अमेरिका व अन्य देशों में भी गांधी जी के सिद्धांतों पर चलते रहे राल्फ़ टी. टैम्पलिन
समस्त जीवन महात्मा गांधाी जी के प्रशंसक बने रहे राल्फ़ टी. टैम्पलिन
श्री राल्फ़ टी. टैम्पलिन (1896-1984) एक अमेरिकन मसीही मिशनरी थे, जो 1925 से लेकर 1940 तक भारत में सक्रिय रहे और सदा राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी जी के विचारों के प्रशंसक बने रहे। वह एक शिक्षाविद्, प्रकाशक एवं सामाजिक कार्यकर्ता थे। 1954 में श्री टैम्पलिन ‘मैथोडिस्ट लैक्सिंग्टन कान्फ्ऱेंस’ के पहले श्वेत पादरी बने थे, क्योंकि उससे पूर्व उसके सभी पादरी काले मूल के ही हुआ करते थे।
भारत पक्षीय विचारों के कारण अंग्रेज़ सरकार ने ज़बरदस्ती डीपोर्ट कर दिया था राल्फ़ टी. टैम्पलिन को
राल्फ़ टी. टैम्पलिन ‘क्राईस्टग्रह’ (मसीही अहिंसा) आन्दोलन में सक्रिय रहे। वह गांधी जी के राष्ट्रवादी आन्दोलनों के सदा समर्थक बने रहे, इसी लिए अत्याचारी अंग्रेज़ सरकार ने श्री टैम्पलिन को ज़बरदस्ती देश से वापिस भेज दिया था, क्योंकि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार यही समझती थी कि यदि कोई गोरा ही इंग्लैण्ड की सरकार के ग़लत कार्यों की आलोचना करे, उससे उसकी छवि अधिक बिगड़ती थी। अंग्रेज़ सरकार ने ऐसे बहुत से विदेशी मसीही मिशनरियों को डीपोर्ट किया था, क्योंकि वे सभी यीशु मसीह के सच्चे उपदेशों व सिद्धांतों पर चलते थे और उस सरकार की तीखी नुक्ताचीनी करते थे।
राल्फ़ टी. टैम्पलिन ने पुएर्टो रिको देश में रह कर किया था गांधी जी के विचारों का प्रचार
भारत से अमेरिका लौटने पर उन्होंने जे होम्स स्मिथ के साथ मिल कर हरलेम आश्रम की स्थापना की और अमेरिका में रहने वाले अफ्ऱीकी मूल के लोगों तथा पुएर्टो रिको देश (जिसे अमेरिका का 51वां राज्य भी कहा जाता है) से आकर अमेरिका में बसे समुदायों में गांधी जी के विचारों का प्रचार व पासार किया। वह न्यू यार्क के सफ़्रन में स्थित अहिंसावादी ‘स्कूल ऑफ़ लिविंग’ के निदेशक भी बने।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकन नीतियों का किया था विरोध
श्री टैम्पलिन ने पहले विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकन वायु सेना के लिए भी काम किया था परन्तु उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ड्राफ़्ट हेतु अपना नाम रजिस्टर करवाने से साफ़ इन्कार कर दिया था तथा उन्होंने बाद में युद्ध में हुए अधिक ख़र्चों के कारण टैक्स देने से भी मना कर दिया था। सन् 1948 में उन्होंने अमेरिका में अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर ‘पीसकीपर्स’ नामक संगठन भी स्थापित किया था, जो द्वितीय विश्व युद्ध के कारण अमेरिका में नए टैक्सों का विरोध करने वाला पहला संगठन था।
अमेरिका में भी सदा गांधी जी के सि;द्धांतों को पालन किया राल्फ़ टी. टैम्पलिन ने
बाद में श्री टैम्पलिन ने जो भी कार्य किए, वे सभी गांधी जी के सिद्धांतों के अनुरूप ही हुआ करते थे।
1955 में जब ईथल एवं जूलियस रोज़ेनबर्ग को अमेरिकन प्रशासन द्वारा फांसी दी गई थी, तो उन्होंने गंाधी जी की तरह ही 12 दिनों तक उपवास रख उस का विरोध प्रकट किया था। दरअसल ‘‘श्रीमति ईथल एवं श्री जूलियस ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एटम बम तथा अमेरिकन सेना की जासूसी करते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी सोवियत रूस को सौंपी थी’’, इसी लिए उन्हें फांसी दी गई थी। तब अमेरिका में बहुत से लोगों ने इसका विरोध किया था।
पुएर्टो रिको की स्वतंत्रता के लिए भी संघर्ष किया
श्री राल्फ़ टी. टैम्पलिन ने तब भी उपवास रखा था, मार्टिन लूथर किंग की हत्या हुई थी। फिर 1965 में जब अमेरिकन संसद की कुछ कथित देश-विरोधी गतिविधियों के बारे में विचार करने वाली एक समिति ने उन्हें पूछताछ करने हेतु बुलाया था, तो उन्होंने उसके समक्ष प्रस्तुत होने से भी इन्कार कर दिया था। उन्होंने पुएर्टो रिको की स्वतंत्रता के लिए भी संघर्ष किया था।
उनके द्वारा लिखित पांच पुस्तकें भी काफ़ी चर्चित रही हैं; जिनमें से ‘बिटवीन टू वर्ल्डसः दि स्टोरी ऑफ़ ए मिशनरी’ज़ एक्सपीरियंसज़ इन इन्टरनैश्नल फ़ैलोशिप’ (दो विश्वों के बीचः अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में एक मिशनरी के अनुभव) नामक पुस्तक सचमुच वर्णनीय है। यह पुस्तक 1948 में फ़ैलोशिप पब्लीकेशन्ज़ द्वारा प्रकाशित की गई थी। उन्होंने 1965 में ‘डैमोक्रेसी एण्ड नॉन-वायलैंस’ (लोकतंत्र एवं अहिंसा) नामक पुस्तक भी लिखी थी।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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