जो अपनी अमीरी का दिखावा करते थे। जिसके कारण उन्हें दो बार जेल की सज़ा भी भुगतनी पड़ी थी। एक नए मिनिस्टर जनरी रेमण्ड गोडफ्ऱॉय (जो आध्यात्मिक अर्थात रुहानी लोगों का सम्मान किया करते थे) के दख़ल के कारण उन्हें जल्दी ही रिहा कर दिया गया था। थॉमस उसके पश्चात् एन्जलो डा क्लारीनो, मार्को डा मौन्टेल्युपौन, पीटरो डा मेसराता एवं एंजलो डा टॉलेनटीनो के साथ 1289 में लैस्सर आरमीनिया में मसीही प्रचार करने के लिए गए थे। 1291 में राजा हेथॉन-द्वितीय ने उन्हें रोम, पैरिस एवं लण्डन के शासकों के दरबारों में जा कर कुछ मुस्लिम विरोधियों का सामना करने हेतु सहायता मांगने के लिए भेजा। वह गए तो सही परन्तु इस कार्य में वह सफ़ल न हो सके और वह पूर्वी देशों की ओर चले गए। आरमीनिया व पर्सिया में मसीही प्रचार करने के पश्चात् 1302 में वह अपने 12 साथियों के साथ लौट आए। अपने उस अभियान के दौरान उन्होंने काऊँसिल ऑफ़ सिस में भाग लिया, जहां पर उन्होंने आरमीनिया के मसीही लोगों से काफ़ी विचार-विमर्श किए और उन्हीं विचार-चर्चाओं के कारण ही 1307 ई. में आरमीनियाई एवं रोमन कैथोलिक गिर्जाघर एकजुट हो पाए थे।


कई देशों की यात्रा करते हुए गुजरात पहुंचे

जब पादरी थॉमस पर्सिया (वर्तमान ईरान) में थे, तो 1305 एवं 1306 में चीन में एक मसीही भिक्षु मौंटेकॉर्विनो के जॉन के दो पत्र वहां पहुंचे। वे पत्र रोम तक पहुंचाने के लिए पादरी थॉमस निकल पड़े और वे पत्र 1307 में उन्होंने पहुंचाए। वहां पर उन्हें तत्कालीन पोप की उपस्थिति में बहुत से पादरी साहिबान को संबोधित करते हुए चीन में पादरी जॉन के कार्यों की सराहना की और उनकी मिशन को विकसित करने हेतु उनकी सहायता करने की अपील की। तब पोप ने खानबालिक ़(जो अब चीन की राजधानी बीजिंग में है) के आर्कबिशप जौन एवं सात अन्य मसीही भिक्षुओं के साथ चीन भेजा।

1320 तक पादरी थॉमस का कोई अता-पता नहीं लग पाया परन्तु ऐसा माना जाता है कि वह उस समय के दौरान भारत या चीन में कोई परिश्रम वाला काम किया करते थे।

फिर 1320 में वह अपने मसीही साथियों पैडुआ के जेम्स एवं सीएना के पीटर तथा सेवरक के डॉमिनिकन जॉर्डन तथा एक आम व्यक्ति देमित्रियो डा टिफ़्लिज़ के साथ रवाना हुए। देमित्रियो को कई भाषाओं का ज्ञान था और वही उस मसीही प्रचारकों के लिए दुभाषिए का कार्य करते थे। एक तूफ़ान के कारण उन्हें बम्बई के पास सैल्सटे टापू पर थाने में ठहरना पड़ा। वहां पर स्थानीय नैस्टोरियन मसीही लोगों ने उनका स्वागत किया। जॉर्डन उन्हें वहां छोड़ कर भरुच (गुजरात) में प्रचार करने के लिए चले गए। उन्हें वहीं मालूम हुआ कि देमित्रियो एवं अन्य साथियों को थाने में ग्रिफ़्तार कर लिया गया है।


पादरी थॉमस के साथ तीन और विदेशी मिशनरी भी हुए थे शहीद

जिस परिवार में वे विदेशी मसीही मिशनरी तब रह रहे थे, उसमें पति ने अपने पत्नी के साथ मार-पीट की और वे उन्हें छुड़ाने लगे। जब वह महिला अपनी शिकायत लेकर काज़ी के पास पहुंची, तो उसने वहां पर बताया कि चार धार्मिक लोग उस मारपीट के चश्मदीद गवाह (प्रत्यक्षदर्शी) हैं। तब उन मसीही प्रचारकों को भी वहां बुला लिया गया। तब थॉमस, जेम्स एवं देमित्रियो अदालत में प्रस्तुत होने के लिए चले गए, जबकि पीटर घर की रखवाली हेतु वहीं रह गए। उधर अदालत में काज़ी ने पादरी थॉमस से हज़रत मोहम्मद साहिब संबंधी विचार जानने चाहे। पादरी थॉमस ने उसका उत्तर कुछ ठीक ढंग से नहीं दिया (क्योंकि वह बोलते तो शुरु से ही कड़वा थे और इसी कारण अपने स्वयं के देश में भी जेल की सज़ा काट चुके थे), जिसे काज़ी ने ‘हज़रत मोहम्मद की निंदा’ माना और उन्हें मृत्यु-दण्ड सुना दिया। कुछ विद्वान अनुसंधानकर्ताओं का यह भी मानना है कि पहले पादरी थॉमस पर बहुत अधिक अत्याचार ढाहे गए और फिर 8 अप्रैल, 1321 को उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया। पीटर को तीन के पश्चात् मौत के घाट उतारा गया।

जॉर्डन काफ़ी देरी से वहां पहुंच पाए परन्तु तब तक तो सब कुछ समाप्त हो चुका था। फिर उन्होंने 1326 में उन सभी के मृत शरीर सुपेरा स्थित चर्च में पहुंचाए। पोर्डिनोन के पादरी ओडरिक पादरी थॉमस की खोपड़ी को पहले खाम्बालिक एवं बाद में यूरोप ले गए। 14वीं शताब्दी ईसवी में तत्कालीन पोप बोनीफ़ाईस-नवें की अनुमति से शहीद पादरी थॉमस की याद में एक चर्च की स्थापना टॉलेनटीनो में की गई।


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