अल्पकाल में ही पादरी बार्थोलोमस ज़ीजेनबाल्ग ने तामिल नाडू में डाला वर्णनीय योगदान
विदेश से भारत आने वाले प्रथम पाइटिस्ट पादरी थे बार्थोलोमस ज़ीजेनबाल्ग
पादरी बार्थोलोमस ज़ीजेनबाल्ग एक जर्मन लूथरन मसीही थे, जो 1706 में भारत आए थे। उन्हें भारत आने वाले पहले प्रोटैस्टैन्ट मसीही मिशनरी भी माना जाता है। वह 9 जुलाई, 1706 को भारत आने वाले पहले पाइटिस्ट (पाइटिज़्म वास्तव में लूथरन मसीही समुदाय में चलने वाली एक मसीही सुधारवादी लहर का नाम है। पादरी फ़िलिप जेकब स्पैनर के प्रचार द्वारा इस लहर का प्रभाव 17वीं शताब्दी के अन्त में उत्तरी अमेरिका और यूरोप के लूथरन मसीही समुदाय पर बहुत अधिक पड़ा था) मिशनरी थे। उनका जीवन-काल चाहे कुछ छोटा रहा परन्तु तामिल नाडू में उनका योगदान आज भी वर्णनीय माना जाता है।
तामिल नाडू के तन्जौर क्षेत्र में पहली प्रिन्टिंग प्रैस लेकर आए थे पादरी बार्थोलोमस ज़ीजेनबाल्ग
पादरी बार्थोलोमस का जन्म 10 जुलाई, 1682 को जर्मनी के सैक्सनी नगर के पास पल्सनिटज़ नामक कस्बे में हुआ था। उनके पिता बार्थोलोमस ज़ीजेनबाल्ग-सीनियर (1640-1694) अनाज के व्यापारी थे तथा उनकी माँ का नाम मारिया नी ब्रक्नर (1646-1692) था। अपने पिता के ख़ानदान की ओर से उनके पूर्वज प्रसिद्ध बुत-तराश अर्नैस्ट फ्ऱैड्रिक ऑगस्त रीशेल थे तथा माँ की ओर से उनके पूर्वजों में प्रसिद्ध दार्शनिक जोहान्न गोट्टिलेब फ़िश्टे थे। प्रारंभिक आयु में श्री बार्थोलोमस ने संगीत में अपनी रुचि दिखाई थी। उन्होंने युनिवर्सिटी ऑफ़ हैले से शिक्षा ग्रहण की थी। डैनमार्क के राजा फ्ऱैड्रिक-चतुर्थ के संरक्षण में पादरी बार्थोलोमस को उनके एक अन्य सहपाठी हीनरिच प्लूटशो के साथ भारत भेजा गया था। वह 1706 में तामिल नाडू के नगर त्रानक्युबार (अब तरंगमबाड़ी) स्थित डैनिश बस्ती में आए थे।
पादरी बार्थोलोमस अपने साथ केवल लूथरन मसीही सिद्धांत ही नहीं, बल्कि वे अपने साथ समुद्री जहाज़ में तामिल नाडू के तन्जौर क्षेत्र में पहली प्रिन्टिंग प्रैस भी लेकर आए थे। उन्होंने अनेक तमिल पुस्तकें प्रकाशित की थीं। उन्होंने शीघ्र ही तमिल भाषा में सुविज्ञता प्राप्त कर ली थी।
भारत में धर्म, जाति व जाति के आधार पर भेदभाव का पादरी बार्थोलोमस ज़ीजेनबाल्ग ने किया ज़ोरदार विरोध
पादरी बार्थोलोमस ने अपने समय में ऐसे कुछ स्थानीय ब्राह्मणों का ज़ोरदार विरोध किया था, जो अपने हिन्दु धर्म में जाति एवं वर्ण को बढ़ावा देते थे। पादरी साहिब का मानना था कि यह पुजारी लोग अपने हिन्दु समाज के तथाकथित निम्न वर्गों से संबंधित लोगों व समुदायों का अपमान करते हैं। यही कारण था कि एक समूह ने उनकी हत्या करने का षड़यंत्र भी रच लिया था। परन्तु पादरी बार्थोलोमस निर्भीक रह कर भरी सभाओं में अपने ज़ोरदार भाषण देते थे और सभी धर्मों व वर्णों के लोग उन्हें बहुत ध्यान से सुनते थे।
थोड़ा विवाद में भी फंस गए थे पादरी बार्थोलोमस ज़ीजेनबाल्ग
1708 में एक विवाद भी पैदा हो गया था कि क्या एक जर्मनी सैनिक की अवैध संतान तथा एक ग़ैर-मसीही महिला को बप्तिस्मा दिया जाना चाहिए या नहीं और क्या उन्हें रोमन कैथोलिक या प्रोटैस्टैन्ट मसीही समुदाय में शामिल किया जाए या नहीं। पादरी बार्थोलोमस के साथ ही भारत आए हीनरिच प्लूटशो को इस मामले में अदालत में पेश होना पड़ा था। इस मामले में पादरी बार्थोलोमस ने लिखा था कि ‘‘रोमन कैथोलिक लोगों ने ख़ुशी मनाई क्योंकि हम पर मुकद्दमा चल रहा था और वे अधिकृत थे।’’
इसके उपरान्त पादरी बार्थोलोमस को एक दंपत्ति के मामले में अधिकारियों के समक्ष कुछ न बोलने के कारण कुछ समय के लिए जेल भी जाना पड़ा था।
दो वर्ष तक भारत से बाहर रहना पड़ा था पादरी बार्थोलोमस को
स्थानीय अधिकारियों के साथ विवादों के चलते पादरी बार्थोलोमस को 1714-1716 में यूरोप वापिस जाना पड़ा था परन्तु वह फिर भारत लौट आए थे। 1716 में उन्होंने विवाह किया था। वह एंग्लिकन सोसायटी के साथ भी सक्रिय रहे थे।
पादरी बार्थोलोमस ने तमिल भाषा में पहली बार किया था बाईबल के नए नियम का अनुवाद
1708 में उन्होंने पवित्र बाईबल के नए नियम का अनुवाद तामिल भाषा में प्रारंभ किया था, जो 1711 तक चला था। परन्तु वह 1714 तक भी प्रकाशित नहीं हो पाया था क्योंकि पादरी बार्थोलोमस को अपने अनुवाद में संपूर्णता चाहिए थी, इसी लिए वह अपने अनुवाद में बार-बार संशोधन करते रहते थे। उनका और भी बहुत सा मसीही साहित्य प्रकाशित हुआ।
पादरी बार्थोलोमस का स्वास्थ्य काफ़ी ख़राब रहा करता था। इसी लिए उनका निधन 36 वर्ष की छोटी सी आयु में ही 23 फ़रवरी, 1719 को त्रानक्युबार में हो गया था। उन्हें न्यू जेरुसलेम चर्च में दफ़नाया गया था। यह चर्च उन्होंने ही 1718 में त्रानक्युबार में स्थापित किया था।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]