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डोनाल्ड एण्डरसन मैकगाव्रन के ख़ानदान ने भारत में की 279 वर्ष सेवा
एक मसीही मिशनरी को क्या करना चाहिए, यह समझाया पादरी डोनाल्ड एण्डरसन मैकगाव्रन ने
पादरी डोनाल्ड एण्डरसन मैकगाव्रन अमेरिकन राज्य कैलिफ़ोर्निया के नगर पासादेना स्थित फ़ुलर थ्योलोजिकल सैमिनरी के वर्ल्ड मिशन के स्कूल में चर्च विकास एवं दक्षिण एशियाई अध्ययन के संस्थापक, इस मिशन के डीन (1965) तथा प्रोफ़ैसर थे। उनके पिता व दादा भी भारत में मसीही धार्मिक सेवा किया करते थे। पादरी डोनाल्ड मैकगाव्रन स्वयं 1923 से लेकर 1961 तक भारत में एक मिशनरी के तौर पर सक्रिय रहे थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा में मसीही सुसमाचार के कई अनुवाद किए थे। वह ऐसा नहीं मानते थे कि यदि मसीही मिशनरी कल्याण-कार्य करेंगे, शिक्षा, मैडिसन, अकाल राहत के क्षेत्र में अग्रणी कार्य करेंगे या विश्व के साथ मित्रता बनाएंगे, तभी आप यीशु मसीह की शिक्षाओं का प्रचार सही ढंग से कर पाएंगे। उनका विश्वास था कि एक मिशनरी का कार्य केवल धार्मिक प्रचार करना है और उसे वह ईमानदारी से करना चाहिए।
1923 में भारत में हुए अध्यापक नियुक्त
पादरी डोनाल्ड मैकगाव्रन का जन्म 15 दिसम्बर, 1897 में भारत के वर्तममान मध्य प्रदेश राज्य के नगर दमोह में हुआ था। 1961 तक उनका परिवार (पिता व दादा सहित) 279 वर्ष की मसीही सेवा निभा चुके थे। उनके पिता श्री जॉन मैकगाव्रन भी बहुत लोकप्रिय मिशनरी रहे थे।
श्री डोनाल्ड मैकगाव्रन ने प्रारंभिक शिक्षा तो मध्य प्रदेश में ही प्राप्त की थी परन्तु वह शीघ्र ही अमेरिका चले गए थे और वहां जाकर ओकलाहोमा राज्य के तुल्सा स्थित स्कूल व बाद में इण्डियाना राज्य के नगर इण्डियानापोलिस से ग्रहण की थी।
1923 में जब वह एक मिशनरी के तौर पर पहली बार भारत आए थे, तो वह ‘युनाईटिड क्रिस्चियन मिशनरी सोसायटी ऑफ़ दि क्रिस्चियन चर्च’ (डिसाईप्लस ऑफ़ क्राईस्ट) के अध्यापक नियुक्त हुए थे। 1929 में वह धार्मिक शिक्षा के निदेशक बने और फिर उन्हें कोलम्बिया युनिवर्सिटी से अपनी पी-एच.डी. की डिग्री लेने हेतु अमेरिका वापिस जाना पड़ा। 1932 में वह भारत लौटे तथा समस्त भारत के क्षेत्र-सचिव नियुक्त हुए। 1961 में वह भारत से अमेरिका लौट गए थे। उनका निधन 1990 में हुआ।
पादरी डोनाल्ड मैकगाव्रन पर विलियम केरी, रोलैण्ड ऐलन एवं कैनेथ स्कॉट लैटुअरेट जैसे भारत में कार्यरत रहे मसीही मिशनरियों का प्रभाव बहुत अधिक रहा। वैसे सब से अधिक प्रभावित वह जे. वास्कॉम पिकेट से थे, जिनके बारे में वह कहा करते थे कि ‘मैं अपना दीया पिकेट की आग से जलाता हूँ।’ पिकेट एवं मैकगाव्रन दोनों ही पादरी जॉन आर. मौट एवं स्टूडैन्ट वॉलन्टियर मूवमैन्ट से अत्यंत प्रभावित थे। श्री पिकेट भारत में 46 वर्ष तक पादरी, संपादक, प्रकाशक, मसीही काऊँसिलों के सचिव के तौर पर कार्य करते रहे।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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