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भारतीय महिलाओं के दुःख दूर करने में जीवन बिता दिया अमेरिकन डॉ. इडा सोफ़िया ने



 




 


बीमार भारतीय महिलाओं की सेवा करने वाली डॉ. इडा सोफ़िया

डॉ. इडा सोफ़िया स्कडर अमेरिका के रिफ़ार्मड चर्च की ओर से भारत आने वाली तीसरी पीढ़ी की अमेरिकन मैडिकल मसीही मिशनरी थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन भारतीय महिलाओं के दुःख दूर करने तथा भारतीय लोगों की ब्यूबोनिक प्लेग, हैज़ा एवं कुष्ट रोग जैसी बीमारियों से लड़ने में ही बिताया। उन्होंने एशिया के अग्रणी मैडिकल कॉलेजों एवं अस्पतालों में से एक ‘क्रिस्चियन मैडिकल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल, वेल्लोर’ (तामिल नाडू) की स्थापना भी की थी।


डॉ. इडा सोफ़िया दुःखी हुईं थीं भारतीयों की अनेक समस्याएं देख कर

डॉ. इडा सोफ़िया का जन्म 9 दिसम्बर, 1870 को डॉ जॉन स्कडर-जूनियर एवं उनकी पत्नी सोफ़िया के घर हुआ। वह जॉन स्कडर-सीनियर की छोटी सी पौत्री के तौर पर पहली बार भारत आईं थीं। उन्होंने देखा कि भारतीयों को अकाल, हद दर्जे की निर्धनता एवं विभिन्न रोगों से जूझना पड़ रहा था।


ऐसे लिया डॉ. इडा सोफ़िया ने डॉक्टर बनने का निर्णय

डॉ. इडा सोफ़िया को डवाईट मूडी ने अपने मासासूशैट्स (अमेरिकन राज्य) स्थित ‘नॉर्थफ़ील्ड सैमिनरी’ में अध्ययन हेतु आमंत्रित किया था। सैमिनरी में अध्ययन के पश्चात् उनके माता-पिता उनका विवाह करना चाहते थे, परन्तु 1890 में उन्हें अपने पिता की सहायता हेतु भारत वापिस जाना पड़ा क्योंकि उनकी माँ तामिल नाडू के नगर टिण्डीवनम स्थित मिशन के एक बंगले में बीमार पड़ी हुईं थीं। वह मैडिकल क्षेत्र में नहीं जाना चाहतीं थीं, तथापि, टिण्डीवनम में वह प्रसव पीड़ा का दुःख झेल रही तीन महिलाओं की सहायता भी करना चाहती थीं, परन्तु कर कुछ नहीं सकती थीं। वह तीनों महिलाएं एक ही रात में चल बसीं - इस घटना के पश्चात् उन्हें लगा कि उन्हें डॉक्टर ही बनना चाहिए, ताकि वह भारतीय महिलाओं की सहायता कर सकें। अपने मन में इस मिशन को ठान लेने के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन लोगों के दुःख हरने में लगा दिया और ताउम्र शादी नहीं की।


न्यूयार्क में की मैडिकल की पढ़ाई और बनीं कुआलीफ़ाईड डॉक्टर

1899 में उन्होंने अमेरिकी महानगर न्यू यार्क स्थित कॉर्नैल मैडिकल कॉलेज से ग्रैजुएशन संपन्न की। उस वर्ष पहली बार उस स्कूल ने महिलाओं को मैडिकल छात्राओं के तौर पर प्रवेश देना प्रारंभ किया था। कुआलीफ़ाईड डॉक्टर बनने के पश्चात् डॉ. इडा सोफ़िया भारत लौट आईं। वह बहुत प्रसन्न थीं, क्योंकि मैनहट्टन के एक बैंकर श्री शैल ने अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद में उन्हें 10,000 डॉलर दान के रूप में दिए थे, ताकि वह भारत में जाकर ज़रूरतमन्द लोगों की सहायता कर सकें। उस धन की सहायता से डॉ. इडा सोफ़िया ने मद्रास (अब चेन्नई) से 121 किलोमीटर दूर वेल्लोर में महिलाओं के लिए एक छोटी सी मैडिकल डिस्पैंसरी एवं क्लीनिक खोल ली।


तामिल नाडू में खोला महिला मैडिकल स्कूल

इसी बीच उनके पिता का देहांत 1900 में हो गया। परन्तु डॉ. सोफ़िया तो लोगों की सेवा करने में व्यस्त रहीं। दो वर्षों में उन्होंने 5,000 लोगों का उपचार किया। 1902 में उन्होंने मेरी टेबर शैल अस्पताल खोल दिया। तब उन्होंने महसूस किया कि वह अकेले दक्षिण भारत की महिलाओं के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने हेतु कुछ अधिक नहीं कर पाएंगी, इसी लिए उन्होंने एक महिला मैडिकल स्कूल खोलने का निर्णय लिया। पहले तो पुरुषों के समाज ने उनका मज़ाक उड़ाया और कहा कि उनके पास कोई लड़की मैडिकल पढ़ने नहीं आएगी परन्तु उन्होंने 1918 के अपने प्रथम बैच में केवल 151 छात्राओं को ही भर्ती किया और बहुत सी लड़कियों को निराश हो कर लौटना पड़ा। वेल्लोर के इस स्कूल को पहले केवल अमेरिका के रिफ़ार्म्ड चर्च का ही समर्थन प्राप्त था परन्तु 1945 में जब डॉ. इडा सोफ़िया ने लड़कों को भी अपने स्कूल में मैडिकल शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति दे दी, तो उन्हें तुरन्त 40 और मसीही मिशनों का समर्थन भी मिल गया। यह स्कूल आज भी सफ़लतापूर्वक चल रहा है तथा इसमें मैडिकल छात्रों के मुकाबले मैडिकल छात्राओं की संख्या अधिक होती है। आज यह ‘वेल्लोर क्रिस्चियन मैडिकल सैन्टर’ अस्पताल 2,000 बिस्तरों का हो चुका है तथा इसमें विश्व स्तरीय सुविधायें उपलब्ध हैं।


1928 में महात्मा गांधी जी पहुंचे थे डॉ. इडा सोफ़िया का मैडिकल स्कूल देखने

1928 में इस स्कूल को बगायम, वेल्लोर में एक पहाड़ी पर 200 एकड़ वाले परिसर में हस्तांत्रित कर दिया गया। 1928 में महात्मा गांधी जी भी इस मैडिकल स्कूल को देखने पहुंचे थे। डॉ. इडा सोफ़िया ने कई बार अपने कॉलेज के लिए फ़ण्ड इकट्ठा करने हेतु अमेरिका की यात्राएं कीं, ताकि वह अपने कॉलेज के विद्यार्थियों व रोगियों को अधिक से अधिक सुविधाएं दे सकें।


डॉ. इडा सोफ़िया, इण्डिया के पते पर ही तामिल नाडू पहुंच जाता था पत्र

डॉ. इडा सोफ़िया का बंगला कोडाईकनाल (तामिल नाडू) की पहाड़ी की चोटी पर स्थित था। वह अपने समय में केवल अपने कल्याण कार्यों के दम पर ही भारत में इतनी प्रसिद्ध हो गईं थीं कि विदेश से उनके प्रशंसकों के अनेकों पत्र ऐसे भी आया करते थे, जिन पर पते के नाम पर केवल - डॉ. इडा सोफ़िया, इण्डिया - लिखा होता था और वह पत्र सीधा उनके पास उनके कोडाईकनाल वाले पहाड़ी बंगले पर पहुंचता था।


डॉ. इडा सोफ़िया के नाम भारत में डाक टिकट भी हुआ जारी

उसी बंगले में ही 89 वर्ष की आयु में 23 मई, 1960 को उनका निधन हो गया।

12 अगस्त, 2000 को भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया था। उन के जीवन संबंधी देश व विदेश में अनेक पुस्तकें भी लिखीं जा चुकी हैं।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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