गांधी जी के करीबी व टैगोर के सैक्रेटरी विलियम पीयरसन ने अंग्रेज़ शासकों की क्रूरताओं का सदा किया विरोध
गांधी जी को दक्षिण अफ्ऱीका से लाने हेतु सी.एफ़. एण्ड्रयूज़ के साथ गए थे विलियम विनस्टैनले पीयरसन भी
इंग्लैण्ड के पादरी एवं शिक्षा-शास्त्री विलियम विनस्टैनले पीयरसन का योगदान देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में वर्णनीय है। वह एक अन्य विदेशी मिशनरी एवं भारत के गौरवशील स्वतंत्रता सेनानी श्री सी.एफ़. एण्ड्रयूज़ के घनिष्ठ मित्र थे। सन् 1914 में पादरी पीयरसन एवं श्री एण्ड्रयूज़ ही महात्मा गांधी जी को भारत वापिस लाने हेतु विशेष तौर पर दक्षिण अफ्ऱीका के नगर नटाल गए थे, ताकि गांधी जी भारत आकर स्वतंत्रता आन्दोलनों की बागडोर संभालें।
पादरी पीयरसन ने भारतीय मसीही समुदाय को सदा किया था अंग्रेज़ शासकों का विरोध करने हेतु प्रेरित
PHOTO: 'गांधी जी (बैठे हुए) के साथ सी.एफ़. एण्ड्रयूज़ व विलियम विनस्टैनले पीयरसन (खड़े दाएं)'
पादरी पीयरसन ने भारत के मसीही समुदाय को भी सदा अंग्रेज़ शासकों की ग़ुलामी का ज़ोरदार विरोध करने एवं स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने हेतु प्रेरित किया था। परन्तु इसके विपरीत जो विदेशी मसीही प्रचारक (विशेषतया ब्रिटिश अर्थात इंग्लैण्ड के और उत्तर भारत के मसीही समुदाय पर उनका प्रभाव अधिक था) तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार के पक्ष में थे; उनसे जब कोई भारतीय मसीही पूछता था कि उनकी समस्याओं का समाधान कब होगा अर्थात अंग्रेज़ भारत को छोड़ कर कब वापिस जाएंगे; तो वे या तो उन्हें बाईबल के हवाले से यह समझाया करते थे कि ‘राजा एवं शासक तो परमेश्वर की कृपा से ही नियुक्त होते हैं’ या फिर उन्हें केवल यह कह कर टाल दिया जाता था कि ‘दुआ करते रहो, आपकी समस्या का हल अवश्य होगा।’ कुछ ऐसे संस्कार ही वे भारत के मसीही समुदाय के मन में डालना चाह रहे थे कि वे कभी हमारा विरोध न करें और केवल प्रार्थनाओं से ही काम चला लें ताकि ब्रिटिश की महारानी का झण्डा भारत में ऊँचा बना रहे।
परन्तु एक सच्चा मसीही भला ऐसी बातें कब मानता है। यीशु मसीह ने सत्य एवं अहिंसा पर चलने का अडिग पथ हम सभी लोगों को सिखलाया है, अतः पादरी पीयरसन भी एक सच्चे मसीही की तरह ही भारत के अत्याचारी अंग्रेज़ शासकों के विरुद्ध डटे थे। इसी लिए वह महात्मा गांधी एवं राबिन्द्रनाथ टैगोर के करीबी रहे।
पादरी पीयरसन ने लिखी थी पुस्तक ‘फ़ार इण्डिया’, बने गांधी जी के समर्थक
उन्होंने ‘फ़ार इण्डिया’ (भारत के लिए) नामक एक पुस्तक भी लिखी थी, जो बहुत चर्चित हुई थी। उसे टोक्यो की ‘एशियाटिक एसोसिएशन ऑफ़ जापान’ ने 1917 में प्रकाशित किया था।
पादरी पीयरसन का जन्म इंग्लैण्ड के महानगर मानचैस्टर में 7 मई, 1881 ई. को हुआ था। वह कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी के विज्ञान विषय के ग्रैजुएट थे तथा 1907 में कलकत्ता आए थे। उन्होंने भवानीपुर के लन्डन मिशनरी कॉलेज में ‘बौटनी’ अर्थात ‘वनस्पति विज्ञान’ विषय पढ़ाया। शीघ्र ही वह महात्मा गांधी जी के प्रत्यक्ष समर्थक बन गए। उन्होंने टैगोर के बोलपुर स्थित स्कूल में भी पढ़ाया। उसके बाद उन्होंने शांति-निकेतन में भी अध्यापन किया। उन्होंने टैगोर की कुछ रचनाओं का अंग्रेज़ी अनुवाद भी किया था। दरअसल 1913 में टैगोर को नोबल साहित्य पुरुस्कार मिल चुका था, जिसके कारण वह विश्व में बहुत चर्चित थे।
पादरी पीयरसन बने महाकवि राबिन्द्रनाथ टैगोर के सचिव
पादरी पीयरसन 1916 में महाकवि राबिन्द्रनाथ टैगोर के सचिव (सैक्रेटरी) बन गए। टैगोर जब जापान एवं अमेरिका की यात्राओं पर गए थे, तब पादरी पीयरसन उनके सचिव के तौर पर उनके साथ थे। जापान में टैगोर ने उन्हें श्री औरोबिन्दो के शिष्यों पॉल एवं मीरा रिचर्ड (जो वास्तव में यहूदी परिवार से संबंधित थीं) से भी मिलवाया था। उन दोनों का पादरी पीयरसन पर बहुत प्रभाव पड़ा। जब मीरा 1920 में पांडीचिरी में आकर रहने लगीं, तो लोग उन्हें ‘मां’ ही कहा करते थे। पादरी पीयरसन वहां श्री औरोबिन्दो को मिलने के लिए गए थे। 1920-1921 में जब टैगोर एक बार फिर यूरोप एवं अमेरिका के दौरों पर गए थे, तब भी पादरी पीयरसन उनके साथ ही थे।
25 सितम्बर, 1923 को पादरी विलियम विनस्टैनले पीयरसन का निधन इटली में हो गया था।
अनिल नौरिया ने उपलब्ध करवाई थी पादरी विलियम विनस्टैनले पीयरसन संबंधी जानकारी
2014 में जब श्री सी.एफ़. एण्ड्रयूज़ एवं पादरी विलियम विनस्टैनले पीयरसन के गांधी जो को लाने हेतु दक्षिण अफ्ऱीका जाने के 100 वर्ष संपन्न हुए थे, तब श्री अनिल नौरिया ने पादरी पीयरसन संबंधी विशेष बहुमूल्य जानकारी प्रकाशित की थी। वास्तव में पीयरसन संबंधी जानकारी बहुत कम उपलब्ध है, इसी लिए श्री नौरिया ने उनके बारे में कुछ विशेष जानकारी लोगों को उपलब्ध करवाई थी। उनकी जानकारी के अनुसार पादरी पीयरसन के पिता डॉ. सैमुएल पीयरसन इंग्लैण्ड के एक प्रसिद्ध पादरी थे। उनकी माँ बर्था पीयरसन लन्डन के एक कुएकर (धार्मिक समुदाय) परिवार से संबंधित थीं। पादरी पीयरसन को बचपन में प्यार से विली कहा जाता था।
...जब गांधी जी को दक्षिण अफ्ऱीका से लाने हेतु गोखले जी हुए सक्रिय
फिर कुछ कारणों से बीमार पड़ जाने के कारण 1911 में पादरी विलियम विनस्टैनले पीयरसन को इंग्लैण्ड वापिस जाना पड़ा था परन्तु वह शीघ्र ही भारत लौट आए थे। तब उन्होंने दिल्ली में पढ़ाना प्रारंभ किया था। वह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर श्री सी.एफ़. एण्ड्रयूज़ के साथ दक्षिण अफ्ऱीका के नगर नटाल पहुंचे थे। श्री गोखले इस लिए चिंतित थे क्योंकि गंाधी जी उस समय 25 नवम्बर, 1913 से नटाल जेल में कैद थे और जेल में उन्हें बहुत अधिक परेशान किया जा रहा था। उसके बाद गांधी जी के एक अंग्रेज़ सहयोगी अल्बर्ट वैस्ट (जन्म 1880) को भी ग्रिफ़्तार कर लिया गया था, जो उस समय गांधी जी के समाचार-पत्र ‘इण्डियन ओपिनियन’ के कार्यकारी संपादक थे और अंग्रेज़ी अनुभाग को देखते थे। श्री वैस्ट पर दोष लगाया गया था कि वह कॉन्ट्रैक्ट्ड कर्मियों का साथ दे रहे थे। श्री वैस्ट की भी ग्रिफ़्तारी की बात सुन कर श्री गोपाल कृष्ण गोखले बहुत परेशान हो गए थे; और उन्होंने वहां पर भारत से कुछ योग्य व्यक्तियों को गांधी जी की सहायता एवं उन्हें भारत वापिस लाने के लिए भेजा था। उन्होंने तभी श्री सी.एफ. एण्ड्रयूज़ को तार देकर पूछा कि क्या वह दक्षिण अफ्ऱीका जाने के लिए तैयार हैं? गांधी जी अपने अहिंसक आन्दोलनकारी साथियों के साथ 2 जनवरी, 1914 को कारावास से रिहा हुए थे।
दक्षिण अफ्ऱीका में कार्यरत भारतीय कर्मचारियों के हक में पादरी पीयरसन ने किया दिल्ली समारोह को संबोधन
दक्षिण अफ्ऱीका आने से पूर्व ही श्री पीयरसन भारत में चर्चित हो चुके थे। श्री गोपाल कृष्ण गोखले ने दक्षिण अफ्ऱीका में इन्डैन्चर्ड (जो ठेके पर कार्यरत हों) भारतीय कर्मियों के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के विरुद्ध दिल्ली में एक विशाल जन-सभा का आयोजन किया था, जिसे अन्यों के अतिरिक्त यूरोपियनों की ओर से श्री पीयरसन ने भी संबोधित किया था।
पीयरसन करते थे ग़ैर-नैतिक मसीही नेताओं की आलोचना
दक्षिण अफ्ऱीका जाते समय लम्बी समुद्री यात्रा के दौरान श्री पीयरसन ने अपनी डायरी में लिखा था कि ‘‘मद्रास के बिशप तो बहुत मददगार हैं और वह दक्षिण अफ्ऱीका में भारतीय कर्मियों के समर्थन में स्टैण्ड ले रहे हैं परन्तु अधिकतर मसीही बिशप्स ऐसे नहीं हैं।’’ इस प्रकार श्री पीयरसन ने अप्रत्यक्ष ढंग से भारत के ग़ैर-नैतिक मसीही नेताओं की आलोचना भी की थी। उन्होंने नटाल में अपना अधिकतर समय वहां पर ईख (गन्ने) के खेतों में काम करने वाले भारतीय कर्मियों की स्थितियां जानने में बताया।
जांच आयोग के समक्षा दी थी दक्षिण अफ्ऱीका में भारतीय कर्मचारियों के पक्ष में गवाही
जनवरी 1914 के अन्त में श्री पीयरसन ने जांच कमिशन के समक्ष अपनी गवाही देते हुए यह भी कहा था कि 3 पाऊण्ड का जो टैक्स बिना मतलब दक्षिण अफ्ऱीका में विदेशी कर्मचारियों पर लगाया जा रहा है, वह अनुपयुक्त व अन्यायपूर्ण है। फिर फ़रवरी माह में श्री पीयरसन न्यूकैसल क्षेत्र का दौरा करने भी गए क्योंकि वहां भी नाराज़ ख़ान-मज़दूर हड़ताल करते ही रहते थे।
इस प्रकार श्री पीयरसन दक्षिण अफ्ऱीका में कर्मचारियों के साथ नसली घृणा के आधार पर हो रही मनमानियों के विरुद्ध अपना विरोध प्रकट करने में सफ़ल रहे थे। इसी लिए थोड़े से समय में ही लोग वहां पर उन्हें जानने लगे थे। श्री एण्ड्रयूज़ एवं श्री पीयरसन के साथ-साथ गोपाल कृष्ण गोखले के बार-बार ज़ोर देने के कारण गांधी जी जुलाई 1914 में सपिरवार भारत लौटने के लिए दक्षिण अफ्ऱीका से रवाना हो गए थे परन्तु पहले वह इंग्लैण्ड गए थे और 9 जनवरी, 2015 को भारत के महानगर बम्बई की बन्दरगाह पर उतरे थे। वह 20 वर्ष दक्षिण अफ्ऱीका में रहे थे।
पीयरसन ने अपने ब्रिटिश साथी शासकों की ग़लत बातों के विरुद्ध सदा उठाई एक सच्चे मसीही की तरह आवाज़
श्री अनिल नौरिया द्वारा गए दुर्लभ विवरणों के अनुसार 27 फ़रवरी, 1914 को श्री पीयरसन भारत वापिस जाने की यात्रा पर रवाना हो गए। श्री एण्ड्रयूज़ तब दक्षिण अफ्ऱीका में ही गांधी जी के पास कुछ और समय रहे। वापसी पर श्री पीयरसन ने 10 दिन एक अन्य अफ्ऱीकी देश मौज़म्बीक में भी बिताए और वहां पर रहने वाले भारतीयों की स्थिति के बारे में जाना। मौज़म्बीक में तब पुर्तगालियों का राज्य था। उन्होंने तब यह टिप्पणी की थी कि ब्रिटिश बस्तीवादी शासन वाले देशों के मुकाबले पुर्तगालियों के राज्य वाले देशों में ब्रिटिश नागरिकों के साथ अच्छा व्यवहार होता है। इस प्रकार श्री पीयरसन ने अपने ब्रिटिश साथी शासकों की ग़लत बातों के विरुद्ध सदा एक सच्चे मसीही की तरह आवाज़ उठाई। श्री पीयरसन 1915 में श्री सी.एफ़. एण्ड्रयूज़ के साथ ही फिजी देश भी गए, वहां पर भी कॉन्ट्रैक्ट पर कार्यरत भारतीय कर्मचारियों की समस्याएं थीं। 1918 में श्री पीयरसन को चीन में गिफ़्तार कर लिया गया था और बाद में वहीं से उन्हें इंग्लैण्ड वापिस भेज दिया गया था। इंग्लैण्ड में भी उन पर प्रतिबन्द्ध लगे रहे क्योंकि वह कभी सरकार की किसी भी ग़लती के विरुद्ध बोलने में चूकते नहीं थे। आख़िर 1921 में उन्हें भारत वापिस जाने की अनुमति मिल ही गई परन्तु उन पर चौकस नज़र रखी जाने लगी। तब वह इंग्लैण्ड लौट गए क्योंकि उनका स्वास्थ्य फिर बिगड़ने लगा था। 1923 में जब वह अपनी इटली यात्रा पर थे, तब 18 सितम्बर को वह चलती गाड़ी से नीचे गिर गए थे और 25 सितम्बर को उनका निधन हो गया था। उन्हें इटली के ही टस्कनी क्षेत्र के नगर पिस्तोईया स्थित कब्रिस्तान में दफ़नाया गया था।
ऐसे डट कर भारत की स्वतंत्रता का समर्थन करते थे पादरी पीयरसन
अपनी पुस्तक ‘फ़ार इण्डिया’ (1917 में प्रकाशित) के पहले पैरे से ही वह इंग्लैण्ड की सरकार की तीखी आलोचना करते दिखाई देते हैं। यह पुस्तक जब लिखी गई थी, तब सोवियत रूस में इन्कलाब आए को केवल 3 वर्ष ही बीते थे। उन्हीं दिनों में इंग्लैण्ड के प्रधान मंत्री लॉयड जॉर्ज (जो 6 दिसम्बर, 1916 से लेकर 19 अक्तूबर, 1922 तक प्रधान मंत्री रहे थे) ने कहा था कि रूस की क्रांति सफ़ल रही है तथा अब वहां के स्वतंत्र लोग अब अपने स्वाभिमान की रक्षा स्वयं कर सकते हैं। श्री पीयरसन ने श्री लॉयड की इसी बात पर व्यंग्य करते हुए लिखा था कि अपनी यही बात वह भारत के लोगों पर तत्काल क्यों लागू नहीं कर देते? अपनी इस पुस्तक में श्री पीयरसन ने डट कर भारत की स्वतंत्रता का समर्थन किया था। उन्होंने भारत के पक्ष में समस्त विश्व में से उदाहरणें दीं थीं और जी भर कर अंग्रेज़ सरकार को शर्मसार किया था। उन्होंने आयरलैण्ड की 70 वर्षीय महिला ऐनी बेसैन्ट की उदाहरणें भी दीं थीं, जिन्होंने सदा इंग्लैण्ड के शासकों की ग़लतियों को उजागर किया। श्री पीयरसन ने भारत में अंग्रेज़ शासकों द्वारा बिना वजह ग्रिफ़्तार करके जेलों में डाले गए युवाओं को भी तत्काल रिहा करने की अपील की। उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ सरकार से चाहे भारत एवं भारतियों को अनेक लाभ भी पहुंचे हैं परन्तु शासकों की मनमानियों, नसली भेदभाव व अत्याचारों के चलते समस्त भारतीय उन्हें घृणा करने लगे हैं।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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