भारत के कबाइली क्षेत्रों में सक्रिय रहे ‘विवादग्रस्त’ हैरी वेरियर हॉलमैन एल्विन
1935 में गांधी जी के आश्रम में मसीहियत को त्याग हिन्दु धर्म अपना लिया था हैरी वेरयिर एल्विन ने
हैरी वेरियर हॉलमैन एल्विन का जन्म चाहे इंग्लैण्ड में हुआ था, परन्तु उन्होंने मानव-विज्ञान एवं नसल-विज्ञान के क्षेत्रों में अपने कार्य भारत में ही किए। वह कबाईली क्षेत्रों में कार्य करना अधिक पसन्द करते थे। उन्होंने भारत में एक मसीही मिशनरी के तौर पर अपना कार्य प्रारंभ किया। उनका व्यक्तित्त्व इस लिए कुछ विवादास्पद रहा क्योंकि उन्होंने पहले तो महात्मा गांधी जी तथा इण्डियन नैश्नल कांग्रेस के साथ कार्य करने हेतु अपने पादरी-कार्य का त्याग किया तथा फिर 1935 में जब वह गंाधी जी के आश्रम में रह रहे थे, तो उन्होंने हिन्दु धर्म ग्रहण कर लिया था। वह कबाईलियों के हितों के लिए लड़ते थे। वह समझते थे कि कबाईली लोग इतना शीघ्र एकत्र नहीं होंगे, जितना भारत के राष्ट्रवादी चाह रहे हैं। श्री एल्विन ने अपने अधिकतर कार्य उड़ीसा के बैगास तथा मध्य प्रदेश के गोन्ड क्षेत्रों में किए। उन्होंने अपना विवाह भी इन्हीं में से एक कबीले की लड़की से किया था। फिर उन्होंने उत्तर-पूर्वी भारत के कबाईलियों, विशेषतया ‘नॉर्थ-ईस्ट फ्ऱन्टियर एजेन्सी’ (एन.ई.एफ.ए.) के साथ मिशनरी कार्य किए तथा फिर मेघालय की राजधानी शिलौंग में ही रहने लगे। उन्होंने अपने जीवन में दर्जनों पुस्तकें भी लिखीं।
नेहरु ने हैरी एल्विन को किया था भारत सरकार का सलाहकार नियुक्त
वेरियर एल्विन 1945 में एन्थ्रोपॉलोजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया के उप-निदेशक के पद पर भी रहे। देश के स्वतंत्र होने के पश्चात् उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली थी। प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें उत्तर-पूर्वी भारत के कबाईली मामलों हेतु सलाहकार नियुक्त किया था तथा बाद में वह एन.ई.एफ़ए. (अब अरुणाचल प्रदेश) सरकार के ‘एन्थ्रोपौलोजी एडवाईज़र’ भी नियुक्त हुए थे। उनकी स्व-जीवनी ‘टाईबल वर्ल्ड ऑफ़ वेरियर एल्विन’ ने अंग्रेज़ी भाषा में 1965 का सहित्य अकादमी पुरुस्कार भी जीता था।
ऐसा था हैरी एल्विन का प्रारंभिक जीवन
श्री वेरियर एल्विन का जन्म 29 अगस्त, 1902 को सीएरा ल्योन के बिशप एडमण्ड हैनरी एल्विन के घर डोवर में हुआ था। उन्होंने डीन क्लोज़ स्कूल तथा मर्टन कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड में शिक्षा ग्रहण की थी, जहां उन्होंने अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य में बी.ए. फ़र्स्ट क्लास, एम.ए. एवं डी.एस-सी. की डिग्रियां प्राप्त की थीं। 1925 में वह ऑक्सफ़ोर्ड इन्टर-कॉलेजिएट क्रिस्चियन यूनियन के अध्यक्ष भी रहे थे।
1926 में वह ऑक्सफ़ोड स्थित वाइक्लिफ़ हॉल के वाईस-प्रिंसीपल भी नियुक्त हुए तथा अगले वर्ष वह ऑक्सफ़ोर्ड स्थित मर्टन कॉलेज के लैक्चरार बन गए। 1927 में वह एक मिशनरी के तौर पर भारत पुणे के एक व्यक्ति शामराव हिवाले के साथ गए थे तथा पुणे स्थित ‘क्रिस्चियन सर्विस सोसायटी’ में सम्मिलित हो गए। पहली बार वह केन्द्रीय भारत में गए, ये सभी क्षेत्र आज मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ एवं महाराष्ट्र के भाग हैं।
गांधी जी व टैगोर के विचारों से प्रभावित रहे हैरी एल्विन
समय के साथ-साथ श्री एल्विन महात्मा गांधी एवं राबिन्द्रनाथ टैगोर के विचारों से प्रभावित होते रहे। उन्होंने 1930 में भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भी भाग लिया था तथा गांधी जी ने एल्विन को ‘पुत्र’ कहा था।
1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् श्री एल्विन ने स्वयं नेहरु जी को देश के उत्तर-पूर्वी भागों की समस्याओं के समाधान ढूंढने का परामर्श दिया था। वह इण्डियन नैश्नल साइंस अकैडमी के फ़ैलो भी रहे। इतिहासकार रामचन्द्र गुहा ने उनकी स्व-जीवनी ‘सैवेजिंग दि सिविलाईज़्डः वेरियर एल्विन, हिज़ टाईबल्स एण्ड इण्डिया’ (1999) भी लिखी थी।
दो विवाह किए थे हेरी एल्विन ने
श्री एल्विन ने राज गोन्ड कबीले की एक लड़की कोसी के साथ विवाह किया था, जो मध्य प्रदेश के डिण्डोरी ज़िले में रायतवाड़ स्थित उन्हीं के स्कूल में छात्रा थी। चार अप्रैल, 1940 को विवाह के समय वह केवल 13 वर्ष की थी और एल्विन 38 वर्ष के थे। उनके एक पुत्र जवाहरलाल कुमार का जन्म 1941 में हुआ था। 1949 में कलकत्ता हाई कोर्ट में उनका तलाक हो गया था। वर्ष 2006 तक भी श्रीमति कोसी जीवित थीं तथा रायतवाड़ में एक झोंपड़ी में रह रहीं थी और तब उनके पुत्र का देहांत हो चुका था।
एल्विन ने 1950 के दश्क के प्रारंभ में पटनागढ़ के समीप प्रधान गोन्ड कबीले की एक अन्य महिला लीला से पुनः विवाह किया था, जिनसे उनके तीन पुत्र वसन्त, नकुल एवं अशोक हुए।
श्री एल्विन का देहांत 22 फ़रवरी, 1964 को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से हो गया था। उनकी विधवा लीला का देहांत 2013 में मुंबई में 80 वर्ष की आयु में हो गया था; जबकि उससे कुछ समय पूर्व उनके बड़े पुत्र वसन्त का निधन भी हो गया था।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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