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विभिन्न भारतीय चर्चों के विभाजन से परेशान रहे पादरी चार्ल्स थ्योफ़िल्स ईवाल्ड रहे्नियस



 




 


पादरी चार्ल्स थ्योफ़िल्स ईवाल्ड रहे्नियस द्वारा रचित तामिल भाषा की व्याकरण आज भी स्टीक पुस्तक

पादरी चार्ल्स थ्योफ़िल्स ईवाल्ड रहे्नियस जर्मनी में पैदा हुए चर्च मिशन सोसायटी (सी.एम.एस.) के मसीही मिशनरी थे, जो 1814 में भारत आए थे। उन्हें तामिल नाडू के नगर ‘तिरुनेलवेली का प्रेरित’ (तिरुनेलवेली का रसूल) भी कहा जाता है। वह चर्च मिशन सोसायटी के पहले मिशनरी थे, जो भारत आए थे। उनके द्वारा लिखी गई तामिल भाषा की व्याकरण आज भी स्टीक पुस्तक मानी जाती है। उन्होंने तामिल बाईबल के फ़ैब्रिशियस संस्करण में कुछ संशोधन करने के प्रयास भी किए थे।


1978 में तामिल नाडू के पादरी साहिबान ने लिया था पादरी रहे्नियस के पद चिन्हों पर चलने का संकल्प

1830 में पादरी रहे्नियस ने एंग्लिकन चर्च से अलग हो कर अपनी स्वयं की एक अलग क्लीसिया स्थापित की थी। चर्च ऑफ़ साऊथ इण्डिया (सी.एस.आई.) के तिरुनेलवेली डायोसीज़ के बिशप पादरी डैनियल अब्राहम ने 1978 में पहली बार पादरी रहे्नियस के योगदान को अधिकृत तौर पर मान्यता दी थी। तब उसी वर्ष तिरुनेलवेली डायोसीज़ के 200 वर्ष संपन्न होने पर एक विशेष समारोह के दौरान एंग्लिकन कम्युनियन द्वारा मान्यता देने की इस रीति को संपूर्ण किया गया था, जिस में एंग्लिकन बिशप स्टीफ़न नील सहित सभी बिशप्स एवं प्रैसबाइटिरियन मसीही रहनुमाओं ने पादरी रहे्नियस की कब्र के आगे प्रार्थना करते हुए संकल्प लिया था कि वह पादरी रहे्नियस के बताए पथ पर आगे बढ़ते हुए यीशु मसीह के लिए कार्य करते रहेंगे।


चार्ल्स रहे्नियस को जब लगा कि परमेश्वर उन्हें मसीही सेवा हेतु बुला रहे हैं

चार्ल्स रहे्नियस का जन्म 5 नवम्बर, 1790 ई. को हुआ था। उनके पिता ओटो गोट्टिलेब निकोलस रहे्नियस प्रूसियन सेना के एक अधिकारी थे। चार्ल्स रहे्नियस अभी केवल छः वर्ष के ही थे, जब उनके पिता का निधन हो गया था। चौदह वर्ष की आयु में उनके स्कूल की शिक्षा भी रुक गई थी और उन्हें अपने एक करीबी रिश्तेदार के कार्यालय में काम करना पड़ा था। उनहोंने ऐसे तीन वर्षों तक कार्य किया। फिर उनके एक और निःसंतान जानकार ने उन्हें अपने घर में रहने का आग्रह किया। वह काफ़ी अमीर थे और उनके घर में मिशनरी पत्रिकाएं बहुत आया करती थीं। चार्ल्स रहे्नियस उन्हें पढ़ते रहते थे। तब उन्हें लगता था कि जैसे परमेश्वर उसे इस कार्य के लिए बुला रहे हों।


‘संपत्ति का लालच’ भी रोक नहीं पाया था चार्ल्स रहे्नियस को

वह अमीर परिवार नहीं चाहता था कि रहे्नियस किसी मिशनरी कार्य के लिए बाहर जाएं, क्योंकि यह परिवार उन्हें बहुत प्यार करता था। परिवार में आंटी ने बहुत लालच दिए कि वह अपनी सारी संपत्ति उसके नाम छोड़ जाएंगे परन्तु वह नहीं माने। और इस प्रकार रहे्नियस शीघ्र ही लूथरन मसीही समुदाय के पादरी रहे्नियस बन गए। 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में चर्च मिशन सोसायटी को भारत के तरंगमबाड़ी में ‘डॉ. जॉन’ज़ स्कूल्ज़ ऑफ़ दि डैनिश मिशन’ के लिए मिशनरियों की तलाश थी। वहां के लिए पादरी रहे्नियस के साथ एक अन्य पादरी शनारे का चयन हो गया। पहले उन्हें इंग्लैण्ड में ही 18 माह का प्रशिक्षण दिया गया।


1814 में चेन्नई पहुंचे पादरी रहे्नियस

1813 में ब्रिटिश की संसद ने एक नया कानून पारित किया था, जिसके आधार पर मिशनरियों को भारत में प्रविष्ट होने की अनुमति मिल गई थी। दोनों की फ़रवरी 1814 में भारत जाने वाले समुद्री जहाज़ में जगह मिल गई। उन अन्तिम क्षणों में भी उस अमीर परिवार ने पादरी रहे्नियस को बहुत रोकना चाहा। उनके भाई ने भी एक पत्र लिखा कि माँ बहुत रो रही है। चर्च मिशनरी सोसायटी ने उनके लिए एक विदाई पार्टी रखी, जिसमें 2,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया था।


भारत आते ही समस्या

पादरी रहे्नियस की भारत तक की यात्रा भी कुछ यादगार ही रही क्योंकि रास्ते में मालदीव्ज़ के पास समुद्री जहाज़ को आग लग गई परन्तु सभी बाल-बाल बच गए। जैसे-तैसे करके वे मद्रास (अब चेन्नई) पहुंच गए। परन्तु वहां पहुंच कर उन्हें मालूम हुआ कि जिन डॉ. जॉन ने उन्हें भारत में सभी दिशा-निर्देश देने थे, उनका तो अचानक निधन हो गया है। तब पादरी रहे्नियस एवं पादरी शनारे ने मद्रास में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के पादरी के साथ किसी न किसी तरह दो सप्ताह बिताए। फिर दोनों तामिल भाषा सीखने के लिए तरंगमबाड़ी चले गए, जहां पांच माह तक उन्होंने प्रशिक्षण लिया। पादरी रहे्नियस तब मद्रास चले गए।


हिन्दु धर्म व रीति-रिवाजों का किया अध्ययन

चर्च मिशनरी सोसायटी ने तब उन्हें तरंगमबाड़ी में डैनिश मिशन की सहायता करने के स्थान पर मद्रास में अपनी स्वयं की मिशन में काम करने के निर्देश दिए। मद्रास के गवर्नर ने उन्हें मद्रास में कार्य करने की अनुमति दे दी। उन्होंने एक हिन्दु भाई का घर किराए पर ले लिया। वहां पर उन्हें हिन्दु धर्म-ग्रन्थों के अध्ययन का सुअवसर प्राप्त हुआ ओर उन्होंने कांचीपुरम मन्दिर के दर्शन भी किए। पादरी रहे्नियस ने महसूस किया कि पहले तो हिन्दु लोग केवल एक ही परमेश्वर पर विश्वास रखते थे, करोड़ों देवी-देवताओं की बात बाद में मानी जाने लगी है। इस प्रकार पादरी रहे्नियस ने हिन्दु समुदाय को अपील की कि वे फिर एक ही परमेश्वर को मानने लगें और यीशु मसीह की आराधना करें। यह उन्होंने उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए अपने हिसाब से मसीही प्रचार का अपना स्वयं का तरीका निकाला था।


तामिल नाडू में कई स्कूल खोले पादरी रहे्नियस ने

फिर कुछ हिन्दु भाईयों ने मिल कर पादरी रहे्नियस को सलाह दी कि वह अपना एक स्कूल खोलें। उस सलाह को मानते हुए पादरी रहे्नियस ने मद्रास में एक के बाद एक कई स्कूल खोल दिए। उन्होंने अपना कार्य तब मद्रास के अतिरिक्त पालमनेर एवं वन्दवासी नगरों में प्रारंभ कर दिया। उन्होंने तब जैन धर्म के पवित्र ग्रन्थ भी पढ़े। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था कि अधिकतर हिन्दु उन्हें अपने घर में दाख़िल नहीं होने देते थे और एक बार तो उन्हें पूरी रात पशुओं के तबेले में बितानी पड़ी थी।


बाईबल का सरल तमिल भाषा में अनुवाद किया पादरी रहे्नियस ने

1815 में कलकत्ता की बाईबल सोसायटी ने जोहान फ़िलिप फ़ैब्रिशियस द्वारा तामिल भाषा में किए गए पवित्र बाईबल के अनुवाद में कुछ संशोधन करने का निर्णय लिया। क्योंकि तामिल भाषा पढ़ने वाले लोगों को वह ठीक से समझ नहीं आती थी। तब पादरी रहे्नियस ने अपने हिसाब से नए नियम का तामिल भाषा में अनुवाद किया, जो सभी को आसानी से समझ में आता था।

पादरी रहे्नियस पर विभिन्न चर्चों के विभाजन का बहुत तनाव रहता था। अधिक सोचते रहने के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और 5 जून, 1838 को सायं 7ः30 बजे उनका निधन हो गया। उन्हें पलायमकोट्टाई के पास अदाईकलापुरम में दफ़नाया गया।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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