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भारत के पहले रोमन कैथोलिक डायोसीज़ के पहले बिशप व फ्ऱांस के मसीही मिशनरी जॉर्डैनस
फ्ऱांस से 1321 के आस-पास भारत पहुंचे थे जॉर्डैनस
फ्ऱांस के मसीही मिशनरी थे जॉर्डैनस, जो 14वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत आए थे। वह भारत में कब आए थे, इसकी पक्की जानकारी तो उपलब्ध नहीं है परन्तु इतना अवश्य है कि सन् 1321 में वह भारत में ही थे। उन्हें सेवरक का जॉर्डन, कैटालोनिया का जॉर्डन भी कहा जाता है। वह डौमिनिक मसीही मिशनरी थे, जिन्हें एशिया का खोजी भी कहा जाता है। वह भारत के वर्तमान राज्य केरल के कुइलॉन (अब कोल्लम) डायोसीज़ के पहले रोमन कैथोलिक बिशप थे, जो भारत का पहला कैथोलिक डायोसीज़ भी है।
जॉर्डैनस का जन्म दक्षिण फ्ऱांस के नगर सेवरक-ली-चैट्यू में 1280 ई. हुआ था। भारत सहित कुछ अन्य पूर्वी देशों में उनके साथ टॉलेनटिनो के सेंट थॉमस भी साथ थे और वह दोनों यूनान देश से होते हुए भारत पहुंचे थे। अनुसंधानकर्ताओं का एक गुट यह भी मानता है कि शायद सेंट थॉमस तब जॉर्डैनस के साथ नहीं थे।
इस्लामिक अदालत के मृत्यु दण्ड से बाल-बाल बचे थे जॉर्डैनस
जॉर्डैनस के साथ बम्बई के समीप सैलेस्टे टापू पर वर्तमान थाने नगर में उनके साथ 8 व 11 अप्रैल, 1321 को बुरी घटना घटित हुई थी, जब टॉलेनटिनो के सेंट थॉमस व अन्य साथी शहीद हो गए थे। जॉर्डैनस वहां से किसी तरह बच निकले थे। दरअसल वहां पर एक मुस्लिम अदालत के समक्ष धार्मिक मामले पर बहस कर रहे थे कि सेंट थॉमस को वहां पर हज़रत मुहम्म्द साहिब की शान में गुस्ताख़ी करने के अपराध में उनका सर कलम करने की सज़ा सुना दी गई थी। उन पर बहुत अत्याचार करते हुए शहीद किया गया था। उनके कुछ अन्य मसीही साथियों को अगले दिन शहीद कर दिया गया था।
समस्त भारतीय उप-महाद्वीप था बिशप जॉर्डैनस का अधिकर-क्षेत्र
बिशप जॉर्डैनस 1324 से लेकर 1328 के बीच कोल्लम गए और उन्होंने अपने भविष्य के सभी कार्य वहीं पर करने का निर्णय लिया था। उन्हें पोप जौन-12वें ने 1328 में बिशप नियुक्त किया था और उन्हें 21 अगस्त, 1329 को कोल्लम (कुइलौन या कोलम्बम) में कार्य करने का आदेश मिला था। उनका अधिकार-क्षेत्र भारत के साथ-साथ वर्तमान पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा (अब म्यांमार) एवं श्री लंका तक था।
बहुत प्रसिद्ध हुई बिशप जॉर्डैनस द्वारा लिखित पुस्तक ‘मिराबिलिया’
बिशप जॉर्डैनस द्वारा लिखित पुस्तक ‘मिराबिलिया’ बहुत प्रसिद्ध हुई थी, जिसमें 1329-1330 के भारत के विभिन्न क्षेत्रों, यहां के उत्पादों, जलवायु, लोगों के रहन-सहन के ढंग, रीति-रिवाजों, पशु-पक्षियों तक का विवरण मौजूद है। बहुत से अनुसंधानकर्ता तो उनके इन विवरणों को मार्को पोलो के वर्णनों से भी बेहतर मानते हैं।
8 अप्रैल, 1330 के बाद बिशप जॉर्डैनस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। इसी लिए वर्ष 1330 ही उनके निधन का वर्ष माना जा सकता है।
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