Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

भारत की अंग्रेज़ सरकार को सदा चुभते रहे स्कॉटलैण्ड के मसीही मिशनरी अर्नैस्ट फ़ॉरैस्टर पैटन



 




 


अर्नैस्ट फ़ॉरैस्टर पैटन व ऐस. जेूसूदासन ने की थी पहले प्रोटैस्टैन्ट मसीही आश्रम ‘क्रिस्टुकुला आश्रम’ की स्थापना

स्कॉटलैण्ड (इंग्लैण्ड) से आए मसीही मिशनरी अर्नैस्ट फ़ॉरैस्टर पैटन को तामिल नाम चिन्नन के नाम से भी स्मरण किया जाता है। वह पुणे में स्कॉटिश युनाईटिड फ्ऱी चर्च के मैडिकल मिशनरी रहे थे, जो तब बॉम्बे प्रैज़ीडैन्सी का भाग हुआ करता था। उन्होंने भारत में एक सह-मिशनरी एस. जेसूदासन (जो तामिल नाडू के नॉर्थ अर्कट के तिरुपत्तूर से थे, जो तब मद्रास प्रैज़ीडैन्सी का भाग था) के साथ मिल कर भारत में पहले प्रोटैस्टैन्ट मसीही आश्रम ‘क्रिस्टुकुला आश्रम’ की स्थापना की थी। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलनों में भी भाग लिया, जिसके कारण श्री पैटन तो अंग्रेज़ शासकों को सदा ही चुभते रहते थे।


पैटन ने मसीहियत के लिए छोड़ा था अमीर परिवार भी

Earnest Paton & S. Jesudasan श्री पैटन का जन्म स्कॉटलैण्ड के आलोआ स्थित एक अत्यंत धार्मिक परिवार में जुलाई 1891 में हुआ था। उनके पिता एक अमीर मिल मालिक थे। उनकी आंटी कैथरीन फ़ॉरैस्टर पैटन ने ग्लासगो में महिलाओं के लिए एक मिशनरी ट्रेनिंग कॉलेज खोला था। आलोआ में श्री पैटन ने अपनी प्राथमिक शिक्षा संपंन्न की। फिर वह कैम्ब्रिज के लीस स्कूल एवं वहीं के किंग’ज़ कॉलेज से अपनी शिक्षा ग्रहण की। अपने कॉलेज के दिनों मे ही वह विद्यार्थियों की मसीही गतिविधियों में सक्रिय हो गए थे तथा तभी उन्होंने निर्णय ले लिया था कि वह एक मिशनरी बनेंगे। अतः उन्होंने मसीहियत की बेहतरी हेतु अपना अमीर परिवार भी छोड़ दिया था।


ऐस. जेसूदासन ने प्रेरित किया था पैटन को भारत जाकर मिशनरी कार्य हेतु

1915 में जब श्री अर्नैस्ट पैटन लन्दन में अपने मैडिकल विषय के अंतिम वर्ष में पढ़ रहे थे, तो उनकी मुलाकात दक्षिण भारतीय के मसीही श्री एस. जेसूदासन से हुई थी। श्री जेसूदासन तब लन्दन मैडिकल मिशन अस्पताल में कार्यरत थे। यह माना जाता है कि श्री जेसूदासन ने ही श्री पैटन को भारत जा कर मिशनरी कार्य करने हेतु प्रेरित किया था। फिर उन दोनों को युनाईटिड फ्ऱी चर्च द्वारा पूना (पुणे) भेज दिया गया। परन्तु तब उन दोनों का ही मन मिशनरी कार्यों में नहीं लगा और वे इंग्लैण्ड लौट गए। परन्तु फिर 1920 में एक बार वे दक्षिण भारत में मिशनरी बन कर लौटे।


दक्षिण भारत में सदैव भारतीय वेश-भूषा में सादा जीवन व्यतीत किया पैटन ने

श्री पैटन ने दक्षिण भारत में 50 वर्षों तक मसीही मिशनरी कार्य किए। उन्होंने अपनी वेष-भूषा पूर्णतया दक्षिण भारतीय बना ली थी। उन्होंने सदा सादा जीवन व्यतीत किया। वह अपनी सारी कमाई अस्पतालों, स्कूलों एवं आश्रम बनाने के लिए देते रहे। वह श्री जेसूदासन के साथ वेल्लोर मैडिकल कॉलेज से जुड़े रहे तथा गांवों में कार्यरत रहते ही उन्होंने क्रिस्टुकुला आश्रम की स्थापना की। उन्होंने 1928 एवं 1932 में रिुपत्तूर में एक गिर्जाघर भी बनवाया।


पैटन ने लिया था गांधी जी के शहरी असहयोग आन्दोलन में भाग, ब्रिटिश पुलिस ने उन पर जम कर बरसाईं थीं लाठियां

श्री अर्नैस्ट फ़ॉरैस्टर पैटन ने 1930 में गांधी जी के शहरी असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। 29 फ़रवरी, 1932 को उन्हें इसी आन्दोलन के चलते धरना देने के अपराध में 1932 के आर्डीनैंस-5 के अंतर्गत ग्रिफ़्तार कर लिया गया था। मद्रास के एक रोष पर्दशन में पुलिस ने उन पर जम कर लाठिया बरसाईं थीं। भारत एवं इंग्लैण्ड दोनों देशों में उस घटना की बेहद चर्चा हुई थी। तब इस मामले को लेकर इंग्लैण्ड की संसद में भी प्रश्न किए गए थे। 18 मार्च, 1934 को गांधी जी तिरुपत्त्ूर पहुंचे तथा एस. जेसूदासन एवं श्री अर्नैस्ट फ़ॉरैस्टर पैटन से मुलाकात की थी।


राजागोपालचारी एवं गांधी जी ने किया था भारत के मसीही लोगों को संस्थागत चर्चों में सुधार करने का आह्वान

भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन जब तीव्रता ग्रहण कर रहे थे, तो पश्चिम के कुछ उदारवादी मिशनरियों तथा भारत के कुछ मसीही नेताओं ने इण्यिन नैश्नल कांग्रेस पार्टी के साथ मिल कर बंगाल एवं मद्रास प्रैज़ीडैन्सी में रहने वाले मसीही समुदाय को इस बात के लिए उत्साहित किया था कि वे मसीहियत को भारतीय परिपेक्ष में ही देखें। तब भारतीय वस्त्र पहनने को उत्साहित किया जाता था। तब मसीही नेताओं ने निर्णय लिया था कि मसीहियत को भारत की आध्यात्मिकता को भी समझना होगा। उसी समय के दौरान श्री सी. राजागोपालचारी एवं गांधी जी ने भारत के मसीही लोगों को संस्थागत चर्चों में सुधार करने का आह्वान किया था। इण्डियन नैश्नल कांग्रेस के साथ जुड़े मसीही नेता तब चर्च में पदक्रम (विभिन्न पद) एवं कुछ पश्चिमी रीतियों का विरोध करने लगे थे।


वर्तमान उत्तराखण्ड के सतताल में की थी मसीही आश्रम स्थापना

तभी भारत में मसीही आश्रम खोलने की बात चलने लगी थी। क्योंकि भारत में आश्रम की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। एक अन्य ब्रिटिश मैथोडिस्ट मसीही मिशनरी ई. स्टैन्ले जोन्ज़ ने 1930 में जब वर्तमान उत्तराखण्ड के सतताल में मसीही आश्रम की स्थापना की थी, तब गांधी जी ने उस का समर्थन किया था। तब मसीही आश्रमों को सरकारी ग्रांट एवं भूमियां भी मिलने लगीं थीं। गांधी जी एवं सी. राजगोपालचारी जैसे प्रमुख भारतीय नेताओं से प्रेरित होकर श्री अर्नैस्ट पैटन एवं श्री जेसूदासन ने भी अपने क्रिस्टुकुला आश्रम की स्थापना 1921 में तिरुपत्तूर में की थी। इसे भारत का प्रथम प्रोटैस्टैन्ट आश्रम भी माना जाता है। गांधी जी को भी इस आश्रम में आमंत्रित किया गया था।

श्री पैटन का निधन 2 मई, 1970 को तामिल नाडू के एक पहाड़ी स्थल कोटागिरी में हो गया था। वह कुछ समय के लिए इस नगर में आ गए थे, क्योंकि उस समय तिरुपत्तूर में बहुत अधिक गर्मी थी। श्री पैटन ने तीन पुस्तकें लिखीं थीं; जिनमें दो तो आश्रम पर थीं तथा तीसरी पुस्तक उनके धार्मिक संभाषणों पर आधारित थी।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]

 
visitor counter
Role of Christians in Indian Freedom Movement


DESIGNED BY: FREE CSS TEMPLATES