भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेकर ब्रिटिश सरकार को नाराज़ कर लिया था अमेरिकन मिशनरी राल्फ़ रिचर्ड कीतन ने
अग्र-दूत मसीही मिशनरी थे राल्फ़ रिचर्ड कीतन
दक्षिण भारतीय राज्य तामिल नाडू के ज़िले डिण्डीगुल में औड्डाचैन्त्रम स्थित क्रिस्चियन फ़ैलोशिप हॉस्पिटल के एक अन्तिम कोने में आपको एक कब्र दिखाई देगी, जिस पर एक असामान्य स्मृति-लेख लिखा हुआ दिखाई देता है, जो प्रारंभ तो बाईबल की आयतों से होता है परन्तु वह समाप्त ‘‘ओम शांति, शांति, शांति’’ जैसे हिन्दु धर्म के शब्दों से होता है और उस कब्र पर इसके साथ-साथ कमल का फूल भी खुदा हुआ है। यह कब्र एक अमेरिकन मिशनरी राल्फ़ रिचर्ड कीतन की है; जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था। उन्हें आज भी ‘अग्र-दूत मसीही मिशनरी, दलित-मित्र, क्रांतिकारी समाज सुधारक, उत्साही गांधीवादी, सर्वोदय नेता तथा यीशु मसीह का सच्चा शिष्य’ जैसे कई विशेषणों से याद किया जाता है।
वैसे तो श्री राल्फ़ रिचर्ड कीतन के साथ भी वही हुआ, जो अन्य लगभग सभी स्वतंत्रता संग्रामी रहे मसीही लोगों के साथ होता रहा है - कि चाहे उन्होंने भारत में कितने भी सेवा-कार्य किए, परन्तु कुछ स्वार्थी व अपनी दुकानदारी बन्द होने का उन्हें जानबूझ कर भुलाया जा रहा है। उनके योगदान का कहीं कोई ज़िक्र नहीं किया जाता फिर भी 16 अगस्त, 2015 को ‘दि टाईम्स ऑफ़ इण्डिया’ के संवाददाता जे. अरोकीराज ने श्री राल्फ़ संबंधी एक लेख लिखा था, जिससे उनके जीवन संबंधी कुछ जानकारी मिल पाती है।
महात्मा गांधी के प्रशंसक बने राल्फ़ रिचर्ड कीतन, ब्रिटिशा प्रशासन हो गया था नाराज़
श्री राल्फ़ का जन्म 1898 में अमेरिकी नगर सिल्वर लेक में हुआ था। 1925 में 27 वर्ष की आयु में वह भारत आ गए थे। तब उनका कार्य केवल लोगों की सेवा करते हुए यीशु मसीह का सुसमाचार सुनाना था। उन्होंने मनमदुराई में अपना कार्य प्रारंभ किया तथा बाद में वह मदुराई के पसुमलाई स्थित मिशनरी स्कूलों के प्रबन्धक भी बने।
श्री राल्फ़ भारत में कार्यरत रहते महात्मा गांधी एवं उनके अहिंसा के सिद्धांत के प्रशंसक बन गए। श्री राल्फ़ ने प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्री सी. राजगोपालचारी (जो बाद में भारत के अन्तिम गवर्नर जनरल भी बने) को मादक पदार्थों के सेवन के विरुद्ध एक संभाषण देने हेतु पसुमलाई में बुलाया। 1929 में श्री राल्फ़ विशेष तौर पर गांधी जी का आश्रम देखने हेतु साबरमती पहुंचे तथा गांधी जी से भी मिले।
श्री राल्फ़ की ऐसी गतिविधियों से ब्रिटिश अधिकारी तिलमिला उठे। एक सेवा-निवृत्त तामिल अध्यापक एवं स्थानीय इतिहासकार डी. देवराज अतिसयाराज ने इस संबंधी जानकारी देते हुए बताया कि उस समय मदुराई का कुलैक्टर (जिसे डिप्टी कमिश्नर भी कहा जाता है) हॉल नामक एक अंग्रेज़ हुआ करता था। उसने श्री राल्फ़ को तीन सप्ताह के लिए भारत छोड़ कर चले जाने का तानाशही आदेश सुना दिया। तब श्री राल्फ़ ने मद्रास के गवर्नर को अपील की, जहां उन्हें राहत मिली तथा कुलैक्टर के आदेश वापिस ले लिए गए।
राल्फ़ रिचर्ड कीतन ने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में लियाा भाग, तो ब्रिटिश सरकार ने वापिस भेजा अमेरिका
श्री राल्फ़ बाद में अमेरिका चले गए और तभी उनका विवाह हुआ परन्तु वह कुछ वर्षों के पश्चात् ही पुनः भारत लौट आए। उस समय देश में स्वतंत्रता आन्दोलन अपने शिख़र पर थे। वह एक सर्वोदय नेता बन गए तथा सक्रियतापूर्वक 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग लिया। परन्तु अंग्रेज़ सरकार ने तब भी उन्हें बर्दाश्त न किया और 1944 में उन्हें ज़बरदस्ती भारत से वापिस अमेरिका भेज दिया। परन्तु वापिस जाते समय वह मुंबई में गांधी जी एवं श्री राजगोपालचारी से मिले।
भारत के स्वतंत्र होने पर राजाजी (श्री सी. राजगोपालचारी को प्यार से इसी नाम से बुलाया जाता था) ने विशेष तौर पर श्री राल्फ़ को निमंत्रण भेजा। श्री राल्फ़ तत्काल भारत आ गए तथा 1984 में अपनी अंतिम श्वास तक औड्डाचैन्त्रम स्थित क्रिस्चियन फ़ैलोशिप हॉस्पिटल में ही रहे।
भारत में ग़रीबों व किसानों के साथ काम किए कीतन ने
श्री कीतन ने आजीवन ग़रीबों एवं दबे-कुचले लोगों के साथ-साथ किसानों के लिए काम किया। स्थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ता उन्हें ‘कीतनजी अन्नाची’ कह कर बुलाया करते थे। वह डिण्डीगुल स्थित गांधीग्राम युनिवर्सिटी से भी लम्बा समय जुड़े रहे। डिण्डीगुल स्थित गांधी अजायबघर के सचिव एम.पी. गुरुसामी ने बताया कि श्री राल्फ़ एक सच्चे गांधीवादी थे। इसी युनिवर्सिटी के भूतपूर्व उप-कुलपति जी. पंकजम ने श्री राल्फ़ पर एक पुस्तक भी लिखी है।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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