अमेरिकन मसीही मिशन सदस्यों के विरोध के बावजूद भारत पहुंचने वाले शारलौट ‘सुज़ैना’ हेज़न ऐटली
अमेरिका से भारत आने वाली पहली अविवाहित महिला मसीही मिशनरी शारलौट ‘सुज़ैना’ हेज़न ऐटली
शारलौट ‘सुज़ैना’ हेज़न ऐटली (जिन्हें ‘शारलौट व्हाईट’ के नाम से अधिक जाना जाता है) अमेरिका से 1816 में भारत आने वाली पहली अविवाहित महिला मसीही मिशनरी थीं। वह ‘बैप्टिस्ट बोर्ड ऑफ़ फ़ॉरेन मिशन्ज़’ की ओर से आईं थीं। सुश्री शारलौट व्हाईट का जन्म 13 जुलाई, 1782 को अमेरिकी राज्य पैनसिल्वानिया के नगर लैनकास्टर में हुआ था। उनके पिता श्री विलियम ऑगस्टस ऐटली उस समय अदालत में न्यायधीश थे। उनकी माँ का नाम ऐस्तर बाऊस सेअरे था।
पति व बच्चे के निधन उपरान्त जुड़ीं बैप्टिस्ट चर्च से
सुश्री शारलौट व्हाईट ने वैसे विवाह तो 1803 में ही करवा लिया था परन्तु उनके पति नथानिएल हेज़न व्हाईट का निधन अगले ही वर्ष 1804 में हो गया था। उनके एक बच्चे का देहांत भी 1805 में हो गया था। फिर जब सुश्री शारलौट व्हाईट अकेली रह गईं, तो वह 1807 में मासाशूसैट्स राज्य के हेवरहिल नगर के फ़स्ट बैप्टिस्ट चर्च से जुड़ गईं।
मसीही मिशन बोर्ड के सदस्यों की आपत्ति के कारण सहायक बन कर भारत पहुंचीं शारलौट व्हाईट
तब ‘बैप्टिस्ट बोर्ड ऑफ़ फ़ॉरेन मिशन्ज़’ नामक मसीही मिशन नई-नई बनी थी और फिर जब सुश्री शारलौट व्हाईट की नियुक्ति भारत में भेजे जाने हेतु हुई, तो बोर्ड के बहुत से सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि केवल पुरुषों को ही मिशनरी नियुक्त किया जाना चाहिए। अतः सुश्री व्हाईट को केवल एक सहायक के तौर पर नियुक्त किया गया। उन्हें भारत आने वाले एक मिशनरी प्रिन्टर जॉर्ज हैनरी हाऊ की पत्नी की संगी/सहायक बनाया गया और साथ में यह शर्त भी रखी गई कि वह श्री जॉर्ज हाऊ या उनकी पत्नी पर आर्थिक बोझ नहीं बनेंगी, बल्कि अपना ख़र्च स्वयं उठाएंगी।
पटना के समीप दो मिशनरी स्कूलों का प्रबन्ध संभाला
सुश्री शारलौट व्हाईट भारत के नगर कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुंची थीं, परन्तु उन्होंने शीघ्र ही प्रिन्टर जॉर्ज हाऊ व उनकी पत्नी का साथ छोड़ दिया। उन्होंने इंग्लिश बैप्टिस्ट मिशनरी सोसायटी के मिशनरी जोशुआ रोवे से विवाह रचा लिया, जो कि विधुर थे। सुश्री शारलौट व्हाईट अब श्रीमति रोवे बन कर बैप्टिस्ट मिशनरी सोसायटी के साथ जुड़ चुकी थीं। इस जोड़ी ने पटना (अब भारत के राज्य बिहार की राजधानी) के समीप दीघा में दो मिशनरी स्कूलों का प्रबन्ध देखना प्रारंभ कर दिया।
भारतीय बच्चों हेतु लिखी एक विशेष ‘स्पैलिंग’ पुस्तक
सुश्री शारलौट व्हाईट ने बच्चों के लिए हिन्दुस्तानी भाषा की एक शब्द-जोड़ (स्पैलिंग) पुस्तक भी लिखी थी। 1823 में उनके द्वारा लिखा गया एक पत्र भी प्रकाशित किया गया; जिस में उन्होंने सीरामपुर कॉलेज के चार प्रमुख मिशनरियों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने कथित तौर पर सीरामपुर कॉलेज में बैप्टिस्ट मिशनरी सोसायटी की संपत्ति इधर-उधर कर दी है।
अमेरिका में क्रिस्मस के दिन निधन हुआ शारलौट व्हाईट का
श्री जोशुआ रोवे एवं सुश्री शारलौट व्हाईट के तीन बच्चे हुए। श्री जोशुआ का निधन 1823 ई. में हो गया और फिर सुश्री शारलौट व्हाईट 1826 तक भारत में रहीं और फिर अपने तीनों बच्चों के साथ अमेरिका लौट गईं। 1830 के दशक में अमेरिकी राज्य अल्बामा के नगर लाऊण्डसबोरो स्थित एक अकैडमी में वह अंग्रेज़ी, संगीत व ड्राइंग जैसे विषय पढ़ाने लगीं। वर्ष 1863 ई. में क्रिस्मस वाले दिन अर्थात 25 दिसम्बर को अमेरिकन राज्य पैनसिलवानिया के नगर फ़िलाडेल्फ़िया में सुश्री शारलौट व्हाईट का निधन हो गया।
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