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दक्षिण भारत में सक्रिय रहे जॉर्ज यूगलो पोप



 




 


जॉर्ज यूगलो पोप तामिल साहित्यिक कृतियों का किया था अंग्रेज़ी में अनुवाद

श्री जॉर्ज यूगलो पोप (जिन्हें अधिकतर जी.यू. पोप के नाम से अधिक जाना जाता रहा है) कैनेडा में पैदा हुए एक एंग्लिकन मसीही मिशनरी थे, जो इंग्लैण्ड होते हुए 1839 में भारत के वर्तमान तामिल नाडू राज्य में पहुंचे थे। उनकी विशेषता यह थी कि उन्होंने पहले तो तामिल भाषा में सुविज्ञता प्राप्त की और फिर अनेक तामिल साहित्यिक कृतियों व अन्य रचनाओं का अंग्रेज़ी भाषा में उत्कृष्ट अनुवाद किया। वह 40 वर्षों तक तामिल नाडू में रहे। उनके द्वारा अनुवादित ‘तिरूकुरल’ एवं ‘तिरूवचगम’ नामक दो पुस्तकें तो आज भी लोकप्रिय हैं। वह बंगलौर स्थित बिशप कॉटन बुआएज’ स्कूल के मुख्य रहे तथा वह ऑक्सफ़ोर्ड (इंग्लैण्ड) के बल्लियोल कॉलेज में लैक्चरार भी रहे। तामिल भाषा में उनके वर्णनीय योगदान को देखते हुए उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप चेन्नई के समुद्री तट के समीप ही उनका एक बुत भी स्थापित किया गया है। वह तामिल भाषा के ही नहीं, बल्कि तेलगू व संस्कृत भाषाओं के भी विद्वान थे। तामिल नाडू में उन्हें प्यार से पोप अय्यर के नाम से स्मरण किया जाता है। तामिल व तेलगू भाषा में उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं थीं।


14 वर्ष की आयु में मसीही मिशनरी बन गए थे जॉर्ज यूगलो पोप

श्री जी.यू. पोप का जन्म 24 अप्रैल, 1820 को कैनेडा के राज्य प्रिस एडवर्ड आईलैण्ड के छोटे से कस्बे बीडैक में हुआ था। उनके पिता श्री जॉन पोप (1791-1863) इंग्लैण्ड के कॉर्नवाल के नगर पैडस्टो के एक व्यापारी थे, जो मिशनरी बन गए थे। वह 1818 में कैनेडा चले गए थे। श्री जी.यू. पोप की माँ का नाम कैथरीन यूगलो (1797-1867) था, जो इंग्लैण्ड के उत्तरी कॉर्नवाल के नगर स्ट्रैटन में पैदा हुईं थीं। 1826 में इंग्लैण्ड के नगर प्लामाऊथ में लौटने से पूर्व उनका परिवार कैनेडा के राज्य नोवा स्कौशिया में जाकर रहने लगा था। इंग्लैण्ड लौटने के पश्चात् श्री जॉन पोप एक अत्यंत समृद्ध व्यापारी बन गए थे और उनका अपना एक बड़ा समुद्री जहाज़ भी बन गया था। श्री जी.यू. पोप तथा उनके छोटे भाई विलियम बर्ट पोप ने बरी एवं हौक्सटन के वैजि़्लयन स्कूलों से शिक्षा ग्रहण की थी और 14 वर्ष की आयु में ही श्री जॉर्ज यूगलो पोप मसीही मिशनरी बन गए थे।


पत्नी के देहांत के पश्चात् दूसरा विवाह रचाया

श्री जी.यू. पोप 1839 में तामिल नाडू के नगर टूटीकॉर्न के समीप सायेरपुरम पहुंचे थे। तब वह ‘सोसायटी फ़ार दि प्रौपेगेशन ऑफ़ दि गॉस्पल’ नामक संस्था से जुड़े हुए थे। यह इंग्लैण्ड की संस्था थी, जो दक्षिण भारत में सक्रिय थी। तामिल भाषा श्री पोप ने इंग्लैण्ड में ही सीख ली थी और वह वहीं पर तामिल भाषा पढ़ाया भी करते थे। 1841 में उन्हें चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड का पादरी नियुक्त किया गया था और उसी वर्ष उन्होंने एक अन्य एंग्लिकन पादरी की बेटी मेरी कार्वर से विवाह रचाया था। श्री जी.यू. पोप पोप ने तामिल नाडू के तिरूनेलवेली क्षेत्र में अधिक कार्य किया था तथा क्रिस्चियन फ्ऱैड्रिक शवार्ज़ जैसे मिशनिरयों के साथ मिल कर विचार-विमर्श किया करते थे। 1845 में उनकी पत्नी मेरी का निधन हो गया और उसके बाद वह मद्रास चले गए। फिर उन्होंने 1849 में जी. वैन सोरन की बेटी हैनरीटा पेज से विवाह किया था और इंग्लैण्ड लौट गए थे। उसी समय के दौरान उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड की कैथोलिक लहर के बहुत सी शख़्सियतों जैसे कि कार्डीनल हैनरी एडवर्ड मैनिंग, आर्कबिशप ट्रैंच, बिशप सैमुएल विल्बरफ़ोर्स, बिशप जॉन लोन्सडेल, ई.बी. पूसी एवं जॉन कैब्ल के साथ मिल कर मसीही कार्य किए थे।


चर्च के अन्दुरूनी विवादों का करना पड़ा था सामना

1851 में वह पुनः तामिल नाडू के नगर तन्जौर (जिसे आज तन्जावूर कहते हैं) में लौट आए थे और सेंट पीटर’ज़ स्कूल में पढ़ाने लगे थे। वहां पर उनके अन्य मिशनरियों के साथ कुछ मतभेद हो गए थे। दरअसल, 1855 में एक तामिल पुजारी वेदनायकम शास्त्री उस समय के प्रसिद्ध मिशनरी क्रिस्चियन फ्ऱैड्रक शवार्ज़ के शिष्य हुआ करते थे। श्री वेदनायकम तत्कालीन महाराजा सर्फोजी के दरबार में कवि भी थे। उनके साथ सार्वजनिक तौर पर मार-पीट हुई थी और उस घटना के बाद तामिल चर्च को एंग्लिकन चर्च से मुक्त कर दिया गया था, जिसके कारण श्री जी.यू. पोप को त्याग-पत्र देना पड़ा। तब उन्होंने नए एग्लिकन तामिल पादरियों के प्रशिक्षण हेतु स्वायरपुरम में एक सैमिनरी (धार्मिक शिक्षा देने वाला स्कूल) की स्थापना की थी। परन्तु वहां पर भी कुछ विवाद उत्पन्न हो गए। तब श्री जी.यू. पोप ने 1859 में ऊटकमण्ड (जिसे तब ऊधगमण्डलम कहा जाता है और आज यह नगर ऊटी के नाम से प्रसिद्ध एक वर्णनीय पर्यटक स्थल है) में जाकर रहने का निर्णय लिया था।


यूरोपियन बच्चों के लिए ऊटी में किया था एक ग्रामर स्कूल स्थापित

ऊटी में श्री जी.यू. पोप ने यूरोपियन बच्चों के लिए एक ग्रामर स्कूल की स्थापना की और वह स्कूल 1870 तक चलता रहा और आज उस में सरकारी आटर््स स्कूल एवं स्टोनहाऊस चलता है। इस ग्रामर स्कूल का उद्घाटन स्टोनहाऊस कॉटेज में 2 जुलाई, 1858 को मद्रास के बिशप ने किया था और श्री जी.यू. पोप इसके प्रिंसीपल बने थे। श्री पोप ने ऊटी में ही होली ट्रिनिटी चर्च की स्थापना की थी। अनुशासन के मामले में वह सख़्त थे तथा 1870 में वह बंगलौर के बिशप कॉटन’ज़ स्कूल के प्रिंसीपल नियुक्त हुए थे।


इंग्लैण्ड में तामिल एवं तेलगू भाषाओं के लैक्चरार रहे जी.यू. पोप

1881 में वह बंग्लौर स्थित ऑल सेंट्स चर्च के पहले पादरी भी नियुक्त हुए। 1881 में वह इंग्लैण्ड लौट गए तथा ऑक्सफ़ोर्ड में सैटल हो गए, जहां वह तामिल एवं तेलगू भाषाओं के लैक्चरार रहे। 1886 में उन्हें एम.ए. (स्नातकोत्तर) की मानद डिग्री प्रदान की गई थी। 1906 में उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसायटी का स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुए था।

श्री जी.यू. पोप का निधन 11 फ़रवरी, 1908 को हुआ था। उन्होंने आख़री बार 26 मई, 1907 को चर्च की एक प्रार्थना-सभा का नेतृत्त्व किया था। उनकी मृत देह को इंग्लैण्ड के केन्द्रीय ऑक्सफ़ोर्ड नगर जैरिका के सेंट सैपल्कर कब्रिस्तान में दफ़नाया गया था। उनकी पत्नी हैनरीटा का निधन 11 सितम्बर, 1911 को हुआ। श्री जी.यू. पोप से उनकी दो बेटियां थीं तथा तीन बेटे थे। श्रीमति हैनरीटा को भी श्री पोप के पास ही दफ़नाया गया था।

श्री जी.यू. पोप के तीनों बेटे भारत में ही काम करते रहे थे। एक बेटे जॉन वान सोमरन पोप ने बर्मा (अब म्यांमार) में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया था। दूसरे बेटे आर्थर विलियम यूगलो पोप भारत व चीन में रेलवे इन्जिनियर रहे थे तथा तीसरे पुत्र लैफ़्टीनैंट-कर्नल थॉमस हैनरी ने मद्रास मैडिकल कॉलेज में ऑफ़्थालमौलोजी के प्रोफ़ैसर थे।


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